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    गुरुदेव के संस्मरण ~ ओशो की दिव्य उपस्थिति !!!


    विदेही गुरु देहधारी गुरुओं को निर्देशित करते हैं न की शिष्यों को। 
    तीन कोटि के सिखाने वाले:-
    पहली कोटि विद्यार्थियों का शिक्षक, दूसरी कोटि शिष्यों का गुरु ,और फिर तीसरी कोटि गुरूओं का गुरु होता है। पतंजलि कहते हैं -जब गुरु भगवान हो जाता है और भगवान होने का अर्थ होता है - समय के बाहर होना जिसके लिए समय अस्तित्व नही रखता। जो समयातीत को जान चूका है। शाश्वत अनन्ता में डूब गया है। जो केवल रूपान्तरित ही नही हुआ, जो केवल भगवत्ता से ओतप्रोत ही नही हुआ, जो मात्र परम जाग्रत ही नही हुआ बल्कि जो समय के बाहर जा चूका है। वह गुरूओं का गुरु होता है, अब वह भगवान हो जाता है।

    वह गुरुओं का गुरु करता क्या होगा!
    वह अवस्था केवल तभी आती है, जब गुरु देह छोड़ता है, उसके पहले कभी नही। देह में तुम जाग्रत हो सकते हो। देह में रहते हुए तुम जान सकते हो कि समय नही है। लेकिन शरीर के पास जैविक घड़ी है। वह भूख अनुभव करता है। प्यास अनुभव करता है। तृप्ति के कुछ समय बाद फिर भूख अनुभव करता है। थकान, नींद, रोग, स्वास्थ्य आदि समय के साथ बंधे होते हैं। रात में देह को निद्रा में चले जाना होता है। सुबह उसे जागना होता है। देह की जैविक घडी होती है। अतः तीसरे प्रकार का गुरु केवल तभी घटता है। जब गुरु सदा के लिए देह छोड़ देता है। जब उसे फिर से देह में नही लौटना होता। बुद्ध के पास दो शब्द हैं। पहला है निर्वाण, सम्बोधि। जब बुद्ध जागरण को उपलब्ध हुए तो भी देह में बने रहे यह थी सम्बोधि, निर्वाण। फिर चालीस वर्ष के पश्चात उन्होंने देह छोड़ दी। इसे वे कहते हैं महापरिनिर्वाण। फिर वे हो गए गुरूओं के गुरु और तब से वे बने रहें हैं गुरूओं के गुरु।

    प्रत्येक गुरु जब वह स्थायी रूप से देह छोड़ देता है जब उसे फिर नही लौटना होता, तब वह गुरुओ का गुरु हो जाता है। मोहम्मद, जीसस, महावीर, बुद्ध, पतंजलि - ये सभी गुरुओ के गुरु हुए और निरंतर रूप से देह धारी गुरुओ को निर्देशित करते आ रहें हैं, न कि शिष्यों को।
    जब कोई बुद्ध का अनुसरण करते हुए सम्बोधि को उपलब्ध होता है तो तुरन्त एक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। अकस्मात वह बुद्ध के साथ जुड़ जाता है। बुद्ध जो अब देह में नही रहे। कालातीत हो गए लेकिन फिर भी मौजूद हैं, उन बुद्ध के साथ जुड़ जाता है, जो समग्र समष्टि के साथ एक हो चुके हैं लेकिन जो अब भी हैं।

                                                 ~ परमगुरु ओशो

    19 जनवरी 1990 गुरुदेव अपने मित्र B. P. Singh (जो अब गुरुदेव के शिष्य हैं) के साथ किसी विशेष कार्य के लिए रांची जा रहे थे। सुबह 7 बजे ही निकल जाना था पर 11 बज गए। सिंह साहब सोच में पड़ गए, इतना समय क्यों लग रहा है। क्योंकि गुरुदेव समय के बहुत पाबन्द हैं। एक-एक मिनट का ख्याल रखते हैं।

    उन्होंने गुरुदेव से कहा आज आप इतना Late कैसे हो गए। तथा आप खिन्न भी दिखाई दे रहे हैं। क्या तबियत सही नही है। गुरुदेव ने उनसे कहा आज सब कुछ गड़बड़ चल रहा है, मुझे कुछ समझ नही आ रहा है!

    3 बजे बोकारो पहुंच कर गुरुदेव ने अपना काम अनमने मन से निपटाया और धनबाद की तरफ जल्दी-जल्दी प्रस्थान किया।
     कुछ देर चलने के बाद गुरुदेव ने अपने मित्र से कहा आज मुझे बिल्कुल भी अच्छा नही लग रहा है। लगता है मेरे शरीर में प्राण ही नही हैं। क्यों न हम आगे की यात्रा स्थगित कर रांची लौट जाएं।

    B P Singh जी ने कहा धनबाद का कार्य अत्यंत जरूरी है। इसे स्थगित नही किया जा सकता। गुरुदेव बड़ी मुश्किल से राजी हुए उन्हें ऐसे लग रहा था जैसे कि उनके शरीर में प्राण ही न हों।
    गोधर स्थान पर पहुचकर गुरुदेव अपने अनन्य मित्र उमाशंकर के यहां रुके, जो प्रसिध्द सन्त 'औघड़ भगवान राम' के प्रमुख शिष्यों में हैं। उन्होंने गुरुदेव का स्वागत किया और चाय पिलायी। उसके थोड़ी देर बाद गुरुदेव संयत हुए। और बोले अब मैं ठीक महसूस कर रहा हूँ। सुबह से जो परेशानी चल रही थी, अब मैं उससे पूरी तरह मुक्त और निर्भार हो गया हूँ। (उस समय घड़ी में शाम के लगभग 5 बजे थे। और परमगुरु ओशो के शरीर से मुक्त होने का भी यही समय था)।

    गुरुदेव और उनके मित्र रात्रि विश्राम के लिए कुसमुंडा स्थित आवास गृह में ठहरे। तथा भोजन पश्चात दोनों लोग सो गए।  रात लगभग 2 बजे B. P. Singh जी की आंख खुल गयी, और उन्होंने जो दृश्य देखा उसे देखकर वे एकदम अवाक रह गए!! खिड़की से एक स्वर्णिम प्रकाश अंदर आया और उस प्रकाश ने एक आकृति धारण कर ली। वे आश्चर्य चकित हो गए ये तो हूबहू वही हैं जिनकी फोटो मैंने गुरुदेव के घर पर देखी है!!

    B. P. Singh जी ने इससे पहले ओशो को कभी नही देखा था और वे उन्हें पसंद भी नही करते थे। अक्सर वो गुरुदेव से विरोध भी करते थे। और उनसे ओशो को छोड़ने के लिए भी कहते थे, और कई बार अज्ञानतावश वे ओशो की आलोचना भी कर देते थे। पर गुरुदेव मुस्करा कर अद्भुत बात कहते हैं :- " मित्र यदि मैं ओशो को प्रेम करने के लिए स्वतंत्र हूँ तो आप भी उनकी आलोचना करने के लिए स्वतंत्र हैं।"

    वह स्वर्णिम प्रकाश के रूप में ओशो ही थे। उनको देखकर B. P. Singh जी के हाथ खुद-ब-खुद प्रणाम मुद्रा में जुड़ गए। ओशो ने उनको आशीष दिया और अपना दाहिना हाथ गुरुदेव की तरफ वरद मुद्रा में उठाए हुए मुस्कुराते रहे । मुंह से तो वे कुछ नही बोले पर टेलीपैथीक विचार प्रेषित किया कि " जागने पर इसे बताना मैं आया था। 'सिद्धार्थ' के द्वारा बहुत बड़ा काम होने वाला है। तुम सदा इसका साथ देना। मेरा आशीर्वाद सदा साथ है।"

    ओशो देखते-देखते पुनः स्वर्णिम प्रकाश में बदल गए और जिस मार्ग से आये थे उसी मार्ग से लौट गए। ठंड का मौसम था, बिजली गुल थी B. P. Singh जी पसीने-पसीने हो रहे थे। और उन्होंने गुरुदेव को जगा कर सारी घटना बताई।

    गुरुदेव ने कहा आप धन्यभागी हैं। और मैं आश्चर्यचकित हूँ! कि इस तरह स्वर्णिम प्रकाश के रूप में आना और देह धारण करना तभी संभव है जब ओशो ने शरीर छोड़ दिया हो!! लेकिन अभी तो वे शरीर में हैं!!! ( तब तक गुरुदेव को पता नही था, कि ओशो शरीर छोड़ चुके हैं।)

    आश्चर्य की बात 19 जनवरी को लगभग सांय 5 बजे ओशो ने शरीर छोड़ा।  यह वही समय था जब गुरुदेव बेचैन हो रहे थे, खिन्न हो रहे थे । और जैसे ही ओशो ने शरीर छोड़ा गुरुदेव एकदम से निर्भार हो गए।

    जिनके भीतर थोड़ी भी प्रज्ञा है वे इस घटना से समझ सकते हैं, कि परम गुरु ओशो और गुरुदेव के बीच कितना गहरा और रहस्यमय सम्बंध है!!
    परम गुरु ओशो के शरीर छोड़ने के 7 साल बाद गुरुदेव का बद्धत्व को उपलब्ध होना तथा ओशोधारा का जन्म होना , फिर 28-21 तल के समाधि,सुमिरन और प्रज्ञा के कार्यक्रमों का आना । ये महज संयोग नही है। इसके पीछे गोविंद का, ओशो और बहुत से सन्तों का सतत अदृश्य सहयोग है। उनके ही हस्ताक्षर से यह सब हो रहा है, एक बहुत ही सुंदर व्यवस्थित विराट आयोजन...।

    अब ये हम सभी शिष्यों के ऊपर है, कि गोविंद के, ओशो के और समस्त गुरुसत्ता के, ओशोधारा रूपी इस विराट आयोजन का हिस्सा बनकर, उसके विस्तार में सहयोग देकर परमसौभाग्य के भागी बनें, या इस विराट आयोजन को मूढ़तावश बाधा पहुंचाने या नष्ट करने का प्रयास कर महादुर्भाग्य के भागी बनें!!!

    अब ये स्वंत्रता और चुनाव हमारा है, कि हम क्या चुनते हैं? सदशिष्य बनना या गुरुद्रोही बनना!!!
    गुरुदेव की यह अद्भुत पंक्तियां समस्त सदशिष्यों को प्रेम भरा निमंत्रण है :-

    "नहीं मायूस हो इतना मसीहा की विदाई से,
    चलेगा सिलसिला फिर इब्तिदाये मयकदा होगी। चुना खुद रब ने है "सिद्धार्थ" को रहबर जमाने का,
    नहीं ओशो के मयखाने से अब रौनक विदा होगी।।"

    ★ गुरुदेव ने ओशोधारा में अध्यात्म के सर्वश्रेष्ठ मार्ग 'सहज-योग' को प्रतिपादित किया है, जिसके 3 आयाम हैं - ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग। ज्ञान योग का अर्थ है स्वयं को आत्मा जानना और आनंद में जीना। भक्ति योग का अर्थ है परमात्मा को जानना और उसके प्रेम में जीना। कर्म योग का अर्थ है आत्मा और परमात्मा से जुड़कर संसार का नित्य मंगल करना।

    ★ सभी प्रभु के आकांक्षियों को प्रेम भरा निमंत्रण है, कि ओशोधारा में आएं और ध्यान-समाधि से चरैवेति तक संकल्प लेकर गुरुदेव के साथ अपने अध्यात्म की अदभुत यात्रा का शुभारंभ करें, और अबकी बार आवागमन के चक्र से पार हो जाएं!!!

    हृदय में गुरूदेव और हनुमत स्वरूप सिद्धि के साथ गोविंद का सुमिरन!
    गुरूदेव ने आध्यात्मिक जगत में महाक्रान्ति ला दी है; ओशोधारा के साधकों के जीवन के केंद्र में गुरु हैं, सत-चित-आनन्द के आकाश में उड़ान है और सत्यम-शिवम-सुंदरम से सुशोभित महिमापूर्ण जीवन है!!

    गुरुदेव द्वारा प्रदत्त सुमिरन+हनुमत स्वरूप सिद्धि अति उच्चकोटि की साधना है।
    हनुमान स्वयं इसी साधना में रहते हैं, वे सदैव भगवान श्रीराम के स्वरूप के साथ कण-कण में व्याप्त निराकार राम का सुमिरन करते हैं।

    गुरुदेव ने अब सभी निष्ठावान साधकों को यह दुर्लभ साधना प्रदान कर आध्यात्मिक जगत में स्वर्णिम युग की शुरूआत कर दी है।

    सदा स्मरण रखें:-
    गुरु को अंग-षंग जानते हुए सुमिरन में जीना और गुरु के स्वप्न को विस्तार देना यही शिष्यत्व है।
    गुरु+गोविंद+शिष्य यह सिनर्जी ही सारे अध्यात्म का सार है!!
    और यह सतत चलता रहेगा, चरैवेति.. चरैवेति...।

               एकोहि मन्त्रं एकोहि चिन्तयं।
                गुरुरवै शरण्यं गुरुरवै शरण्यं।।

                नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां।
                नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां।।

                                        ~ जागरण सिद्धार्थ 


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    11 comments:

    1. ऐसे गुरु को बल बल जाइये।
      ।। जय ओशो ।।
      ।। जय गुरुदेव ।।
      ।। जय ओशोधारा ।।

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    2. ⚘ जय ओशो ⚘
      ⚘ जय गुरुदेव ⚘
      ⚘ जय ओशोथारा ⚘
      ⚘ 🕉 ⚘

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    3. हम तो धन्य हो गए एसा सदगुरु पाकर, बचपन से ही बहुत से संत विकाश में साथ दे रहे थे। पर जैसे ही सदगुरु को पहली बार देखा, तभी आंसू छलक आए और लगा संतो के संत से मिलन हो गया। अहो भाव अहो भाव अहो भाव

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    4. स्वामी आनन्दJanuary 5, 2020 at 6:26 PM

      अब भी हम आंखें बंद रखें! इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा!!
      परमगुरु ओशो की अपार अनुकंपा सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी के माध्यम से बह रही है, चेत सको तो चेत!!!

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    5. गुरुदेव के पावन चरणों में शत शत नमन
      ।। जय गुरुदेव ।।
      ।। जय ओशो ।।
      ।। जय ओशोधारा ।।

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    6. मैं परमगुरू ओशो जी के दर्शन तो ना कर पाई लेकिन प्यारे कामिल मुर्शिद बड़े बाबा औलिया जी का सानिध्य पाकर सब कुछ पा लिया । अहोभाव गुरुदेव ।
      जय ओशो । जय गुरुदेव । जय ओशो धारा ।

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    7. हम अत्यंत सौभाग्यशाली की परम गुरु ओशो ने हमारे लिए एक अद्भुत प्रज्ञावान सद्गुरु बड़े बाबा को तैयार करके भेज दिया।

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    8. जय गुरुदेव ।
      जय ओशो ।
      जय ओशो धारा ।

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    9. सत्गुरु शरणं गच्छामि 🙏

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