ओशोधारा के समस्त घटना-क्रम का सार
"कितने कांटों की बददुआ ली है
चंद कलियों की जिंदगी के लिए"
नाराज हैं वे, विरोध में हैं। हजार तरह की आलोचना और निंदा उनके मन में है। उनकी नाराजगी मैं समझ सकता हूँ। लेकिन यह सौदा करने जैसा लगा।
"कितने कांटों की बददुआ ली है
चंद कलियों की जिंदगी के लिए"
यह करने जैसा लगा। एक कली भी खिल जाए और हजार कांटें गालियां देते फिरें, क्या फर्क पड़ता है? कोई हर्ज नहीं है। इतना तो तय है कि कांटें न खिलते। हां, उन पर ज्यादा ध्यान देने से हो सकता था, यह कली न खिल पाती।
तो अब तो मेरा संबंध सिर्फ उनसे है, जो हृदय को दांव पर लगाने की हिम्मत रखते हैं, जुआरी हैं। अब दुकानदारों से संबंध नहीं है। इसलिए मैंने सब ऐसे उपाय कर लिए हैं कि उस तरह के लोगों को आने की सुविधा ही न रह जाए। क्योंकि आते है’, तो अकारण समय व्यर्थ होता है; अकारण शक्ति, अकारण समय। और उन्हें कुछ होने वाला नहीं है; जब तक कि वे सीखने ही न आएंगे।
अब विद्यार्थियों में मेरी उत्सुकता नहीं है, केवल शिष्यों में है। और फर्क यही हे कि विद्यार्थी ज्ञान लेने आता है, शिष्य जीवन देने। विद्यार्थी, कुछ जानकारी बढ़ जाए, तृप्त। थोड़ी उसकी संपदा समझ की बढ़ जाए, काफी है। शिष्य अपने को। मिटाने आता है। शिष्य पुनर्जीवन के लिए आता है। शिष्य मरने और जीने की तैयारी लेकर आता है। शिष्य चुनौती स्वीकार करता है।
~ परमगुरु ओशो
जीवित गुरु का मिलना, और फिर वह देने को राजी हो, यह दुर्लभ संयोग है!
अध्यात्म जगत के शिखर परमगुरु ओशो, परमगुरु सूफी बाबा ने भी किसी को "राम-रतन-धन" नही प्रदान किया!!
गुरुदेव (सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी) आध्यात्मिक जगत के ध्रुव तारे हैं, जिनके पास गोविंद के सारे खजाने हैं, और वे बेशर्त बांटने को भी राज़ी हैं।
ऐसा मणि-कांचन संयोग आध्यात्मिक जगत में प्रथम बार ही सारी मानवता को उपलब्ध हुआ है।
गुरुद्रोह क्या है???
गुरु ने जो हमको गूढ़ रहस्य दिया...
अनन्त योनियों से भटकते हुए, मनुष्य जन्म, फिर जन्मों जन्मों में प्रभु की प्यास जगती है, फिर जन्मों-जन्मों की प्यास के बाद पूरा सद्गुगुरु मिलता है, फिर वह हमें शिष्य रूप में स्वीकार करे, और फिर वह हमें परमजीवन की यात्रा पर ले जाने को राज़ी हो!!
यह तो गोविंद की कृपा से ही होता है।
सद्गुरु के द्वारा यह शिष्य को इतना बड़ा दान है, कि शिष्य इसका ऋण कभी नही चुका सकता है!!
पर जिसे मुफ्त मिल जाता है वह सद्गुरु का मूल्य नही समझता है। और अपने अहंकार का साम्राज्य खड़ा करने में , अपने आप को गुरु से श्रेष्ठ साबित करने में, गुरु से धोखेबाज़ी, गुरु का अपमान कर, उनके विरोध में खड़ा होकर के आध्यात्म जगत का सबसे बड़ा अपराध कर बैठता है, जिसे गुरुद्रोह!! कहा गया है।
मैं यहां अपनी बाते सीधे आदरणीय स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती जी को संबोधित करके कहूंगा।
क्योंकि वे दूसरों को ढाल बनाकर गुरुदेव के बारे में झूठ पर झूठ फैला रहे हैं!!
स्वामी जी, आप ओशो के साथ इतने नज़दीक रहे।, उनकी सबसे ज्यादा किताबे पढ़ीं, उनको सबसे ज्यादा सुना, आश्चर्य!! आप गुरु महिमा को नही समझ पाए। कि सद्गुरु कौन होता है, शिष्य कौन होता है? संतों पर, गुरु-शिष्य महिमा और जीवित गुरु पर ओशो इतना बोले, पर आप समझ नही सके!
इतना भी आप नही जानते, कि जो "नामदान" देता है वही गुरु होता है, तो आपके गुरु ओशो नही हैं, सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी आपके गुरु हैं। ओशो तो आपके और हमारे परमगुरु हुए।
एक वीडियो वायरल हुआ है।
जिसमें आप और मां ' सजन रे झूठ मत बोलो...।' गीत गा रहे हैं।
गाइये मज़ा करिए, किसने मना किया है, पर आप दोनों लोग गीत के बोल के साथ जो expression दे रहे हो, उसे देखकर आंसू आ गए, जिन्होंने आपको अंधकार से प्रकाश की तरफ यात्रा कराई, आप उनका मजाक उड़ा रहे हो!, अपमान कर रहे हो!!
इससे यह बात तो सत्य सिद्ध हो गई, कि ओशो जगत में शिष्यत्व नही है, सिर्फ अहंकारियो की जमात है!!
कृपया निम्न link देखें 👇
पर स्वयं को कैसे धोखा देंगे!!
आपने अध्यात्म जगत की बहुत बड़ी गलती कर दी है!!
आपने सिर्फ गुरुदेव का ही अपमान नहीं किया है, परम गुरु ओशो का और समस्त गुरुसत्ता का अपमान कर दिया है!!!
स्वामी जी आप कह रहे है:
कि देवी देवताओं के नाम पर गुरुदेव बहकाते रहे, उनको मानसिक बीमारी है, जिस कारण उन्हें देवी-देवताओं के दर्शन होते हैं। गुरुदेव के दो चेहरे हैं,आदि..आदि...।
पर स्वामी जी सच्चाई यह है इस घटनाक्रम के बीच
हमने आपके तथाता के कई चेहरे देख लिए हैं।
गुरुदेव (सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी) जैसे प्रामाणिक सद्गुरु, इस समय पृथ्वी पर, कोई दूसरे नहीं हैं।
क्या आपने कभी गुरुदेव के द्वारा खोजी "दिव्य-आत्माओं के आवाहन" की विधि का प्रैक्टिकल किया?? फिर आप आरोप कैसे लगा सकते हैं!!
ये आरोप लगाने से पहले आपको जांचना चाहिए था!
पर आप की कोई वैज्ञानिकता नही है। आप वैज्ञानिक सोच होने का सिर्फ दिखावा करते हैं।
हमारे पास प्रमाण है, कि गुरुदेव ने जो विधि खोजी है, वह पूर्णतः प्रामाणिक है।
जब गुरुदेव ने यह विधि खोजी थी, तब 2010 में हम कुछ गुरु-भाइयों ने मिलकर इस पर खूब गहरी रिसर्च की, लगभग हर हफ्ते हमने सन्तों, सिद्धों, देवी-देवताओं का आवाहन किया, लगातार 1 साल तक, जिसमें एक मित्र बस 45 मिनट तक बिना रुके लगातार डिजिटल कैमरे से क्लिक करता रहता था, और ऐसी Photos आईं है, कि आश्चर्य चकित कर देती हैं!!
और यह सिद्ध करती हैं, कि गुरुदेव के द्वारा खोजी विधि पूर्णतः प्रामाणिक है। इससे यह सिद्ध होता है, कि देवी-देवताओं का अस्तित्व है, और आवाहन पर वे आते हैं।
हमारे पास उसका पूरा collection सुरक्षित है। जिसमें से निम्न फ़ोटो देखें 👇🏻
बड़े ही निम्न स्तरीय झूठे आरोप फैलाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है, कि आपको मोबाइल नही दिया गया, जबकि आपके पास हमेशा मोबाइल रहा है, 1-2 बार आपने स्वयं मुझे फोन भी किया है, आप दूसरे लोगों की sympathy हासिल करने के लिए, अपने आपको दुख के मारे, जेल के वातावरण में कैद, कैदी की तरह प्रस्तुत कर रहे हैं।
स्वामी जी एक और निम्न स्तरीय झूठ आप फैला रहे हैं, उस परम सच्चाई को झुठला रहे हैं, जिस परम सौभाग्य की घटना ने आपको और मां को जमीन से आसमान पर पहुंचा दिया।
गुरुदेव पर आप झूठा आरोप लगा रहे है, कि 'जब इनको ओशोधारा का गठन करना था, तब ओशो इनके स्वप्न में आ कर कहते हैं, शैलेन्द्र प्रिया जी को ढूंढो, क्योंकि उनके आकर्षण और उनके नाम पर लोग साधना के लिए आयेंगे, फिर जब इनका मंसूबा पूरा हुआ तो विष्णु जी इनसे कहते हैं, कि अब इनकी कोई जरूरत नहीं है।'
गुरुदेव (सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी) स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती तथा मां अमृत प्रिया जी को पहले से जानते ही नहीं थे, जब उन्हें सन्देश आया 'शैलेन्द्रप्रिया' को खोजो और उन्हें भी यह "सतनाम" प्रदान करो।
पहले तो गुरुदेव समझें, की ये किसी एक ही व्यक्ति का नाम है, फिर काफी खोजने के बाद उन्हें पता चला, ये दो है, ये ओशो के अनुज है, और ये उनकी पत्नी हैं। ओशो के आदेशानुसार उन्होंने बड़ी मुश्किल से आप और मां को खोजा और "अमोलक-रतन" प्रदान किया, और गुरुदेव तो वापस जा रहे थे, आप और मां ने स्वयं उन्हें रोका था, कृपया :-
स्वामी जी आप अपना दिया हुआ वक्तव्य स्वयं पढ़ें, और मनन करें, क्या यह स्थितप्रज्ञता हैं!!! :- 👇
"एक दिन ओशो सिद्धार्थ जी ने कहा कि वे केवल तब तक यहां आते रहेंगे जब तक हम दोनों में से कोई एक ज्ञान को उपलब्ध नहीं हो जाता, किंतु हम दोनों इस बात से सहमत नही हुए और जोर देकर कहा कि यदि यह शर्त रखनी है तो हम साधना बन्द कर देंगे ताकि हम ज्ञान को ही उपलब्ध न हों।
मैंने उनको यह भी कहा कि जब डाकू और आतंकवादी एक साथ मिलकर काम कर सकते हैं, फिर बुद्धपुरुष क्यों नहीं? अंततः जब उन्होंने इकट्ठे मिलकर काम करने का आश्वासन दे दिया, तभी हम दोनों ने बुद्धत्व प्राप्त करने की दिशा में कदम उठाना शुरू किया।
हम तीनों ने एक टीम बनाई और यहां समाधि कार्यक्रम करने आरम्भ कर दिए। हमने ओशो सिद्धार्थ जी के मार्गदर्शन में अपनी साधना भी चालू रखी। 25 जनवरी 2000 को मां प्रिया बुद्धत्व को प्राप्त हुई। 5 जनवरी 2001 को मुझे भी ज्ञान उपलब्ध हो गया।
अप्रैल 2002 को ओशो सिद्धार्थ जी ने अपनी सरकारी सेवा से त्यागपत्र दे दिया और आध्यात्मिक मार्गदर्शन देने में वे पूरे समय के लिए हमारे साथ जुट गए। इस तरह हमारी टीम बनी।"
~ स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती
आप कह रहे हैं की ओशोधारा के जो प्रोग्राम हैं सब ओशो से आएं है,
निश्चित रूप से ओशोधारा में ओशो हमारे परमगुरु हैं, और गुरुदेव के सद्गुरु हैं।
गुरुदेव ने अपने सद्गुरु के खजाने में समाधि और प्रज्ञा कार्यक्रम के रूप में नए रतन जोड़े हैं। यह गुरुदेव की देन है, यह उनकी मौलिकता है
ओशो ने ऐसे कोई प्रोग्राम नही बनाये थे, ये गुरुदेव की विशिष्टता है, और उनके बहुआयामी व्यतित्व की देन हैं, कि उन्होंने अपने सद्गुरु ओशो के द्वारा बनाई गई पेंटिंग में और नए रंग भरे हैं, और यह उनका गुरु-प्रेम है, कि इसका क्रेडिट वो स्वयं नही लेते, अपने सद्गुरु ओशो को ही समर्पित कर देते है, स्वामी जी इसे ही शिष्यता कहते हैं!!
पूरे ओशो जगत में ओशो के स्वप्न को कोई भी पूरा नहीं कर पाया।
सिर्फ गुरुदेव (सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी) ने अपने गुरु ओशो के स्वप्न को "ओशोधारा" रूपी रहस्य विद्यालय, निर्मित कर, अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को पूरी मानवता के लिए उपलब्ध करा कर, अपने गुरु के स्वप्न को और-और नए आयामों में विस्तार दिया है।
आप लोग ओशोधारा के कार्यक्रमों को अपना लेबल लगा अपने नाम से प्रस्तुत कर रहे हैं, इसे धोखाधड़ी कहते हैं।
मुझे आश्चर्य पुराने मित्रों पर है, जो सारे सत्य जानकर भी गांधारी की तरह अपनी प्रज्ञा की आंखों पर पट्टी बांधें हुए हैं। और चिंता नए साधकों की है, कि कहीं वे सत्य से अनजान रहते हुए इन बगुलों के शिकार न हो जाएं, इनके साथ-साथ अनजाने में वे भी गुरुद्रोही न हो जाएं!!
क्योंकि असत्य (गुरुद्रोहियों) का साथ आप चाहे जान के दें, चाहे अनजाने दें, उसका परिणाम तो भोगना ही पड़ेगा...।
स्वामी जी की सन्देश वाहक मां माधुरी कह रही है, कि, मैंने 65 बार समाधि की है, 7 बार चरैवेति कर चुकी हूं, लाखो रुपये बर्बाद हो गए, पर कुछ हुआ नही, सब कार्यक्रम व्यर्थ हैं।
और मूढ़तापूर्ण वक्तव्य भी दे रही हैं, कि ओशोधारा में गुरुदेव (सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी) का कोई कॉन्ट्रिब्यूशन नही है, जो भी है स्वामी जी, मां और मस्तो जी का है।
कह रही हैं, वो बड़े थे इसलिए हम उन्हें बड़े बाबा कहते हैं, उनका सम्मान तो मैं करती हूँ, पर सद्गुरु नहीं मानती, क्योंकि सद्गुरु तो बांटता है, छीनता नही है, उन्होंने हमारा सब छीन लिया है।
मां माधुरी जी, आप 2004 से जुड़ी है, और आप को गुरुदेव का कॉन्ट्रिब्यूशन दिखायी नही दे रहा है!
आपने तो गजब कर दिया!!
इतनी मूढ़ता और प्रज्ञविहीनता की आपसे उम्मीद नही थी!!!
ओशोधारा में सारा कॉन्ट्रिब्यूशन गुरुदेव के सिवा किसका है??
स्वामी जी, मां जी और आप सभी को किसने "सतनाम" दिया, जिन्हें ध्यान का कुछ पता नही था, समाधि का कुछ पता नहीं था, साक्षी जो ओशो जगत में सबसे बेबूझ रहा है, उन सबके राज किसने खोले हैं?
असल में माधुरी जी साधना करने नहीं, गुरुदेव के खिलाफ षड्यंत्र करने आयीं थीं । आप पर करुणा आ रही है, आपने बहुमूल्य 14 साल जो जीवन का सौभाग्य बन सकते थे उन्हें दुर्भाग्य में बदल लिया, आपने इतने कीमती साल अपने व्यर्थ ही बर्बाद कर दिए।
और आप कह रही हैं, मेरे लाखों रुपये बर्बाद हो गए,
अध्यात्म की यात्रा व्यापारियों की नहीं है, बनियों की नहीं है, जुंआरियों की है, जो सब लुटाने को तैयार हों, और उफ! भी न करें। और उनके रोम-रोम से सदा अहोभाव का ही गीत बजता रहे।
स्वामी जी, मां और मस्तो जी ने ओशोधारा के विकास में अगर सहयोग दिया है, तो कौन सी बड़ी बात कर दी, ये ओशोधारा के सभी आचार्य कर रहे हैं, यह तो सभी शिष्यों का दायित्व होता है अपने गुरु के कार्य को विस्तार देना, सहयोग देेना ; तन, मन और धन से।
आप लोगो को इतनी भी समझ नही है!!
स्वामी जी कह रहे हैं, ओशो ही सिर्फ हमारे गुरु हैं, और कोई हमारा गुरु नहीं है।
यह वक्तव्य आपके अविवेक और कृतघ्नता (Ingratitude) को दर्शाता है।
गुरुदेव ने जो दिया है, और जो दे रहे है, उसके लिए तो सारे ब्रह्माण्ड की दौलत भी तुच्छ है, हम अपने सारे जन्म भी उनके श्री-चरणों में समर्पित कर देें, तो वह भी कम है।
और आप लोग कैसी कृतघ्नता (Ingratitude) दर्शा रहे हैं !
जिसके पास जरा भी प्रज्ञा होगी, जरा भी गुरु-शिष्य मर्यादा की समझ होगी, वह आप सबके इस महापाप में कभी शामिल नहीं होगा।
अब यहीं से स्वामी जी के पाखण्ड और दोहरे चरित्र का पता चल जाता है, कह रहे थे मैं किसी का गुरु नही, अपन मित्र बनकर रहेंगे।
पर अब धोखेधड़ी की दुकान (osho fragrance) को चलाने के लिए इनके मित्र इन्हें गुरुदेव के रूप में प्रस्तुत करने में लगे हैं। और तथाता के शिखर स्वामी जी तर्क दे रहे है, कोई मुझे कुछ भी कहने के लिए स्वतंत्र है !
फिर आपने ओशोधारा में सैकड़ो साधकों की श्रद्धा को एक झटके में तोड़कर यह घोषणा क्यों कर दी,
कि "छोटे बाबा, गुरुदेव आदि से अब मुझे सम्बोधित न किया जाए, यह हम पर जबरदस्ती थोपे गए हैं, हम मित्र बन कर क्यों न रहे।"
यह है आपकी प्रमाणिकता!!!
आपका यह दोहरा चरित्र दर्शाता है, कि आप सबका षड्यंत्र गुरुदेव को हटाकर स्वयं गुरु गद्दी पर बैठना था, और ओशोधारा को अपनी मनमानी से चलाना था।
स्वामी जी कह रहे हैं, कि नरक में रहना पसंद करेंगे, पर मुरथल में हमारे गुरुदेव के साथ रहना पसंद नहीं करेंगे!!
आपने तो गुरुद्रोह की मिसाल कायम कर दी है!
जो Real में आपके गुरु है, उन्हें आप अपना गुरु-भाई बता रहे हैं, जिन्होंने आपको सब कुछ दिया, अब आपको उनके साथ रहना पसंद नही है!
आपको गुरु-शिष्य का अंतर तक नही मालूम!
गुरु-शिष्य की मर्यादा का भी आपको पता नही!!
आप इतने प्रज्ञा शून्य होंगे!
और इतनी कृतघ्नता (Ingratitude) प्रकट करेंगें!!!
आप ने अपनी जन्मों-जन्मों की सारी साधना पर पानी फेर दिया है।
ओशोधारा के समाधि, सुमिरन और प्रज्ञा कार्यक्रम हमारे सर्वांगीण विकास के लिए गुरुदेव ने बनाये हैं, ये उनकी महाकरुणा है। ये इतने अद्भुत कार्यक्रम हैं, कि अगर साधक पूरी त्वरा, निष्ठा और ईमानदारी से करता रहे...,
तो उसे पता भी नही चलता, और धीरे-धीरे उसकी चेतना अनन्त-अनन्त आयामों में विकसित होने लगती है।
और उसके आध्यात्मिक जीवन में सत-चित-आनंद और सांसारिक जीवन में सत्यम-शिवम-सुंदरम का फूल खिलने लगता है।
बड़े आश्चर्य और मज़े की बात है!!!
अतीत के सन्तों ने कुछ दिया नही, फिर भी शिष्य विरोध में नही खड़े हुए , और गुरुदेव इतना दे रहे हैं, कि हम ले ही नही पा रहे हैं, और इसलिए विरोध कर रहे हैं!!!
आप कह रहे हैं, हम सोशल मीडिया पर कटोरा लेकर भीख मांग रहे हैं।
आपको भीख मांगने और सहयोग मांगने का अंतर पता होना चाहिए।
भीख मांगने का उद्देश्य स्वयं के स्वार्थ के लिए होता है, पर सहयोग मांगना 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' लोक कल्याण के उद्देश्य से प्रेरित होता है।
सहयोग मांग कर नेता सुभाषचंद्र बोस जी ने आज़ाद हिंद फौज खड़ी कर दी, सहयोग मांग कर मालवीय जी ने बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी की स्थापना कर दी।
गुरुदेव कहते हैं, कि अहंकारी ही सहयोग नही मांगते हैं।
तथाताप्रज्ञ! स्वामी जी ने गुरुदेव से एक डिमांड और रखी थी कि हर महीने मां को 50,000rs दिए जाएं, चाहे जैसे भी हो। क्योंकि मस्तो हर महीने मां को 50,000rs का गिफ्ट देते हैं। (वैसे मां आप भी गजब हैं, हर महीने गिफ्ट की वासना अभी भी आपकी शेष है! गुरुदेव ने जो परमात्मा रूपी गिफ्ट हमें दिया है!! क्या उसके बाद भी किसी संसारी गिफ्ट की वासना शेष रह जाती है!!! )
पर गुरुदेव ने विनम्रता से कहा आश्रम का पैसा शिष्यों का है, इसका इस्तेमाल हम सिर्फ ओशोधारा के विकास के लिए ही कर सकते हैं, न कि अपने निजी इस्तेमाल के लिए!!
यह सुनकर स्वामी जी का तथाता पूरी तरह से कंपित हो गया था!!
गुरुदेव और स्वामी जी मे अक्सर शास्त्रार्थ हुआ करता था, उसमे जब स्वामी जी हारने लगते, तब तुरंत ओशो को ढाल की तरह इस्तेमाल करते थे, जहां वो इतना कह देते, कि मेरी बात सही है, क्योंकी ओशो ने भी ऐसा कहा है, बस गुरुदेव तुरंत सरेंडर कर देते। ऐसा नही था कि उसका उत्तर उनके पास नही रहता था, पर गुरु की बात!! अपने गुरु की बात को वे काट नही सकते!!
यह है, शिष्यता!!!
मस्तो जी,
आप का नाम गुरुदेव जब लेते थे, तो गर्व से उनका सीना चौड़ा हो जाया करता था, यह हमने देखा है।
पर आपने गुरुद्रोह में पाद-पदम् को भी पीछे छोड़ दिया है!!
जो आदि शंकराचार्य के प्रिय शिष्यों में एक थे, कालांतर में, गुरु विरोध कर उन्होंने गुरुद्रोह किया, और धोखे से दूध में पिसा कांच मिलाकर उनकी हत्या करने का भी आयोजन किया।
ओशो जगत के ज्ञानी गुरुद्रोह शब्द से बड़े बौखलाए हुए हैं, कह रहे हैं, यह सब भयभीत करने के लिए, डराने के लिए प्रयोग किया जा रहा है।
बड़ी दुर्घटना घटी है ओशोजगत में ओशो जैसी विराट चेतना के साथ रहकर भी ये सभी बचकाने के बचकाने रह गए।
इनसे कहना चाहता हूँ ' गुरुद्रोह' शब्द गुरुदेव (सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी ) ने नही रचा है।
इस शब्द को पृथ्वी के पहले बुद्धपुरुष भगवान शिव ने अपनी पहली शिष्या मां पार्वती जी के समक्ष कहा था, जो गुरु-गीता ग्रंथ में संकलित है।
हे महाज्ञानियों! आप लोग बेहोशी में ये मत कह दीजिएगा, शिव जी हैं नही, उनका कोई प्रमाण नही है, आदि..आदि...।
क्योंकि जिस विज्ञान भैरव तन्त्र पर परमगुरु ओशो बोले हैं, और जिसकी ध्यान-विधियां आप सब करते हो, तथा स्वामी जी ने तो उस पर पूरी प्रवचन माला भी दी है। वह भी भगवान शिव के द्वारा ही प्रकट हुई है।
विद्या धनं बलं चैव तेषां भाग्यं निरर्थकम।
येषां गुरुकृपा नास्ति अधो गच्छन्ति पार्वति।।
एकाक्षरप्रदातारं यो गुरुरनैव मन्यते।
श्वानयोनिशतं गत्वा चाण्डालेष्वपि जायते।।
अतः गुरुद्रोह आध्यात्मिक जगत का सबसे बड़ा अपराध है। इसमें सारे जन्म-जन्म की साधना बेकार चली जाती है। और साधक कहीं का नहीं रहता...।
आज ओशो जगत में ओशोधारा से बाहर किये गए सारे गुरुद्रोही इकट्ठे होकर लगातार गुरुदेव पर झूठे आरोप लगा रहे हैं, ये शिष्यता के लक्षण नहीं है,
यह तो गुरुदेव के साथ उन सभी की महाकृतघ्नता है!!!
जिस तरह पकिस्तान बनाने के पीछे उनके आकाओं का एक ही मकसद रहा था। गज़वा-ए-हिन्द।
हिन्द की जो गरिमा है, जो हिन्द के पास खजाने हैं उन्हें नष्ट कर इस्लामिक देश बनाया जाए।
उसी तरह ओशोधारा के गुरुद्रोहियों का अलग आश्रम की स्थापना करने का एक ही उद्देश्य है, कि कैसे ओशोधारा को नुकसान पहुंचाया जाए।
ओशोधारा में जो गुरुदेव ने समाधि, सुमिरन और प्रज्ञा के अनूठे कार्यक्रमों के माध्यम से अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को खोजा है, और सभी साधकों के लिए उपलब्ध कराया है, उसे नष्ट कर ये ज्ञानी मित्र! मतवादी मूढ़ता को स्थापित करना चाहते हैं!!
और इनकी सारी गतिविधियां इन सबका संकेत दे रही हैं; ओशोधारा कार्यक्रमों में हेर-फेर कर नए नामों से प्रस्तुत करना, नए साधकों को फोन करके इमोशनली बरगलाना, और अब ओशोधारा के पास ही अपना आश्रम स्थापित करना। ओशोधारा के विरुद्ध इनकी ये छद्म एक्टिविटी इनके षड्यंत्र और इनकी कृतघ्नता की तरफ इशारा कर रही हैं!!!
गुरोद्रोह पर खड़ीअधोगमन की तरफ ले जाने वाली संस्था! दुविधा में फंसे साधकों से चंदा इकट्ठा कर, उन्हें लूटने में लगी है!!
जो मित्र इनके बरगलाने में फंस चुके हैं उन्हें एक बार अपने को फिर-फिर झकझोर लेना चाहिए, क्योंकि विवेकहीनता में दिया गया दान भी पाप का ही कारण बनता है!
गुरु से द्रोह करने वालों का साथ देने वाले भी महापातक के भागी होते है।
इसका स्मरण रखें!!!
गुरुदेव का संदेश और आपका चुनाव👇
https://youtu.be/Qo2SqjsSVJ0
ओशो जगत में गुरु-शिष्य परंपरा का अभाव है!!!
इनमे किसी को भी गुरु-शिष्य के बीच के अदब का पता नही है।
इनसे कहता हूँ, गुरु शिष्य सम्बन्ध क्या है जरा सिद्धों और अघोर पंथ में जाएं, जहां आपको गुरु और शिष्य की मर्यादा का पता चलेगा। गुरु के सामने शिष्य की आंख उठ नही सकती, अदब में सदा नीचे झुकी रहती है, गुरु चोट पर चोट पहुंचाता है, गाली देता , डंडे से भी चोट कर देता है, तथा आध्यात्म के कोई रहस्य भी जल्दी नही बताता है। फिर भी शिष्य गुरु-सेवा में दिन-रात लगा रहता है, गुरु के प्रति विरोध तो वह स्वप्न में भी नही सोच सकता है, उसके रोम-रोम में बस एक ही भाव रहता है; गुरु की आज्ञा का पालन।
परमगुरु कहते हैं मुफ्त में जो मिल जाता है उसकी कीमत नही होती!!!
ओशो जगत में सिर्फ आज ओशो धारा ही है, जो भारतीय सनातन धर्म की गुरु-शिष्य परम्परा को, परम गुरु ओशो, और समस्त सन्तों की देशना को प्रयोगात्मक रूप से आगे लेकर बढ़ रही है, और अब इसकी रक्षा करने का तथा इसको और विस्तार देने का दायित्व सदशिष्यों और समस्त प्रभु प्रेमियों पर है!!!
।। आनंद उत्सव अमृत की धारा
ओशो के सपनों की ओशोधारा ।।
।। गुरुरवै शरण्यं गुरुरवै शरण्यं
गुरुरवै शरण्यं गुरुरवै शरण्यं ।।
( मेरा और निष्काम का बस यही प्रयास है, कि ओशोधारा के सत्य को उजागर किया जाए, ताकि जो पुराने मित्र अभी भी मोह में फंस कर गलत रास्ते पर जा रहे हैं, वे प्रज्ञा का इस्तेमाल कर अभी भी चेत जाएं, तथा भविष्य में आने वाले नए साधक ओशोधारा के नग्न सत्य से परिचित होकर, निर्बाध गति से गुरुदेव के संग प्रभु की यात्रा पर निकल सकें) 🙏🙏🙏
~ जागरण सिद्धार्थ
Please click the following link to subscribe to YouTube -
https://www.youtube.com/user/OshodharaVideos?sub_confirmation=1
Twitter :
https://twitter.com/SiddharthAulia
Oshodhara Website :
www.oshodhara.org.in
Please Like & Share on Official Facebook Page! 🙏
https://m.facebook.com/oshodharaOSHO/
छोड़ो स्वामी जी। भैंस के आगे बीन बजाने से क्या लाभ है। हमारी शक्ति ही जाया होगी।
ReplyDeleteये तीन साल अमेरिका में रहे ओशो इनसे एक बार भी नहीं मिले और ये कहते थे कि हमें मिलने नहीं दिया गया।अब समझ में आता है कि उनको पता था कि ये नकली सिक्का है।और आगे चल के गुरुद्रोही भी होगा ।
ReplyDeleteTo the point guidance for awareness of seekers
ReplyDeleteParam guru osho jaisa krantikari is duniya me ekmatr hue...aur unki Dhara Ko hmare Sadhguru ne chalaya sadguru ki Dhara....
ReplyDeleteJai osho jai bade baba
ये लगभग 9 साल पहले की बात है मैं तो साक्षी रहा हूँ ऐसी पचासो घटनाओ का ,इसमे कानपुर के तबके लगभग सारे शिष्य साक्षी रहे हैं, स्वामी ओशो जागरन शुरू से ही बाबा की बात से देवताओ से संबंध जोड़ने की खोज करते रहे हैं, उन्हें सफलता भी मिली ,लेकिन संवाद की विधि खोजने में नाकाम रहे हैं यदि गुरु कृपा बनी रही तो जल्द ही संवाद की विधि खोजी जाएगी, जय सद्गुरु
ReplyDeleteछोड़ो स्वामी जी। भैंस के आगे बीन बजाने से क्या लाभ है। हमारी शक्ति ही जाया होगी।
ReplyDeleteSatya ko sbke samne prkat krne ke liye thanx.
ReplyDeleteAapka karya sraahniya hai.
बहुत ही शर्मनाक कृत्य है,
ReplyDeleteगुरुद्रोह से बड़ा कोई अपराध नही है।
इस सुन्दर आलेख के लिए बधाई। इस आलेख से कईयों को दिशा मिलेगी। अध्यात्म के पथिक के लिए गुरुद्रोह बड़े से बड़ा पाप है। सदगुरु चाहे माफ़ भी कर दे पर परमात्मा कभी ऐसे कुत्धनों को कभी माफ़ नहीं करेगा।
ReplyDeleteOshodhara is dharti par baikunth hai.
ReplyDeleteAur sadguru osho Siddharth aulia ji ka shisyatva pana jeevan ka param saubhagya hai
इस सुन्दर आलेख के लिए बधाई ! ईस आलेख से बोहुत सारी बाते कलियर भी होगी ! जो लोग नहीं समज की बात करे है ऊन को भी पता चले मेरे पींयारे बड़े बाबा को नमन करता हु ! जय ओशोधारा ,,,,
ReplyDelete����☺️
Naman Bade Baba
ReplyDeleteआपने जो लिखा है यही हकीकत हैं, और स्वामी शैलेंद्र जी अपनी महात्वाकांक्षा को पूरी करने के लिए पुरे षडयंत्र के सूत्रधार है, और झूठ का जाल फैला रहे है कि शुद्ध रूप से ओशो का काम करेंगे ताकि अविवेकी साधक उसमें फस जाए, साधूवाद आपको इस प्रकरण को उजागर करने के लिए.
ReplyDeleteजय गुरुदेव ।
ReplyDeleteसही बात है। हमसभी परमगुरु से यही प्रार्थना करते हैं कि भटके हुए लोगों को सद्बुद्धि प्रदान करे
ReplyDeleteबड़े बाबा जी ने वह दान दिया है कि हम उन का कर्ज नहीं उतार सकते। अस्तित्व से यही प्रार्थना है कि सभी को गुरुद्रोह के पाप से बचाए।
ReplyDeleteSatya ko uzagar krne ke liye shukriya.
ReplyDeleteबहूत सुंदर व स्पष्टता- आप दोनों को अहोभाव
ReplyDelete🙏🏻💖🙏🏻
ReplyDeleteआप का लेख पढ़ा, बहुत लंबा है। ऐसा लगा मानो हाई कोर्ट का कोई वकील अपने क्लाइन्ट के लिए तार्किक दलीलें देने की कोशिश कर रहा हो। आपने जो फ़ोटो आत्माओं या देवताओं की पोस्ट की है वो कोई भी फोटोग्राफी का जानकार देख कर बता देगा की डिजिटल कैमरे में ऐसे स्पॉट आना बहुत आम बात है। आप किसी भी अंधेरी जगह में फ्लैश की रोशनी में क्लिक कीजिए ,जिन्हें आप देवता कह रहे हैं वो वह आपको दिखाई दे जायँगी। खास कर धूल भरे वातावरण में तो ये आपको हजारों दिखाई दे जायँगी। एक फोटो में तो कोई कीट या मच्छर पर फ़्लैश की रौशनी पड़ी है, को साफ दिख रहा है। आप उसे देवता बता रहे हैं। अपना दिमागी इलाज करवाइए जागरण जी। आप भक्त टाइप आदमी हैं, तार्किक बिल्कुल नहीं हैं। और ओशो शैलेन्द्र जी ने सिद्धार्थ से अलग होकर बहुत अच्छा काम किया। देर से किया पर दुरुस्त किया। आपके कथित गुरु जी आरएसएस का प्रोपेगंडा फैला रहे थे और वो भी ओशो के नाम का इस्तेमाल कर के। ओशो के नाम बदनाम कर रहे थे , लोगों में पाखण्ड, ब्राहआडंबर, जादूटोना, देवीदेवता को बुलाना, बिठाना, ये सब फैला रहे थे। ओशो शैलेन्द्र जी को साधुवाद की उन्होंने एक आरएसएस के प्रचारक से ओशो की देशना को मलिन होने से बचाया।
ReplyDeleteAapki ye ek theory hai,bina experimental proof ke aap agr kuch sabit karenge to aapki ye adhunikta bhi ek anthvishwas hoga...Aapko bata dun Havards University is prakar ke evidence ke liye ek alag se department hai jahan iss par shodh hota hai
DeleteOrbs ka ek vishesh pattern hota hai aur insects ya flash ke ki reflection ki digital photo se different...baaki Jagran ji ki photography ko main na to authentic kehta hun na non authentic
DeleteSwami ji,Aap iss tarah ke vishleshanon ko na karen...hume kuch fark nahi.Jab humare sadguru kabhi Shalender ji ya Ma Priya ke against kuch nahin bolte to aap kyun opportunist ban kar apna shodh kaarya kar rhe hain...Hum Sadguru Aulia ke Shishya hain...unki ungli ko dekhne ke bajaye jahan wo ishaara akr rahe hain wahan dekhen...Sadguru ke sache Shishye jo unke saath hai unke is tarah ki safai ki koi jarurat nahi...Aap Sadhna par dhyan de...Karuna aur daya apnaye
ReplyDeleteAbhi bhi Ma Priya ke geet Oshodhara ke program main chalaye jaate hain..
Kuchblog to nikaal diye hain Oshodhara se,aap jaise log ya to khud nikal jayenge agar sudhare nahi to