अमरकंटक - ओशोधारा का तीर्थ
नाव मिली केवट नहीं, कैसे उतरै पार।।
कैसे उतरै पर पथिक विश्वास न आवै।
समझो। नाव तो मिल सकती है। नाव तो मुर्दा है। लेकिन जब तक माझी न मिले, नाव से काम न होगा।
कोई नक्शा पास नहीं है, कोई मार्गदर्शक पास नहीं है। कोई दिशा का बोध नहीं है। कौन ले जाएगा? कौन सहारा देगा?
कोई चाहिए जीवंत।
नाव कभी चलाई न हो और तुम नाव चलाओगे तो डूबने की ही ज्यादा सम्भावना है बजाय उबर जाने के।
सद्गुरु मिल गया तो शास्त्र मिल गया। नाव न भी तो भी अगर माझी मिल जाये तो कोई उपाय खोज लेगा।
सद्गुरु का अर्थ होता है : इस किनारे, उस किनारे को जानने वाला मिल जाये। खड़ा तो हो बाजार में, लेकिन अनुभव उसे परमात्मा का हो। खड़ा तो हो तुम्हारे साथ तुम्हारे जैसा ही, लेकिन कुछ हो उसके भीतर जो तुम जैसा न हो ; जिसने जीवन की सारी गहराईयां देखी हों, पहचानी हों।
ऐसे किसी सद्गुरु का हाथ पकड़ो, तो उस पार उतर पाओगे। अपने से न पहुंच पाओगे। अपने से पहुँचने की धुन में इसी किनारे अटके रह गए हो जन्मों-जन्मों से। अब चेतो!
~ परमगुरु ओशो
अमरकंटक की पर्वत श्रृंखलाओ में वह वट वृक्ष जहां आज से लगभग 500 वर्ष पूर्व सन्त कबीर व गुरुनानक जी का मिलन हुआ था । उसी पावन वृक्ष की छांव तले 21 शिष्यों को गुरुदेव ने पहली अनहद दीक्षा प्रदान की।
उन सौभाग्यशाली 21 शिष्यों में स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती और मां अमृत प्रिया जी भी थीं।
और यही से ओशो के सपनों की ओशोधारा का जन्म हुआ।
यह गुरूदेव की असीम करुणा ही थी, और अपने सद्गुरु ओशो से अपार प्रेम, कि उनके आदेशानुसार उन्होंने स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती और मां अमृत प्रिया जी को स्वयं खोजा और वह रहस्य जिसे अतीत के संत सदा छुपाते रहे, तथा शिष्यों की पूरी जिंदगी सेवा करते बीत जाती थी, फिर भी नही प्रदान करते थे, गुरुवर ने उसे सहज ही बिना उनकी शिष्यत्व की पात्रता देखे, प्रदान कर दिया, और समाधि के सारे रहस्यों से भी परिचित कराया। तथा स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती जी के अनुरोध करने पर ही, गुरुदेव उनके साथ मिलकर, ओशो के स्वप्न को विस्तार देने के लिए राजी हुए। सद्गुरु ओशो के अनुज होने के नाते, उन्होंने उन्हें अपने समकक्ष गुरुपद का दर्जा देकर आध्यात्मिक जगत में एक अनूठा प्रयोग करना चाहा। पर स्वामी जी और मां ने उन्हें कभी अपना गुरु नहीं समझा!
बस यहीं पर स्वामी जी और मां की विवेकहीनता पर आश्चर्य होता है!!
गुरुदेव ने उन्हें जो परम सौभाग्य प्रदान किया था, कालांतर में उसकी अवमानना कर, गुरुदेव का विरोध कर, उनका अपमान कर तथा उनके द्वारा तैयार किए गए अस्तित्वगत अनूठे रहस्य विद्यालय "ओशोधारा" को, अब ये लोग विनष्ट करने का भी सतत प्रयास कर रहे हैं...।
जो महाअपराध है, जिसे गुरुद्रोह कहते हैं!
जो आध्यात्मिक जगत में सबसे निंदनीय कृत्य है!!
और महाकृतघ्नता है!!!
गुरुदेव ने ओशोधारा में अध्यात्म के सर्वश्रेष्ठ मार्ग 'सहज-योग' को प्रतिपादित किया है, जिसके 3 आयाम हैं - ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग। ज्ञान योग का अर्थ है स्वयं को आत्मा जानना और आनंद में जीना। भक्ति योग का अर्थ है परमात्मा को जानना और उसके प्रेम में जीना। कर्म योग का अर्थ है आत्मा और परमात्मा से जुड़कर संसार का नित्य मंगल करना।
गुरुदेव ने ओशोधारा में 28 तल के अनूठे समाधि-सुमिरन कार्यक्रमों की रचना कर, सभी प्रभु के प्यासों के लिए, सत-चित-आनंद में प्रतिष्ठित होकर, बैकुंठ में प्रवेश के द्वार को खोल दिया है।
और 21 तल के प्रज्ञा कार्यक्रमों के माध्यम से प्रज्ञापूर्ण होते हुए अपने संसार को सत्यम-शिवम-सुंदरम बनाने की तरफ अग्रसर होने के भी द्वार खोल दिये हैं।
ऐसा महाआयोजन अतीत में कभी उपलब्ध नहीं रहा, सुमिरन की ऐसे शराब जो गुरुदेव ओशोधारा में पिला रहे हैं, ऐसी शराब पूरे आध्यात्मिक इतिहास में कभी नही पिलाई गयी।
और सुमिरन की इस अद्भुत शराब को पीकर सच्चे साधकों के रोम-रोम से बस एक ही आवाज उठ रही है
।। नाम खुमारी नानका, चढ़ी रहे दिन-रात ।।
जिन्हें भी प्रभु के राज्य में प्रवेश करना है, जिन्हें भी अध्यात्म के रहस्य, गुरु-शिष्य के खेल में प्रवेश करना है और जिन्हें भी उस गोलोक, सतलोक, बैकुंठ में प्रवेश करना है, उनके लिए अस्तित्व ने ओशोधारा के रूप में गुरुदेव के सान्निध्य का सुअवसर प्रदान किया है।
उन सभी, परम साहसियों को प्रेम आमंत्रण है, कि ओशोधारा आएं और "ध्यान-समाधि" कार्यक्रम से अपने परमजीवन की यात्रा का शुभारंभ करें और गोविंद के महारास में सम्मिलित होकर अपने परमसौभाग्य पर इतराएं!!!🙏🙏🙏
गुरूदेव ने एक रहस्य की बात बताई है :- बैकुंठ में आत्मानन्द है पर ब्रह्मानन्द नहीं है, क्योंकि वहां भक्ति नहीं है।
भक्ति सिर्फ मनुष्य शरीर से ही सम्भव है।
सुमिरन सिर्फ सांसों के साथ ही किया जा सकता है।
सन्त सुमिरन का आनन्द लेने के लिए, सांस-सांस आत्मानन्द + ब्रह्मानन्द (सदानन्द) का आनन्द लेने के लिए ही पृथ्वी पर बार-बार आते हैं।
हृदय में गुरूदेव और हनुमत स्वरूप सिद्धि के साथ गोविंद का सुमिरन!
गुरु सो ज्ञान लीजिए, शीश दीजिए दान।
बहुते भोंदू बह गये, राख जीव अभिमान।।
ॐ नमो गुरुभ्यो गुरूपादुकाभ्यो,
नमः परेभ्यः परपादुकाभ्यः।
आचार्य सिध्देश्वर पादुकाभ्यो
नमो नमः श्री गुरुपदुकाभ्यां।।
~ जागरण सिद्धार्थ
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अब यह लोग ओशोधारा के साधकों पर काला इल्म भी कर रहे हैं।
ReplyDeletePyare bhagwan bade babaji aur parmatma ko Anant sadarpoorwak koti koti pranam.
ReplyDeleteJai bade babaji, Jai oshodhara.
जय गुरुदेव बड़े बाबा की
ReplyDeleteजय ओशो
जय ओशोधारा ।।✌
स्वामी जी और मां का कृत्य क्षमा योग्य नही है!
ReplyDeleteगुरुदेव के साथ इन्होंने बहुत बड़ा धोखा किया है।
।। जय गुरुदेव ।।
जय गुरुदेव ।
ReplyDeleteजय ओशो ।
जय ओशोधारा ।
🙏🙏
सतिगुरु के भाणै चल
ReplyDeleteमन मेरे सतिगुरु के भाणै चल
सद्गुरु के चरणों में कोटि कोटि नमन।
ReplyDeleteJai OSHO Jai Oshodhara 🙏🙏🙏🙏🙏🥰🥰🥰sadguru baba ko koti koti Naman 🙏🙏🌸🌸
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