गुरूदेव ~ प्रामाणिकता और करुणा की प्रतिमूर्ति
अब एक फर्क को खयाल में लेना। बुद्धि न भी समझे तो भी समझाने में समर्थ है और हृदय समझ भी ले तो समझाने में समर्थ नहीं है। और सदगुरु तो वही बन सकता है जिसका हृदय और जिसकी बुद्धि एक संतुलन में आ जाए। जिसके भीतर यह परम समन्वय घटित हो, यह सिन्थीसिस घटित हो। जिसकी प्रतिभा और जिसका प्रेम समतोल हो।
प्रामाणिकता सुनकर पैदा नहीं होती। कान से सुनकर पैदा नहीं होती। प्रामाणिकता का अर्थ होता है, बाहर-भीतर एक। जैसा दरिया ने कहा, साधु का लक्षण बताया कि बाहर-भीतर एक। जैसा भीतर, वैसा बाहर। जिसके भीतर बहुत-बहुत परत नहीं, जिसके भीतर बहुत मन नहीं, जिसके भीतर एक ही धारा है, अनेक-अनेक खंडों में बंटी हुई धारा नहीं है, जिसके भीतर बहुत स्वर नहीं है, भीड़ नहीं है, और जिसके चेहरे पर कोई मुखौटे नहीं हैं, जिसके पास मौलिक चेहरा है--वही जो परमात्मा ने उसे दिया, वही जो उसका अपना है। बस, निज पर ही जिसका भरोसा है। यह प्रामाणिकता है।
~ परमगुरु ओशो
गुरुदेव (सद्गुरु सिद्धार्थ औलिया जी) प्रामाणिकता और करुणा की प्रतिमूर्ति हैं। वे कृष्ण की तरह परम चैतन्य हैं, तो राम की तरह शीलवान हैं, बुद्ध की तरह ध्यानी हैं, तो पतंजलि की तरह समाधिस्थ हैं, और संतों की तरह सदा सुमिरन में रहने वाले गोविंद के प्यारे हैं। वे अनन्त कलाओं से युक्त हैं। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी हैं।
ऐसे ही दो कलाएं उनकी जो बहुत विशेष हैं। एक है प्रामाणिकता और दूसरी है करुणा।
गुरूदेव प्रामाणिकता और करुणा की प्रतिमूर्ति हैं। प्रामाणिकता :- गुरूदेव का यह विशेष गुण है वे उतना ही बोलते हैं, उतना ही शिष्यों को बताते हैं जितना वे स्वयं जानते हैं। उससे जरा भी इधर-उधर की बात नही करते। नही जानते तो स्प्ष्ट कहते है अभी ये मुझे पता नही।
एक बार कई वर्ष पहले गुरूदेव चर्चा कर रहे थे कि अभी तक भगवान शिव, इंद्र, अग्निदेव, वायु देव, गणेश, आदि से उनकी मित्रता हो गयी है। पर भगवान विष्णु से अभी आमना-सामना नही हुआ है!!
यह स्वीकरोक्ति उनकी प्रामाणिकता को दर्शाती है।
(अब उनका संपर्क भगवान विष्णु जी से हो गया है।)
हमारे गुरुभाई श्री अवध बिहारी पांडे (ओशो गुलाल जी) जी ने हमें एक दृष्टांत बताया था, जो गुरुदेव की प्रामाणिकता को दर्शाती है :
"1996 में मैं गुरुदेव से मिला था, उनकी आभा देखकर मैं प्रभावित हुआ। मैन कहा कि सत्य क्या है, कृपया मुझे बताएं।
उन्होंने कहा कि अभी तो मैंने ही नहीं जाना है, तो मैं कैसे बता सकता हूं। किसी और से पूंछो।
जब वे 5 मार्च 1997 को ब्रह्मज्ञान को उपलब्ध हुए, तब उन्होंने कहा कि अब रास्ता साफ है और मैं तुम्हें भी बताऊंगा।
एक घटना मुझे (ओशो गुलाल) और स्मरण आ रही है। वे पहले 'कौशल फोरम' लेते हुए आष्टांगिक-मार्ग पर बोलते थे, तब उसमें तथाता (स्वीकार भाव) सम्मिलित नहीं था। तथाता पर वे 1995 से बोलने लगे। मैंने कारण पूंछा तो उन्होंने बताया, कि क्योंकि पहले मैं स्वयं तथाता भाव में स्थित नहीं होता था। अब सदैव तथाता में रहता हूँ, इसलिए इस पर बोलता हूँ।"
करुणा :- गुरुदेव की यह परम करुणा ही थी, कि उन्होंने स्वामी जी को उनके नेपाल जाने के 5 दिन बाद, फिर उन्हें वापसी का एक मौका दिया था, पर हट और कृतघ्नता के कारण, उन्होंने गुरुदेव की परमकरुणा को अस्वीकार कर दिया !
गुरूदेव इस युग के युगपुरुष हैं। जैसा अस्तित्व उन पर बरस रहा है शायद ही आज तक किसी पर बरसा हो, वे गोविंद के बहुत ही प्रिय हैं, और गोविंद की सारी शक्तियां उनको सहयोग देने में सदा तत्पर हैं।
अस्तित्व का रहस्य गुरुदेव पर सतत खुलता जा रहा हैं। और वे उन सब रहस्यों को बेशर्त अपने शिष्यों पर लुटाते जा रहे हैं। अतीत के सद्गुरु इस मामले में सभी को पात्र नही समझते थे।
गुरूदेव चाहते तो मज़े से आठों पहर गोविंद के सुमिरन में जीवन जी सकते थे। उन्हें क्या जरूरत थी धोखे और अपमान के गरल पीकर अमृत बांटने की!!
पर यही विशेषता गुरुदेव की अपार करुणा को दर्शाती है, कि वे अपने शिष्यों को सब प्रदान कर देना चाहते हैं।
उनके इसी विशेष गुण करुणा के कारण हम सभी अपात्र.. हमारी कोई भी पात्रता नही है। फिर भी वे हमें वह खजाने दे रहे हैं । जिसे पाने के लिए शिष्य पूरी जिंदगी गुरु की सेवा करते रहते थे , फिर भी गुरु उन्हें नही प्रदान करते थे।
पर ओशोधारा में गुरुदेव हमें प्रभु के सारे आयामों से परिचित करा रहे हैं, और उसमें कैसे पदस्थ होना, कैसे उसके प्रेम में जीना है। उसकी कला भी सिखा रहे हैं। और साथ ही साथ प्रज्ञा कार्यक्रमों से हमें प्रज्ञावान भी बना रहे है, जिससे हम जगत में निष्काम कर्म कर सकें।
गुरुदेव ने ओशोधारा में अध्यात्म के सर्वश्रेष्ठ मार्ग 'सहज-योग' को प्रतिपादित किया है, जिसके 3 आयाम हैं - ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग। ज्ञान योग का अर्थ है स्वयं को आत्मा जानना और आनंद में जीना। भक्ति योग का अर्थ है परमात्मा को जानना और उसके प्रेम में जीना। कर्म योग का अर्थ है आत्मा और परमात्मा से जुड़कर संसार का नित्य मंगल करना।
उन्होनें हमारे लिये भोजन बना दिया है, परोस दिया है, और कौर भी हमारे मुंह में रख दी है। अब अंतिम काम उसे चबा कर उदरस्थ तो हमें ही करना होगा!! ऐसा आज तक अध्यात्म के जगत में कभी नही हुआ है। और आगे...।
सभी प्रभु के प्यासों को प्रेम निमंत्रण है। ओशोधारा आएं गुरूदेव जैसी परम विभूति के सान्निध्य का आंनद लें, ध्यान-समाधि सेे चरैवेति तक संकल्प लेकर गुरुदेव के साथ परमजीवन की यात्रा पर निकल पड़ें।
जो सुनहरा अवसर अस्तित्व ने आज उपलब्ध कराया है उसे विरोध और मूढ़ता में मत गंवाएं!!!
गुरुदेव अद्भुत बात कहते है :- "रास्ते ही नही चलते, मंज़िलें भी चलती हैं।"
गुरूदेव ने एक रहस्य की बात बताई है :- बैकुंठ में आत्मानन्द है पर ब्रह्मानन्द नहीं है, क्योंकि वहां भक्ति नहीं है।
भक्ति सिर्फ मनुष्य शरीर से ही सम्भव है।
सुमिरन सिर्फ सांसों के साथ ही किया जा सकता है।
सन्त सुमिरन का आनन्द लेने के लिए, सांस-सांस आत्मानन्द + ब्रह्मानन्द (सदानन्द) का आनन्द लेने के लिए ही पृथ्वी पर बार-बार आते हैं।
।। नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां।
नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां।।
~ जागरण सिद्धार्थ
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बहुत सुंदर कार्य कर रहे हैं आप इस ब्लॉग के माध्यम से। साधुवाद
ReplyDeleteNaman SadGuruji ko aur unke Sadsishyon ko🙏🙏💐
Deleteबहुत. सुंदर स्वामी जी, मै भी कई मौके पर सदगुरू के प्रामाणिकता का गवाह हू.
ReplyDeleteSadguru bohot prem aur karunavaan hai. Unhone mujh jaiso ko bhi namaAmrit chakhaya.. ��
ReplyDeleteSatguruve namah
सदगुरू बडेबाबा की जिवन हर घटना हमारे लिए प्रेरणा दाई हे
ReplyDeleteExcellent presentation! Thank you.
ReplyDelete⚘Jai Osho⚘
ReplyDelete⚘Jai Sadguru Dev⚘
⚘Jai Oshodhara⚘
⚘🕉⚘
🙏
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजिन्हें सद्गुरु के रूप में स्वयं गोविंद के चरणों मे बैठने का आनंद लेना हो तत्काल मुरथल पहुंचे ।
ReplyDeleteहमारा अनुभव है कि बाबा गोविंद की प्रतिमूर्ति हैं ।
बाबा के चरणों मे अहोभाव सहित प्रेमनमन
ReplyDeleteजय ओशो
गुरू और गोविन्द में भेद नहीं । मेरे गोविन्द स्वरूप गुरुदेव के पावन चरणों में नमन ।
ReplyDeleteगुरू मेरी पूजा, गुरू गोविन्द ।
ReplyDeleteगुरु मेरा पारब्रम ,गुरू भगवंत ।।
मेरे कामिल मुर्शिद के चरणों में अहोभाव पूर्वक नमन ।
गुरुदेव अक्सर कहते हैं... कल्पना करो की गुरु से मिलने से पहले आपका जीवन क्या था और अब क्या है.. 1 वर्ष से भी कम समय में पूर्ण रूप से रूपांतरित करने के लिए मेरे प्यारे सद्गुरुजी के प्रति अहोभाव🌹🙏🌹
ReplyDeleteॐ सद्गुरु गोविन्दाय परमतत्वाय नारायणाय नमः
ReplyDeleteधन्यवाद स्वामी जी आप सराहनीय कार्य कर रहे है।
ReplyDelete💐🙏💐
Bahut Sunder...
ReplyDeleteJai Osho Jai Oshodhara