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    गुरुदेव के संस्मरण ~ नीम करोली बाबा का दिव्य आशीष

    हनुमान जी के परम भक्त महाराज नीम करोली बाबा जी का जन्म सन 1900 के आस पास उत्तर- प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर नमक ग्राम में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। नीम करोली महाराज के पिता का नाम श्री दुर्गा प्रसाद शर्मा था। नीम करोली बाबा जी के बचपन का नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था। अकबरपुर के किहिरन गांव में ही उनकी प्रारंभिक शिक्षा- दीक्षा हुई। मात्र 11 वर्ष कि उम्र में ही लक्ष्मी नारायण शर्मा का विवाह हो गया था। परन्तु  जल्दी ही उन्होंने घर छोड़ दिया और लगभग 10 वर्ष तक घर से दूर रहे।

    एक दिन उनके पिता को किसी ने उनकी खबर दी, पिता उनसे मिले और गृहस्थ जीवन का पालन करने का आदेश दिया। पिता के आदेश को तुरंत मानते हुए वो घर वापस लौट आये और पुनः गृहस्थ जीवन आरम्भ कर दिया। गृहस्थ  जीवन  के साथ- साथ सामाजिक और धार्मिक कार्यों में वो बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया करते थे। बाद में ही दो बेटों एवं एक बेटी के पिता भी बन गए, परन्तु घर-गृहस्थी में लम्बे समय तक उनका मन नहीं रमा और कुछ समय बाद लगभग 1958 के आस- पास उन्होंने फिर से गृह त्याग कर दिया।

    घर-बार त्याग कर वो अलग-अलग जगह घूमने लगे। इसी भ्रमण के दौरान उनको हांड़ी वाला बाबा, लक्ष्मण दास, तिकोनिया वाला बाबा आदि नामों से जाना गया। मात्र 17 वर्ष की आयु में वे ज्ञान को उपलब्ध हो गए थे।। नीम करोली बाबा जी ने गुजरात के बवानिया मोरबी में साधना की और वहां वो तलैयां वाला बाबा के नाम से विख्यात हो गए। वृंदावन में महाराज जी, चमत्कारी बाबा के नाम से जाने गए वे हमेशा एक साधारण सा कम्बल ओढ़े रहते थे।

    कहते है कि गृह- त्याग के बाद, जब वो अनेक स्थानों के भ्रमण पर थे तभी एक बार बाबा जी एक स्टेशन से ट्रेन पर किसी वजह से बिना टिकट के ही चढ़ गए और प्रथम श्रेणी में जाकर बैठ गए। मगर कुछ ही समय बाद टिकट चेकर उनके पास आया और टिकट के लिए बोला, महाराज ने बोला टिकट तो नहीं है टिकट चेकर नहीं माना और उसने ट्रेन रुकवाकर बाबा जी को ट्रेन से उतार दिया और ट्रेन चलाने का आदेश दिया। मगर ट्रेन दुबारा स्टार्ट नहीं हुई। बहुत कोशिश की गयी, इंजन को बदल कर देखा गया मगर सफलता हाथ नहीं लगी।

    इसी बीच एक अधिकारी वहां पहुंचे और उन्होंने ट्रेन को अनियत स्थान पर रोके जाने का कारण जानना चाहा। तो कर्मचारियों ने पास में ही एक पेड़ के नीचे बैठे हुए साधु को इंगित करते हुए, कारण अधिकारी को बता दिया। वो अधिकारी बाबा जी की दिव्यता से परिचित था। अतः उसने बाबा जी को वापस ट्रेन में बिठाकर ट्रेन स्टार्ट करने को कहा। बाबा जी ने इंकार कर दिया परन्तु जब अन्य सहयात्रियों ने भी बाबा जी से बैठ जाने का आग्रह किया तो बाबा जी ने दो शर्ते रखी। एक कि उस स्थान पर ट्रेन स्टेशन बनाया जायेगा, दूसरा कि साधु सन्यासियों के साथ भविष्य में ऐसा बर्ताव नहीं किया जायेगा। रेलवे के अधिकारियों ने दोनो शर्तों के लिए हामी भर दी तो बाबा जी ट्रेन में चढ़ गए और ट्रेन चल पड़ी।

    बाद में रेलवे ने उस गांव में एक स्टेशन बनाया। कुछ समय बाद बाबा जी उस गांव में आये और वहां रुके तभी से लोग उन्हें नीब करोरी वाले बाबा या नीम करोली बाबा के नाम से जानने लगे।

    नीम करोली बाबा जी आगरा से वापस कैंची धाम आ रहे थे। जहां वो ह्रदय में दर्द की शिकायत के बाद जरुरी चिकित्सा जाँच के लिए गए थे, इसी बीच मथुरा स्टेशन पर पुनः दर्द  होने के कारण उन्होंने अपने शिष्यों को वृंदावन आश्रम वापस चलने के लिए कहा। तबियत ज्यादा ख़राब होने कि वजह से शिष्यों ने उन्हें वृंदावन में एक हॉस्पिटल के आकस्मिक चिकिस्ता सेवा कक्ष में भर्ती कर दिया। डॉक्टर्स ने उन्हें कुछ इंजेक्शन दिए और आक्सीजन मास्क लगा दिया

    कुछ ही देर में बाबा जी वापस बैठ गए और आक्सीजन मास्क को उतार कर कहा “बेकार”  (कि अब ये सब बेकार है) और बाबा जी धीरे- धीरे  कई बार “जय जगदीश हरे” पुकारते हुवे 11 सितम्बर 1973 को 1 बजकर 15 मिनट के समय परमशांति में लीन  हो गए।

    उन्होंने देश भर में हनुमान जी के लगभग 108 मंदिर बनवाए। उनके विदेशी शिष्य स्वामी रामदास जी ने नीम करोली बाबा के चमत्कारों पर ‘मिरेकल आफ लव’ नामक एक किताब 1960 के दशक में लिखी, जिससे वे विश्वविख्यात हो गए। उनके आश्रम में अमरीकी भक्त अत्यधिकसंख्या में आते थे।
    1962 में नीम करोली बाबा ने नैनीताल के पास कैंची गांव में एक चबूतरा बनवाया, जो बाद में उनके मुख्य धाम के रूप में विकसित हुआ। 

    कैंची धाम आश्रम में नीम करौली बाबा जी अपने जीवन के अंतिम दशक में सबसे ज्यादा रहे। यह धाम उत्तराखंड के नैनीताल से लगभग 17 किलोमीटर दूर अल्मोड़ा – नैनीताल रोड पर स्थित है। यह स्थान अत्यंत खूबसूरत एवं पहाड़ियों से घिरा हुआ है।
    आश्रम की स्थापना की वर्षगांठ के अवसर पर हर वर्ष 15 जून  को यहां पर मेले का आयोजन होता है, जिसमे देश विदेश से लाखो लोग हिस्सा लेते है।
    "आधुनिक युग में जीवन के रहस्यों पर से जिन्होंने पर्दा हटाया है, उनमें ‘माइकल न्यूटन’ का नाम अग्रणी है। इसलिए मैं कहूंगा कि आधुनिक युग में श्रेष्ठतम धर्म  ग्रंथ का किसी ने प्रतिपादन किया है, तो माइकल न्यूटन ने। और उस धर्म  ग्रंथ का नाम है ‘जर्नी ऑफ सोल्स’। आश्चर्य की बात है कि वह यहूदी था और यहूदी लोग पुनर्जन्म को नहीं मानते। इसलिए अपनी किताब में वह लिखता है - ‘मुझे लोग माफ करें!
    क्योंकि मैं जानता हूं कि मैं जिस धर्म को बिलांग करता हूं, और जिस देश को बिलांग करता हूं... अमेरिकन हूँ। वहां लोग पुनर्जन्म को नहीं मानते। लेकिन मैं क्या कर सकता हूं? मैंने जो अनुभव किया और हजारों लोगों पर अनुभव किया, यह मेरा ही अनुभव नहीं, हजारों लोगों को मैंने पास्ट लाइफ रिग्रेशन कराया, Life between lives कराया, उसके आधार पर मैं अपनी बात कर रहा हूं।’ कुछ अन्य लोग हैं डॉ. वाइस हैं, कुछ और लोग हैं... आज हजारों-हजारों पी.एल. आर. प्रैक्टिशनर्स हैं... यूरोप में, अमेरिका में, पूरे विश्व में, जो न्यूटन की बात को सत्यापित कर रहे हैं।"

    इन सब ने सनातन धर्म द्वारा प्रतिपादित निर्गुण परमात्मा के साथ देव संस्कृति को भी थोड़ा बहुत संशोधन के साथ स्वीकार किया है। इनकी निष्पत्ति है कि सृष्टि का संचालन करने का भार परमात्मा ने ब्रह्मा, शिव और विष्णु को सौंपा है तथा इनकी सहायता के लिए अनेक देवी-देवता और स्पिरिट गाइड नियुक्त है। ओशो भी कई मिस्टिक ग्रुप की सत्ता को स्वीकार करते हैं, जो सृष्टि के मंगल के लिए सक्रिय है। स्वयं गुरुदेव को ओशो, गुरू नानक देव, महावतार , सप्तर्षि और सूफी मिस्टिक ग्रुप से समय समय पर सहायता मिलती रहती है। यही नहीं बल्कि भगवान विष्णु, भगवान शिव, इन्द्र, गणेश आदि देवों से वे संपर्क में हैं।

    ठीक इसी तरह अनेक संत हुए, जिन्होंने कई देवों को अपना इष्ट माना और उनसे सहायता ली। तुलसीदास ने हनुमान सिद्धि की थी। नागपुर के संत त्रिलोकी बाबा ने भी हनुमान सिद्धि प्राप्त की थी और गुरुदेव से विशेष प्रेम रखते थे।

    इसी परंपरा में वृन्दावन के प्रसिद्ध संत नीम करोली बाबा आते हैं, जिन्होंने हनुमान सिद्धि प्राप्त की और उसके माध्यम से कई लोगों का मंगल किया, जिनमें फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग, एपल के मालिक स्टीव जॉब्स तथा हॉलीवुड की ऐक्ट्रेस जूलिया रॉबर्टस शामिल हैं।
    नवंबर, 2015 में अपनी संगत के साथ जब गुरुदेव वृन्दावन गए, तो अपनी संगत के साथ नीम करोली बाबा को श्रद्धांजली अर्पित करने उनके आश्रम भी गए। गाइड के रूप में श्री अनुराग पाठक थे। उनके दादा बनवारी लाल पाठक नीम करोली बाबा के अनन्य भक्त थे। आश्रम में गहरी शांति थी। समाधि दर्शन के बाद उन्हें नीम करोली बाबा के शयन कक्ष में ले जाया गया। गुरुदेव ने नीम करोली बाबा जी का प्रेमपूर्ण आवाहन किया और थोड़ी देर में ही उनकी दिव्य उपस्थिति हुई। नीम करोली बाबा ने उन्हें हनुमान सिद्धि की विधि और आशीष दिया तथा आश्वासन भी कि आगे उनका (नीम करोली बाबा का)  सहयोग उन्हें (गुरुदेव को) बराबर मिलता रहेगा।
    (नोट:- सदशिष्यों को यहां पर सचेत रहना है, और संत शिरोमणि चरणदास की सीख को सदा स्मरण रखना है :- 
    गुरु कहे सो कीजै, करै सो नाहिं।
    चरणदास की सीख यह, रख ले उर माहिं।)

    गुरुदेव आश्रम से विदा लेना ही चाहते थे कि लगभग भागता हुआ एक व्यक्ति आया और उसने सूचना दी कि आश्रम के प्रभारी श्री धर्म नारायण शर्मा जी अपने कक्ष में याद कर रहे हैं। वे नीम करोली बाबा के पुत्र हैं। जिनके बारे में लोग कम ही जानते हैं सामान्यतः वे मौन और गुप्त रहना ही पसंद करते हैं। गुरुदेव अपनी संगत के साथ उनसे मिलने पहुंचे। वे गुरुदेव से अत्यंत प्रेमपूर्वक मिले। देखने में वे नीम करोली बाबा के प्रतिछवि लगे।

    गुरुदेव को वे नीम करोली बाबा जी का यह चित्र भेंट करते हुए बोले कि आपको बुलाना पड़ा क्योंकि ऊपर से (नीम करोली बाबा का) आदेश! आया था कि यह चित्र आपको प्रदान किया जाए।
    गुरुदेव ने अहोभाव के साथ चित्र को स्वीकार किया जो आज भी ओशोधारा मुरथल आश्रम में गुरुदेव के कक्ष में सुशोभित है।

    चित्र मिलने के बाद गुरुदेव को भाव आया कि आखिर हनुमान जी किस रूप में दर्शन देते हैं!
     उन्होंने भाव किया कि अगर हनुमान जी के दिव्य-दर्शन (जिस असली रूप में हनुमान जी दर्शन देते हैं।) का चित्र आज मेरे पास आ जाये तो मैं समझूँगा कि हनुमान जी इस रूप में आते हैं।
     और फिर मैं उस चित्र को आश्रम में भी स्थापित करूँगा।
    और आश्चर्यचकित करने वाली घटना घटी, कि गुरुदेव के whatsup पर किसी मित्र के द्वारा एक चित्र भेजा गया जिस पर लिखा था 'हनुमान जी का दिव्य दर्शन।'
     गुरुदेव कहते हैं :- "आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक तीर्थ के बारे में एक बड़ा संभ्रम आध्यात्मिक जगत में है। वास्तव में जितने भी तीर्थ हैं उनका महत्त्व इसलिए है कि ये तीर्थ किसी न किसी संत से जुड़े हुए हैं। इस बात को ठीक से समझ लेना कि ये सारे तीर्थ इसलिए बने हैं क्योंकि यहां पर कोई तीर्थंकर हुआ। किसी ने घाट बनाया, किसी ने उस जगह पर तपस्या की और किसी ने वहां जाकर परम ज्ञान प्राप्त किया। इसलिए तीर्थों का इतना मूल्य है। दूसरी बात जो past life regression के प्रयोग पूरी दुनिया में हुए और ओशोधारा में भी हो रहे हैं उससे भी एक बात का पता चला है कि जो भी संत धरती पर आये, उनकी उपस्थिति, उनका वजूद आज भी मौजूद है। अगर वजूद है तो उनसे सम्पर्क भी साधा जा सकता है।
    सम्पर्क साधने की विधि :- सम्पर्क साधने के तीन चरण हैं- पहली बात तो यह है कि आप जिस संत से भी जुड़े हुए हैं उससे सम्पर्क साधना बहुत आसान होता है।

    अगर आप ओशोधारा में हो तो निश्चित्त रूप से  अध्यात्म में पहली बार आपके कदम नहीं उठे हैं। आपके पास आपकी पृष्ठभूमि है। विगत काल में आप किन्हीं महापुरुषों के सम्पर्क में रहे होंगे। चाहे वे महापुरुष शंकराचार्य हों, नानक देव जी, बुद्ध, कबीर या देवर्षि नारद हों। आप निश्चित्त ही उन महापुरुषों के सम्पर्क में कहीं न कहीं रहे हैं।

    महापुरुषों से सम्पर्क साधने के लिए आप स्वयं गोविंद से जुड़ो, सुमिरन में चले जाओ। इस प्रयोग में उतरने के लिए कम से कम आधा घंटा चाहिए। वहां शॉर्ट कट (सरल रास्ता) नहीं है।

    प्रथम, दस मिनट आप ओंकार को सुनें। 
    दूसरा चरण आप जिस संत से भी जुड़ना चाहते हैं, उनका आवाहन करें।
    तीसरा चरण बहुत ही महत्त्वपूर्ण है- अब आप शून्य हो जाओ। शून्य होने की विधि क्या है?आप निराकार से जुड़ जाओ और निराकार में डूबते-डूबते समाधि में चले जाओ। शून्य में समाधिस्थ हो जाओ। और फिर चौथा चरण स्वयं घटित होगा और संत वहां प्रगट होंगें। आप यह अनुमान नहीं लगा सकते कि वे अपनी उपस्थिति कैसे दिखायेंगे। अगर उस वक्त आपको लगता है कि और भी किसी प्रमाण की जरूरत है, कहीं ऐसा तो नहीं कि यह मेरे मन की ही कल्पना है, तो फिर आप एक प्रमाण और रख सकते हैं।"
    (नोट :- गुरुदेव के द्वारा खोजी गयी इस विधि का हम कुछ मित्रों ने कई महीने गहन प्रयोग किया है। और हमारे कैमरे में आश्चर्यचकित कर देने वाली सन्तों, दिव्य आत्माओं की उपस्थिति दर्ज हुई है, जो इस विधि की प्रामाणिकता को सिद्ध करती है।)
     गुरुदेव का बहुत ही महत्वपूर्ण और सारभूत सन्देश :- " एक बात और मैं कहना चाहूंगा कि किसी भी संत के दर्शन हो जाएं, किसी भी दरगाह पर आप चले जाओ इससे बात बनने वाली नहीं है। आपका सुमिरन और आपकी समाधि ही आपका आध्यात्मिक विकास कर सकती है। संतों के दर्शन से आपने कुछ सुमिरन  किया, कुछ समाधि की, कुछ प्रेरणा जगी आपके भीतर, तो निश्चित्त ही सब कुछ हो जाएगा, और हो रहा है।

    ठीक ऐसे ही तीर्थों में संत दर्शन हमको प्रेरणा के रूप में लेना है। उनसे आशीष लेने हैं, जैसे कि हम कहीं जाते हैं यात्रा पर, तो बड़ों का आशीष लेते हैं, और अपना पुरुषार्थ करते हैं।

    तो संतो के आशीष तो लेने ही हैं। दुआ और दवा दोनों चाहिए। अकेली दुआ से काम न चलेगा और अकेली दवा से भी न चलेगा। दुआ और दवा दोनों साथ-साथ चाहिए।
    अगर दवा के साथ-साथ दुवा भी मिलती रहे तो सोने पर सुहागा हो जाता है, और इस बात को हमें समझना है।

    कभी-कभी हम कुछ जाने बगैर मंदिरों, मस्जिदों, देवालयों की आलोचना करने लगते हैं कि इनमें क्या रखा है? कभी भी बिना जाने किसी की आलोचना मत करो। पहले जानो फिर मानो।

    तुम्हारा सद्गुरु (जीवित गुरु) तुम्हारा सुमिरन, तुम्हारी साधना, तुम्हारी समाधि ये तुम्हारे जीवन के केंद्र में हों और परिधि पर निश्चित्त ही महापुरुषों के, संतों के आशीर्वाद हों तो जीवन सार्थक हो जाता है। जीवन में फूल खिल जाते हैं। "

    गुरुदेव ने ओशोधारा में अध्यात्म के सर्वश्रेष्ठ मार्ग 'सहज-योग' को प्रतिपादित किया है, जिसके 3 आयाम हैं - ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग। ज्ञान योग का अर्थ है स्वयं को आत्मा जानना और आनंद में जीना। भक्ति योग का अर्थ है परमात्मा को जानना और उसके प्रेम में जीना। कर्म योग का अर्थ है आत्मा और परमात्मा से जुड़कर संसार का नित्य मंगल करना।

    ओशोधारा में गुरुदेव अध्यात्म के सारे खजाने, सारे रहस्य प्रदान करते जा रहे हैं...
    सदा सुमिरन में रहो और साथ ही साथ सन्तों, दिव्यात्माओं के आशीष, देवताओं से मित्रता और उनका सहयोग भी प्राप्त करो!
    औऱ क्या चाहिए!!
    आध्यात्मिक जगत की यह 'मौज ही मौज हमार' की बेला है!!!

    सभी प्रभु के दीवानों को प्रेम-निमन्त्रण है, कि आध्यात्मिक जगत की इस परमपावन बेला को इस जन्म में मत चूकें!
    ओशोधारा में ध्यान-समाधि से चरैवेति तक संकल्प लेकर गुरुदेव के साथ अपने परम सौभाग्य की, परमजीवन की यात्रा का शुभारंभ करें।

    हृदय में गुरूदेव और हनुमत स्वरूप सिद्धि के साथ गोविंद का सुमिरन!
    गुरूदेव ने आध्यात्मिक जगत में महाक्रान्ति ला दी है; ओशोधारा के साधकों के जीवन के केंद्र में गुरु हैं, सत-चित-आनन्द के आकाश में उड़ान है और सत्यम-शिवम-सुंदरम से सुशोभित महिमापूर्ण जीवन है!!

    गुरुदेव द्वारा प्रदत्त सुमिरन+हनुमत स्वरूप सिद्धि अति उच्चकोटि की साधना है।
    हनुमान स्वयं इसी साधना में रहते हैं, वे सदैव भगवान श्रीराम के स्वरूप के साथ कण-कण में व्याप्त निराकार राम का सुमिरन करते हैं।

    गुरुदेव ने अब सभी निष्ठावान साधकों को यह दुर्लभ साधना प्रदान कर आध्यात्मिक जगत में स्वर्णिम युग की शुरूआत कर दी है।

    सदा स्मरण रखें:-
    गुरु को अंग-षंग जानते हुए सुमिरन में जीना और गुरु के स्वप्न को विस्तार देना यही शिष्यत्व है।
    गुरु+गोविंद+शिष्य यह सिनर्जी ही सारे अध्यात्म का सार है!!
    और यह सतत चलता रहेगा, चरैवेति.. चरैवेति...।
    जीवात्मनं परमात्मनं दानं ध्यानं योगो ज्ञानम्।
    उत्कल काशीगंगामरणं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं॥

    अर्थात, जीवात्मा-परमात्मा का ज्ञान, दान, ध्यान, योग पुरी, काशी या गंगा तट पर मृत्यु - इन सबमें से कुछ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं हैं।

                नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां
                नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां

                                               ~ जागरण सिद्धार्थ 

    नीम करोली बाबा जी की समाधि- स्थल दर्शन 👇
    https://youtu.be/-Em2XypQghQ

    नीम करोली बाबा जी की original footage & recordings 👇
    https://youtu.be/hwGQssmqi4Q

    भगवान हनुमान जी की दिव्य उपस्थिति 👇
    https://youtu.be/8nIbx79bYgQ


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