गुरुदेव के संस्मरण ~ रहस्यमयी ॐकार दीक्षा
इक ओंकार सतिनाम, करता पुरखु निरभऊ।
निरबैर, अकाल मूरति, अजूनी, सैभं गुर प्रसादि!!
जप आद सचु जुगादि सच।
है भी सचु नानक होसी भी सच।।
सन 1980 में गुरुदेव परमगुरु ओशो के नवसंयास में दीक्षित हुए।
और गुरुदेव ने इसे पारंपरिक रूप से ही लिया। वर्षों वे चटाई पर बिना गद्दे के सोते रहे।
16 साल तक वे कठिन साधना करते रहे। सुबह 7 से 8 सक्रिय ध्यान और शाम 7 से 8 बजे तक कुंडलिनी ध्यान सतत करते रहे।
कभी-कभी नटराज और नादब्रह्म ध्यान भी कर लेते थे। और अनापानसती तो दिनभर करते थे। अर्थात 24 घंटे में एक क्षण भी वे बिना ध्यान के व्यर्थ नही गंवाते थे। पूरी त्वरा से अपनी साधना में लगे हुए थे।
गुरुदेव इस दौरान अन्य संतों से भी मिलने जाते रहते थे।
स्वामी अगेह भारती जी के यहां एक संत पधारे थे जिनका नाम अरविंद पांडे था। जिन्हें लोग प्रभु जी कहकर बुलाते थे। गुरुदेव उनसे मिलने उनके घर पहुंचे।
गुरुदेव से उनकी वार्ता हुई। उन्होंने कहा - आप 16 साल से सक्रिय ध्यान कर रहे हैं, आखिर क्या पाया आपने?
और ओशो ने कहां कहा है कि सक्रिय ध्यान से बद्धत्व मिलेगा? बल्कि ओशो ने अपनी पुस्तक " ध्यानयोग - प्रथम और अंतिम मुक्ति' में तो स्प्ष्ट कहा है कि सक्रिय ध्यान, और कुंडलिनी ध्यान, ध्यान नही हैं। इसलिए आपने 16 साल अपने व्यर्थ ही गंवाएं!
गुरुदेव चौंके! जैसे किसी ने उन्हें झकझोर दिया। और वे सोच में पड़ गए, कि बात तो वे सही ही कह रहे हैं मैंने 16 साल तक पूरी त्वरा से साधना की पर गति तो कोई हुई नही! क्या मैने व्यर्थ समय गंवाया!!
गुरुदेव ने सक्रिय ध्यान करना बंद कर दिया। और चिंतित रहने लगे, कि अब क्या होगा? तथा मैं सत्य को अब कैसे पा सकूंगा?
ओशो भी अब शरीर में नहीं हैं। कौन मेरा मार्गदर्शन करेगा? गुरुदेव अपने आपको हारा महसूस करने लगे। और वे निराशा से भरने लगे। और एक दिन उन्होंने निर्णय लिया, कि अब मैं कोई ध्यान नहीं करूंगा यह अंतिम रात है। यह निर्णय लेकर गुरुदेव सो गए।
यह 13 जनवरी 1997 की रात थी। गुरुदेव बिलासपुर के अपने घर के प्रथम तल के कमरे में रहते थे। रात दो बजे जैसे किसी शक्ति ने उन्हें जगाया और बगल वाले कमरे में जाने का संकेत दिया। उस कमरे में गुरुनानक देव की तस्वीर थी। जो मात्र सांयोगिक नही था, इसका भी रहस्य था !!
गुरुदेव ने देखा कि सारा कमरा एक अद्भुत प्रकाश से भरा हुआ है। और अद्भुत दिव्य संगीत से गुंजायमान हो रहा है। गुरुदेव ने वहां साक्षात 'गुरुनानक देव' जी की दिव्य उपस्थिति को अनुभव किया। और उनकी दिव्य आवाज़ आयी - "सुनो! यही ओंकार है।" और गुरुदेव ओंकार में डूब गए।
इस तरह गुरुदेव की परम पावन ओंकार दीक्षा संपन्न हुई। और साथ ही साथ उस परम पावन "दिव्य सत्ता" ने गुरुदेव को समाधि क्या है? और समाधि में क्या होता है? इस परम रहस्य का भी स्प्ष्ट आभास करा दिया। तन्द्रा से जागने के पश्चात गुरुदेव को समाधि का स्प्ष्ट ज्ञान हो चुका था। पर अभी संबोधि घटित नही हुई थी। पर सिद्धांततः गुरुदेव को पता चल गया था कि संबोधि क्या है?
इस अद्भुत अनुभव के बाद गुरुदेव को दिव्य खुमारी चढ़ गई थी। और यह खुमारी 13 जनवरी से 5 मार्च तक सतत जारी रही। और 5 मार्च को गुरुदेव को अद्वैत की, सर्वत्र व्याप्त एक ही सत्ता की गहन अनुभूति हुई। पूर्णता का बोध हुआ। इस तरह 5 मार्च 1997 को गुरुदेव को संबोधि की परम घटना घटी।
और फिर परम गुरु ओशो के निर्देशानुसार गुरुदेव ने गुरु-शिष्य परंपरा पर आधारित ओशो के सपनो की ओशोधारा (जो वर्तमान में “समर्थगुरु धारा” के नाम से जानी जाती है।) का निर्माण किया। और 28-21 तल के समाधि और प्रज्ञा के सुंदर कार्यक्रमों की रचना की। जहां सदशिष्य गुरु के चरणों को हृदय में धारण कर, सतत गोविंद के सुमिरन में रहते हुए अपने प्यारे गुरुदेव के स्वप्न को, जो वस्तुतः ओशो का ही स्वप्न है, पूरा करने में पूरी तरह से दृढ़ संकल्पित हैं।
गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु ,गुरुर देवो महेश्वरः।
गुरुर साक्षात परम ब्रह्म , तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
ध्यान मूलं गुरुर मूर्ति , पूजा मूलं गुरु पदम्।
मंत्र मूलं गुरुर वाक्यं , मोक्ष मूलं गुरुर कृपा।।
~ जागरण सिद्धार्थ
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Very beautiful!
ReplyDeleteWow!! We are so lucky that we are in the feet of a live master in Oshodhara and in their guidencg connected with this lovly beautiful mystical Existence. Gratitude Naman.
ReplyDeleteVery nice .i am lucky
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteParam guru trivir,bade babaji aur parmatma ko Anant sadarpoorwak koti koti pranam.
ReplyDeleteJai bade babaji aur Jai oshodhara.
Jai osho
ReplyDeleteJai guru Dev
Jai oshodhara
राम नाम गुण गाई ले मीता, हरि सिमरत तेरी लाज रहे। हरि सिमरत तेरी लाज रहे, हरि सिमरत जम कछु न कहें।
ReplyDeleteSadguru Dev ke shree charno mein naman
ReplyDeleteऐसे सदगुरु का शिष्यत्व ग्रहण करना जीवन का परम सौभाग्य है।
ReplyDelete।। जय ओशो ।।
।। जय गुरुदेव ।।
।। जय ओशोधारा ।।
ऐसे गुरू को बलि बलि जाइये
ReplyDeleteआप मुकत मोहे तारे ।
गुरूदेव के श्रीचरणो में श्रद्धा पूर्वक नमन ।
Good
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