गुरुदेव के संस्मरण ~ मौनी बाबा
गुरुदेव सदा से ही सन्तों, सिद्धों की खोज में रहते थे। जिस शहर में भी वे जाते थे, वहां लोगों से पूंछते थे कि, क्या यहां कोई संत रहते हैं या कहीं से आए हुए हैं, तो मुझेे बताएं!
और पता चलते ही वे उनसे मिलने पहुंच जाते थे। डाल्टनगंज जाकर भी उन्होंने ऐसा ही किया। उन्हें लोगों ने बताया कि एक मौनी बाबा यहां आए हुए हैं और किसी मारवाड़ी परिवार में ठहरे हुए हैं।
गुरुदेव की खुशी का ठिकाना नही रहा, वे दोपहर खाना खाने के बाद किसी को साथ लेकर, बाबा जहां ठहरे थे वहां पहुंच गये। परिवार के मुखिया ने उनसे कहा कि बाबा अभी विश्राम कर रहे हैं, इसलिए अभी मिलना संभव नहीं है।
लेकिन मौनी बाबा से मिलने की चाहत गुरुदेव को बिना उनसे मिलें जानें नहीं दे रही थी। उन्होंने परिवार के मुखिया से निवेदन किया - 'कोई बात नहीं। बाबा कहां ठहरे हुए हैं?’
मुखिया ने बताया कि बाबा पहली मंजिल पर रूके हैं। गुरुदेव ने कहा - ‘ क्या मैं सीढ़ियों के पास बैठ सकता हूं? भाव से ही मिल लूंगा।’
उस व्यक्ति ने कहा ठीक है और वह उन्हें सीढ़ियों के पास ले गए, जो पहली मंजिल की ओर जाती थी। वहां बैठ कर गुरुदेव भाव के तल पर उनका स्मरण करने लगे। अभी 5 मिनट ही बीते थे, कि ऊपर से ताली बजने की आवाज आई। गुरुदेव ने आंंखें खोली और देखा कि मौनी बाबा उन्हें ऊपर आने के लिए इशारा कर रहे थे।
गुरुदेव के आनंद का ठिकाना नही रहा!
वे जल्दी से ऊपर गये और उनके चरणों को स्पर्श किया।
मौनी बाबा ने उन्हें आशीर्वाद दिया और एक ओर बैठने का इशारा किया। छत खुली थी और उसी पर एक तरफ बाबा का कमरा था। वे दौड़ते हुए अपने कमरे में गए। गुरुदेव वहीं बैठकर प्रतीक्षा करने लगे। बाबा तुरंत लौटे। उनके हाथों में फलों की टोकरी थी। उसमें से कुछ फल गुरुदेव को खाने को दिए।
गुरुदेव के गले में ओशो की माला थी। मौनी बाबा ने ओशो का लॉकेट हाथों में लेकर चूमा और अपने माथे से लगाया। फिर इशारे से ओशो का हाल पूछा। गुरुदेव ने बताया कि ओशो अभी अमेरिका में हैं और सकुशल हैं।
बाबा पुनः अपने कमरे में गए वहां से स्लेट और चॉक ले आए। फिर लिखकर पूछा - ‘तुम्हें कुछ पूंछना है?’
गुरुदेव ने पूंछा - ‘ बाबा, आपकी उम्र बहुत ज्यादा दिखती है। क्या मैं पूछ सकता हूं, कि आपकी उम्र कितनी है? ’ बाबा ने बताया - ‘ मैंने झांसी की रानी को अपनी गोद में खिलाया है।’
गुरुदेव आश्चर्यचकित होकर उन्हें निहारने लगे! थोड़ी देर ऐसे ही प्रश्नोत्तर सत्संग चलता रहा।
अंत में गुरुदेव ने कहा - ‘बाबा, आपसे मेरी अगली मुलाकात कब संभव है?’
बाबा ने लिखा - ‘यह हमारी आखिरी मुलाकात है।’ गुरुदेव उनके मन्तव्य को समझ न सके तथा दुखी मन से उनसे विदा ली।
संत मिलन की सुखद अनुभूति तो थी, लेकिन आखिरी मुलाकात की बात सुनकर मन थोड़ा भारी हो गया था।
दूसरे दिन गुरुदेव का मन नहीं माना। शाम को दोबारा वे वहां गए। मारवाड़ी परिवार के मुखिया से उन्होंने पूछा - ‘क्या बाबा से आज भी मेरी मुलाकात हो सकती है? ’
मुखिया ने कहा - ‘बाबा नहीं रहे।’
गुरुदेव सन्न रह गए!!
गुरुदेव ने पूंछा - ‘ क्या उन्होंने शरीर छोड़ दिया?’
मुखिया ने कहा - ‘आपके जाने के थोड़ी ही देर बाद उन्होंने समाधि ले ली। उनके शरीर को उनके आश्रम में भिजवा दिया गया।’
मौनी बाबा गुरुदेव से मिलने के लिए ही रुके हुए थे। उनके मिलन की यादें लेकर गुरुदेव भारी मन से वापस आ गये।
गुरुदेव बताते हैं - 'आज भी मौनी बाबा की याद ताजा है। जब भी उनको याद करता हूं, ऐसा लगता है कि आज भी मेरे आस-पास ही है।’
("बूंद से समंदर तक का सफ़र" से संकलित )
मौनी बाबा बहुत ही पहुंचे हुए अदभुत संत थे,
गुरुदेव से एक बार ही उनकी मुलाकात हुई थी।
यह कहना ज्यादा उचित रहेगा कि वे गुरुदेव जैसी दिव्य विभूति के दर्शन के लिए, उनसे मिलने के लिए ही अपने शरीर में अब तक आबद्ध थे। गुरुदेव से मिलने के बाद ही उनका शरीर का त्याग करना यह स्पष्ट दर्शाता है, कि गुरुदेव के रूप में अति दिव्य चेतना इस समय इस पृथ्वी लोक में उपस्थित है!!
गुरुदेव ने आध्यात्मिक जगत में अपने बहुआयामी प्रतिभा के द्वारा अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को खोजकर, और पूरी वैज्ञानिकता के साथ उन्हें सभी के लिए अब उपलब्ध करा दिया है! और अब आने वाले हजारों वर्षों तक सच्चे साधक परमात्मा के निरभ्र आकाश में अपने दोनों पंखों को फैला कर तिर सकेंगे।
गुरुदेव ने ओशोधारा में अध्यात्म के उन दूर आकाश के रहस्यों को फिर से उतार दिया है, जिसे आजके पहले तक कोई एकाध मौनी बाबा जी जैसे विलक्षण संत ही पा पाते थे, वह अब ओशोधारा में सभी प्रभु प्यासों के लिए उपलब्ध है।
अबकी चूकना बहुत बड़ा अवसर गंवाना है, अबकी चूकना जन्मों-जन्मों का चूकना हो जाएगा!!
गुरुदेव ने ओशोधारा में सहज योग मार्ग को प्रतिपादित किया है, जिसके 3 आयाम हैं - ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग। ज्ञान योग का अर्थ है स्वयं को आत्मा जानना और आनंद में जीना। भक्ति योग का अर्थ है परमात्मा को जानना और उसके प्रेम में जीना। कर्म योग का अर्थ है आत्मा और परमात्मा से जुड़कर संसार का नित्य मंगल करना।
जिन्हें भी ज्ञानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग की परम यात्रा पर चलना है, उनका ओशोधारा में स्वागत है, आएं और ध्यान-समाधि से अपनी इस परमपावन यात्रा में प्रवेश करें।
गुरूदेव ने एक रहस्य की बात बताई है :- बैकुंठ में आत्मानन्द है पर ब्रह्मानन्द नहीं है, क्योंकि वहां भक्ति नहीं है।
भक्ति सिर्फ मनुष्य शरीर से ही सम्भव है।
सुमिरन सिर्फ सांसों के साथ ही किया जा सकता है।
सन्त सुमिरन का आनन्द लेने के लिए, सांस-सांस आत्मानन्द + ब्रह्मानन्द (सदानन्द) का आनन्द लेने के लिए ही पृथ्वी पर बार-बार आते हैं।
तं सेवया न परितोषमेति।
तत्रापि शिष्यत्वं यो न गृहयेत
सौभाग्यदीनः पशुभिः समानः।।
अर्थात, ऐसे जीवित जाग्रत गुरु मिल जाएं, और शिष्य उनकी समीपता प्राप्त न कर सके, उनके चरणों में बैठने का आनंद न प्राप्त कर सके, तो ऐसा शिष्य अभागा ही कहा जा सकता है।
नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां
नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां
~ जागरण सिद्धार्थ
https://www.youtube.com/user/OshodharaVideos?sub_confirmation=1
Oshodhara Website :
www.oshodhara.org.in
Twitter :
https://twitter.com/SiddharthAulia
Please Like & Share on Official Facebook Page! 🙏
https://m.facebook.com/oshodharaOSHO/
जाग सको तो जाग!!
ReplyDelete।। जय मौनी बाबा ।।
।। जय गुरुदेव ।।
⚘जय सद्गुरुदेव ⚘
ReplyDelete🙏
⚘जय सद्गुरु देव ⚘
ReplyDelete🙏
सदगुरु के चरणों मे कोटि कोटि नमन
ReplyDeleteअहोभाव!!
जय ओशो जय ओशोधारा
सदगुरु के चरणों मे कोटि कोटि नमन
ReplyDeleteअहोभाव!!
जय ओशो जय ओशोधारा
हमारे गुरुदेव अदभुत एवं अद्वितीय हैं । मेरे कामिल मुर्शिद के श्रीचरणो मेंकोटि-कोटि नमन ।
ReplyDeleteॐ सद्गुरु गोविन्दाय परमतत्वाय नमः
ReplyDelete🌷🌷🌷🌷🌷
Osho namam
ReplyDeleteमहीमा अपार मेरे बाबा जी की.श्री चरणो मे सादर नमन
ReplyDeleteसदगुरुदेव और मौनी बाबा के चरणों में अहो भाव। हमारे मन्दिर में मौनी बाबा का आना हुआ था। मेरे पिता जी की संतो में बहुत आस्था रही। मुझे भी वो बचपन के यादगार
ReplyDeleteपल याद आ गए। हम बहुत भागयशाली है कि पूर्ण सद्गुरु और ओशोधारा ने हमें साधना सूत्र दिए।
नमो नमो सद्गुरु देव जी।।।।।
ReplyDelete⚘Jai Sadgurudev ⚘🙏
ReplyDeleteGurudev ke Pavan Vharno mein koti koti naman.
ReplyDeleteBalihari jai Sadguru ki.
🙏🙏🙏🙏🌷🌷🌷🌷🙏🙏🙏🙏