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    गुरुदेव के संस्मरण ~ सूफी बाबा शाह कलंदर

       

    सूफी बाबा शाह कलंदर यानि सिगबातुल्ला शाह कलंदर तबरेज़ी जी का जन्म 15 जून 1930 को बिहार के चंपारण के मोतिहारी जिले में दरियापुर नामक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम रहमतुल्ला और माता का नाम एकरामुन निशां था।

    सूफी बाबा के पूर्वज मदीना से थे।
    कर्बला के संघर्ष के बाद बाबा के पूर्वज भारत आ गए और गुजरात में ठहरे।

    सूफी बाबा की मां भक्तिभाव वाली पवित्र आत्मा थीं।
    उनके परिवार की फकीरों और दरवेशों में खूब आस्था थी।
    बाबा की तीन बहने थी वे सबसे छोटे थे।
    उनकी बहनों का नाम मुनाजिर निशां, उम्मल निशां और उमैमन खानम था।

    बाबा जी का लालन-पालन उनकी भाभी ने किया था।
    बाबा जी का पूरा परिवार सूफी परंपरा के गुरु हाफ़िज़ सैय्यद वज़ीर अली शाह से संबंधित था। वज़ीर अली शाह संदीला गांव, उत्तरप्रदेश के रहने वाले थे।
    7 साल की आयु तक बाबा के चाचा ने उनको अध्यात्म की तालीम दी। वही उनके पहले गुरु थे।
    8 साल की की उम्र में उनके चाचा ने उन्हें अध्यात्म की तालीम के लिए पंडित रुद्रदेव उपाध्याय के पास भेजा जो उत्तरप्रदेश के हरदोई जिले में संदीला गांव में रहते थे।
    सन 1955 में बाबा जी जब 25 साल के हुए तब उन्होंने अपने गुरु की आज्ञा से गृहस्थ धर्म में प्रवेश किया। उनकी पत्नी तारा खातून थी जिससे उन्हें चार संतानें हुई 3 लड़कियां एक लड़का। पंडित रुद्रदेव तंत्र साधक थे और वे उन्हें उसमें तैयार कर रहे थे उन्हें मालूम था कि भविष्य में उन्हें सूफी जगत के बड़े ओहदे (कलन्दर पद) को सम्हालना है। इसके लिए उन्होंने इनको अलग-अलग तंत्र के विधाओं में पारंगत करने के लिए उनसे सम्बंधित गुरुओं के पास भेजा। लगभग 16 से 17 गुरुओं से उन्होंने अलग-अलग प्राच्य रहस्यों को सीखा।

    फिर गुरु रुद्रदेव जी ने उन्हें विशेष साधना के लिए घनघोर जंगल में भेजा जहां उन्होंने अकेले रहकर 12 साल तक कठोर साधना की।
    और 32 साल की उम्र में साधना के दौरान उन्हें बुद्धत्व की परम घटना घटी।

    फिर जिस पद की तैयारी बचपन से ही उनकी चल रही थी अब उसका समय आ गया था। उनकी मुलाकात जन्मों-जन्मों के गुरु गौस बाबा (गौस अली शाह मैसूरी) से हुई। जो बहुत बड़े सूफी संत थे।
    गौस बाबा ने डेढ़ साल तक उनके शिष्यत्व की परीक्षा लेने के बाद उन्हें अपनी सारी रूहानी शक्तियां और इल्म प्रदान कर कलन्दर पद से नवाजा और नाम दिया "सूफी बाबा शाह कलंदर तबरेज़ी"। जो एक कलन्दर पद के लिए अनिवार्यता है।
    कलन्दर आत्मज्ञानी के साथ रूहानी शक्तियों से भी सम्पन्न होता है।
    सूफी बाबा गिरिडीह वापस लौट गए उनके जाने के बाद 13 जून को गौस बाबा ने चिरयुवा शरीफ में अपनी देह को त्याग दिया।
     सूफी बाबा कहते थे कि सूफी कभी किसी पर आश्रित नहीं रहता। वह अपने हक की कमाई खुद करता है। धीरे-धीरे शिष्यों की मदद से सूफी बाबा ने ट्रांसपोर्ट का काम शुरू किया। जिसका नाम सम्राट ट्रांसपोर्ट था। इसी से आश्रम की आर्थिक व्यवस्था चलती थी तथा उर्स पर भव्य उत्सव का आयोजन भी होता था।

    गुरुदेव बताते हैं कि सूफी बाबा परमज्ञानी थे, पर उन्होंने वह राज किसी को नहीं बताया। अतीत के सन्त जल्दी परम रहस्य देते नहीं थे। कबीरदास ने भी अपने सैकड़ों शिष्यों में से दो ही शिष्यों को परमज्ञान दिया और धर्मदास जी को तो आदेश भी दिया " धर्मदास तोको लाख दुहाई, सार विद्या बाहर नही जाई"।

    जब  गुरूदेव को 1997 में परम ज्ञान की घटना घटी गुरुदेव उनसे मिलने गए और सब बताया तो उस पर उन्होंने अपना ठप्पा लगाया की तुम्हारे साथ जो घटा है वही परम ज्ञान है। और जो हो रहा है बिल्कुल सही हो रहा है।
    गुरूदेव कहते है अध्यात्म के इस अंजान रहस्यलोक में बाबा का इतना सहारा मेरे यात्रा में बहुत सहयोगी हो जाता था।

    सूफी बाबा आम दुनिया के लोगों के लिए अनजान ही रहे।
    जब गुरुदेव ( सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी ) ने उनके बारे में साधकों को बताना प्रारंभ किया तब इतनी विराट शख्सियत के बारे में कुछ लोगो को पता चल पाया।

    29 मई 2013 शाम को लगभग 6.20 पर  सूफी बाबा ने महापरिनिर्वाण ले लिया।
     सूफी बाबा का पैगाम:-
    अगर तुमने किसी को गुरु माना है तो तुम अब उसके बैत हो गए हो, अर्थात अपने गुरु के द्वारा खरीद लिए गए हो। जैसे एक गुलाम और ख़ादिम अपने मालिक की किसी भी बात को मना नहीं कर सकता, ऐसे ही एक मुरीद (शिष्य) को हमेशा अपने गुरु के कहने में रहना चाहिए। चाहे गुरु की कोई बात तुम्हें नागवार गुज़रे लेकिन तुम्हें उसे गुरु का आदेश मानकर उसे कबूल करना चाहिए और गुरु के आदेश को अंजाम देना चाहिए। किसी भी हाल और सूरत में गुरु की बात नहीं टालना।

    कभी किसी से मांगना नहीं। मांगने में तुम सिकुड़ जाते हो और देने में फैलते जाते हो। इतना कमाओ कि अपना पेट भर सको और अगर कोई तुम्हारे दर पर आ जाए तो उसकी भी जरूरत पूरी कर सको। अगर तुम्हारा हाथ उठे तो देने के लिए उठे, लेने के लिए नहीं।

    अगर तुम कहीं मंदिर, मस्ज़िद, दरगाह, गुरुद्वारे, चर्च या किसी भी धार्मिक स्थल पर जाओ तो वहां पर काम करने वाले पंडित या ख़ादिम को जरूर अपनी श्रद्धा से कुछ ज्यादा ही देकर आओ बिना यह सोचे कि वह उस पैसे का दुरुपयोग करेगा। यह वह जाने उसका कर्म। क्योंकि वह धार्मिक स्थल उसी की वजह से जीवित है।

    सूफ़ीज़्म में 5 तरह की शिक्षा होती है।
    1. सांसारिक
    2. सामाजिक
    3. धार्मिक
    4. आध्यात्मिक
    5. दार्शनिक
    जो आखिरी शिक्षा है दार्शनिक यहीं से सूफ़ियों की असली शिक्षा प्रारम्भ होती है।
    दार्शनिक अर्थात दर्शन अर्थात मार्फ़त।
    सूफीमत में इल्म सीना ब सीना स्थांतरित किया जाता है। गुरु से इश्क औऱ मुहब्बत सूफीमत का आधार है।

        हर मुसलमान सूफी नहीं होता,
        हर सूफी मुसलमान नहीं होता।

    सूफी का मज़हब मुख्तसर,
    सबसे जुदा, सबसे खरा, मैं और तू के झगड़े लगे हैं क्या,
    या तो कुछ भी नहीं, या सब खुदा।
     सूफी बाबा ने गुरुदेव (सदगुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी) के बारे में ओशोधारा के सन्यासी स्वामी विकास सिद्धार्थ जी से स्पष्ट कहा था :-
    " तुम्हारा गुरु जानते हो कौन है? वह अध्यात्म की किस ऊंचाई पर है?
    आज अध्यात्म की जिस ऊंचाई पर तुम्हारा गुरु विद्यमान है अगर सारा हिन्द (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश.. आदि) भी तुम्हारे गुरु के कदम चूमे, तो भी कम है।

    एक बार किसी ने पूंछा बाबा क्या मनुष्य बन्दर से आया?
    तो वे मुस्कुरा कर बोले अगर ऐसा होता तो सभी बन्दर मनुष्य न बन गए होते!

    जिक्र, फिक्र और मोराकबा इन तीन इल्मों को सूफ़िज़म में प्रदान किया जाता है।
    जिक्र अर्थात स्वयं की याद, फिक्र अर्थात परमात्मा की याद और मोराकबा यानी उससे गठबंधन।

    मनुष्य या आदमी का दुश्मन ; समय, मन, जात-बिरादरी और धर्म है।
    समय:- समय बच्चा को जवां करता है, जवान को बूढ़ा और मृत्यु से करीब करता है।
    मन:- मन सदा अपने से बाहर ले जाता है, जबकि सब कुछ अंतर्मुखी है (स्वयं की तरफ लौटना)
    धर्म:- जात-बिरादरी, धर्म या मज़हब आपस में नफरत फैलता है और गर्दन कटवाता है चूंकि किसी अवतार या पैगम्बर ने न धर्म दिया है न ग्रंथ।

    " न हम हिन्दू-मुस्लिम-सिख हैं, न ईसाईयत की बातें करते हैं।
    बेटे आदम के मनुवंशी हैं, आदमियत की बातें करते हैं। "
    सूफी बाबा ने गुरुदेव (सदगुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी) के बारे में ओशोधारा के सन्यासी स्वामी मोहम्मद जलील जी से भी कहा था कि - " जाओ ओशोधारा आश्रम में जो भी आये तो उन्हें बताना की जो भी तुम्हारे गुरु (कामिल मुर्शिद ओशो सिद्धार्थ औलिया जी) से जुड़ेंगें, सबके सब पार हो जाएंगे

    आत्मज्योति, रूहानियत से कायनात जाहिर हुई है उसकी ज्योति, नूर तमाम कायनात और जर्रे जर्रे में है जो कि निर्गुण, मुनज़्ज़ा है।

    तमाम योनियों, मखलुकात में मनु और सतरूपा, आदम और हौव्वा श्रेष्ठ, अशरफ हैं क्योंकि उनके अंदर आत्मा और ज्योति, रूह और नूर मौजूद है जो सगुण और निर्गुण, मुसब्बा और मुनज़्ज़ा हैं।

    हम लोग मनुवंशी मनु, आदम जात मनु और सतरूपा, हौवा हैं,
    चाहे नाम जो भी हो, जिसको आमबोली में मनुष्य या आदमी कहा जाता है।

    हमारी जात मानव है, हमारा धर्म, मज़हब मानवता, आदमियत है। आत्मबोध, रूहानियत का जानना हमारी मुक्ति, नजात है।
    पूजा-पाठ और इबादत-रेयाजत से मुक्ति, नजात नहीं मिलती है।

    आत्मा, रूह शरीर में, जिस्म में प्रवेश करती है और शरीर छोड़ती है, परवाज़ करती है।
    आत्मा ही परमात्मा है, रूह ही अल्लाह है इसलिए स्वर्ग-नर्क और बैतरणी, जन्नत, जहन्नम और पुलसरात का कोई अस्तित्व, कोई हकीकत नहीं है।

    इस अवतारी और दार्शनिक, इस पैगम्बरी और अहले मार्फ़त सिलसिलों को किसने रोका और क्यों रोका?
    क्या भगवान, अल्लाह का खजाना खाली हो गया है?
    क्या भगवान, क्या अल्लाह, भगवान वाले लोग इस दुनियां में वर्तमान, हाल में नहीं हैं जो भगवान, अल्लाह का पता बता सकें?
    अंतिम किताब, अंतिम पैगंबर यह झूठ वहाबियों-सलाफियों द्वारा फैलाया गया है।

    कन्यादान तथा निकाह में दैनमोहर और तलाक का कोई प्रमाण नहीं है।
    कन्यादान तथा दैनमोहर और तलाक से बचें।
    औरतों की इज्जत करें यह मनु सतरूपा, हौवा की बेटियां हैं। जिन्हें जीवन संगिनी, शरीके-हयात कहा गया है।
    आप सभी अल्लाह, भगवान के रूप हैं इसलिए अपने को पहिचानें। यही मुक्ति का मार्ग है।

    शंकर-पार्वती, मनु-सतरूपा, आदम-हौवा यह जोड़े का नाम है। जिससे सृष्टि हुई है।

    अक्सर मुसलमान जानवरों को जबह करके और हिन्दू गौदान, भैंसा और पाठा बलिदान करके कुर्बानी समझते हैं और यकीन रखते हैं यह जानवर शरीर छूटने के बाद पुलसरात और बैतरणी पार करवाने में काम आएंगे और हमें जन्नत या स्वर्ग मिलेगा।
    मुसलमान भी कुर्बानी किए और खाए जानवरों के ऊपर चढ़कर पुल पार करेंगें और हिन्दू भी गाय की पूंछ पकड़कर बैतरणी पार करेंगे। यह ख्याल भ्रामक है।

    आप कितनी बेरहमी जानवरों के साथ कर रहे हैं उनको मारकर उनका गोश्त खाते हैं और आशा करते हैं कि जन्नत मिलेगी।
    कोई जानवर आपको स्वर्ग या जन्नत नही दिला सकता बल्कि जानवरों की हत्या कुर्बानी अल्लाह, भगवान बिल्कुल पसंद नहीं करता है।
    परमात्मा, अल्लाह से मिलन में सिर्फ-सिर्फ आपकी साधना सहयोगी होगी।

    सूफी जगत में अपने शरीर को रूहानियत के लिए वक्फ कर देने का नाम कुर्बानी और बलिदान है। न कि किसी बेजुबान जानवर की बेरहमी से हत्या कर उसके गोश्त को खाने का नाम।

    कुर्बानी का मतलब वक्फ समझ लिया जाए तो हर चीज की कुर्बानी हो सकती है जैसे अच्छे कामों में लगे रहना अपनी जान की कुर्बानी है। लालच और ख्वाहिश कुर्बान कर देना अपने नफ़्स की कुर्बानी है। औलाद को अच्छे कामों में लगा देना अपनी औलाद की कुर्बानी है।
    न खून बहे , न खून बहावें इसी का नाम कुर्बानी है।

     कर रहे हैं सोने वाले हैवानों की कुर्बानियां
     कर रहे हैं जागने वाले खुद जानों की कुर्बानियाँ

    सच बोलो सच मानो और सच्चों के साथ हो जाओ।
    (अर्थात क़ामिल-मुर्शिद, सद्गुरु का षंग-साथ कर लो)

    यज़ीदी, वहाबी और इबलीसी चंदाखोर भिखमंगे-मौलवी,  बहत्तर फिरके यानि अनगिनत फिरके बनाकर मस्ज़िद, मदरसा और अंजुमन कायम करके फितरा, जकात, खैरात, उसरा और चरमें कुर्बानी के नाम पर सुन्नियों से रंगदारी टैक्स वसूल रहे हैं जिनका कोई सुबूत दीने रहमत में नहीं है और न मदरसों से पढ़े हुए लड़कों को सरकारी नौकरी मिलती है।

    नेयाज, फातेहा, मिलाद, क़याम, सलाम, उर्स, मज़ार, कव्वाली, मोहर्रम और ताजियादारी को  जो नाज़ायज़ कहते है हम उन्हें यज़ीदी, वहाबी और इबलीसी कहते हैं।

    हर मुस्लिमों की आबादी में मस्ज़िद, मदरसा और अंजुमन की जगह पर बैतुलमाल कायम  किया जाए, जो हुज़ूर ने कायम किया था।

    जर्रे-जर्रे में खुदा है परमात्मा है।
    सारे झगड़े फसाद धर्मों के कारण है इसलिए इसका त्याग कर देना होगा।
    आत्मा और रूह को जान लो, चूंकि संसार में जितने लोग हैं सब आत्मा रूपी हैं सभी का सम्मान और सेवा करो, पूरे संसार में सुख शांति आ जायेगी।

    स्वयं के भीतर रूह को खोजें। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैनी, बौद्धी, हरिजन, अंसारी, बैकवर्ड, फारवर्ड को छोड़ दें नहीं तो कटे हो, कटोगे, काटे गए हो, मारे गए हो, लूटे गए हो, उजाड़े गए हो, और कटोगे, मरोगे, उजड़ोगे। यह सिलसिला चलता रहेगा...

    संसार में न कोई नास्तिक या काफ़िर था और न होगा। नास्तिक उसको कहते हैं जो नहीं है उसको माने, वो नास्तिक या काफ़िर है। और जो है उसको माने वो आस्तिक।
            यही है इबादत यही दीनों ईमां,
            कि काम आये दुनियां में इंसा के इंसा।

    सूफी बाबा के साथ गुरुदेव (सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी) के रूहानी क्षण :-
    संत आसानी से गियर बदलते हैं :- गुरुदेव परमगुरु ओशो से संन्यास  लेने के बाद सन्तों की खोज में निकल पड़े विशेषकर सूफी संतों की। ऐसे में उन्हें गिरिडीह के सूफी बाबा शाह कलंदर जी के बारे में पता चला वे लगभग हफ्ते में एक बार उनके सानिंध्य में उपस्थित होने लगे।। ऐसे ही एक दिन उनकी सूफी बाबा के साथ गहन आध्यात्मिक चर्चा चल रही थी।
    सूफी बाबा आभा मंडल के बारे में बता रहे थे।
    तभी कोई कर्मचारी कमरे में आता है, तुरन्त सूफी बाबा उसकी तरफ मुखातिब होते हैं और कहते हैं-

    सूफी बाबा:- वो टायर का पंचर बनवा लिया।

    कर्मचारी:- जी बाबा

    सूफी बाबा:- कितना रुपया लिया।

    कर्मचारी:- बाबा 2 रुपये

    सूफी बाबा:- 2 रुपए! ये तो ज्यादा ले लिया।

    कर्मचारी:- चुप!

    सूफी बाबा:- चलो कोई बात नहीं अगली बार ध्यान रखना।
    कर्मचारी चला गया।

    सूफी बाबा फिर गुरूदेव की तरफ मुखातिब होकर बोले हां तो में बता रहा था जो आभामंडल है उसका रंग गुलाबी होता है, अनार के दाने की तरह।
    गुरूदेव हतप्रभ रह गए!
    अभी पंचर की चर्चा और अब तुरन्त अध्यात्म के गहरे रहस्यों की चर्चा!!
    इस अभूतपूर्व घटना से गुरूदेव को संतत्व परखने की कसौटी का पता चला। जब कोई संसार और अध्यात्म दोनों में बड़ी सरलता से अपना गियर बदल सकता है, तो जानना वही सन्त है, उसीको संतत्व घटा है।
    कलंदर की जिम्मेवारी :- 1986 के आसपास हरिद्वार में कुंभ मेला चल रहा था। गुरुदेव सूफी बाबा के साथ वहां पर उपस्थित थे।
    रात 2 बजे गुरुदेव की नींद खुली वे बाहर आये और उन्होंने देखा कि सूफी बाबा इधर से उधर टहल रहे थे।

    गुरुदेव :- बाबा रात के 2 बज रहे हैं आप टहल रहे हैं!

    सूफी बाबा:- हां! बड़ी दुर्घटना होने वाली है। उसी को रोकने के लिए प्रयास कर रहा हूँ।

    गुरुदेव:- आप तो कलन्दर हैं, रोक दीजिए।

    बाबा:- नही रोक सकता। दुर्घटना तो होकर रहेगी, हां इतना कर सकता हूँ उसके प्रभाव को कम कर सकता हूँ। और वही करने का प्रयास कर रह हूँ।

    गुरुदेव बताते है कि सुबह पता चला कुम्भ मेला के लिए बनाया गया पुल रात में टूट गया और 72 लोगों की मृत्यु हो गयी।
    अगर वह दिन में टूटता तो भारी जनहानि होती!!
    ध्यान का मर्म :- गुरूदेव ओशो से संन्यास लेने के बाद सूफी बाबा के पास अक्सर जाया करते थे। तो गुरुदेव बताते हैं जैसे ओशो सन्यासियों की आदत होती है आंखें बंद कर बैठ जाना, वैसे वो भी उनके पास बैठ जाया करते थे।

    सूफी बाबा:- जी सुनिए! क्या भीतर कुछ दिख रहा है।

    गुरुदेव:- नहीं बाबा!

    सूफी बाबा:- कुछ सुनाई पड़ रहा है!

    गुरुदेव:- नहीं बाबा!

    सूफी बाबा:- फिर आंखें बंद किये क्यों बैठे हैं!

    मैं बोल रहा हूं मुझे सुने और मुझे देखें।

    गुरूदेव को पहली बार ध्यान के रहस्य का बोध हुआ कि सिर्फ बगुले की तरह आंखे बंद करने को ध्यान नहीं कहते।
    भीतर दिखना चाहिए, सुनाई देना चाहिए।
    असली बात है आप उनकी नज़रों में हो :- सूफी बाबा को पता था कि गुरुदेव को औलिया पद संभालना है इसलिए वे सूफ़ियों के मिस्टिक ग्रुप के बुजुर्गों से उनका परिचय करवा रहे थे इसी क्रम में कलंदर बू अली शाह जी से उनका परिचय कराने उनकी मजार ले गये और वहां पर गुरूदेव के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा उन्होंने देखा कि सूफी बाबा शून्य में मुखातिब होकर बात कर रहे हैं जबकि वहां कोई नहीं था!

    सूफी बाबा :- अब सन्तों, सूफ़ियों के कार्य को आगे बढ़ाने का दायित्व इनको सम्हालना है इसलिए आप इन पर सदा नज़रें इनायत बनाएं रखें, इनका पूरा सहयोग करें!

    गुरूदेव आश्चर्यचकित होकर बोले

    गुरुदेव :- बाबा आप किससे बात कर रहे हैं !

    सूफी बाबा:- मैं कलंदर 'बू अली शाह: जी से बात कर रहा हूँ उनसे तुम्हारी सिफारिश कर रहा हूँ।

    गुरुदेव:- पर बाबा मुझे तो उस तरफ कोई  दिखाई नहीं दे रहा है!

    सूफी बाबा मुस्कराए और बोले

    सूफी बाबा:- वह आपको नहीं दिखाई दे रहें हैं यह असली बात नहीं है!
    असली बात यह है कि आप उनकी नज़रों में हैं!!
    और अब वे आपको अपना पूरा सहयोग देंगे।
    सूफी बाबा द्वारा गुरुदेव को औलिया पद प्रदान करना :-  सूफी बाबा ने मिस्टिक ग्रुप से परमिशन प्राप्त की जिसमें गुरूदेव के नाम को मिस्टिक ग्रुप में सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया।
    10-15 दिन पहले से ही सूफी बाबा ने औलिया के पद को गुरुदेव (सदगुरु ओशो सिद्धार्थ जी) सम्हालने वाले है इसका जिक्र रूहानी मंडल में करना प्रारंभ कर दिया था ताकि सभी उस रूहानी मंडल के सदस्य उनसे परिचित हो सकें।

    06 जनवरी 2013 की परम शुभ घड़ी को सूफी बाबा ने सभी सूफी रहस्यदर्शियों का आह्वान कर,  उनको प्रेम निमंत्रण देकर बुलाया और उन सभी की दिव्य उपस्थिति में अपनी सारी सिद्धियां शक्तिपात के द्वारा गुरूदेव को प्रदान कर उन्हें औलिया पद से नवाज दिया।
    और इस तरह सदगुरु "ओशो सिद्धार्थ" जी, सदगुरु "ओशो सिद्धार्थ औलिया" जी हो गए।

    कलंदर और औलिया में भेद :- कलन्दर किसी परंपरा में रहकर काम नही करता वह पूर्ण स्वतंत्र होता है उसके पास किसी भी धर्म के साधक आ सकते हैं और वह सभी का पूरा सहयोग करता है।
    जबकि औलिया किसी एक परंपरा को लेकर चलता है और उस परंपरा में दीक्षित साधक की ही वह मदद करता है।
    सीना-ब-सीना :- गुरुदेव बताते हैं कि जब 1997 में मैं परमज्ञान को उपलब्ध हुआ तो मैं बहुत रोष से उनके पास गया और बोला

    गुरुदेव:- बाबा मैं 16 साल से आपके पास आ रहा हूँ आपने मुझे आज तक वह नही बताया। 16 साल व्यर्थ गए!

    सूफी बाबा:-  मुस्कराए और बोले अरे आपको अपने से हो गया न, अपने से होने में ज्यादा मज़ा है, मेरे बताने के बाद इतना मज़ा नहीं आता।
    (असल में सूफी बाबा का गुरूदेव के साथ जन्मों-जन्मों का रिश्ता है उन्हें पता था ये गुरु का रोल  जन्मों से कर रहे है तथा इस जन्म में भी उन्हें करना है, उनका परमज्ञान को उपलब्ध होना तथा कैसे होना सब पहले से तय है।)

    (नोट :- ध्यान रखें ये शिष्यों पर लागू नहीं होता, शिष्यों को तो सदा कदम-कदम पर जीवित गुरु चाहिए ही!)

    सूफी बाबा अपने कई पिछले जन्मों को जानते थे।
    और अब तो past Life Regression सभी के लिए सुलभ है और सभी लोगों को धर्म की संकीर्ण सोच से निकलकर स्वयं अनुभव करना चाहिए।





    सूफी बाबा की तथा अतीत के सन्तों की पात्रता की कसौटी असम्भव सी रही है, बिरला कोई उस काबिल मिल पाता था।
    इसका भेद गुरूदेव बताते हैं कि सूफी बाबा कहते थे यह ज्ञान 'सीना-ब-सीना' ही दिया जाता है।
    पर इसका अर्थ क्या है!
    इसका अर्थ है अतिशय प्रेम, समर्पण।
    जब इस ऊंचाई पर कोई होगा तभी उनकी तरफ से यह ज्ञान दिया जाएगा।
    ओशोधारा में हम विद्यार्थी की तरह आते हैं और गुरुदेव वही से रहस्य प्रदान करना प्रारम्भ कर देते हैं और जैसे-जैसे हम साधना करते जाते हैं हम अनुभव में पगते जाते हैं वैसे-वैसे गुरु के प्रति हमें और-और प्रेम होने लगता है फिर हम जैसे-जैसे सुमिरन की ऊंचाइयों में बढ़ते जाते हैं वैसे वैसे हमारा प्रेम बढ़ते बढ़ते समर्पण में बदल जाता है अर्थात अब हम पूर्ण रूप से सदशिष्य होते हैं।
    तो सूफी बाबा और अतीत के सन्तों की शर्त है कि ऐसे ही समर्पित भक्त मिलें तो ही वे रहस्य बताने को राज़ी होगें अन्यथा नहीं।
    गुरुदेव कहते हैं  "न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी"

    गुरुदेव बताते हैं सूफी बाबा ने दिव्यलोक, स्प्रिटवर्ल्ड के रहस्यों को मेरे सामने उजागर किया।
    तथा जो-जो मुझे गहरे अनुभव होते गए उस पर वे अपना ठप्पा लगाते रहे। जिस तरह डूबते को तिनके का सहारा भी काफी होता है वैसे ही उनका राज़ी होना मेरे लिए पर्याप्त था।
    ओशोधारा गुरूमण्डल :- कोई भी आध्यात्मिक परंपरा तभी जीवित रहती है जब उसमें गुरु मंडल स्थापित होता है बिना गुरूमण्डल के आध्यात्मिक परम्पराएं विलीन हो जाती है।
    प्रत्येक परंपरा के अपने-अपने गुरु मंडल होते हैं।
    गुरूमण्डल का अर्थ है गुरुओं का वह समूह जो दृश्य-अदृश्य रूप में उस परंपरा की स्थापना करते है और निरंतर उनकी कृपा उसपर बरसती रहती है।

    ओशोधारा गुरूमण्डल में गुरूदेव इस मंडल के सदगुरु हैं जिन्होंने इस ओशोधारा रूपी महान आध्यात्मिक परंपरा को जन्म दिया और परमगुरु के रूप में ओशो, नानकदेव और सूफी बाबा हैं। जिनका वरदहस्त और मार्गदर्शन ओशोधारा पर सतत बरस रहा है और सतत बरसता रहेगा...।
    नए-नए गुरु इसमें सदा आते रहेंगे और गुरूमण्डल के सहयोग तले ओशोधारा निरन्तर जीवंत धारा बनकर अविरल बहती रहेगी।

    सभी सच्चे और निष्ठावान साधकों को जो अपने इस जन्म को अंतिम जन्म बनाना चाहते हैं उन सभी का ओशोधारा में स्वागत है ध्यान समाधि से चरैवेति तक का संकल्प लेकर परमजीवन की अपनी यात्रा का शुभारंभ करें और अपने परम सौभाग्य पर इतराएं।
    गुरूदेव कहते हैं :- आज ओशोधारा में जो हो रहा है, कल लोग विश्वास नहीं कर पाएंगे। ऐसा भी होता है कि इतने सोपान! 14 तल समाधि के, 14 तल सुमिरन के, 23 कार्यक्रम प्रज्ञा के। संसार में भी अपनी डालियाँ, पत्तियां फैलाओ, फूल खिलाओ। और परमात्मा की गहराई में अपनी जड़ों को ले जाओ।

    गुरुदेव ने ओशोधारा में अध्यात्म के सर्वश्रेष्ठ मार्ग 'सहज-योग' को प्रतिपादित किया है, जिसके 3 आयाम हैं - ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग। ज्ञान योग का अर्थ है स्वयं को आत्मा जानना और आनंद में जीना। भक्ति योग का अर्थ है परमात्मा को जानना और उसके प्रेम में जीना। कर्म योग का अर्थ है आत्मा और परमात्मा से जुड़कर संसार का नित्य मंगल करना।

    गुरूदेव ने एक रहस्य की बात बताई है :- बैकुंठ में आत्मानन्द है पर ब्रह्मानन्द नहीं है, क्योंकि वहां भक्ति नहीं है।
    भक्ति सिर्फ मनुष्य शरीर से ही सम्भव है।
    सुमिरन सिर्फ सांसों के साथ ही किया जा सकता है।
    सन्त सुमिरन का आनन्द लेने के लिए, सांस-सांस आत्मानन्द + ब्रह्मानन्द  (सदानन्द) का आनन्द लेने के लिए ही पृथ्वी पर बार-बार आते हैं।

    हृदय में गुरूदेव और हनुमत स्वरूप सिद्धि के साथ गोविंद का सुमिरन!
    गुरूदेव ने आध्यात्मिक जगत में महाक्रान्ति ला दी है; ओशोधारा के साधकों के जीवन के केंद्र में गुरु हैं, सत-चित-आनन्द के आकाश में उड़ान है और सत्यम-शिवम-सुंदरम से सुशोभित महिमापूर्ण जीवन है!!

    गुरुदेव द्वारा प्रदत्त सुमिरन+हनुमत स्वरूप सिद्धि अति उच्चकोटि की साधना है।
    हनुमान स्वयं इसी साधना में रहते हैं, वे सदैव भगवान श्रीराम के स्वरूप के साथ कण-कण में व्याप्त निराकार राम का सुमिरन करते हैं।

    गुरुदेव ने अब सभी निष्ठावान साधकों को यह दुर्लभ साधना प्रदान कर आध्यात्मिक जगत में स्वर्णिम युग की शुरूआत कर दी है।

    सदा स्मरण रखें:-
    गुरु को अंग-षंग जानते हुए सुमिरन में जीना और गुरु के स्वप्न को विस्तार देना यही शिष्यत्व है।
    गुरु+गोविंद+शिष्य यह सिनर्जी ही सारे अध्यात्म का सार है!!
    और यह सतत चलता रहेगा, चरैवेति.. चरैवेति...।


    मैं पाँचजन्य हूँ कृष्ण का मैं ओशो की आवाज़ हूँ

    मैं शांतिदूत हूँ बुद्ध का मैं सूफ़ियों का साज़ हूँ
    मुझे उनसे है मतलब नहीं बिन जाने कहते ख़ुदा ख़ुदा नानक का इक ओंकार हूँ, मैं तसव्वूफ़ का राज़ हूँ।

                   नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां
                   नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां

                                               ~ जागरण सिद्धार्थ

    ( सूफी बाबा के बारे में और विस्तृत जानकारी के लिए पढ़ें :- 
    पुस्तक :- "सूफी बाबा शाह कलंदर "
    लेखिका :-  मां प्रेम मोनिका
    पता:- ओशोधारा नानक ध्यान मंदिर
    ग्राम :- मुरथल - 131027
    सोनीपत - हरियाणा
    फ़ोन :- +91 96714 00196 )

                         
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    11 comments:

    1. धन्य हो गए सूफी बाबा के बारे में इतना जानकर, सदगुरु से जुड़कर अब पता चल रहा है जीवन क्या है और कितना अनंत है। हम कहा है ओर कैसे विकाश करना है?

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    2. परम गुरु प्यारे सूफी बाबाजी एवं प्यारे औलिया बाबाजी के श्री चरणों में शत-शत नमन, अहोभाव
      🙏🙏🙏💜💙🧡

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    3. हमारे मुर्शिद के मुर्शिद परम गुरु सूफी बाबा और हमारे प्यारे मुर्शिद के पावन श्रीचरणों में अपने अहोभाव को अर्पित करता हूँ साथ ही अपने मुर्शिद की प्यारी संगत को भी नमन करता हूँ।
      💝💝💝👏👏👏💝💝💝👏👏👏💝💝💝👏👏👏💝💝💝

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    4. Adbut.Dani hogaya hum pad kar.Naman hai sufi
      sangat ko.Danivad aahibav .

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    5. सूफी बाबा शाह कलन्दर परम् पूज्य बड़ेबाबाजी को चरणस्पर्श।विस्वास नहीं होता कि जीवन मे ऐसा भी होगा।कि हम सूफी बाबा और बड़ेबाबाजी के छत्रछाया में होंगे।जीवन के रहस्य को जान सकेंगे। इतनी उड़ान भर सकेंगे।बाबा शब्द नही मेरे पास ।आप तो सर्वज्ञानी हैं आपको सब कुछ पता है।

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      Replies
      1. बहुत-बहुत साधुवाद जागरण जी..

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    6. Replies
      1. Haan, available hai ====> Yaad Hai To Aabad Hai (याद है तो आबाद है)
        https://www.amazon.in/Yaad-Hai-Aabad-%E0%A4%86%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A6-Hindi-ebook/dp/B08GL3GVXM

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