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    ओशोधारा में किए गए षड्यंत्र का क्रम-वार खुलासा

      Note: इस  संस्करण को ४ दिसंबर २०१९ को अपडेट किया गया है। Timeline में २७ अगस्त के बाद की घटनाएं, images , audio , video update किये गए हैं।  Fragrance किस तरह से ओशोधारा की जड़ें खोदने में लगा है  उसकी  audio clippings डाली गयी है ।

    विगत की घटनाओं के सारे बिंदुओं को जोड़कर देखें तो षड़यंत्र की तस्वीर स्पष्ट दिखाई देती है।  जैसे: आज से कुछ वर्ष पूर्व सरबजीत का ओशोधारा साधकों से पुछना कि वे बड़े बाबा और छोटे बाबा में से किसे  ज्यादा पसंद करते  हैं? ...उन्हें छोटे बाबा न कहा जाय ...  मई '२०१९ के बाद के के चतुर्वेदी और अन्य कई ओशो सन्यासियों द्वारा सद्गुरु बड़े बाबा के विरोध में साधकों को भेजे गए emails और whatsapp messages...... "सदैव" का ओशोधारा और बड़े बाबा के विरोध में फेसबुक पोस्ट..... समाधि कार्यक्रम समाप्त करने के लिए भेजे गए emails ...... "सदैव" का बड़े बाबा के खिलाफ youtube video....और  यह  सारी घटनाएं स्वामीजी के ओशोधारा छोड़ने के पहले  घटी...  और यह कोई आश्चर्य नहीं कि आज उसी "सदैव" के साथ स्वामीजी अपना Interview schedule कर रहे हैं ओशो जन्मदिन के अवसर पर... फ्रेग्रेन्स के लिए आश्रम की जमीन सोनीपत में ही  ले रहे हैं इत्यादि। ...)

    【ओशोधारा के वर्तमान के सन्दर्भ में कहीं हम कर्ण, द्रोण, भीष्म और धृतराष्ट्र की गलत भूमिका में तो नहीं ?】

    प्रिय मित्रों ,
    ओशोधारा के वर्तमान माहौल में धर्म और अधर्म, न्याय-अन्याय , गुरुद्रोह, निष्ठा, प्रमाणिकता, स्वीकारभाव और कायरता को लेकर कई प्रश्न उमड़ घुमड़ रहे हैं। इन प्रश्नों के मद्देनजर मौजूदा तथ्यों को रखना मेरे इस पत्र का मुख्य उद्देश्य है ताकि हमें यह इंगित हो सके कि हम किसका साथ दे रहे हैं।
    ओशोधारा संघ और हाल ही में ओशोधारा से अलग हुए Fragrance group के बीच चल रहे खींचतान की पृष्ठभूमि में यह ध्यान देने योग्य है कि महाभारत के प्रमुख पात्र कर्ण , भीष्म , द्रोणाचार्य सभी अलग-अलग कारणों से अधर्म का साथ दे रहे थे। इन सभी पात्रों के बीच अर्जुन एक वीर योद्धा था, लेकिन संबंधों के मोह मे विषादग्रस्त हो अपने स्वधर्म के विपरीत कायरतापूर्ण व्यवहार कर रहा था। इसलिए , भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को विषाद से उबारकर उसके स्वधर्म से अवगत कराने के लिए गीता के माध्यम से एक उदाहरण प्रस्तुत किया कि जब भी जीवन में धर्म और अधर्म के बीच निर्णायक घड़ी आये तो अनिश्चय की स्थिति में फंसे भावुक व्यक्ति के लिए संबंधों की स्थापना नहीं बल्कि धर्म की स्थापना महत्वपूर्ण रहे और वह निश्चिन्त होकर सत्य का और धर्म का चुनाव कर सके।
    प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि ओशोधारा में हुए घटनाक्रम के सन्दर्भ में कौन सा अधर्म हुआ और किसने किया? तो इसका उत्तर इस प्रकार है:
    १. एक दशक तक मस्तो ओशोधारा के Administrative Head रहे जिसमे सारे आर्थिक फैसले , खरीद-फरोख्त, Cash dealings, Donations, Manpower और सारे Management करने की शक्ति उन्हें थी। उन्हें empower किया गया था कि आश्रम के हित में वे पैसों का उचित उपयोग ओशोधारा के विकास के लिए करें। बजाय विकास के आश्रम का बहुत सारा पैसा गबन हुआ ऐसा सुनने में आया। ओशोधारा की एक बिल्डिंग(Buddha Tower ) कई वर्षों से नहीं बन पाई और वहीं दूसरी तरफ इसे संयोग कहेंगे कि इसी दौरान उनकी America में , London में करोड़ों रुपए के होटल , दिल्ली में फैक्ट्री का विकास , 15 करोड़ का दिल्ली में पांच मंजिला भव्य बंगला तैयार हो गया। क्या यहाँ उनकी निष्ठा पर प्रश्न उठना स्वाभाविक नहीं है?
    २. स्वामी शैलेन्द्र जी एवं माँ ने उस मस्तो का साथ दिया जिसकी निष्ठा संदिग्ध रही। न सिर्फ मस्तो का साथ दिया बल्कि बड़े बाबा से वचन लेकर अवॉर्ड भी दिलवाया। स्वामीजी के ओशोधारा छोड़ने के कुछ महीनों पहले से ही बड़े बाबा की कार्यशैली, आध्यात्मिक वास्तविकता और सद्गुरु के रूप में उनकी निष्ठा के बारे मे उकसाने वाले इमेल्स बाहर के लोगों द्वारा ओशोधारा के साधकों को भिजवाए गए, ताकि बड़े बाबा और ओशोधारा के बारे में झूठा विवादास्पद माहौल बनाया जा सके। और यह सब कृत्य तब हुए जब ओशोधारा ट्रस्ट से किसी ने इस्तीफा नहीं दिया था। जहां एक तरफ ओशोधारा में रहते हुए, ओशोधारा को ही छिन्नभिन्न करने की तैयारियां जोर-शोर पर चल रहीं थी वहीं विश्वास और अहोभाव से भरे बड़े बाबा अपने ट्वीट में कह रहे थे कि सद्गुरु त्रिविर की संस्था अस्तित्वगत है, अखंड है और अमर है। यह इस बात का प्रमाण है कि बड़े बाबा त्रिविर सद्गुरु की संस्था को जारी रखना चाहते थे पर झूठे फैलाये जा रहे विवादास्पद माहौल, स्वामीजी के असंतोष और महत्वाकांक्षा के चलते उन्हें मजबूरी में इस परंपरा को बदलना पड़ा।
    ३. ऐसे समय में जब बाहरी तत्वों के द्वारा दुष्प्रचार भरे इमेल्स भेजे जा रहे थे तब सद्गुरु बड़े बाबा के प्रति शिकायत, असंतोष, द्वेष, महत्वकांक्षा, जिद और असहमति से भरकर ओशोधारा छोड़ना , जिन सद्गुरु बड़े बाबा से ओंकार ज्ञान प्राप्त किया, उन्ही को "मसीहा maniac" कह निम्नस्तरीय दुष्प्रचार करना क्या अधर्म और गुरुद्रोह नहीं है? क्या यह मात्र संयोग था कि बाहरी लोगों के उस समय के विरोध और स्वामीजी के भीतर से उठते असंतोष के स्वर एक जैसे ही थे? क्या ओशोधारा को तोड़ने का एक सुनियोजित षड़यंत्र बहुत पहले से नहीं चल रहा था? महीनो पूर्व मुझे भी ऐसे कई इमेल्स आये थे जिनमे बड़े बाबा के प्रति भद्दा दुष्प्रचार किया गया था और स्वामीजी को मज़बूर बताया गया था।
    ४. पहले अपने असंतोष के कारण ओशोधारा से इस्तीफ़ा देना, फिर आश्रम से Computers, Laptop, Data, गलत तरीके से २० गाड़ियों में भर के सामान ले जाना, ओशो देशना की शुद्धता का राग अलापना, पर “Retreat” के नाम पर ओशोधारा के ही समाधि कार्यक्रमों की नक़ल करना (जैसे: ओशोधारा की "प्रेम समाधि" की नक़ल कर उसका नाम बदल कर "Loving Awareness Retreat" कर देना), चोरी किये गए Data का दुरूपयोग ओशोधारा संघ को तोड़ने के लिए करना क्या यह षड्यंत्र और गुरुद्रोह नहीं है? स्वामी शैलेन्द्र सरस्वतीजी Data , Laptops , Computers और intellectual properties जो ले गए क्या वह ओशोधारा ट्रस्ट की निजी संपत्ति नहीं थी ?
    ५. यह समझने योग्य है कि ओशोधारा एक ट्रस्ट है और कानूनन ट्रस्ट की सम्पत्ति पर केवल और केवल ट्रस्ट का ही अधिकार होता है। जिस दिन भी कोई ट्रस्ट से इस्तीफा देता है उसी दिन वह ट्रस्ट से अलग हो जाता है और ट्रस्ट की संपत्ति में से कभी भी किसी को भी इस्तीफा देने के पश्चात् कोई हिस्सा नहीं मिलता। मनमोहन सिंह भी जब देश के प्रधानमंत्री के रूप में पद छोड़ते हैं तो यह नहीं कह सकते कि मुझे खाली हाथ भेज दिया गया और मेरे साथ अन्याय हुआ। ट्रस्ट के नियमों के खिलाफ ट्रस्ट की सम्पत्ति को ले जाना और फिर यह कहलवाना कि मुझे खाली हाथ निकाल दिया गया क्या यह एक आध्यत्मिक व्यक्ति के लिए शोभनीय है?
    ६. आश्रम से विदाई के समय के वीडियो में कई साधकों की उपस्थिति के बीच स्वामीजी ने कहा था कि रीयूनियन हो गया और फिर मुरथल आश्रम के गेट से बाहर निकलते ही दिल्ली में लोगों के बीच जाकर कहने लगे कि "अब सारे चोर उच्चके एक जगह इक्कठे हो गए और अच्छे लोग दूर चले गए", यदि प्रमाणिकता थी तो वहीं मुरथल आश्रम से विदाई के समय जब उनको प्रेम करने वाले सैकड़ों भाव विभोर साधक उपस्थित थे तो सबकी उपस्थिति में ही रीयूनियन का खंडन क्यों नहीं कर दिया? ओशोधारा की गौरवशाली परंपरा की नींव को जो कि शिष्यत्व और समर्पण पर आधारित है उसे नुकसान पहुंचा कर, झूठी कहानियाँ गढ़कर वास्तविकता से अनजान कई साधकों की गुरुसत्ता पर श्रद्धा को खंडित कर , उनकी आध्यात्मिक नींव में गुरुद्रोह, मनचाही स्वतंत्रता, स्वछन्दता और कृतध्नता भरना क्या यह गुरुद्रोह नहीं है?
    ७. स्वामीजी की अप्रामाणिकता की हद तो यह है कि साधकों की झूठी सहानुभूति प्राप्त करने के लिए लगातार उनके Fragrance Group द्वारा यह जतलाया जा रहा है कि वे बस खाली हाथ सरलता से ओशो को अपने दिल में बसाये ओशोधारा से निकल गए। साधकों को भावनात्मक रूप से प्रभावित करने के लिए नेपाल में यह भी झूठी खबर उड़ाई गई कि उन्हें और माँ को त्रिविर हाउस में नजरबन्द करके रखा गया था। जबकि त्रिविर हाउस में बड़े बाबा के अलावा बस छोटे बाबा, माँ , और उनके caretakers ही रहा करते थे फिर यह कैसे संभव था? १ सितंबर '२०१९ तक स्वामीजी और माँ समाधि sessions भी ले रहे थे। फिर ऐसी झूठी अफवाहें फ़ैलाने का क्या प्रयोजन हो सकता है ? और Fragrance Group द्वारा फैलाये इस झूठ का शिकार कई भोले भाले धनाढ्य और सामान्य साधक भी हुए जो इस भ्रम में कि स्वामीजी के साथ बड़ा अन्याय हुआ खूब डोनेशन देने के लिए आगे आये। ऐसे मित्रों को जिन्हे भ्रम हैं कि स्वामीजी के साथ बड़ा अत्याचार हुआ है उन्हें मै कहूंगा कि सभी तथ्यों को जाने और फिर सत्य क्या है उसका निर्णय लें। वास्तविकता तो यह है कि स्वामीजी ने और उनके लोगों ने सुनियोजित ढंग से लम्बे समय से ओशोधारा को तोड़ने का कुत्सित प्रयास किया और Data का गलत उपयोग झूठी सहानुभूति बटोरकर ओशोधारा संघ को तोड़ने के लिए किया।
    सत्य को पूरी तरह से जानने के लिए आपको पीछे timeline में उस दौरान की कुछ घटनाओं का स्मरण कराना चाहूंगा।
    - मई से अगस्त २०१९ के बीच बहुत सारे emails , whatsapp, youtube और facebook पोस्ट सोशल मीडिया पर circulate हो रहे थे जिनमेआश्चर्यजनक रूप से केवल और केवल सद्गुरु बड़े बाबा को ही निशाना बनाया जा रहा था और छोटे बाबा को मजबूर बताया जा रहा था।
    - १६ August के अपने ट्वीट में बड़े बाबा ने जाहिर रूप से यह कहा कि सद्गुरु त्रिविर की संस्था अस्तित्वगत है और अमर है। - पढ़ने के लिए क्लिक करें 👇

    - जब बड़े बाबा ओशोधारा की जड़ों को सींचने का काम कर रहे थे तब ओशोधारा के ताने बाने को नुकसान पहुँचाने का, ओशोधारा की जड़ों को समूल नष्ट करने का एक दुर्भाग्यपूर्ण अध्याय शुरू हो चुका था।
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    - २७ अगस्त २०१९, फेसबुक पर छोटे बाबा ने घोषणा की कि वे और माँ ओशोधारा से इस्तीफा देकर जा रहे हैं। - पढ़ने के लिए क्लिक करें 👇

    उसी दिन सार्वजनिक रूप से ओशोधारा मुरथल आश्रम में छोटे बाबा और माँ ने यह घोषणा की कि वे लोग और मस्तो बाबा ओशोधारा से इस्तीफा देकर जा रहे हैं करीब ८० लोग इस मीटिंग में सम्मिलित हुए।
    उनके इन घोषणाओं के बाद फेसबुक , व्हाट्सप्प और ट्वीटर पर बड़े बाबा और ओशोधारा के विरोध में अवांक्षनीय पोस्ट आने लगे और सोशल मीडिया पर आग फैलती चली गई।
    इस्तीफे की घोषणा के बाद भी बड़े बाबा ट्वीटर पर लगातार यह कहते रहे कि छोटे बाबा और माँ दो महीने की छुट्टी लेकर नेपाल आश्रम में साधना करने जा रहे हैं। बड़े बाबा लगातार ओशोधारा को टूटने से बचाना चाह रहे थे। - पढ़ने के लिए क्लिक करें 👇
    Bade Baba’s Tweet:


    इसके विपरीत २८ अगस्त २०१९ को एक बार फिर छोटे बाबा ने अपने फेसबुक पोस्ट पर खूब जोर देकर यह दोहराया की वे तीनो ओशोधारा से इस्तीफा देकर १४ सितम्बर तक जा रहे हैं। - पढ़ने के लिए क्लिक करें 👇

    बड़े बाबा अपनी तरफ से खंडन करते रहे, रोकते रहे और छोटे बाबा ओशोधारा से जाने की बात को सार्वजानिक रूप से बार बार दोहराते रहे। पूरे घटनाक्रम पर दृष्टि डालें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि असंतोष, जिद, असहमति और महत्वाकांक्षा ही छोटे बाबा के ओशोधारा छोड़कर जाने का कारण थी। आख़िरकार २८ अगस्त २०१९ की संध्या को पहली बार बड़े बाबा ने सार्वजानिक रूप से tweeter के माध्यम से कुछ संकेत दिया कि टूटने की खबर सत्य है और उनसे करोड़ों रूपये मांगे गए थे।
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    २७ अगस्त २०१९ के मुरथल आश्रम में दिए गए सार्वजानिक सम्बोधन में स्वामीजी ने यह घोषणा की थी कि वे अब किसी के गुरु नहीं है और उन्हें स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती के नाम से ही जाना जाए। एक बार फिर ३० अगस्त २०१९ के अपने facebook post पर स्वामीजी ने जोर देकर घोषणा की कि "बाबा", "ओशो", "सद्गुरु" आदि विशेषण जबरदस्ती लोगों ने उन पर थोप दिए , जो उन्हे पसंद नहीं है। उन्होंने स्पष्टतः कहा कि अध्यात्म के पथिक, सभी के एक ही गुरु ओशो हैं और सभी आपस में गुरु भाई-बहन हैं, हमसफ़र हैं और दोस्त भर हैं। - पढ़ने के लिए क्लिक करें 👇


    -३१ अगस्त २०१९ की मध्यरात्रि को त्रिविर हाउस में
    सेलिब्रेशन का एक वीडियो जिसमे माँ कई साधकों के साथ उपस्थित हैं। यह video कई अति भावुक लोगों द्वारा फैलाये जा रहे इस अफवाह को झुठा और भ्रामक सिद्ध करता है कि आश्रम छोड़ने के दौरान स्वामीजी और माँ नज़रबंद थे। कृपया वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक को क्लिक करें :
    कई साधकों और staff की उपस्थिति के दौरान लिया गया ९ सितंबर २०१९ का Reunion video जिसमें बड़े बाबा ने दिल खोलकर स्वामीजी और माँ को अपना आशीष और शुभकामनाएं दी और स्वामीजी यह कह रहे हैं कि रीयूनियन हो गया। इस वीडियो में 3:24 मिनट पर स्वामीजी यह घोषणा कर रहे हैं कि मै अब एक परिव्राजक सन्यासी की तरह जीऊंगा तथा पूरी तरह से ओशो और ओशोधारा के कार्य को फैलाऊंगा। कृपया वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक को क्लिक करें :


    सार्वजानिक रूप से तो स्वामीजी यह कह आहे थे कि रीयूनियन हो गया पर उनके ओशोधारा छोड़ने और तोड़ने की घातक योजना पहले से ही तय थी जिसे स्वामीजी के खासमखास संतोषभारती ने अपने ९ सितम्बर के facebook पोस्ट पर पहले ही डाल दिया था क्योंकि उसे पूरे षड़यंत्र की जानकारी थी। झूठ की हद यह है कि मात्र कुछ दिनों पहले २५ नवंबर'१९ के अपने फेसबुक पोस्ट में वही संतोषभारती कहते हैं कि जब ९ सितम्बर को स्वामीजी ने आश्रम छोड़ा तब नई संस्था बनाने का दूर दूर तक कोई विचार नहीं था और १५ सितम्बर को ही फ्रेग्रेन्स का बीज पड़ा। आज सारे बिंदुओं को जोड़ कर देखे तो ओशोधारा के खिलाफ षड्यंत्र की सोची समझी योजना और रुपरेखा का एकदम स्पष्ट पता चलता है।
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    ९ सितंबर २०१९ का स्वामीजी और माँ के मुरथल आश्रम से विदाई का video जिसमें सैकड़ों साधकों, आचार्यों, caretakers और स्टाफ की उपस्थिति के बीच उन्हें अश्रुपूर्ण , भावभीनी विदाई दी गयी। कृपया वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक को क्लिक करें :















    -सद्गुरु बड़े बाबा ने अपने जन्मदिन के अवसर पर दिए गए सम्बोधन में उन परिस्थितियों का जिक्र किया जिसके कारण उन्हें ओशोधारा में सद्गुरु त्रिविर की संस्था के प्रयोग को समाप्त करने के लिए विवश और बाध्य होना पड़ा। कृपया इस वीडियो को 1:53 hrs से देखें :
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    Fragrance group द्वारा ओशोधारा की अध्यात्मिक परंपरा को नुकसान पहुंचाने के लिए email, phone calls, social media, whatsapp पर निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं। ओशोधारा के data और कार्यक्रमों की चोरी करने से दिल नहीं भरा तो अब ओशोधारा संघ को तोड़ने की कोशिश की जा रही है, साधकों को येन केन प्रकारेण misguide किया (बरगलाया) जा रहा है कि वे Fragrance join कर लें।
    ऐसे कुत्सित प्रयास का नमूना यह ऑडियो clip है जिसमे phone call करने वाली माँ स्वामीजी की कट्टर अनुयायी है । वे कह रही हैं कि १५ वर्षों से स्वामीजी और माँ के कारण ही ओशोधारा में थी पर साधना के नाम पर स्वामीजी की शरण में रहते हुए भी हाथ खाली का खाली ही रहा। और आश्चर्य यह है कि अब वे दावा कर रही हैं कि अब उन्हें फ्रैग्रैंस में सब मिल जाएगा। Phone call के दौरान वे बार-बार स्वामीजी के ओशोधारा Trust से खाली हाथ निकल जाने का सहानुभूति राग अलाप रही हैं जो इस बात की पुष्टि करता है कि स्वामीजी और उनके लोगों की यह मानसिकता छल-प्रपंच से भरे एक साधारण राजनीतिज्ञ की है। वर्ना जिसे भी ट्रस्ट नियमों की थोड़ी सी भी जानकारी हो वह ऐसा अनर्गल प्रलाप कैसे कर सकता है? Audio सुनने के लिए लिंक को click करें।
    सच्चाई तो यह है कि स्वामी शैलेन्द्रजी अपने गुरु बड़े बाबा के प्रति द्वेष से भरते जा रहे थे। उन्हें गुरु-शिष्य संबंध पर आधारित बड़े बाबा द्वारा स्थापित ओशोधारा रास नहीं आ रही थी। वे ओशोधारा की आध्यात्मिक परम्परा की नींव जो कि ध्यान-समाधि, सुमिरन, प्रज्ञा और भक्ति के कार्यक्रमों पर आधारित थी उसे बदलना चाह रहे थे। प्रेम से भर कर जो सारे शिष्य सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलियाजी को बड़े बाबा और उन्हें छोटे बाबा कह सम्बोधित करते थे उस सम्बोधन को उन्होंने नकार दिया था। वे अपना वर्चस्व चाहते थे और उन्हे ओशो के छोटे भाई होने का अहंकार ग्रसित किये जा रहा था। उन्होंने माँ के जरिये यह कहलवाया भी था कि सद्गुरु बड़े बाबा सबकुछ उन्हें सौंप दे। जब सबकुछ उनके मन मुताबिक नहीं हुआ तो बाहर के लोगों द्वारा बड़े बाबा के खिलाफ दुष्प्रचार शुरू करवा दिए गए। ओशोधारा ट्रस्ट में आर्थिक अनियमितताओं और संसाधनों के गलत दुरूपयोग के लिए जिस मस्तो की भूमिका पर कई गंभीर प्रश्न उठे उसका साथ दिया। बड़े बाबा से २.५ करोड़ रूपये मांगे गए। और जब सारे हथकंडे विफल हो गए तो लोगों की सहानुभूति अर्जित करने के लिए अंततः ओशोधारा ट्रस्ट से इस्तीफा दे दिया और इस बात को हर कहीं फैला दिया कि मुझे खाली हाथ निकाला गया। जबकि यह जानने योग्य है कि trust किसी की व्यक्तिगत संपत्ति नहीं होती जिसका बँटवारा संभव हो। उन्होंने अपनी जिद और मनमानी के चलते ओशोधारा साधकों के हितों का भी ख्याल नहीं किया, जबकि इतनी जल्दबाजी की कोई आवश्यकता नहीं थी और वे ओशोधारा संसद तक तो रुक ही सकते थे। उस समय पूरा ओशोधारा संघ स्वामीजी से प्रार्थना कर रहा था कि वे इस्तीफा न दे पर उन्होंने किसी की नहीं सुनी।
    याद रखने योग्य है कि २३ सितम्बर २०१९ से पहले ओशोधारा संघ के किसी भी साधक ने स्वामीजी के विरोध में कुछ आपत्तिजनक नहीं कहा था। जब विश्वासघात और दुष्प्रचार की अति हो गयी तब जाकर उनके असत्य का जवाब देना आवश्यक हो गया था। ओशोधारा संघ को तोड़ने के प्रयासों के कुछ और नमूने नीचे दिए गए हैं। जिसमे वे खुद mail के द्वारा झूठ को फैला रहे हैं।
    - पढ़ने के लिए क्लिक करें 👇




    एक तरफ स्वामीजी ने रीयूनियन के वीडियो में यह कहा कि अब मै परिव्राजक होने जा रहा हूँ और बाहर जाकर ओशो तथा ओशोधारा के कार्य को फैलाऊंगा। वहीं अब किसी competitor की तरह Fragrance का आश्रम Sonepat में ही खोलने जा रहे हैं। हालांकि इस दौरान उनके लोग लगातार ओशोधारा साधकों को संपर्क कर यह victim card खेल रहे थे कि उन्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रहीं हैं।
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    जिस "सदैव" ने ओशोधारा और सद्गुरु बड़े बाबा के विरोध में फेसबुक पोस्ट और youtube video डाला था। आज उसी "सदैव" के साथ स्वामीजी अपना Interview schedule कर रहे हैं ओशो जन्मदिन के अवसर पर। - पढ़ने के लिए क्लिक करें 👇

    भगवान श्री कृष्ण द्वारा गीता में दिए गए उपदेश को कसौटी मानकर देखें तो पिछले कुछ महीनों में ओशोधारा में जो कुछ भी हुआ उसके संदर्भ में हमें अपने स्वधर्म के प्रति जागरूक रहने और संघ के विकास के लिए अपनी भूमिका को तय करने की ज़रुरत है। साक्षी और तथाता के नाम पर तटस्थता और उदासीनता का कोई अर्थ नहीं और गुरुप्रेम के नाम पर ओशोधारा के अतीत (सद्गुरु त्रिविर की संस्था) से बंधकर विलाप करने का कोई अर्थ नहीं। बड़े बाबा ने हमें समझाया है कि साक्षी का अर्थ तटस्थता नहीं बल्कि स्वयं को निराकार चिन्मय आत्मा जानते हुए संसार में अपनी भूमिका के प्रति जागकर कर्म करना है। और तथाता का अर्थ लाचार उदासीनता नहीं बल्कि साक्षीपूर्वक अपनी आत्मा से जुड़कर कर्म के पश्चात् फल का अहोभावपूर्वक स्वीकार है। प्रेम का अर्थ विलाप नहीं और भक्ति का अर्थ याचना नहीं। सदगुरु लगातार हमारी साधना को उच्च से उच्चतर आयाम में ज्ञान, भक्ति और कर्म योग के माध्यम से लिए जा रहे हैं। और यह हमारी जिम्मेदारी है कि ध्यान, साक्षी, समाधि, प्रज्ञा आदि की सही समझ और अनुभवगत साधना जो सद्गुरु बड़े बाबा ने दर्शन दरबार और समाधि सेशन के द्वारा हम सबको करवाई उसे अपने जीवन में निरंतर उतारते चले जाएं और सद्गुरु के साथ कदम से कदम मिलाकर अनंत की इस यात्रा पर जगत को सत्यम् शिवम् सुंदरम् बनाने की दिशा में आगे बढ़ते चले जाएं। न तो किसी का अमंगल करें और न अपना अमंगल होते हुए देखें । आपसे निवेदन है कि सद्गुरु के इस वीडियो को पूरा देखें:
    ।। अन्याय का विरोध करें या नहीं? ।।
    https://youtu.be/dfqAZ574ugg
    अनिश्चय की स्थिति में खड़े साधकों से कहना चाहूंगा कि वे गलत भावनात्मक दुष्प्रचार से प्रभावित न हों और दुविधा-संशय से उबर कर सद्गुरु बड़े बाबा के मार्गदर्शन में अपनी समाधि और सुमिरन की यात्रा को जारी रखें। सद्गुरु के ये वचन सदा स्मरण रखने योग्य हैं, "गुरु की पहचान प्रज्ञा से होती है, प्रवचन से नहीं । विवेक से की जाती है, विद्वता से नहीं। अनुभव से होती है, वैभव से नहीं। भक्ति से होती है, भीड़ से नहीं।"
    आध्यात्म के एक निष्ठावान साधक होने के नाते, एक शिष्य होने के नाते यह समय है हमारे सचेत रहने का कि हम गल्ती से कर्ण, द्रोण, भीष्म और धृतराष्ट्र की तरह गलत भूमिका को न चुन ले और हमारे भीतर जो सत्य का, अनंत का और चैतन्य का जो झरना सद्गुरु कृपा से फूटा है उसे भावनाओं में उलझकर संसार के मरुस्थल में खो जाने से बचाएं। अध्यात्म के पथिक होने के नाते सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी की यह पंक्तियां हृदयंगम करने योग्य हैं।
    बगुले हैं खड़े कतारों में, ऐ मत्स्य, सदा रह होशियार।
    मत गफलत में ऐसा कुछ कर, हो जाओ शोषण का शिकार।
    कुछ आगे - पीछे भी देखो, फिर उछलो - कूदो या खेलो।
    अथ प्रज्ञा शरणम् गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।
    प्रेम नमन,
    ~ ओशो निष्काम

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    7 comments:

    1. This is a truth but it is important for us to move with our master bade baba....

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    2. Gurudev ko htakar svyam baithne ki bhut bdi sazish rhi.
      Aapko bhut-bhut ahobhaav sazish ka prdafaas krne ke liye.

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    3. बहुत बड़ी साजिश की गई, आप लोगों ने तो गुरुद्रोह की मिसाल कायम कर दी है। आप सबका नाम ओशोधारा के आध्यात्मिक इतिहास में गुरुद्रोहियों के रूप में सदा याद किया जाएगा।
      गुरुदेव से बहुत बड़ा धोखा किया है आप लोगो ने...

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    4. मैंने तीनो को बहुत नजदीक से देखा है बड़े बाबा ही सत्यम शिवम सुंदरम है जय ओशो

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    5. The truth always wins! And bade baba is an example of truth and tolerance.

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    6. Swami ji,Aap iss tarah ke vishleshanon ko na karen...hume kuch fark nahi.Jab humare sadguru kabhi Shalender ji ya Ma Priya ke against kuch nahin bolte to aap kyun opportunist ban kar apna shodh kaarya kar rhe hain...Hum Sadguru Aulia ke Shishya hain...unki ungli ko dekhne ke bajaye jahan wo ishaara akr rahe hain wahan dekhen...Sadguru ke sache Shishye jo unke saath hai unke is tarah ki safai ki koi jarurat nahi...Aap Sadhna par dhyan de...Karuna aur daya apnaye
      Abhi bhi Ma Priya ke geet Oshodhara ke program main chalaye jaate hain...

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    7. aisay log jinko dhan, pad ki lalssa thi un sab ka samooh chala gaya manay bahut najdeek sa dekha ha unka marketing attitude.hamaray satguru na unko sab diya par wo bhi kagaj ka tukdo ka liya apna maan, pad sab chod diya or guru droh jaisa paap kar baithay jo sabko sikhatay rahay ki aatma ko jaano wo kagaj ka tukdo ko paanay ma lag gay.
      Baday Baba ka sri charno ma koti koti naman.ma hamesa aapkay sri charno ma rahunga.

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