यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत...
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।
कृष्ण जैसे लोग करुणा से पैदा होते हैं। वासना से नहीं, करुणा से। वासना और करुणा का थोड़ा भेद समझें, तो यह सूत्र समझ में आ जाएगा।
वासना होती है स्वयं के लिए, करुणा होती है औरों के लिए। वासना का लक्ष्य होता हूं मैं, करुणा का लक्ष्य होता है कोई और। वासना अहंकार केंद्रित होती है, करुणा अहंकार विकेंद्रित होती है। ऐसा समझें कि वासना मैं को केंद्र बनाकर भीतर की तरफ दौड़ती है; करुणा पर को परिधि बनाकर बाहर की तरफ दौड़ती है।
करुणा, जैसे फूल खिले और उसकी सुवास चारों ओर बिखर जाए। करुणा ऐसी होती है, जैसे हम पत्थर फेंकें झील में; वर्तुल बने, लहर उठे और दूर किनारों तक फैलती चली जाए।
करुणा एक फैलाव है, वासना एक सिकुड़ाव है। वासना संकोच है, करुणा विस्तार है।
कृष्ण कहते हैं, करुणा से; युगों-युगों में जब धर्म विनष्ट होता है, तब धर्म की पुनर्संस्थापना के लिए; जब अधर्म प्रभावी होता है, तब अधर्म को विदा देने के लिए मैं आता हूं।
यहां ध्यान रखें कि यहां कृष्ण जब कहते हैं, मैं आता हूं, तो यहां वे सदा ही इस मैं का ऐसा उपयोग कर रहे हैं कि उस मैं में बुद्ध भी समा जाएं, महावीर भी समा जाएं, जीसस भी समा जाएं, मोहम्मद भी समा जाएं। यह मैं व्यक्तिवाची नहीं है। असल में वे यह कह रहे हैं कि जब भी धर्म के जन्म के लिए और जब भी अधर्म के विनाश के लिए कोई आता है, तो मैं ही आता हूं। इसे ऐसा समझें, जब भी कहीं प्रकाश के लिए और अंधकार के विरोध में कोई आता है, तो मैं ही आता हूं। यहां इस मैं से उस परम चेतना का ही प्रयोजन है।
जब भी कोई महा करूणावान चेतना पृथ्वी पर उतरती है, तो जिनके हृदय भी पवित्र हैं, उनके हृदयों में कंपन शुरू हो जाते हैं। उन तक खबरें पहुंच जाती हैं। वह लहर, वह झील पर पड़ा हुआ पत्थर उन तक लहरें ले जाता है। वे उस ध्वनि तरंग को समझ पाते हैं, वे भागे हुए चले आते हैं।
~ परमगुरु ओशो
सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी इस युग की महानतम विभूति हैं। आज सारी मानवता महासंकट के दौर से गुज़र रही है।
आज कृष्ण की देशना (ज्ञानयोग+भक्तियोग+कर्मयोग) सारी मानवता के लिए प्रासंगिक और अनिवार्य हो गयी है, उसकी पुनर्स्थापना के लिए गुरुदेव (सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी) को
गोविंद की तरफ से खास चुन कर, बैकुंठ से इस पृथ्वी पर भेजा गया हैं।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
जब भी कोई विशेष परम करुणावान चेतना इस पृथ्वी पर आती है, तो सारी शक्तियां (देवी-देवता) , सन्तों, सिद्धों के मिस्टिक ग्रुप्स उस विशेष चेतना के सहयोग के लिए स्वतः ही तत्पर हो जाते हैं।
परमगुरु ओशो का उनसे कहना - "मेरे सन्यासियों (सदशिष्यों) का ख्याल रखना।"
अनेक सन्तों, सिद्धों से उनका मिलना और सभी का उनसे विशेष लगाव होना।
जगत की व्यवस्था में अनेक मिस्टिक ग्रुप शक्तियां निरंतर सहयोग करनेे में लगी हुईं हैं, जिसमें खास तौर पर भगवान शिव,भगवान विष्णु और सारा देवमण्डल, सूफी मिस्टिक ग्रुप, सप्त ऋषि मंडल...।
और सभी उन्हें सहयोग देने को आतुर है।
इस सदी के सूफी जगत की महानतम हस्ती कलंदरों के कलन्दर सूफी बाबा शाह कलंदर की उन पर विशेष कृपा का होना और शरीर छोड़ने से पहले अपनी सारी सिद्धियां उनको ट्रांसफर कर उन्हें सूफी जगत की विशेष पदवी "औलिया" पद से नवाजना।
तथा दो-टूक शब्दों में गुरुदेव के बारे में ओशोधारा के सन्यासी विकास जी से स्पष्ट कहना :-
" तुम्हारा गुरु जानते हो कौन है? वह अध्यात्म की किस ऊंचाई पर है?
आज अध्यात्म की जिस ऊंचाई पर तुम्हारा गुरु विद्यमान है अगर सारा हिन्द (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश.. आदि) भी तुम्हारे गुरु के कदम चूमे, तो भी कम है।
सूफी बाबा ने ओशोधारा के सन्यासी मुहम्मद जलील जी से भी कहा था - " जाओ ओशोधारा आश्रम में जो भी आये तो उन्हें बताना की जो भी तुम्हारे गुरु (कामिल मुर्शिद ओशो सिद्धार्थ औलिया जी) से जुड़ेंगें, सबके सब पार हो जाएंगे।
गुरुदेव ने ओशोधारा में अध्यात्म के सर्वश्रेष्ठ मार्ग 'सहज-योग' को प्रतिपादित किया है, जिसके 3 आयाम हैं - ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग। ज्ञान योग का अर्थ है स्वयं को आत्मा जानना और आनंद में जीना। भक्ति योग का अर्थ है परमात्मा को जानना और उसके प्रेम में जीना। कर्म योग का अर्थ है आत्मा और परमात्मा से जुड़कर संसार का नित्य मंगल करना।
गुरुदेव ने भगवान कृष्ण की इस महानतम देन ज्ञानयोग+भक्तियोग+कर्मयोग को व्यवहारिक रूप से, पूर्ण वैज्ञानिकता के साथ 28 समाधियों और 21 प्रज्ञा कार्यक्रमों के माध्यम से, सभी प्रभु के प्यासों के लिए ओशोधारा में प्रायोगात्मक रूप से प्रकट कर, आध्यात्मिक जगत में महा चमत्कार कर दिया है!!
अब कोई भी प्रभु का प्यासा ओशोधारा के समाधि और प्रज्ञा कार्यक्रमों के माध्यम से भगवान कृष्ण के ज्ञानयोग+भक्तियोग+कर्मयोग को अपने जीवन में उतार सकता है, जी सकता है।
आध्यात्मिक जगत में कृष्ण के बाद ऐसी घड़ी, ऐसा दुर्लभ संयोग प्रथम बार ही प्रभु के प्यासों को उपलब्ध हो रहा है!
ऐसा अवसर इस पृथ्वी पर ढाई हजार साल बाद ही आता है!!
जिन परम सौभाग्यशालियों को ऐसे महिमावान और परम करुणावान सद्गुरु मिल जाते हैं, और जो उनको हृदय में प्रतिष्ठित कर सदानन्द में जीते हुए उनकी सेवा में तन-मन-धन से अर्पित रहते हैं, ऐसे गुरुभक्तों का पूरा कुल धन्य हो जाता है:-
धन्य माता पिता धन्यो गोत्रं धन्यम कुलोदभवः।
धन्या च वसुधा देवि यत्र स्याद गुरुभक्तता।।
अब अगर हम इस बार भी इस दुर्लभ अवसर को चूके! तो क्षमायोग्य नही है!!!
गुरूदेव ने एक रहस्य की बात बताई है :- बैकुंठ में आत्मानन्द है पर ब्रह्मानन्द नहीं है, क्योंकि वहां भक्ति नहीं है।
भक्ति सिर्फ मनुष्य शरीर से ही सम्भव है।
सुमिरन सिर्फ सांसों के साथ ही किया जा सकता है।
सन्त सुमिरन का आनन्द लेने के लिए, सांस-सांस आत्मानन्द + ब्रह्मानन्द (सदानन्द) का आनन्द लेने के लिए ही पृथ्वी पर बार-बार आते हैं।
हृदय में गुरूदेव और हनुमत स्वरूप सिद्धि के साथ गोविंद का सुमिरन!
सदा स्मरण रखें:-
गुरु+गोविंद+शिष्य यह सिनर्जी ही सारे अध्यात्म का सार है!!
और यह सतत चलता रहेगा, चरैवेति.. चरैवेति...।
सगे सम्बन्धी स्वार्थ के हैं, स्वार्थ के संसार है।
निःस्वार्थ सद्गुरु देव हैं, सच्चे वही हितकार हैं।।
ईश्वर कृपा होवे तभी, सद्गुरु कृपा जब होय है।
सद्गुरु कृपा बिन ईश भी, नहीं मैल मन को धोय है।।
सद्गुरु जिसे मिल जाये सो ही, धन्य है जगमन्य है।
सुरसिद्ध उसको पूजते ता सम न कोऊ अन्य है।।
अधिकारी हो गुरुदेव से, उपदेश जो नर पाय है।
वही तरे संसार से, सीधे बैकुंठ को जाय है।।
💐नमो नमः श्री गुरूपदुकाभ्यां।
नमो नमः श्री गुरूपदुकाभ्यां।।💐
~ जागरण सिद्धार्थ
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⚘Jai Paramguru Osho⚘
ReplyDelete⚘Jai Sadguru Dev⚘
⚘Jai Oshodhara⚘
ऐसे गुरू को बलि बलि जाऊं
ReplyDeleteआप मुक्त मोहे तारे ।
मेरे कामिल मुर्शिद के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम ।
,🙏🌹🌹🙏❤️❤️🙏🙏🌹🌹🙏
ReplyDeleteहम परम् सौभाग्यशाली हैं, जो इस परमघड़ी में गुरुदेव के श्रीचरणों में हैं।
ReplyDeleteThanks & Gratitude Respected Beloved Sadgurudev for Nice Guidance
ReplyDeleteऐसे सद्गुरु के चरणों में समर्पित होना परम सौभाग्य से नसीब होता है । मेरे कामिल मुर्शिद के श्रीचरणो में श्रद्धा पूर्वक प्रणाम नमन । 🙏🙏❣❣🌹🌹🙏🙏
ReplyDeleteनमन
ReplyDeleteGratitude in the lotus feet of Sadguruji 🌹🙏🌹 So lucky to find kaamil Murshid without having any search.Just landed straight in Govinds feet.Ahobhaav!🌹🙏🌹
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