गुरुदेव के संस्मरण ~ महावतार बाबा से साक्षात्कार
श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय को पर्वतीय क्षेत्र के भ्रमण के दौरान महावतार बाबा दिखाई दिए थे। महावतार बाबा ने ही लाहिड़ी महाशय को बताया था कि कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया योग का ज्ञान ही क्रियायोग है।
एक दिन लाहिड़ी महाशय रेल की पटरी बिछवा रहे थे, तभी उन्हें किसी के पुकारने की आवाज़ आई, जब वो उस आवाज़ के पीछे गए, तो उन्हें महावतार बाबा के दर्शन हुए थे।
महावतार बाबा ने लाहिड़ी महाशय से कहा था कि उनकी पिछले जन्म की साधना अधूरी रह गई थी, जिसे पूरा करने का समय आ गया है। उन्होंने प्रमाण के तौर पर उन्हें पिछले जन्म का आसन, चटाई और अन्य सामान भी दिखाए थे।
परमहंस योगानन्द ने भी अपनी किताब में बाबा के साथ अपनी प्रत्यक्ष भेट के बारे में बताया है।
श्री युक्तेश्वर गिरि की पुस्तक 'द होली साइंस' में भी उनका प्रत्यक्ष वर्णन मिलता है।
महावतार क्यों कहा जाता है :- गुरुदेव ने बताया है कि वैष्णव मत अपने बुद्धपुरुषों को अवतार कहते हैं।
इसलिए शैव मत मानने वालों ने अपनी परंपरा में अवतरित बुद्ध पुरुषों को उनसे श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए महावतार कहना प्रारम्भ कर दिया।
महावतार कौन हैं :- गुरुदेव ने बताया, - " महावतार बाबा के बारे में अलग अलग परम्पराओं की अलग अलग मान्यताएँ हैं। नाथ परम्परा के अनुसार गुरू गोरखनाथ ही महावतार बाबा हैं। मेरा अनुभव नाथ परम्परा को सत्यापित करता है।"
महावतार बाबा और कोई नहीं स्वयं गुरु गोरखनाथ जी है। और गुरुदेव के अनुभव के अनुसार लाहिड़ी महाशय जी पिछले जन्म में राजा भर्तहरि थे, जो उनके शिष्य थे।
पिछले जन्म में उनकी बुद्धत्व की यात्रा अधूरी रह गयी थी।, इस कारण महावतार बाबा जी ने उन्हें क्रिया-योग का रहस्य प्रदान करके इस जन्म में उनके बुद्धत्व का मार्ग प्रशस्त किया।
महावतार बाबा से गुरुदेव का साक्षात्कार :- " 11 जून, 2009 जब हम लोग रुद्रप्रयाग के संगम में विश्राम कर रहे थे, तो ऐसे ही एक ख्याल आया कि यह जो हिमालय क्षेत्र है यह महावतार बाबा का क्षेत्र है। महावतार बाबा का स्वामी योगानन्द जी ने बहुत बार वर्णन किया है। ‘ऑटोबायाग्राफी ऑफ योगी’ में तुमने पढ़ा होगा कि महावतार बाबा ने दर्शन दिये लाहड़ी महाशय को, और उन्हें क्रिया-योग का पाठ पढ़ाया। बाद में लाहड़ी महाशय ने क्रिया-योग की विद्या युक्तेश्वर गिरि को दी। युक्तेश्वर गिरि ने स्वामी योगानंद जी को दी और वह परंपरा आज भी चल रही है। हिमालय में महावतार बाबा के दर्शन के लिए अभी भी पश्चिम से बहुत लोग आते हैं लेकिन थोड़े लोग ही दर्शन कर पाते हैं। तो ऐसे ही ख्याल आया रुद्रप्रयाग में कि अगर हिमालय क्षेत्र में महावतार बाबा हैं तो फिर उनके दर्शन भी होने चाहिएं। और महावतार का रहस्य क्या है, इसका भी ज्ञान होना चाहिए।
आंख बंद कर हम बैठ गए। मैंने भाव किया कि अगर कहीं महावतार बाबा की ऊर्जा है तो उसको मैं महसूस करना चाहूंगा। थोड़ी देर के बाद ऐसा लगा कि जैसे महावतार बाबा की ऊर्जा प्रकट हो गई है बिल्कुल सिर के पिछले भाग में, जहां सोमचक्र है, वहां पर मानो बहुत सी घटाएं उमड़ने लगीं। पूरा चेहरा इस ऊर्जा से आविष्ट हो गया। मैंने कहा कि आप कौन हैं? जवाब आया कि मैं ही तो महावतार हूं। मैंने कहा कि हे महावतार! आपका पूरा रहस्य क्या है? उन्होंने कहा कि मैं ही तो गोरख हूं। मैंने कहा कि आप गोरख भी हैं और महावतार भी हैं? तो उन्होंने कहा कि यही नहीं, मैं शिव भी हूं। फिर मैंने कहा कि यह शिव रूप ही गोरख रूप है और शिव रूप ही महावतार है? वे बोले कि निश्चित्त। "
गुरुदेव कहते हैं :- "आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक तीर्थ के बारे में एक बड़ा संभ्रम आध्यात्मिक जगत में है। वास्तव में जितने भी तीर्थ हैं उनका महत्त्व इसलिए है कि ये तीर्थ किसी न किसी संत से जुड़े हुए हैं। इस बात को ठीक से समझ लेना कि ये सारे तीर्थ इसलिए बने हैं क्योंकि यहां पर कोई तीर्थंकर हुआ। किसी ने घाट बनाया, किसी ने उस जगह पर तपस्या की और किसी ने वहां जाकर परम ज्ञान प्राप्त किया। इसलिए तीर्थों का इतना मूल्य है। दूसरी बात जो Past life Regression के प्रयोग पूरी दुनिया में हुए और ओशोधारा में भी हो रहे हैं उससे भी एक बात का पता चला है कि जो भी संत धरती पर आये, उनकी उपस्थिति, उनका वजूद आज भी मौजूद है। अगर वजूद है तो उनसे सम्पर्क भी साधा जा सकता है।
सम्पर्क साधने की विधि :- सम्पर्क साधने के तीन चरण हैं- पहली बात तो यह है कि आप जिस संत से भी जुड़े हुए हैं उससे सम्पर्क साधना बहुत आसान होता है।
अगर आप ओशोधारा में हो तो निश्चित्त रूप से अध्यात्म में पहली बार आपके कदम नहीं उठे हैं। आपके पास आपकी पृष्ठभूमि है। विगत काल में आप किन्हीं महापुरुषों के सम्पर्क में रहे होंगे। चाहे वे महापुरुष शंकराचार्य हों, नानक देव जी, बुद्ध, कबीर या महर्षि नारद हों। आप निश्चित्त ही उन महापुरुषों के सम्पर्क में कहीं न कहीं रहे हैं।
महापुरुषों से सम्पर्क साधने के लिए आप स्वयं गोविंद से जुड़ो, सुमिरन में चले जाओ। इस प्रयोग में उतरने के लिए कम से कम आधा घंटा चाहिए। वहां शॉर्ट कट (सरल रास्ता) नहीं है।
प्रथम चरण दस मिनट आप ओंकार को सुनें।
दूसरा चरण आप जिस संत से भी जुड़ना चाहते हैं, वैसा अभिप्राय करें। निश्चित्त रूप से आप शंकराचार्य जी की समाधि पर आये तो गुरु नानक देव का आह्वान तो करोगे नहीं। आप कहीं भी गये हो उसकी उपस्थिति के लिए आह्वान करोगे।
तीसरा चरण बहुत ही महत्त्वपूर्ण है- अब आप शून्य हो जाओ। शून्य होने की विधि क्या है?आप निराकार से जुड़ जाओ और निराकार में डूबते-डूबते समाधि में चले जाओ। शून्य में समाधिस्थ हो जाओ। और फिर चौथा चरण स्वयं घटित होगा और संत वहां प्रगट होंगें। आप यह अनुमान नहीं लगा सकते कि वे अपनी उपस्थिति कैसे दिखायेंगे। अगर उस वक्त आपको लगता है कि और भी किसी प्रमाण की जरूरत है, कहीं ऐसा तो नहीं कि यह मेरे मन की ही कल्पना है, तो फिर आप एक प्रमाण और रख सकते हैं।"
(नोट :- गुरुदेव के द्वारा खोजी गयी इस विधि का हम कुछ मित्रों ने कई महीने गहन प्रयोग किया है। और हमारे कैमरे में आश्चर्यचकित कर देने वाली सन्तों, दिव्य आत्माओं की उपस्थिति दर्ज हुई है, जो इस विधि की प्रामाणिकता को सिद्ध करती है।)
गुरुदेव का बहुत ही महत्वपूर्ण और सारभूत सन्देश :- " एक बात और मैं कहना चाहूंगा कि किसी भी संत के दर्शन हो जाएं, किसी भी दरगाह पर आप चले जाओ इससे बात बनने वाली नहीं है। आपका सुमिरन और आपकी समाधि ही आपका आध्यात्मिक विकास कर सकती है। संतों के दर्शन से आपने कुछ सुमिरन किया, कुछ समाधि की, कुछ प्रेरणा जगी आपके भीतर, तो निश्चित्त ही सब कुछ हो जाएगा, और हो रहा है।
ठीक ऐसे ही तीर्थों में संत दर्शन हमको प्रेरणा के रूप में लेना है। उनसे आशीष लेने हैं, जैसे कि हम कहीं जाते हैं यात्रा पर, तो बड़ों का आशीष लेते हैं, और अपना पुरुषार्थ करते हैं।
तो संतो के आशीष तो लेने ही हैं। दुआ और दवा दोनों चाहिएं। अकेली दुआ से काम न चलेगा और अकेली दवा से भी न चलेगा। दुआ और दवा दोनों साथ-साथ चाहिएं।
अगर दवा के साथ-साथ दुवा भी मिलती रहे तो सोने पर सुहागा हो जाता है, और इस बात को हमें समझना है।
कभी-कभी हम कुछ जाने बगैर मंदिरों, मस्जिदों, देवालयों की आलोचना करने लगते हैं कि इनमें क्या रखा है? कभी भी बिना जाने किसी की आलोचना मत करो। पहले जानो फिर मानो।
तुम्हारा सद्गुरु (जीवित गुरु) तुम्हारा सुमिरन, तुम्हारी साधना, तुम्हारी समाधि ये तुम्हारे जीवन के केंद्र में हों और परिधि पर निश्चित्त ही महापुरुषों के, संतों के आशीर्वाद हों तो जीवन सार्थक हो जाता है। जीवन में फूल खिल जाते हैं। "
गुरुदेव ने ओशोधारा में अध्यात्म के सर्वश्रेष्ठ मार्ग 'सहज-योग' को प्रतिपादित किया है, जिसके 3 आयाम हैं - ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग। ज्ञान योग का अर्थ है स्वयं को आत्मा जानना और आनंद में जीना। भक्ति योग का अर्थ है परमात्मा को जानना और उसके प्रेम में जीना। कर्म योग का अर्थ है आत्मा और परमात्मा से जुड़कर संसार का नित्य मंगल करना।
ओशोधारा में गुरुदेव अध्यात्म के सारे खजाने, सारे रहस्य प्रदान करते जा रहे हैं...
सदा सुमिरन में रहो और साथ ही साथ सन्तों, दिव्यात्माओं के आशीष, देवताओं से मित्रता और उनका सहयोग भी प्राप्त करो!
औऱ क्या चाहिए!!
आध्यात्मिक जगत की यह 'मौज ही मौज हमार' की बेला है!!!
सभी प्रभु के दीवानों को प्रेम-निमन्त्रण है, कि आध्यात्मिक जगत की इस परमपावन बेला को इस जन्म में मत चूकें!
ओशोधारा में ध्यान-समाधि से चरैवेति तक संकल्प लेकर गुरुदेव के साथ अपने परम सौभाग्य की, परमजीवन की यात्रा का शुभारंभ करें।
गुरूदेव ने एक रहस्य की बात बताई है :- बैकुंठ में आत्मानन्द है पर ब्रह्मानन्द नहीं है, क्योंकि वहां भक्ति नहीं है।
भक्ति सिर्फ मनुष्य शरीर से ही सम्भव है।
सुमिरन सिर्फ सांसों के साथ ही किया जा सकता है।
सन्त सुमिरन का आनन्द लेने के लिए, सांस-सांस आत्मानन्द + ब्रह्मानन्द (सदानन्द) का आनन्द लेने के लिए ही पृथ्वी पर बार-बार आते हैं।
नरनारायण चरितं योगं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं॥
भगवान विष्णु के मत्स्य, कूर्म, वाराह, नरसिंह, वामन, नर-नारायण आदि अवतार, उनकी लीलाएँ, चरित्र एवं तप आदि भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं हैं॥
नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां
नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां
★ मत्स्येंद्रनाथ जी का रहस्य 👇 ★
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हम सचमुच भाग्यशाली हैं कि सदगुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जैसे महान सद्गुरु के शिष्य हैं ।ओशोधारा आज विश्व की अद्वितीय धारा है। जिन्हें भी अध्यात्म की प्यास है उन्हें अब और नहीं भटकना चाहिए, सीधे ओशोधारा की ओर रुख करना चाहिए।
ReplyDeleteहम सचमुच सौभाग्यशाली हैं कि हम सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी जैसे महान सद्गुरु के शिष्य हैं। आज जिन्हें भी अध्यात्म की प्यास है उन्हें सीधे ओशोधारा की ओर रुख करना चाहिए, क्योंकि इतने खजाने वहां लुटाए जा रहे हैं जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
ReplyDelete⚘JAI SADGURUDEV⚘
ReplyDelete⚘ JAI OSHODHARA⚘
🙏
हम कितने सौभाग्यशाली है, आज हमारे पास पूर्ण सदगुरु है जो ना जाने कितने जन्म भटकने के बाद मिलते है। हम लोग बार बार साधना करके संसार में फिर से गिरने के आदी हो गए थे तो इस बार सदगुरु ने हमें वहां से भी कैसे निकलना है, इसकी भी पूरी व्यवस्था कर दी और संसार में रहते हुए साधना की आसान रोड मैप दे दिया।अहो भाव सदगुरु, अहो भाव
ReplyDeleteॐ परमतत्वाय नारायणाय
ReplyDeleteगुरुभ्यो नमः
अहोभाव प्यारे सद्गुरु बड़ेबाबा के चरणों मे
अहोभाव प्यारे परमगुरु ओशो के चरणों में
अहोभाव प्यारे महावतार बाबा के चरणों मे
सद्गुरु की कृपा से हमें संतो के रहस्य पता चल रहे हैं
इन्हें हम तक पहुचाने के लिये जागरण जी का धन्यवाद।।
गुरुदेव के श्री-चरणों में शत-शत नमन
ReplyDeleteसदगुरू बड़े बाबा औलिया जी के शिष्य होना,ओशोधारा में होना परम सौभाग्य की बात है । गुरूदेव के श्रीचरणो में बारम्बार नमन । गोविन्द की अपार कृपा हुई जो यह सौभाग्य प्राप्त हुआ ।
ReplyDelete🙏🙏❣❣💜💜🌹🌹🙏🙏
Sadguru charno me naman...
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