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    गुरुदेव के संस्मरण ~ देवराहा बाबा

     देवराहा बाबा का जन्म कब और कहां हुआ, किसी को पता नहीं। वे महर्षि पतंजलि के 'अष्टांग-योग' के सिद्धहस्त योगी थे।
    धर्माचार्य, पंडित, तत्वज्ञानी, वेदांती भी उनसे संवाद किया करते थे। वे सदा ईश्वरलीन अवस्था में रहते थे।
    डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, श्रीमती इंदिरा गांधी और विदेशों से भी बड़ी-बड़ी हस्तियां उनके दर्शन करने आया करती थीं।
    20 जून 1990 योगिनी एकादशी के दिन उन्होंने सिद्धासन पर बैठे हुए इस पृथ्वी से महाप्रयाण किया। गुरुदेव (सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी) का उनसे एक बार ही मिलना हुआ था, और यह मिलन बड़ा ही अनूठा और रहस्यपूर्ण था।
    मई 1980 में गुरुदेव (सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी) ने ओशो से नवसंन्यास लिया। उन्होंने ओशो से पूछा-‘ मैं आप से शुरू कर आज के जीवित प्रज्ञापुरुषों पर एक लेखमाला लिखना चाहता हूं। मेरी समस्या यह है कि मैं उन्हें कैसे पहचानूं।’ ऐसा ही एक प्रश्न किसी अन्य व्यक्ति ने भी पूछा था। ओशो ने उसका जवाब देते हुए कहा - ‘मैंने अपने संन्यासियों को वह आंख दी है कि वे प्रज्ञापुरुषों को पहचान सकते हैं। जहां भी अलख जगा है, उन्हें वे पहचान लेंगे।

    उससे उत्साहित होकर गुरुदेव ने कई संतों से मुलाकात की और उन पर धनबाद से प्रकाशित दैनिक आवाज में लेख प्रकाशित किए। इसी सिलसिले में 1981-82 में वे देवराहा बाबा से मिले। उन दिनों वे लार रोड, जिला गाजीपुर, उत्तरप्रदेश के अपने आश्रम में प्रवास कर रहे थे।

    भारत के प्रथम राष्टपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि जब वे बचपन में 1895 ई. के आस-पास देवराहा बाबा से मिलने गए, तो उस समय उनकी उम्र 65 वर्ष से ज्यादा थी। गुरुदेव के अनुसार बाबा का जन्म लगभग 1830 ई. के आस-पास होना चाहिए।

    गुरुदेव उन दिनों कोल इंडिया की सब्सिडियरी कंपनी भारत कोकिंग कोल लि. (BCCL), धनबाद में सुपरिटेंडिंग जियोलौजिस्ट के रूप में कार्यरत थे। उन्होंने अपने साथ अपने एक सहायक कर्मचारी सिन्हा जी को भी ले लिया।

    आश्रम पहुंचने पर पता चला कि बाबा सरयू नदी में नहाने गए हैं। जब आश्रम बना था, तो नदी आश्रम के पास थी, लेकिन अब वह आधा कि.मी. दूर हो गई थी। फिर भी बाबा रोज 4-5 बार नहाने जाते थे।
    गुरुदेव और सिन्हा जी  आश्रम में एक जगह बैठ गए, जहां से लगभग 300 मीटर की दूरी पर वह रास्ता दिखाई दे रहा था, जिधर से बाबा आने वाले थे। सिन्हा जी ने गुरुदेव से कहा - 'आपको मालूम है, लगभग 5,000 लोग बाबा के दर्शन के लिए आए हैं। मुझे नहीं लगता कि व्यक्तिगत साक्षात्कार हो पाएगा।’

    गुरुदेव ने कहा - ‘मुझे लगता है कि बाबा स्वयं ही बुलाएंगे।’

    तभी बाबा स्नान कर आश्रम की ओर आते हुए दिखे। उनकी कमर झुकी हुई थी। फिर भी वे बड़ी तेजी से चल रहे थे। गुरुदेव ने सिन्हा जी से कहा कि बाबा को हमारी उपस्थिति का पता चल गया है। श्री सिन्हा ने कहा - ‘यह आप कैसे कह सकते हैं?’

    गुरुदेव बोले - ‘अभी मैं भाव से उन्हें प्रणाम करूंगा और वे मेरा अभिवादन स्वीकार करेंगे।

    और वही हुआ। बाबा रूक गए। सीधे होकर अभिवादन किया और फिर आगे बढ़ गए।

    गुरुदेव ने सिन्हा जी से कहा कि चलो तब तक आश्रम में घूमते हैं। आश्रमवासी स्वामी राम सकल दास से मुलाकात हो गई। बाबा के बारे में वे बताने लगे। उनसे बातचीत के क्रम में गुरुदेव ने पूछा - ' यहां आश्रम में ऐसा क्या है, जो हमें इतनी तृप्ति और शांति दे रहा है।’

    राम सकल दास ने कहा -  प्रेम
    और इसका प्रमाण है, कि आश्रम में अधिकतर पेड़ बबूल के हैं, लेकिन सब ने अपने कांटे त्याग दिए हैं।’

    गुरुदेव और  सिन्हा जी बबूल के पेड़ों का निरीक्षण करने लगे। सिन्हा जी  ने एक पेड़ की एक डाली पर दो-तीन कांटे खोज ही लिए और राम सकलदास को दिखाया। उन्होंने मजाक के लहजे में कहा - ' आपलोग धन्य हैं, जो बाबा के आश्रम में भी आपने कांटे खोज ही लिए।’

    तभी पता चला बाबा दर्शन देने के लिए बैठ गए हैं। गुरुदेव भी सिन्हा जी के साथ  वहां पहुंच गए। लगभग 10 फीट ऊंचे मंच पर बाबा विद्यमान थे। दर्शन के लिए लगभग दो हजार लोग उपस्थित थे, जो बांस के घेरे के बाहर से ही बाबा का दर्शन कर रहे थे। बीच-बीच में बाबा कुछ बोलते भी थे। बिना माइक के भी उनकी बुलंद आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी।

    थोड़ी देर बाद बाबा ने आवाज दी - ‘ रजनीश के शिष्य, आगे आ जाओ।’
    गुरुदेव, सिन्हा जी के साथ बांस के घेरे को पार कर आगे बढ़ गए और मचान से थोड़ी दूरी पर ही रूक गए।

    बाबा ने कहा - ‘ मेरे पास आ जाओ।’ गुरुदेव और सिन्हा जी  बाबा के पास पहुंच गए।
    बाबा ने अपने पवित्र चरण उनके सिर पर पर रखकर आशीष दिया। बोले - ‘ तुम्हारे गुरू कैसे है।?’

    गुरुदेव ने कहा - ‘ बाबा, वे अभी अमेरिका में हैं और कुशल से हैं।’

    बाबा ने कहा - ‘ ठीक है। कुछ मांगो।’

    गुरुदेव ने कहा - ‘हमलोग आपका फोटो लेना चाहते हैं, यदि आज्ञा हो।’

    बाबा बोले - ' मेरा, या मेरे शरीर का? अच्छा, ले लो।’ गुरुदेव और सिन्हा जी ने अपने-अपने कैमरों से बाबा की तस्वीर ली।

    बाबा ने कहा - ‘ एक बार और ले लो।’ गुरुदेव और सिन्हा जी ने दोबारा तस्वीर ली।

    बाबा ने कहा - ‘अभी मैं दैवी शक्तियों से जुड़ा हूं। चूको नहीं! मांग लो, जो मांगना हो।

    गुरुदेव ने कहा - ‘बाबा, यदि आप इतना ही प्रसन्न हैं, तो आशीर्वाद दें कि मेरी सभी मांगें विदा हो जाएं।’

    बाबा हंसने लगे और बोले - ' वह मैं नहीं दे सकता। वह तुम्हारा गुरू देगा। हां, यहां जब भी आना हो, आ जाना।’

    बाबा की मधुर याद लिए गुरुदेव धनबाद वापस आ गए। बाद में जब कैमरे की रील साफ की गई, तो पहली ली गयी तस्वीर, न गुरुदेव के कैमरे में आई थी, और न ही  सिन्हा जी के कैमरे में आयी थी।
    इसीलिए देवराहा बाबा जी ने गुरुदेव से दोबारा फोटो लेने के लिए कहा था!!
    ऐसा ही एक बार लाहिड़ी महाशय जी ने भी किया था।
    संतों की महिमा संत जानें या दैव जाने!!

       ("बूंद से समंदर तक का सफ़र" से संकलित )

    अतीत में  कितनी कठिन और दुर्गम यात्रा थी परमात्मा की!!
    देवराहा बाबा जैसे बिरले ही पहुंच पाते थे!
    साधारण साधकों के लिए तो यह यात्रा एक स्वप्न मात्र थी!!
     समस्त गुरुसत्ता, देवसत्ता और गोविंद की अपार अनुकंपा, कि उन्होंने परमगुरु ओशो की धारा को आगे बढ़ाने के लिए गुरुदेव के रूप में अति विशिष्ट दुर्लभ चेतना को इस पृथ्वी पर अवतरित किया है, ताकि प्रभु के खोजी अपने जन्मों-जन्मों की प्यास बुझा सकें।
    गुरुदेव ने आध्यात्मिक जगत में जो करिश्मा किया है, वह आज से पहले कभी नहीं था!
    साक्षी, तथाता जो सदा से बेबूझ रहे हैं, उसे उन्होंने ओशोधारा में इतना आसान कर दिया है, कि एक बच्चा भी समझ सकता है।
    बुद्धत्व जो साधकों के लिए एक स्वप्न मात्र ही था, वह उन्होंने ओशोधारा में सभी निष्ठावान साधकों के लिए सहज सुलभ कर दिया है!!

    गुरुदेव ने ओशोधारा में अध्यात्म के सर्वश्रेष्ठ मार्ग सहज योग को प्रतिपादित किया है, जिसके 3 आयाम हैं - ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग। ज्ञान योग का अर्थ है स्वयं को आत्मा जानना और आनंद में जीना। भक्ति योग का अर्थ है परमात्मा को जानना और उसके प्रेम में जीना। कर्म योग का अर्थ है आत्मा और परमात्मा से जुड़कर संसार का नित्य मंगल करना।

    अब कोई भी सच्चा साधक यदि ओशोधारा के ध्यान समाधि कार्यक्रम से निर्वाण समाधि तक यात्रा कर ले तो वह वही जान लेगा जो बुद्ध , महावीर, रमण महर्षि, कृष्णमूर्ति, आदि ने जाना है ।
    और जो जन्मों-जन्मों के गुरु और प्रभु के प्यासे हैं, जो प्रभु से प्रेम करने का साहस करना चाहते है, जो गुरु के साथ सदा के लिए परमजीवन की यात्रा में प्रवेश करना चाहते हैं, ऐसे सौभाग्यशाली सदशिष्य चरैवेति तक संकल्प लें और सतत गुरु के साथ चलते रहें, चरैवेति.. चरैवेति...।
    आप सभी सच्चे प्रभु के प्यासों का ओशोधारा रूपी महायान में स्वागत है।

    गुरूदेव ने एक रहस्य की बात बताई है :- बैकुंठ में आत्मानन्द है पर ब्रह्मानन्द नहीं है, क्योंकि वहां भक्ति नहीं है।
    भक्ति सिर्फ मनुष्य शरीर से ही सम्भव है।
    सुमिरन सिर्फ सांसों के साथ ही किया जा सकता है।
    सन्त सुमिरन का आनन्द लेने के लिए, सांस-सांस आत्मानन्द + ब्रह्मानन्द  (सदानन्द) का आनन्द लेने के लिए ही पृथ्वी पर बार-बार आते हैं।

    हृदय में गुरूदेव और हनुमत स्वरूप सिद्धि के साथ गोविंद का सुमिरन!
    गुरूदेव ने आध्यात्मिक जगत में महाक्रान्ति ला दी है; ओशोधारा के साधकों के जीवन के केंद्र में गुरु हैं, सत-चित-आनन्द के आकाश में उड़ान है और सत्यम-शिवम-सुंदरम से सुशोभित महिमापूर्ण जीवन है!!

    गुरुदेव द्वारा प्रदत्त सुमिरन+हनुमत स्वरूप सिद्धि अति उच्चकोटि की साधना है।
    हनुमान स्वयं इसी साधना में रहते हैं, वे सदैव भगवान श्रीराम के स्वरूप के साथ कण-कण में व्याप्त निराकार राम का सुमिरन करते हैं।

    गुरुदेव ने अब सभी निष्ठावान साधकों को यह दुर्लभ साधना प्रदान कर आध्यात्मिक जगत में स्वर्णिम युग की शुरूआत कर दी है।

    सदा स्मरण रखें:-
    गुरु को अंग-षंग जानते हुए सुमिरन में जीना और गुरु के स्वप्न को विस्तार देना यही शिष्यत्व है।
    गुरु+गोविंद+शिष्य यह सिनर्जी ही सारे अध्यात्म का सार है!!
    और यह सतत चलता रहेगा, चरैवेति.. चरैवेति...।
     मात पिता बंधु सखा कोऊ न सांचा मीत।
    भव सागर से पार कर सतगुरु सांची प्रीत।
    गुरु आज्ञा मानै नहीं, चलै अटपटी चाल
    लोक वेद दोनो गये, आगे सिर पर काल।

               नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां
               नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां

     ★ देवराहा बाबा का दुर्लभ वीडियो 👇 ★
    https://youtu.be/BGSc_UxuTDA

                                                       👇                  https://youtu.be/rIX51P5QORo


                                      ~ जागरण सिद्धार्थ                             

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    7 comments:

    1. स्वामी अमित आनन्दJanuary 20, 2020 at 6:31 PM

      ।। जय देवराहा बाबा ।।
      ।। जय गुरुदेव ।।
      ।। जय ओशोधारा ।।

      ReplyDelete
    2. नमन प्यारे सद्गुरु के श्री चरणों में
      नमन प्यारे ओशो के श्री चरणों मे
      नमन देवरहा बाबा के श्री चरणों मे

      जय ओशो
      जय ओशोधारा

      ReplyDelete
    3. ⚘ Jai Sadgurudev ⚘

      ⚘ Jai Oshodhara ⚘

      🙏

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    4. बलिहारी जाऊं मेरे सदगुरु पर,हम तो धन्य हो गए एसे सदगुरु पाकर, जिनके साथ कितने ही मिस्टिक संत, देवता मिलकर हमारे अध्यात्म के रास्ते को आसान बना रहे। सदगुरु स्वयं अपनी आध्यात्मिक प्रगति हेतु इतनी जगह गए, लेकिन हमें तो खुद उन्होंने निमंत्रण भेजा आने का, अहो भाव अहो भाव अहो भाव

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    5. Naman! Ahobhav!
      सदगुरु के पावन आशीष हम सब पर बरसते रहे।
      जय ओशोधारा।।।

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    6. आदरणीय सदगुरुदेव के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम और अहोभाव । जय श्री देवरहा बाबा। जय ओशोधारा 🙏🙏

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    7. हमारी किस्मत खराब है जो देवरहा बाबा जी के दर्शन का कर सके , जय देवरहा बाबा जी की 🙏💐🚩

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