बैकुंठ के वासी
एक ऐसा दिव्य लोक जहां कोई दुख, पीड़ा संताप नही।
जहां सिद्ध और सन्त सदा आत्मानंद और ब्रह्मानन्द में लीन रहते हैं। जहां अखंड आंनद है...।
और जिसके अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं।
समस्त सन्यासियों,भक्तों और गृहस्थों की एक ही कामना होती है कि कैसे उस पवित्र लोक में पहुंचा जाए!!
पर वहां पहुचना इतना आसान नही।
वहां पहुंचने का सबसे सरल तरीका एक ही है , ऐसे सद्गुरु का संग-साथ कर लो जो वहां से आए हों, उन्हें अपने अंग-षंग, अपने नाल बना लो।
यह एक ऐसा उच्च लोक है जहां से समय-समय पर
परिस्थिति और युग की अनिवार्यता के अनुसार सद्गुरु को चुन कर भेजा जाता है।
जितनी कठिन परिस्थिति उतनी ही विशिष्ट चेतना से अनुरोध किया जाता है। और वे विशिष्ट चेतनाएं करुणावश हर काल में हमारे लिए, अमृत बांटने के लिए अवतरित होती रहती हैं। हालांकि हम उन्हें बदले में कष्ट, धोखा,द्रोह और अपमान का जहर ही देते हैं...
पर गजब की उनकी करुणा है!
फिर भी वे बार-बार हमारे उद्धार के लिए आती रहती हैं।
ऐसे ही जब चारों तरफ धर्म के नाम पर आडंबर फैलता जा रहा था, धर्म की आग पर राख छा गयी थी, ऐसे में एक विशिष्ट चेतना ओशो के रूप में उस दिव्य लोक से अवतरित हुई।
और उन्होंने एक बवंडर की तरह मान्यता पर आधारित समस्त धर्मों की इमारत को नींव समेत नेस्तनाबूद कर दिया। और सन्तों, ऋषियों की वाणी को फिर से मूल रूप में स्थापित किया।
धर्म का पुनरुद्धार किया। उन्होंने जमीन जो पत्थरों, ऊसरों से भर गई थी, उसे साफ कर बीज बोने के लायक बनाया।
और यह बहुत ही कठिन कार्य था। और यह असम्भव कार्य ओशो जैसी विशिष्ट चेतना ही कर सकती थी।
अब दूसरा महत्वपूर्ण कार्य था "ॐकार" रूपी बीज बोने का...
हालांकि यह कार्य भी वे कर सकते थे, पर उन्होंने यह नही किया, क्योंकि इस कार्य के लिए दूसरी विशिष्ट चेतना का चयन किया गया है। और वह विशिष्ट चेतना हैं, गुरुदेव (सद्गुरु सिद्धार्थ औलिया जी)।
आगे का महत्वपूर्ण योगदान के लिए बैकुंठ से उन्हें चुना गया है।
इसीलिए परम गुरु ओशो ने जब गुरुदेव को सन्यास दिया था, तब उन्हें स्मरण दिलाया था - " मेरे सन्यासियों का ख्याल रखना"।
जिस सदी में आज हम रह रहे है यह मानव चेतना के उच्चतम विकास की सदी है। और यह घड़ी हर 2500 साल बाद पृथ्वी पर आती है।
इस महान घड़ी में हम चेतना की जितनी ऊंचाई पर जाना चाहे जा सकते हैं ।
यदि हम शिष्य बन सकें और गुरुदेव के हाथों में अपना हाथ दे सकें, तो परमात्मा हम पर भी बरसने को पूरी तरह से तैयार है। निर्णय आपका है!!
ऐसे अनूठे, ऐसी विराट चेतना का शिष्यत्व प्राप्त होना अंनत-अंनत जन्मों का परम सौभाग्य है!
कृपया इस दुर्लभ अवसर का लाभ उठा लें!!
गुरुदेव ने ओशोधारा में अध्यात्म के सर्वश्रेष्ठ मार्ग 'सहज-योग' को प्रतिपादित किया है, जिसके 3 आयाम हैं - ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग। ज्ञान योग का अर्थ है स्वयं को आत्मा जानना और आनंद में जीना। भक्ति योग का अर्थ है परमात्मा को जानना और उसके प्रेम में जीना। कर्म योग का अर्थ है आत्मा और परमात्मा से जुड़कर संसार का नित्य मंगल करना।
आप सभी को प्रेमभरा आमंत्रण है कि
ओशोधारा में आएं और ध्यान-समाधि कार्यक्रम के द्वारा अध्यात्म की सुनहरी यात्रा में गुरुदेव के साथ, जहां गोविंद का महारास सतत चल रहा है, सम्मिलित होकर अपने जन्म को इस बार सार्थक कर लें।
गुरूदेव ने एक रहस्य की बात बताई है :- बैकुंठ में आत्मानन्द है पर ब्रह्मानन्द नहीं है, क्योंकि वहां भक्ति नहीं है।
भक्ति सिर्फ मनुष्य शरीर से ही सम्भव है।
सुमिरन सिर्फ सांसों के साथ ही किया जा सकता है।
सन्त सुमिरन का आनन्द लेने के लिए, सांस-सांस आत्मानन्द + ब्रह्मानन्द (सदानन्द) का आनन्द लेने के लिए ही पृथ्वी पर बार-बार आते हैं।
अंनत संसार समुद्र तार नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्यां।
वैराग्य साम्राज्यद पूजनाभ्यां नमो नमः
श्री श्री गुरु पादुकाभ्यां।।
।। ॐ विष्णवे नम: ।।
गुरुरवै शरण्यं गुरुरवै शरण्यं
गुरुरवै शरण्यं गुरुरवै शरण्यं
~ जागरण सिद्धार्थ
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Baba ke charno me parnam
ReplyDeleteBaba 🙄 namaskar
ReplyDeleteसदगुरु शरणम् गच्छामि 🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteShat pratishat Satya Lathan...
ReplyDeleteसद्गुरु के श्री चरणों में नमन ।
ReplyDeleteप्यारे सदगुरू बड़े बाबा औलिया जी के श्रीचरणो अहोभाव ,प्रणाम ,नमन ।
ReplyDeleteसतगुरु औलिया बाबा के पावन चरणों में भक्ति भाव से नमन ��������������
ReplyDeleteसतगुरु औलिया बाबा के पावन चरणों में भक्ति भाव से नमन ����������������
ReplyDeleteParnam baba
ReplyDelete
ReplyDeleteमंगलमय महिमामय स्वामी
पालनहार सदा निष्कामी
नाम की ज्योति जलावनहारा
सद्गुरु ही गोविन्द हमारा
जय ओशो जय ओशोधारा ।।
बहुत ही सुंदर आलेख। प्यारे सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जैसी विशिष्ट चेतना का जीवन में प्रदार्पण एक दुर्लभ संयोग है। कष्ट, धोखा, षड़यंत्र, द्रोह और अपमान का जहर पीने के बाद भी प्यारे सद्गुरु अपने शिष्यों और साधकों पर अपना सब कुछ न्योछावर किए जा रहे हैं।
ReplyDeleteSadguru ji ke sricharno mein koti koti naman.
ReplyDeleteहे गुरुदेव!
ReplyDeleteहमें सदा अपने श्री चरणों में रखें।
🙏
ReplyDeleteओउम् गुरूवे नम:।
ReplyDeleteThanks & Gratitude Respected Beloved Sadgurudev.
ReplyDeleteSadguru shiri charno main naman
ReplyDeleteThank u swa.Jagran hi...wonderful abhivyakti. JAI OSHO.
Sadguru babaji ke Sri charno me koti koti naman
ReplyDeleteमेरे परमपूज्य गुरुदेव के श्रीचरणो में कोटि-कोटि नमन ।
ReplyDelete🙏🙏❣❣💜💜🌹🌹🙏🙏