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    गुरुदेव के संस्मरण ~ त्रिलोकी बाबा

    भारतभूमि अध्यात्म की उर्वर भूमि है यह कभी संतों से खाली नही रही, यहां हर काल में संत, सिद्ध, सदगुरु अवतरित होते ही रहते हैं। ऐसे बहुत से संत हुए जो जनमानस के लिए अप्रकट ही रहे, और आज भी बहुत से संत अप्रकट ही रहना पसंद करते हैं। ऐसे ही महाराष्ट्र के अद्भुत संत त्रिलोकी बाबा हुए। त्रिलोकी बाबा मूलतः पंजाबी थे। पाकिस्तान से भारत आए थे और नागपुर में रहते थे।
    पुराने संत अध्यात्म के रहस्यों को बहुत मुश्किल से केवल असली जिज्ञासु व्यक्ति को ही बताते थे, ऐसे ही त्रिलोकी बाबा जी के पास जो भी आता था, सबसे पहले वे देखते थे, कि इसकी प्रभु की प्यास सच्ची है कि नही!  तो पहले तो वे भगाने का प्रयास करते थे। ताकि अध्यात्म के नकली प्यासों पर समय खराब ना हो।
    गुरुदेव (सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी) सदा से सन्तों की खोज में रहे हैं, ऐसे ही जब उन्हें संत त्रिलोकी बाबा के बारे में पता चला तो वे उनसे मिलने उनके निवास स्थान पर पहुंचे और अपनी आध्यात्मिक जिज्ञासा प्रकट की। त्रिलोकी बाबा ने उन्हें अगले दिन सुबह 4 बजे मिलने को कहा। सर्दी की कड़कड़ाती ठंड में गुरुदेव नियत समय पर त्रिलोकी बाबा के समक्ष प्रस्तुत हुए। त्रिलोकी बाबा बोले चलो गाड़ी में बैठो, कहां जाना है यह उन्होंने गुरुदेव को कुछ भी नही बताया और कार चलती जा रही थी। 1 घण्टा हो गया, 2 घण्टा हो गया मंज़िल आ नही रही थी, तो गुरुदेव को लगा कहीं मेरा अपहरण तो नही हो गया! त्रिलोकी बाबा शरीर से बड़े ही मजबूत थे।
    आखिर उनकी गाड़ी रामटेक झील पर पहुंच कर रुकी, जो कि नागपुर से 57 किलोमीटर दूर है। यह झील 225 किलोमीटर तक फैली हुई है और यह बहुत ही गहरी है।
    त्रिलोकी बाबा ने कहा झील के मध्य में तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर दूंगा।
    और वे ट्यूब की मदद से झील में उतरकर मध्य में जाने लगे, और गुरुदेव बिना ट्यूब की मदद के तैरकर उनके साथ जाने लगे। बाबा ने कहा सम्हलकर तैरना पानी के नीचे बहुत सी प्रवाल, झाड़ियां हैं अगर पैर फंस गया तो फिर समझो गए!
    झील के मध्य में पहुंचकर त्रिलोकी बाबा कहते हैं ," अब पूछो जो पूंछना है।"
     गुरुदेव ने त्रिलोकी बाबा से कई प्रश्न किए जिनका उन्होंने संतोषजनक उत्तर दिया। अंत में त्रिलोकी बाबा ने भविष्यवाणी की, कि तुम 3 वर्ष के भीतर ही सम्बोधि को प्राप्त कर लोगे।
    13 जनवरी 1997 की रात गुरुनानक देव जी से ॐकार दीक्षा प्राप्त होने के बाद से ही गुरुदेव को ॐकार की दिव्य खुमारी चढ़ गई थी, और यह खुमारी 13 जनवरी से 5 मार्च तक सतत जारी रही। और 5 मार्च 1997 को गुरुदेव को संबोधि की परम घटना घटी। और इस परम घटना के कुछ ही दिनों के बाद त्रिलोकी बाबा गुरुदेव से मिलने आये और उनसे पूंछा, कि अंततः तुम बुद्धत्व को प्राप्त हो गए हो, क्या तुम्हें मेरी भविष्यवाणी याद है!
    गुरुदेव ने कहा जी! और यह सब आपकी कृपा से हुआ है।

    त्रिलोकी बाबा ने कहा मैं यहां पर तुम्हारे अनुभव की पुष्टि चाहता हूं,  इसलिए मेरे कुछ प्रश्नों का उत्तर दो?

    गुरुदेव ने कहा - अवश्य, पूंछिए!

    त्रिलोकी बाबा ने पूछा - दुख क्यों है?
    गुरुदेव ने कहा - अहंकार के कारण।

    त्रिलोकी बाबा ने दूसरा प्रश्न पूंछा - अहंकार क्यों है?

    गुरुदेव ने कहा- क्योंकि ओंकार का ज्ञान नहीं है।

    त्रिलोकी बाबा आह्लादित हुए और कहा बिल्कुल ठीक,  मैं तुम्हें बधाई देता हूँ।

    गुरुदेव ने कहा, शुक्रिया बाबा, आगे मेरे लिए क्या आदेश है?

    त्रिलोकी बाबा ने कहा - क्या तुम सोच रहे हो कि प्रभु के खोजियों को अध्यात्म के पथ पर राह दिखाओगे?

    गुरुदेव ने कहा, जी बाबा।

    त्रिलोकी बाबा बोले - भूल कर भी ऐसा मत करना!
    लोग नहीं सुनते हैं संतों की!!
    तुम केवल सुमिरन का मजा लो, लोगों को उनके भाग्य पे छोड़ दो।

    गुरुदेव यह सुनकर हैरान हुए!
    और विनम्रता से बोले कि अगर आपके और मेरे गुरु ने भी ऐसा सोचा होता तो हमारा क्या होता!!!

    इस प्रश्न ने त्रिलोकी बाबा जी को मौन कर दिया और वे चुप हो गए।
    फिर उन्होंने एक लंबी सांस भरी और बोले, ठीक है, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी। मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा।

       ("बूंद से समंदर तक का सफ़र" से संकलित )

    अतीत के संत अध्यात्म के खजानों को किसी को भी नहीं देते थे!
    और वह खजाने! गुरुदेव ओशोधारा में दोनों हाथों से लुटा रहे हैं। और इतने खजाने! तो आज तक किसी संत के पास नही रहे, जितना गोविंद गुरुदेव पर बरसा रहे हैं; नाद, नूर, चैतन्य, दिव्य सुगन्ध, दिव्य खुमारी, दिव्य ऊर्जा, आनंद, प्रेम... आदि।
    और प्रज्ञा के अनमोल सूत्र! सोने पे सुहागा!!
    आश्चर्य और परमसौभाग्य, कि गुरुदेव के रूप में अति विशिष्ट विराट चेतना इस धरा पर आज उपस्थित है!!!
    गुरुदेव ने ओशोधारा में अध्यात्म के सर्वश्रेष्ठ मार्ग 'सहज-योग' को प्रतिपादित किया है, जिसके 3 आयाम हैं - ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग। ज्ञान योग का अर्थ है स्वयं को आत्मा जानना और आनंद में जीना। भक्ति योग का अर्थ है परमात्मा को जानना और उसके प्रेम में जीना। कर्म योग का अर्थ है आत्मा और परमात्मा से जुड़कर संसार का नित्य मंगल करना।

    सभी प्रभु के खोजियों को प्रेम आमंत्रण है कि ओशोधारा में आएं और ध्यान-समाधि से यात्रा की शुरुआत कर चरैवेति तक संकल्प लेकर गुरुदेव के साथ परमजीवन की, सतलोक की यात्रा पर अवगाहन करें।

    गुरूदेव ने एक रहस्य की बात बताई है :- बैकुंठ में आत्मानन्द है पर ब्रह्मानन्द नहीं है, क्योंकि वहां भक्ति नहीं है।
    भक्ति सिर्फ मनुष्य शरीर से ही सम्भव है।
    सुमिरन सिर्फ सांसों के साथ ही किया जा सकता है।
    सन्त सुमिरन का आनन्द लेने के लिए, सांस-सांस आत्मानन्द + ब्रह्मानन्द  (सदानन्द) का आनन्द लेने के लिए ही पृथ्वी पर बार-बार आते हैं।

    हृदय में गुरूदेव और हनुमत स्वरूप सिद्धि के साथ गोविंद का सुमिरन!
    गुरूदेव ने आध्यात्मिक जगत में महाक्रान्ति ला दी है; ओशोधारा के साधकों के जीवन के केंद्र में गुरु हैं, सत-चित-आनन्द के आकाश में उड़ान है और सत्यम-शिवम-सुंदरम से सुशोभित महिमापूर्ण जीवन है!!

    गुरुदेव द्वारा प्रदत्त सुमिरन+हनुमत स्वरूप सिद्धि अति उच्चकोटि की साधना है।
    हनुमान स्वयं इसी साधना में रहते हैं, वे सदैव भगवान श्रीराम के स्वरूप के साथ कण-कण में व्याप्त निराकार राम का सुमिरन करते हैं।

    गुरुदेव ने अब सभी निष्ठावान साधकों को यह दुर्लभ साधना प्रदान कर आध्यात्मिक जगत में स्वर्णिम युग की शुरूआत कर दी है।

    सदा स्मरण रखें:-
    गुरु को अंग-षंग जानते हुए सुमिरन में जीना और गुरु के स्वप्न को विस्तार देना यही शिष्यत्व है।
    गुरु+गोविंद+शिष्य यह सिनर्जी ही सारे अध्यात्म का सार है!!
    और यह सतत चलता रहेगा, चरैवेति.. चरैवेति...।
    चरण कमल तेरे धोए धोए पीवां
    मेरे सतगुरु दीन दयाला
    कुर्बान जाऊं उस वेला सुहावा
    जित तुम्हरे द्वारे आया
    चरण धूल तेरे सेवक मांगे
    तेरे दर्शन को बलेहारा
    तहाँ बैकुंठ जहाँ कीर्तन तेरा
    तू आपे सारधा लावे
    नानक कहे प्रभ भज किरपाल
    सतगुरु पूरा पाया
    चरण कमल तेरे धोए धोए पीवां  
    मेरे सतगुरु दीन दयाला

            नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां
            नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां

                                      ~ जागरण सिद्धार्थ 

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    6 comments:

    1. स्वामी अमित आंनदJanuary 16, 2020 at 6:33 PM

      हमें अपने सौभाग्य पर इतराना चाहिए कि हमें गुरुदेव ने स्वीकार किया,और वे गूढ़ रहस्य जो सन्त किसी को बताते नहीं थे, बिना परीक्षा के हमें देते जा रहे हैं।
      ।। जय त्रिलोकी बाबा ।।
      ।। जय गुरूदेव ।।

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    2. बहुत-बहुत धन्यवाद जागरण जी
      सद्गुरु के श्री मुख से यह संस्मरण सुना था बहुत ही आनंद आया और उसको लेखन में आपने और भी रसपूर्ण बना दिया है। आपको पुनः पुनः धन्यवाद।

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    3. ⚘जय सद्गुरु देव ⚘
      ⚘जय ओशोधारा⚘
      🙏

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    4. Amrit vachan tumare nirgun nistare. Jai sadguru .🌹🌹🌹🌹

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    5. Osho is a medium of our spiritual life thanks sadguru
      Never born never die
      Swami देवस्वरूप

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    6. प्रणाम बाबा जी।।।

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