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    गुरु को सिर पर राखिये

    गुरु को सिर पर राखिये, चलिए आज्ञा माहिं। क्या मतलब? गुरु को सिर पर रखना आसान, आज्ञा मानकर चलना कठिन। लेकिन आज्ञा मानकर चलना ही सिर पर रखने का अर्थ है। बहुत सुविधापूर्ण है कि गुरु के चरणों में सिर रख दिया। उससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। भीतर तो तुम झुकते ही नहीं, बाहर ही झुक जाते हो। भीतर तो तुम अकड़े ही रहते हो।
     गुरु जो कहे, आज्ञा मानने का अर्थ है कि उसमें तुम तर्क मत लगाना; क्योंकि तुमने तर्क लगाया, सोचा, फिर माना, तो तुम अपनी आज्ञा मान रहे हो, गुरु की नहीं। तुम्हारी बुद्धि ने कहा ठीक है, वह तुमने किया। लेकिन अगर बुद्धि तुम्हारी यह भी कहे कि ठीक नहीं है, तब भी तुम आज्ञा गुरु की ही मानना। तभी तो बुद्धि टूटेगी और गिरेगी। जब तुम बुद्धि की ही सुनते जाओगे, तो तुम सिर से नीचे न उतर सकोगे। हृदय तक तुम्हारी जड़ें, न पहुंच पाएंगी।

                                                     ~ परमगुरु ओशो

    संत श्रेष्ठ कबीरदास जी का यह कथन सिर्फ उन शिष्यों के लिए है जो जीवित गुरु के साथ चल रहे है। उन मित्रों के लिए नही जो शरीर से विदा हो चुके गुरु पर ही अटके हुए हैं!!
    और जीवित गुरु-शिष्य परंपरा को इंकार कर रहे हैं।

    ओशो जगत के बड़े-बड़े बुद्धिमान पर प्रज्ञाशून्य मित्र, बौखलाहट में गुरुदेव पर आरोप पर आरोप लगा रहे हैं, कि वे ओशो से अलग हट कर कार्य कर रहे हैं।
     इनकी बौखलाहट जायज है! ये सभी आध्यात्मिक रूप से बड़े दीन और बचकाने हैं। सभी करुणा के पात्र हैं!!
     ये सभी एक से एक ज्ञानी हैं, पर इन्हें इतना भी पता नहीं, कि अध्यात्म का सारा खेल गुरु और शिष्य के बीच का है, और ओशोजगत इस रहस्य से महरूम है!!

    ओशो जगत के सन्यासी चाहे जितना समझें, कि वे ओशो के शिष्य हैं, पर वे ओशो के शिष्य हैं नहीं, वे सभी महाभ्रांति में जी रहे हैं। और अपने आपको धोखा दे रहे हैं, उन सभी को अपने भीतर झांककर मनन करना चाहिए, कि क्या सच में वे ओशो के शिष्य हैं!!
    शिष्यता का अर्थ क्या है...!!!

    परमगुरु ओशो के शिष्य सिर्फ केवल.. केवल... सद्गुरु "ओशो सिद्धार्थ औलिया" जी ही हैं।
    क्योंकि ओशो के Real स्वप्न को सिर्फ गुरुदेव ही ओशोधारा के माध्यम से सतत आगे ले जा रहे हैं, एक सुपुत्र की तरह।
    बाकी सभी मित्र तो वही कर रहे हैं, जो कुपुत्र करते हैं!!
    गुरुदेव सुपुत्र और कुपुत्र की परिभाषा करते हुए कहते हैं :-
    "सुपुत्र अपने चूल्हे पर पिता की रोटी सेंकता है और क़ुपुत्र वह है, जो पिता के चूल्हे पर अपनी रोटी सेंकता है। ऐसे ही सदशिष्य अपने सद्गुरू के वैभव का भोग नहीं करता, बल्कि उसका विस्तार करता है। ओशो की सम्पदा में हमें श्रीवृद्धि करना है। कट्टर होकर उनके मार्ग को संकीर्ण नहीं करना है।"

    जीवन में सौभाग्य से ही सद्गुरु प्राप्त होते हैं तथा उससे बड़ा सौभाग्य तब होता है, कि वे शिष्य को स्वीकार करें। और परम सौभाग्य तब होता है, कि वे अध्यात्म के सारे खजाने बांटने को राजी हों!!!
    ऐसा आज तक नही हुआ, किसी सद्गुरु ने नहीं किया।

    पर ऐसा दुर्लभ अवसर पूरी मानवता को इस समय उपलब्ध है, गुरुदेव (सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी) के रूप में एक विलक्षण, बहुआयामी और परम करुणावान चेतना इस पृथ्वी ग्रह पर हम सभी के लिए उपस्थित है।

    जिनके पास अध्यात्म जगत के सारे खजाने हैं और उससे भी बड़ी बात, कि वे शिष्यों को बेशर्त बांटने को तैयार हैं। आध्यात्मिक जगत में ऐसा अचंभा आज तक नही हुआ है!!

    यह बड़ी दुर्लभ घड़ी है, हम सभी सौभाग्यशाली हैं कि इस घड़ी में हैं!!
    सभी प्रभु के खोजियों को निमंत्रण है कि इस अवसर को अबकी बार मत चूकें!!
    ओशोधारा में आएं और "ध्यान समाधि" कार्यक्रम से अपनी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत करें। आपको सिर्फ इतना करना है, कि अपना हाथ, गुरुदेव के हाथ में दे देना है, बाकी सब वो कर देंगे।

    और यह पक्का आश्वासन है, कि गुरुदेव आपको अध्यात्म की उन ऊंचाइयों पर ले जाएंगे, जहां पर बड़े-बड़े सिद्ध और संत भी नहीं पहुंच पाए...।

    बस आपको संतश्रेष्ठ कबीरदास जी के इन सूत्रों को ह्रदयंगम करना है, फिर काल भी आपका कुछ नही कर सकेगा।

    " गुरु को सिर पर राखिये, चलिए आज्ञा माहिं।
       कहै कबीर ता दास को, तीन लोक डर नाहिं।।'

    हृदय में गुरूदेव और हनुमत स्वरूप सिद्धि के साथ गोविंद का सुमिरन!
    गुरूदेव ने आध्यात्मिक जगत में महाक्रान्ति ला दी है; ओशोधारा के साधकों के जीवन के केंद्र में गुरु हैं, सत-चित-आनन्द के आकाश में उड़ान है और सत्यम-शिवम-सुंदरम से सुशोभित महिमापूर्ण जीवन है!!

    गुरुदेव द्वारा प्रदत्त सुमिरन+हनुमत स्वरूप सिद्धि अति उच्चकोटि की साधना है।
    हनुमान स्वयं इसी साधना में रहते हैं, वे सदैव भगवान श्रीराम के स्वरूप के साथ कण-कण में व्याप्त निराकार राम का सुमिरन करते हैं।

    गुरुदेव ने अब सभी निष्ठावान साधकों को यह दुर्लभ साधना प्रदान कर आध्यात्मिक जगत में स्वर्णिम युग की शुरूआत कर दी है।

    सदा स्मरण रखें:-
    गुरु को अंग-षंग जानते हुए सुमिरन में जीना और गुरु के स्वप्न को विस्तार देना यही शिष्यत्व है।
    गुरु+गोविंद+शिष्य यह सिनर्जी ही सारे अध्यात्म का सार है!!
    और यह सतत चलता रहेगा, चरैवेति.. चरैवेति...।

    कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां, विवेकवैराग्य निधिप्रदाभ्यां।

    बोधप्रदाभ्यां दृतमोक्षदाभ्यां, नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्।।
        
                                        ~ जागरण सिद्धार्थ

                               

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    10 comments:

    1. सतगुरु औलिया बाबा के चरणों में नमन ����������

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    2. जय ओशो
      जय बड़े बाबा
      जय ओशोधारा

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    3. Sadguru ke shree charno mein naman.

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    4. Pyare bhagwan bade babaji aur parmatma ko Anant koti koti pranam.
      Jai bade babaji,Jai oshodhara.

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    5. Ahobhav Charan vandan bade baba ji ,Jai oshodhara,Jai osho

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    6. अमित आनन्दDecember 5, 2019 at 3:36 AM

      सत्य वचन
      ।। जय गुरूदेव ।।

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    7. माला दीक्षा लेकर स्वीकार किया गुरुदेव ने,
      मेरे इस जीवन का श्रिंगार किया सदगुरू ने ।
      मेरे कामिल मुर्शिद के श्रीचरणो में बारम्बार सजदा ,नमन,अहोभाव । जय गुरुदेव ।

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    8. ऐसा सुन्दर और सारगर्भित आलेख लिखने के लिए बहुत बधाई! यह सच है कि गुरु की आज्ञा मानकर चलना ही "गुरु को सिर पर राखिये" का अर्थ है। अपनी मनमानी करते हुए गुरु के चरणों में सिर झुकाना तो मात्र औपचारिकता भर है और इससे जीवन में कोई रूपांतरण घटित नहीं होता।

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    9. स्वामी आंनदJanuary 2, 2020 at 6:24 PM

      गुरु महिमा पर बहुत सुंदर लेख।
      धन्यभागी हैं वे शिष्य जो गुरुदेव के चरणों की सेवा में हैं।

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    10. सदगुरु जी के श्री चरणों पर कोटि कोटी प्रणाम 🌹🙏🌹

      " गुरु को सिर पर राखिये, चलिए आज्ञा माहिं।
      कहै कबीर ता दास को, तीन लोक डर नाहिं।।'
      🌹🌹🌹🌹🌹🙏🌹🌹🌹🌹🌹

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