गुरु को सिर पर राखिये
~ परमगुरु ओशो
संत श्रेष्ठ कबीरदास जी का यह कथन सिर्फ उन शिष्यों के लिए है जो जीवित गुरु के साथ चल रहे है। उन मित्रों के लिए नही जो शरीर से विदा हो चुके गुरु पर ही अटके हुए हैं!!
और जीवित गुरु-शिष्य परंपरा को इंकार कर रहे हैं।
ओशो जगत के बड़े-बड़े बुद्धिमान पर प्रज्ञाशून्य मित्र, बौखलाहट में गुरुदेव पर आरोप पर आरोप लगा रहे हैं, कि वे ओशो से अलग हट कर कार्य कर रहे हैं।
इनकी बौखलाहट जायज है! ये सभी आध्यात्मिक रूप से बड़े दीन और बचकाने हैं। सभी करुणा के पात्र हैं!!
ये सभी एक से एक ज्ञानी हैं, पर इन्हें इतना भी पता नहीं, कि अध्यात्म का सारा खेल गुरु और शिष्य के बीच का है, और ओशोजगत इस रहस्य से महरूम है!!
ओशो जगत के सन्यासी चाहे जितना समझें, कि वे ओशो के शिष्य हैं, पर वे ओशो के शिष्य हैं नहीं, वे सभी महाभ्रांति में जी रहे हैं। और अपने आपको धोखा दे रहे हैं, उन सभी को अपने भीतर झांककर मनन करना चाहिए, कि क्या सच में वे ओशो के शिष्य हैं!!
शिष्यता का अर्थ क्या है...!!!
परमगुरु ओशो के शिष्य सिर्फ केवल.. केवल... सद्गुरु "ओशो सिद्धार्थ औलिया" जी ही हैं।
क्योंकि ओशो के Real स्वप्न को सिर्फ गुरुदेव ही ओशोधारा के माध्यम से सतत आगे ले जा रहे हैं, एक सुपुत्र की तरह।
बाकी सभी मित्र तो वही कर रहे हैं, जो कुपुत्र करते हैं!!
गुरुदेव सुपुत्र और कुपुत्र की परिभाषा करते हुए कहते हैं :-
"सुपुत्र अपने चूल्हे पर पिता की रोटी सेंकता है और क़ुपुत्र वह है, जो पिता के चूल्हे पर अपनी रोटी सेंकता है। ऐसे ही सदशिष्य अपने सद्गुरू के वैभव का भोग नहीं करता, बल्कि उसका विस्तार करता है। ओशो की सम्पदा में हमें श्रीवृद्धि करना है। कट्टर होकर उनके मार्ग को संकीर्ण नहीं करना है।"
जीवन में सौभाग्य से ही सद्गुरु प्राप्त होते हैं तथा उससे बड़ा सौभाग्य तब होता है, कि वे शिष्य को स्वीकार करें। और परम सौभाग्य तब होता है, कि वे अध्यात्म के सारे खजाने बांटने को राजी हों!!!
ऐसा आज तक नही हुआ, किसी सद्गुरु ने नहीं किया।
पर ऐसा दुर्लभ अवसर पूरी मानवता को इस समय उपलब्ध है, गुरुदेव (सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी) के रूप में एक विलक्षण, बहुआयामी और परम करुणावान चेतना इस पृथ्वी ग्रह पर हम सभी के लिए उपस्थित है।
जिनके पास अध्यात्म जगत के सारे खजाने हैं और उससे भी बड़ी बात, कि वे शिष्यों को बेशर्त बांटने को तैयार हैं। आध्यात्मिक जगत में ऐसा अचंभा आज तक नही हुआ है!!
यह बड़ी दुर्लभ घड़ी है, हम सभी सौभाग्यशाली हैं कि इस घड़ी में हैं!!
सभी प्रभु के खोजियों को निमंत्रण है कि इस अवसर को अबकी बार मत चूकें!!
ओशोधारा में आएं और "ध्यान समाधि" कार्यक्रम से अपनी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत करें। आपको सिर्फ इतना करना है, कि अपना हाथ, गुरुदेव के हाथ में दे देना है, बाकी सब वो कर देंगे।
और यह पक्का आश्वासन है, कि गुरुदेव आपको अध्यात्म की उन ऊंचाइयों पर ले जाएंगे, जहां पर बड़े-बड़े सिद्ध और संत भी नहीं पहुंच पाए...।
बस आपको संतश्रेष्ठ कबीरदास जी के इन सूत्रों को ह्रदयंगम करना है, फिर काल भी आपका कुछ नही कर सकेगा।
" गुरु को सिर पर राखिये, चलिए आज्ञा माहिं।
कहै कबीर ता दास को, तीन लोक डर नाहिं।।'
कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां, विवेकवैराग्य निधिप्रदाभ्यां।
बोधप्रदाभ्यां दृतमोक्षदाभ्यां, नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्।।
~ जागरण सिद्धार्थ
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सतगुरु औलिया बाबा के चरणों में नमन ����������
ReplyDeleteजय ओशो
ReplyDeleteजय बड़े बाबा
जय ओशोधारा
Sadguru ke shree charno mein naman.
ReplyDeletePyare bhagwan bade babaji aur parmatma ko Anant koti koti pranam.
ReplyDeleteJai bade babaji,Jai oshodhara.
Ahobhav Charan vandan bade baba ji ,Jai oshodhara,Jai osho
ReplyDeleteसत्य वचन
ReplyDelete।। जय गुरूदेव ।।
माला दीक्षा लेकर स्वीकार किया गुरुदेव ने,
ReplyDeleteमेरे इस जीवन का श्रिंगार किया सदगुरू ने ।
मेरे कामिल मुर्शिद के श्रीचरणो में बारम्बार सजदा ,नमन,अहोभाव । जय गुरुदेव ।
ऐसा सुन्दर और सारगर्भित आलेख लिखने के लिए बहुत बधाई! यह सच है कि गुरु की आज्ञा मानकर चलना ही "गुरु को सिर पर राखिये" का अर्थ है। अपनी मनमानी करते हुए गुरु के चरणों में सिर झुकाना तो मात्र औपचारिकता भर है और इससे जीवन में कोई रूपांतरण घटित नहीं होता।
ReplyDeleteगुरु महिमा पर बहुत सुंदर लेख।
ReplyDeleteधन्यभागी हैं वे शिष्य जो गुरुदेव के चरणों की सेवा में हैं।
सदगुरु जी के श्री चरणों पर कोटि कोटी प्रणाम 🌹🙏🌹
ReplyDelete" गुरु को सिर पर राखिये, चलिए आज्ञा माहिं।
कहै कबीर ता दास को, तीन लोक डर नाहिं।।'
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