गुरुदेव के संस्मरण ~ बाबा भजन ब्रह्मचारी
बाबा भजन ब्रह्मचारी बंगाल के प्रसिद्ध संत हुए। उनके हजारों शिष्य थे। वे सदा भक्तिमार्ग की अनुशंसा करते थे।
गुरुदेव (सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी) उनसे मिलने जाया करते थे। उस समय गुरुदेव गैरिक वस्त्र और ओशो की माला पहनते थे, इस कारण आसानी से ओशो के शिष्य के रूप में उनकी पहचान हो जाती थी।
उन दिनों ओशो की जबरदस्त आलोचना का दौर चल रहा था। और उनके सन्यासियों को सही दृष्टि से नही देखा जाता था।
पर बाबा भजन बह्मचारी गुरुदेव को अपने शिष्यों से ज्यादा प्रेम करते थे। और अकेले में उन्हें अपने पास बिठाकर अपना यह गीत अक्सर सुनाते थे -- " भक्ति का मारग सीधा रे, कहे बाबा ब्रह्मचारी । "
पर गुरुदेव उनसे कहते थे, मेरा तो ध्यान का मार्ग है भक्ति का नहीं। मेरे गुरु (ओशो) ध्यान सिखाते हैं।
वे मुस्कराते हुए कहते - तू नहीं जानता रे। " भक्ति का मार्ग बड़ा सीधा है। ज्ञान के मार्ग में बहुत भटकाव हैं। एक दिन भक्ति के मार्ग से ही तुझे पहुंचना है। "
गुरुदेव कहते है कि तब मैं नही समझ पाता था, पर अब मैं देखता हूँ कि भक्ति मार्ग और ज्ञान मार्ग में कोई अंतर नहीं। अंत में दोनों एक ही मंज़िल पर पहुंचा देते हैं।
पर केवल ज्ञान मार्ग में बहुत भटकाव है, अक्सर ज्ञानी भटक जाते हैं।
परमगुरु ओशो कहते हैं : " अज्ञानी तो अंधकार में भटकते हैं पर ज्ञानी महाअंधकार में भटक जाते हैं।"
इस दुर्भाग्य से साधक बच सकें इसके लिए गुरुदेव ने अध्यात्म में पहली बार नया प्रयोग किया है, ज्ञान,भक्ति और कर्मयोग तीनों की synergy कर अध्यात्म जगत में क्रांति ला दी है।
ज्ञान से आत्मा को जानो और और भक्ति से उसके प्रेम का आनन्द लो, और प्रज्ञापूर्ण होते हुए कर्मयोग का मज़ा लो ; तीनों की सिनर्जी।
यह अध्यात्म के इतिहास में प्रथम बार हो रहा है।
आध्यात्मिक जगत में गुरुदेव का यह अमूल्य अनुदान है। और आने वाली सदशिष्यों की पीढ़ी उनके इस अनुदान पर आंसुओं का अहोभाव व्यक्त करेगी। और उन सौभाग्यशाली सदशिष्यों पर गर्व करेगी जो उनके साथ पूरी ईमानदारी और निष्ठा से चले।
अब ये हमारे शिष्यत्व की परीक्षा है, कि हम गुरुदेव के साथ और उनके निर्देशानुसार साधनापथ में कितनी ईमानदारी और समर्पण के साथ गतिशील होते हैं!!!क्योंकि "उनकी" तरफ से देने में कोई कमी नहीं है।
गुरुदेव ने ओशोधारा में अध्यात्म के सर्वश्रेष्ठ मार्ग 'सहज-योग' को प्रतिपादित किया है, जिसके 3 आयाम हैं - ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग। ज्ञान योग का अर्थ है स्वयं को आत्मा जानना और आनंद में जीना। भक्ति योग का अर्थ है परमात्मा को जानना और उसके प्रेम में जीना। कर्म योग का अर्थ है आत्मा और परमात्मा से जुड़कर संसार का नित्य मंगल करना।
हृदय में गुरूदेव और हनुमत स्वरूप सिद्धि के साथ गोविंद का सुमिरन!
अर्थात, मैं श्री गुरुदेव के चरण कमल की वंदना करता हूँ, जो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने अन्धकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं।
💐 गुरुरवै शरण्यं गुरुरवै शरण्यं
गुरुरवै शरण्यं गुरुरवै शरण्यं 💐
(बाबा भजन ब्रह्मचारी जी का आश्रम जहां गुरुदेव उनसे मिलने जाया करते थे) 👇
https://youtu.be/92jVxzn7bGU
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Shat shat naman mere Kamil Murshid.
ReplyDeleteGyan yog, Bhakti yog, Karma yog..
ReplyDeleteBade baba k Charno me Naman
ऐसा आध्यात्मिक जगत में इतने सुव्यवस्थित ढंग से पहली बार हो रहा है।
ReplyDelete।। जय गुरुदेव ।।
ओउम् गुरूवे नम:।
ReplyDeleteमेरे सद्गुरु बड़े बाबा औलिया जी के श्रीचरणो में बारम्बार नमन ।
ReplyDelete🙏🙏💜💜❣❣🌹🌹🙏🙏
प्यारे गुरदेव के चरणों मे बार बार अहोभाव पूर्वक नमन
ReplyDeleteअहोभाग्य ओशोधारा सन्यासी होने का अवसर मिला जो इस सृष्टि में केवल गोविन्द की कृपा से ही प्राप्त हो सका ।
काश ये अवसर पूरे भारत सहित दुनिया को भी मिल पाता
। पर बिन प्रभु कृपा मिलय नही संता ।
प्रणाम ओशो प्रणाम ओशोधारा
प्रणाम गुरुदेव
स्वामी अमृतकीर्ति
बहुत भागयशाली है हम सभी शिष्य जो पूर्ण सदगुरुदेव के सानिध्य में साधना कर रहे है। कोटि कोटि अहो भाव और प्रणाम प्यारें गुरुदेव और ओशोधारा संघ को������
ReplyDeleteसद्गुरु शरणं गच्छामि 🙏
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