गुरुदेव के संस्मरण ~ बाबा भूतनाथ
बाबा भूतनाथ बिहार के बहुत बड़े तांत्रिक हुए। तंत्र के वाममार्ग और दक्षिणमार्ग दोनों विधाओं में वे सिद्धहस्त थे। उन्होंने मां कामख्या की कठोर साधना की। तथा मां ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए और अपने हाथ का एक कंगन भी दिया। लखनऊ में उनका आश्रम है। उनके हजारों शिष्य हैं।
जनवरी 1989 में इलाहाबाद में कुंभ का मेला लगा हुआ था। और वहां बड़ा संत सम्मेलन हो रहा था। अनेक विधाओं के जानकर संत वहां एकत्रित थे। तंत्र विद्या के जानकार बाबा भूतनाथ जी भी वहां उपस्थित थे।
सम्मेलन के संचालन का भार गुरुदेव (सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी) के ऊपर था। गुरुदेव ने मंच पर घोषणा की, कि अब बाबा भूतनाथ जी तंत्र योग पर बोलेंगें।
तंत्र योग!! बाबा भूतनाथ चौंके!!! वे बहुत ही ईमानदार थे। उन्होंने कहा कि तंत्र का तो थोड़ा बहुत मुझे पता है, लेकिन तंत्रयोग क्या है? मैं बिल्कुल नहीं जानता। इसलिए मैं तंत्र पर ही बोल सकता हूँ। और वे सम्मेलन में आधे घन्टे तक तंत्र पर ही बोले।
जब सम्मेलन समाप्त हुआ तो वे गुरुदेव को अपने टेंट में ले गए। अपने आसन पर उन्हें बिठाया और खुद जमीन पर बैठ गए। क्योंकि भारतीय आध्यात्मिक परम्परा जानती है, कि सीखने के लिए झुकना पड़ता है। बाबा भूतनाथ जी ने गुरुदेव से कहा कि मैं तंत्र की कुछ साधनाएं जानता हूँ पर तंत्र योग क्या है? इसका मुझे ज्ञान नहीं। कृपया आप मुझे सिखाएं।
गुरुदेव ने कहा तंत्र के अनुष्ठान करते हुए क्या आप आत्म स्मरण रखते हो? तंत्र साधनाएं करते हुए क्या आप साक्षी में रहते हो?
उन्होंने कहा बिल्कुल नहीं। मुझे तो यह पता ही नही था, कि ऐसे भी साधना हो सकती है। तब गुरूदेव ने उनसे कहा - जब तक साक्षी न जुड़ जाए, जब तक आत्म स्मरण कर्म के साथ न जुड़ जाए तब तक हर विधि अनुष्ठान बनकर रह जाती है।
यह सुनकर बाबा भूतनाथ भाव विभोर हो गए। उनकी आंखों में अहोभाव के आंसू थे। उन्होंने गुरुदेव से कहा अब मेरा जीवन बहुत थोड़े दिन का है। अब मैं तांत्रिक नहीं तंत्र योगी बनकर जीऊंगा ।
इस घटना के एक साल तक वे जिए। उनके एक शिष्य ने गुरुदेव को बताया कि जब वे विदा हुए तो बहुत शांत और स्थिर थे। और आपके प्रति अहोभाव और कृतज्ञता से भरे हुए थे।
बाबा भूतनाथ सिद्धाश्रम (ज्ञानगंज) से आये थे और अब वहीं प्रस्थान कर गए ऐसा उनके शिष्यों का मानना है। सिद्धाश्रम के बारे में कहा गया है वह हिमालय में स्थित अदृश्य दिव्य स्थान है। जिसे नग्न आंखों से नही देखा जा सकता है। जहां पर हजारों साल के योगी, यति सन्यासी साधनारत हैं।
मैं यह चर्चा इसलिए कर रहा हूँ कि हम समझ सकें परमात्मा के जो रहस्य गुरुदेव हमें बिना पात्रता देखे और इतनी आसानी से दे रहे हैं। वह रहस्य सिद्धाश्रम में सबको नसीब नही है, मैंने पढा है वहां बड़ी कठिन परीक्षा ली जाती है जिसे कोई बिरला ही पास कर पाता है, फिर उसे परमात्मा का रहस्य... कोई एक आयाम बताया जाता है!!!
ओशोधारा में तो गुरुदेव बिना हमारी परीक्षा लिए, बिना हमारी पात्रता देखे, दोनों हाथों से परमात्मा के खजाने लुटा रहे हैं, परमात्मा के सारे रहस्य खोलते जा रहे हैं । और साथ ही साथ हमें सतत उसके सुमिरन में जीने की कला भी सिखाते जा रहे हैं...।
हमें अपने सौभाग्य पर इतराना चाहिए!! सुमिरन के साथ, जिस परमजीवन की यात्रा पर गुरुदेव हमें ले जा रहे हैं, वो कहीं भी, किसी भी परंपरा में उपलब्ध नही है।
गुरुदेव ने ओशोधारा में अध्यात्म के सर्वश्रेष्ठ मार्ग 'सहज-योग' को प्रतिपादित किया है, जिसके 3 आयाम हैं - ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग। ज्ञान योग का अर्थ है स्वयं को आत्मा जानना और आनंद में जीना। भक्ति योग का अर्थ है परमात्मा को जानना और उसके प्रेम में जीना। कर्म योग का अर्थ है आत्मा और परमात्मा से जुड़कर संसार का नित्य मंगल करना।
इस दुर्लभ अवसर को अबकी बार मत चूकें!!!
गुरूदेव ने एक रहस्य की बात बताई है :- बैकुंठ में आत्मानन्द है पर ब्रह्मानन्द नहीं है, क्योंकि वहां भक्ति नहीं है।
भक्ति सिर्फ मनुष्य शरीर से ही सम्भव है।
सुमिरन सिर्फ सांसों के साथ ही किया जा सकता है।
सन्त सुमिरन का आनन्द लेने के लिए, सांस-सांस आत्मानन्द + ब्रह्मानन्द (सदानन्द) का आनन्द लेने के लिए ही पृथ्वी पर बार-बार आते हैं।
न तातो न माता न बन्धु र्न भ्राता,
न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।
न जाया न वित्तं न वृत्तिर्ममेवं,
गतिस्त्वं मतिस्त्वं गुरुत्वं शरण्यं।।
~ जागरण सिद्धार्थ
https://www.youtube.com/user/OshodharaVideos?sub_confirmation=1
Twitter :
https://twitter.com/SiddharthAulia
Oshodhara Website :
www.oshodhara.org.in
Please Like & Share on Official Facebook Page! 🙏
https://m.facebook.com/oshodharaOSHO/
प्रभु के प्यासों के लिए यह दुर्लभ अवसर है।
ReplyDeleteऐसे गुरुदेव का सान्निध्य पाना जन्मों-जन्मों का सौभाग्य है।
��जय गुरुदेव��
गुरुदेव की जय हो ।
ReplyDeleteहम सौभाग्यशाली हैं, जो बड़े-बड़े योगियों को उपलब्ध नही है, वह गुरुदेव हमें बिना पात्रता देखे ही प्रदान कर दे रहे हैं।
ReplyDelete।। जय ओशोधारा ।।
यदि गुरुदेव हमें अपने चरणों में स्थान ना देते तो हम अभी भी दर दर भटक रहे होते। धन्य हैं हमारे सद्गुरु बड़े बाबा औलिया जी और सौभाग्यशाली हैं हम सब जो उनके शिष्य हैं ।
ReplyDeleteजय गुरुदेव ।
हम सभी इस जगत के सबसे सौभाग्यशाली लोगों में से हैं जिन्हें ऐसे प्यारे सद्गुरू का सानिध्य मिला। यह सानिध्य एक जन्म का नहीं बल्कि जन्मों-जन्मों का है इसे हमने महसूस किया है,इनके मुक्त चरणों में बैठकर हम सभी क्या से क्या हो गए.. Gratitude my beloved master👏👏👏👏💝💝💝💝
ReplyDelete⚘ JAI SADGURUDEV ⚘
ReplyDelete⚘ JAi OSHODHARA ⚘
🙏
Jai Sadguru
ReplyDeleteDhanbhag hamare Jo aap svikare
Bahut Bahut Ahobhav
⚘Jai Sadgurudev ⚘
ReplyDelete🙏
Jai Sadguru ji 🙏
ReplyDelete