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    गुरु को मानुष जानते, कहिए वो नर अंध...


    गुरु पूर्वीय चेतना की खोज है। पश्चिम की भाषाओं में गुरु जैसा कोई शब्द भी नहीं; शिक्षक है, अध्यापक है, आचार्य है, पर गुरु जैसा कोई शब्द नहीं।
    शिक्षक से एक संबंध बनता है। वह संबंध बुद्धि का है। वह संबंध दो सिरों का है, हृदय का नहीं। हृदय से शिक्षक का कोई लेना-देना नहीं। गुरु से जो संबंध बनता है, वह दो बुद्धियों का नहीं है, वह दो हृदयों का है। इसलिए पश्चिम के लोग समझ ही नहीं पाते कि गुरु के प्रति श्रद्धा की क्या जरूरत! सीखना है, गुरु एक टेक्नीशीयन है, जानकार है; उससे सीख लो, बात खतम हो गई! श्रद्धा का कहां सवाल है!
    काश! बुद्धि का ही संबंध होता गुरु से। तो पश्चिम ठीक कहता है: सीख लिया, धन्यवाद दे दिया; फीस चुका दी, बात खतम हो गई। पूंछने के लिए कोई श्रद्धा और समर्पण की जरूरत है। तुमने पूछ लिया ईश्वर कहां है, गुरु ने बता दिया। तुमने पूछ लिया ध्यान कैसे करें, गुरु ने बता दिया। तुमने धन्यवाद दे दिया, भेंट दे दी, अपने घर चले गए, बात समाप्त हो गई।
    शिक्षक और विद्यार्थी का संबंध व्यवसायिक है; वहां श्रद्धा की कोई भी जरूरत नहीं। 

    लेकिन भारत में गुरु के प्रति सम्मान का भाव इतना पुराना है कि विश्वविद्यालय का शिक्षक भी सोचता है कि मैं गुरु हूं—बिना इस बात की फिकर किए कि गुरु कि गुरुता कहां; बिना इस बात की चिंता किये कि गुरु होना साधारण आदमी के बस की बात नहीं! क्योंकि गुरु तो वही हो सकता है, जो उस गुरुता को उपलब्ध हो गया; जो अंतिम महिमा को उपलब्ध हो गया; जिसने परम सत्य को जान लिया, वही गुरु हो सकता है। जिसको जानने को कुछ शेष न रहा, जिसके होने में अंतिम घटना घट गई; जो समाधिस्थ हुआ; जिसके लिए परमात्मा पारदर्शी हो गया; जो परमात्मा से एक हो गया; जिसमें और परमात्मा में रत्ती भर भेद न रहा-गुरु वह है।

    जो गुरु के मनुष्य की भांति मानते हैं, उन्हें अंधा जानना। क्योंकि गुरु को तो जब भगवान की भांति जानोगे, तभी जोड़ बनेगा। अगर गुरु भी मनुष्य है, तो तुम्हारे संबंध शारीरिक होंगे। आदर भी हो सकता है, लेकिन आदर अकारण होगा, श्रद्धा नहीं होगी। श्रद्धा और आदर में यही फर्क है। आदर का अर्थ है, कारण है। यह आदमी ज्यादा जानता है, आचारणवान है, त्यागी है, ऐसा है, वैसा है। कारण है तो आदर है। श्रद्धा अकारण है। इसलिए आदर तोड़ा जा सकता है, श्रद्धा तोड़ी नहीं जा सकती। 

    जो गुरु को मनुष्य के भांति जानते हैं, कबीर कहते हैं, 'ते नर कहिये अंध'—वह अंधे हैं; उनके पास आंख नहीं है।
    निश्चित ही, गुरु भी मनुष्य है, पर मनुष्य ही नहीं है। मनुष्य तो है ही। हमारे जैसा शरीर है, हमारे जैसी भूख लगती है, हमारे जैसी प्यास लगती। धूप आए तो पसीना आता-मनुष्य तो है ही। 
    गुरु को देखना, शरीर में वह निश्चित है, लेकिन शरीर ही नहीं है। श्रद्धा से ही देख पाओगे। 

    गुरु तुम्हारी श्रद्धा की आंख का अनुभव है। और श्रद्धा की आंख बुद्धि को हमेशा अंधी मालूम पड़ेगी। और जिन्होंने श्रद्धा को पा लिया, उनके किए बुद्धि की आंख से बड़ा अंधापन नहीं। 

    'महादुखी संसार में, आगे जम के बंध।'
    वे यहां तो दुखी होंगे ही, और बार-बार उन्हें मरना पड़ेगा। जम के बंध। बार-बार यम आएगा, उन्हें बांधेगा और ले जाएगा। उनके कारण यम को भी बड़ा श्रम उठाना पड़ेगा। वे बार-बार जन्मेंगे, बार-बार दुख पाएंगे और मृत्यु से बार-बार गुजरेंगे।
    जो व्यक्ति जाग जाता है, उसके जन्म और मृत्यु दोनों खो जाते हैं। 

    इसलिए अक्सर ऐसा होता है कि जब सद्गुरु पृथ्वी पर होते हैं तो पण्डित चूक जाते हैं। सहज निष्कपट मन के लोग, सरलचित्त लोग, भोले-भाले लोग लाभ ले लेते हैं।

                                           ~ परमगुरु ओशो 

    गोविंद ही साकार रूप में गुरु बन कर आता है।  विशिष्ट चेतनाएं जो समय-समय पर करुणावश गोविंद के आदेश से सदशिष्यों को परम जीवन की यात्रा में ले चलने के लिए सद्गुरु के रूप में अवतरित होते हैं।

    उनकी अपनी कोइ यात्रा नही होती बस वे करुणावश जन्म लेते हैं...। जगत के नियम के अनुसार वे भी जन्म लेते है। और सत्य को पाने के लिए साधनायें करते है। ताकि वे सोये हुए लोगों की पीड़ा को समझ सकें...। उनके बुद्धत्व का प्रकट होना एक निश्चित समय में तय रहता है।

    ऐसे ही हमारे गुरुदेव (सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी) अनेक जन्मों से सद्गुरु के रूप में परमगुरु ओशो के बाद आते रहतेे हैं। और उनके स्वप्न को विस्तार देते रहते हैं। जो वस्तुतः गोविंद की ही सेवा है।

    परमगुरु ओशो और गुरुदेव का सम्बंध कई-कई जन्मों का है।
    सन्यास दीक्षा के दौरान परम गुरु ओशो के उनसे ये कहना, कि 'मेरे शिष्यों का ख्याल रखना।' फिर शरीर छोड़ने के बाद उस रात सोते समय उनके मित्र को दर्शन देकर, उनको आशीष देकर, उनका ख्याल रखने को कहना। गुरुनानक देव जी का उनको ॐ कार दीक्षा देना। भगवान शिव का स्वयं आना, देवताओं और सन्तों का उनसे सतत सम्पर्क में रहना और सूफी बाबा के द्वारा उन्हें औलिया पद से नवाजा जाना...।

    यह सब इशारा है कि हम कितने सौभाग्यशाली है कि इतनी विशिष्ट चेतना इस समय पृथ्वी ग्रह पर गुरुदेव के रूप में उपलब्ध है। अब यह हम पर निर्भर करेगा कि हम इस सौभाग्य को परम सौभाग्य में परिवर्तित करना चाहेंगे, कि परम दुर्गन्ध में। ये हमारी स्वतंत्रता है।

    और ऐसा हो रहा है। जितने भी निगुरे और गुरुद्रोही हैं। वे गुरुदेव को अपने जैसा समझने की भूल कर रहे हैं। वे इन घटनाओं को मूढ़तापूर्ण तर्क देकर, उपहास उड़ाकर दुर्गन्ध के भागी बन रहे हैं।

    पर जो सदशिष्य हैं वे नाच रहे हैं, उनकी आंखों से अहोभाव के अश्रु झर रहे हैं, वे अपने सौभाग्य पर इतरा रहे हैं। कि गुरुदेव के रूप में ऐसी विराट चेतना इस धरा पर आई है। और उन्होंने हम अपात्रों को बिना परीक्षा के अपना शिष्यत्व प्रदान किया है!!
    अरबों लोगों में कुछ थोड़े लोगों के भीतर ही प्रभु की प्यास जगती है। जिनके भीतर प्रभु की प्यास नहीं वे गुरुनिन्दा करें। क्षमा योग्य हैं। पर जिनके भीतर प्रभु की प्यास है, वे मित्र गुरु महिमा का विरोध करें, गुरु का अपमान करें, गुरुद्रोह करें, वे क्षमा योग्य नहीं हैं। जो गुरु सत्ता को इनकार करते हैं, वे अहंकार की ही दुर्गन्ध अपने आसपास फैलाते हैं और उसी में जीते हैं। और यही उनकी नियति है।

    " गुरु को मानुष जानते, कहिए वो नर अंध,       महादुःखी संसार में, आगे जम के फंद।

    गुरुदेव ने ओशोधारा में अध्यात्म के सर्वश्रेष्ठ मार्ग 'सहज-योग' को प्रतिपादित किया है, जिसके 3 आयाम हैं - ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग। ज्ञान योग का अर्थ है स्वयं को आत्मा जानना और आनंद में जीना। भक्ति योग का अर्थ है परमात्मा को जानना और उसके प्रेम में जीना। कर्म योग का अर्थ है आत्मा और परमात्मा से जुड़कर संसार का नित्य मंगल करना।

    ओशोधारा गुरु-शिष्य प्रेम की अमर धारा है। इस गुरु-शिष्य परंपरा की परम-पावन धारा के साथ जो भी प्रभु-प्यासे, उस परमजीवन की यात्रा पर चलना चाहते हैं, उन सभी को गुरुदेव की तरफ से एक प्रेम भरा आमन्त्रण है, कि इस दुर्लभ अवसर को इस जन्म में अबकी बार न चूकें!!!
     ध्यान-समाधि से चरैवेति तक संकल्प लेकर गुरुदेव के साथ अपने परम सौभाग्य की महायात्रा का शुभारंभ करें। 🙏🙏🙏

    गुरूदेव ने एक रहस्य की बात बताई है :- बैकुंठ में आत्मानन्द है पर ब्रह्मानन्द नहीं है, क्योंकि वहां भक्ति नहीं है।
    भक्ति सिर्फ मनुष्य शरीर से ही सम्भव है।
    सुमिरन सिर्फ सांसों के साथ ही किया जा सकता है।
    सन्त सुमिरन का आनन्द लेने के लिए, सांस-सांस आत्मानन्द + ब्रह्मानन्द  (सदानन्द) का आनन्द लेने के लिए ही पृथ्वी पर बार-बार आते हैं।

    हृदय में गुरूदेव और हनुमत स्वरूप सिद्धि के साथ गोविंद का सुमिरन!
    गुरूदेव ने आध्यात्मिक जगत में महाक्रान्ति ला दी है; ओशोधारा के साधकों के जीवन के केंद्र में गुरु हैं, सत-चित-आनन्द के आकाश में उड़ान है और सत्यम-शिवम-सुंदरम से सुशोभित महिमापूर्ण जीवन है!!

    गुरुदेव द्वारा प्रदत्त सुमिरन+हनुमत स्वरूप सिद्धि अति उच्चकोटि की साधना है।
    हनुमान स्वयं इसी साधना में रहते हैं, वे सदैव भगवान श्रीराम के स्वरूप के साथ कण-कण में व्याप्त निराकार राम का सुमिरन करते हैं।

    गुरुदेव ने अब सभी निष्ठावान साधकों को यह दुर्लभ साधना प्रदान कर आध्यात्मिक जगत में स्वर्णिम युग की शुरूआत कर दी है।

    सदा स्मरण रखें:-
    गुरु को अंग-षंग जानते हुए सुमिरन में जीना और गुरु के स्वप्न को विस्तार देना यही शिष्यत्व है।
    गुरु+गोविंद+शिष्य यह सिनर्जी ही सारे अध्यात्म का सार है!!
    और यह सतत चलता रहेगा, चरैवेति.. चरैवेति...।
    ।। त्वं मातृ रूपं पितृ स्वरूपं, बन्धु स्वरूपं आत्म स्वरूपं।  
     चैतन्य रूपं पूर्णत्व रूपं, गुरुत्वं शरण्यं गुरुत्वं शरण्यं।।

                 नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां
                 नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां
                                    ~ जागरण सिद्धार्थ
                 
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    15 comments:

    1. जय गुरुदेव ।
      🙏🌹❣💜🙏

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    2. जय सतगुरु 💐
      हमारा परम सौभाग्य है कि हम सभी शिष्यों को अब तक के सबसे समर्थ सतगुरु मिले, जय सतगुरु

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    3. स्वामी अमितJanuary 3, 2020 at 6:26 PM

      गुरुदेव, आपने हम अपात्रों को स्वीकार किया!
      आपको शत-शत नमन

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    4. परम पुज्निये बड़े बाबा जी के श्री चरणॊ ँमें सादर नमन.hum सब पर आशिष बनाऐ रखे दाताजी

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    5. मेरे सद्गुरुदेव के श्रीचरणो में श्रद्धा पूर्वक प्रणाम ।

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    6. ⚘ JAI SADGURUDEV ⚘
      ⚘ JAI OSHODHARA⚘
      🙏

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    7. Parnaam sadguru..aap aapni kripa dristi mere pe banaaye rakhna..aur meri adhiatmic yatra ko safal banaaana

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    8. नमन अहोभाव सदगुरु चरणों मे

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    9. जय सदगुरु देव

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    10. ॐ सद्गुरु गोविन्दाय परमतत्वाय नारायणाय नमः🌷🌷🌷🌷🌷

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    11. 🌹बड़ी मुद्दत से मिला है तू मुर्शीद
      तेरे नक्शे कदम पर चला ये मुरीद
      अब तो जस्न ए बहारा है ज़िन्दगी
      बस तू ही इश्क़ मेरा तू ही है बंदगी🌹
      अहो भाव सदगुरु

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    12. Guru jaisa nahj ko dev jis mastak bhag so laga sev🌹🌹🌹🌹

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    13. गुरु के चरण की रज ले के।
      सद्गुरु नमः 🙏

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    14. सदगुरू के चरणो मे कोटि कोटि प्रणाम💐💐💐

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