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    5 मार्च ओशोधारा दिवस ~ सदशिष्यों का बसंतोत्सव

    सभी प्रभु के प्रेमियों के आध्यात्मिक बसन्त का दिवस है! 5 मार्च "ओशोधारा दिवस"।
    जन्मों-जन्मों में कोई बुद्ध होता है और सदियों-सदियों में कोई सद्गुरु होता है। सद्गुरु का होना और इस धरा पर आना गोविंद की परम करुणा के कारण होता है। वह प्रभु प्यासी आत्माओं को अपने महारास में शामिल करने के लिए सद्गुरुओं को विशेष महिमा देकर इस धरा पर भेजता है। जो जन्मों-जन्मों से भटकती आत्माओं को एक झटके में जन्म-मरण के चक्र से पार कर देते हैं।
    ऐसी अद्वितीय महिमा और गरिमा है सद्गुरुओं की।
    गुरूदेव (सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी) का बुद्धत्व को उपलब्ध होना आध्यात्मिक जगत की महानतम घटना है। अनन्त अनन्त जन्मों के प्रभु प्यासों की प्यास बुझाने के लिए गोविंद ने गुरुदेव को इस धरा पर भेजा है।
    गुरूदेव का बुद्धत्व अस्तित्व की तरफ से, परम गुरु ओशो की तरफ से, प्रभु के सच्चे प्रेमियों को असली उपहार है और सन्देश है कि अबकी मत चूकना! यह आध्यात्मिक बसन्त की घड़ी सदियों-सदियों में आती है!!
    5 मार्च 1997 के परम पावन दिन गोविंद की  महाकरुणा इस पवित्र धरा पर बरसी। जो आज तक के पूरे आध्यात्मिक इतिहास को बदलने वाली सिद्ध हुई। इस परम पावन दिन गुरूदेव (सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी) को संबोधि की परम घटना घटी।
    जिसे ओशोधारा में सभी सदशिष्य "ओशोधारा दिवस" के रूप में मनाते हैं। जिसे "आध्यात्मिक-बसंत-दिवस" भी कह सकते है। सभी प्रभु की प्यासी रूहों के जीवन में बसन्त के आगमन का दिवस है यह।
    यह दिवस सदशिष्यों के लिए एक साथ होली और दीवाली दोनों है।

    गुरुदेव (सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी)  ने पूरे आध्यात्मिक जगत को बदल कर रख दिया है। कितना कठिन था, ध्यान, साक्षी तथाता समाधि और सुमिरन! हम कभी सोच भी नहीं सकते थे कि हम कृष्ण के चैतन्य, बुद्ध के ध्यान, पतंजलि की समाधि और संतों के सुमिरन को जान पाएंगे!! और उसमें पदस्थ हो पाएंगे!!! पर गोविंद और परम गुरु ओशो की ऐसी कृपा ऐसी करुणा बरसी की उन्होंने परम विभूति गुरुदेव (सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी) को इस धरा पर हमारे लिए भेजा जिन्होंने हमें अध्यात्म की उस परम ऊंचाई पर पहुंच दिया है और सतत पहुंचाते जा रहे है.., जिसकी हमारी कोई भी पात्रता नहीं है, अगर गुरूदेव न होते तो हमारे कितने जन्म दुख के अंधेरों में ही चले जाते। क्योंकि परम गुरु ओशो को समझना हमारे वश की बात नहीं थी। हे गोविंद! हे प्यारे ओशो! आपका शुक्रिया. शुक्रिया.. शुक्रिया... जो गुरूदेव को हमारे लिए आपने भेजा।
    बहुत से मित्र गुरुदेव पर, ओशोधारा के कार्यक्रमों पर आरोप लगाते हैं कि मैंने इतने समाधि कार्यक्रम किये, पर कुछ हुआ नहीं, सारे कार्यक्रम बेकार हैं। उनके ये मूढ़तापूर्ण वक्तव्य उसी तरह के हैं जैसे एक क्लास में 40 विद्यार्थी हो, पढ़ाने वाले एक सा शिक्षक हो, एक सा माहौल हो फिर भी 30 बच्चे पास हो जाएं 10 फेल हो जाये और फेल हुए बच्चे स्कूल पर तथा शिक्षक पर आरोप लगाये कि सब बेकार है ! हमारे साथ धोखा हुआ है!
    ऐसी बचकानी प्रज्ञाविहीनता को क्या कहा जायेगा!!

    गुरुदेव अगर ओशोधारा में हमारी परीक्षा लेकर के समाधि कार्यक्रमों में प्रवेश देते तो गारंटी है एक भी साधक प्रवेश नही कर पाता!
    यह उनकी परम करुणा है कि वे कहते है बस चलते रहो एक दिन बात बन जाएगी।
    और ऐसा ही है जरूरी नहीं आपने निर्वाण समाधि कर ली तो आपको निर्वाण घट ही जाए!
    अब आप सब व्यर्थ कहकर छोड़ दें तो आप मूढ़ हैं! क्योंकि हो सकता है परमपद कार्यक्रम में आपकी निर्वाण की स्थित आये! जरूरी नही की आपने परमपद कर लिया तो आपकी परमपद की स्थिति घट ही जाए, अगर आपने छोड़ दिया तो आप महामूढ़ हैं!! लेकिन यदि आप चलते रहे तो हो सकता है चरैवेति में आपकी परमपद में प्रतिष्ठा हो जाये!

    लेकन चुनाव स्वतंत्रता सदा आपकी है यदि आप उन मूर्ख विद्यार्थियों की भांति स्कूल पर शिक्षक पर दोषारोपण कर यात्रा बंद कर देते हैं तो आप अतीत की  अपनी सारी साधना तो व्यर्थ करेंगे ही, भविष्य की संभावना को भी खो देंगे। और आपकी हालत वही हो जाएगी कि 'धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का।'

    लेकिन अगर आप गुरुदेव के प्रति अहोभाव के साथ उनके कहेनुसार पूरी निष्ठा के साथ साधना का निरंतर अभ्यास करते रहे तो निश्चित ही गुरूदेव आपको अध्यात्म की उन ऊंचाइयों पर ले जाएंगे जहां विरले सन्त ही पहुंचे हैं। एक तरफ आप अपने केंद्र सत्-चित-आनंद में प्रतिष्ठित होंगें वही दूसरी तरफ आपके जीवन में सत्यम-शिवम-सुंदरम की सुगंध भी फैलेगी।

    सभी प्रभु के प्यासों को आवाहन है ऐसी मंगल घड़ी, ऐसा बसन्त गुरुदेव ने ओशोधारा के रूप में उपलब्ध करा दिया है। यह दुर्लभ संयोग जो उपलब्ध हुआ है अबकी मत गंवाना। अबकी चूके तो फिर 2500  साल का अंतहीन इंतजार !!!

    हरि के पीछे जो जाता है, रीता रीता रह जाता है।
    जो झुका संत के चरणों में, पीछे-पीछे हरि आ जाता।
    गुरू के पीछे गोविन्द खड़ा, बाकी सब धरम-करम पचड़ा।
    अथ सद्गुरु शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि।।
     गुरुदेव ने ओशोधारा में अध्यात्म के सर्वश्रेष्ठ मार्ग 'सहज-योग' को प्रतिपादित किया है, जिसके 3 आयाम हैं - ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग। ज्ञान योग का अर्थ है स्वयं को आत्मा जानना और आनंद में जीना। भक्ति योग का अर्थ है परमात्मा को जानना और उसके प्रेम में जीना। कर्म योग का अर्थ है आत्मा और परमात्मा से जुड़कर संसार का नित्य मंगल करना।

    जो भी सच्चे साधक है वे ओशोधारा में ध्यान समाधि से चरैवेति तक संकल्प लेकर यात्रा करें, और जो चरैवेति कर रहें हैं, वे सतत करते रहें...।

    गुरूदेव ने एक रहस्य की बात बताई है :- बैकुंठ में आत्मानन्द है पर ब्रह्मानन्द नहीं है, क्योंकि वहां भक्ति नहीं है।
    भक्ति सिर्फ मनुष्य शरीर से ही सम्भव है।
    सुमिरन सिर्फ सांसों के साथ ही किया जा सकता है।
    सन्त सुमिरन का आनन्द लेने के लिए, सांस-सांस आत्मानन्द + ब्रह्मानन्द  (सदानन्द) का आनन्द लेने के लिए ही पृथ्वी पर बार-बार आते हैं।

    हृदय में गुरूदेव और हनुमत स्वरूप सिद्धि के साथ गोविंद का सुमिरन!
    गुरूदेव ने आध्यात्मिक जगत में महाक्रान्ति ला दी है; ओशोधारा के साधकों के जीवन के केंद्र में गुरु हैं, सत-चित-आनन्द के आकाश में उड़ान है और सत्यम-शिवम-सुंदरम से सुशोभित महिमापूर्ण जीवन है!!

    गुरुदेव द्वारा प्रदत्त सुमिरन+हनुमत स्वरूप सिद्धि अति उच्चकोटि की साधना है।
    हनुमान स्वयं इसी साधना में रहते हैं, वे सदैव भगवान श्रीराम के स्वरूप के साथ कण-कण में व्याप्त निराकार राम का सुमिरन करते हैं।

    गुरुदेव ने अब सभी निष्ठावान साधकों को यह दुर्लभ साधना प्रदान कर आध्यात्मिक जगत में स्वर्णिम युग की शुरूआत कर दी है।

    सदा स्मरण रखें:-
    गुरु को अंग-षंग जानते हुए सुमिरन में जीना और गुरु के स्वप्न को विस्तार देना यही शिष्यत्व है।
    गुरु+गोविंद+शिष्य यह सिनर्जी ही सारे अध्यात्म का सार है!!
    और यह सतत चलता रहेगा, चरैवेति.. चरैवेति...।
         
    चरण कमल तेरे धोए धोए पीवां
    मेरे सतगुरु दीन दयाला
    कुर्बान जाऊं उस वेला सुहावा 
    जित तुम्हरे द्वारे आया
    चरण कमल तेरे धोए धोए पीवां मेरे सतगुरु दीन दयाला।

              गुरुरवै शरण्यं, गुरुरवै शरण्यं
              गुरुरवै शरण्यं, गुरुरवै शरण्यं

                                        ~ जागरण सिद्धार्थ

                     

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    5 comments:

    1. ⚘JAI SADGURUDEV ⚘
      ⚘ JAI OSHODHARA ⚘
      🙏

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    2. Nice Explained about Respected Beloved Sadgurudev. Thanks & Gratitude Sadgurudev.

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    3. ॐ परमतत्वाय नारायणाय
      गुरुभ्यो नमः

      प्यारे ओशो और प्यारे सद्गुरु बड़ेबाबा के चरणों मे बार बार नमन अहोभाव ।
      ओशो जागरण जी का धन्यवाद ।।

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    4. सदगुरु के चरणो मे कोटि कोटि प्रणाम

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