• Breaking News

    ओशोधारा ~ एक आमंत्रण एक चुनौती


     मेरे प्रिय आत्मन, आप सबको मेरा नमस्कार। उमर खय्याम की एक प्यारी रुबाई अभी याद आयी, उसी से अपनी बात शुरू करना चाहूंगा :- आत्मा के भेद को पाकर के लहराया हूँ मैं, एक पागल मौज हूँ, बहता हुआ आया हूं मैं। बेखुदी के तख्त पर बैठा हुआ हूं दोस्तों प्रेमजग का बादशाह हूँ मस्तियां लाया हूँ मैं।।

    ओशो एक हिमालय हैं। कई नदियां जैसे हिमालय से निकलती हैं, ठीक उसी तरह ओशो के हिमालय से कई धाराएं निकल रही हैं, निकलती रहेंगी। उसमें से एक तात्विक धारा है - समाधि की, संबोधि की, आत्मज्ञान की। ओशो एक युगपुरुष हो गए हैं और जब भी कोई युगपुरुष होता है तो उसकी तात्विक धारा खो जाने का खतरा हमेशा बना रहता है। कृष्ण एक युगपुरुष हुए, जनमानस में उनका खूब प्रभाव हुआ मगर उनकी तात्विक धारा खो गयी। यह खतरा एक बार फिर ओशो के साथ उपस्थित हो गया। कल का विश्व ओशो की वैचारिक क्रांति पर आधारित होने वाला है, यह तो स्प्ष्ट दिखाई देता है, लेकिन ओशो की तात्विक धारा का क्या होगा?

    मैं आप सबको एक पुकार देने आया हूँ। एक आमंत्रण देने आया हूँ, एक आह्वान देने आया हूँ। इसे आमंत्रण भी समझना और इसे चुनौती भी समझना। जो साहसी लोग हैं, जो खोजी व्यक्ति हैं, जिनके हृदय में सत्य की गहन प्यास है, उनके लिए फिर एक अवसर उपस्थित हुआ है।

                      ~ सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया जी

    ओशोधारा ओशो की तात्विक धारा है। और ओशो की देशना क्या है? ओशो की देशना वही तो है, जो ऋषियों की, सिद्धों की, सन्तों की, बुद्धों की, औलियाओं की, गुरु साहिबानों की है।

    और ओशोधारा में गुरुदेव ने सभी की देशनाओं की synergi कर पहली बार आध्यात्म जगत में पूरा पैकेज उपलब्ध करा दिया है। जो चमत्कार है, जो अध्यात्म जगत की सबसे बड़ी क्रांति है!!

    जहां गुरुदेव ने 28-21 तल के समाधि और प्रज्ञा के अद्भुत कार्यक्र्म निर्मित किये हैं। जहां हम प्रभु को जान सकते हैं, उसमें डूब सकते हैं, और सतत उसके सुमिरन में जीने की कला सीख सकते हैं। प्रभु की तरफ से ओशोधारा एक सुंदर अवसर है।

    जो भी प्रभु के प्यासे हैं उन सभी को ओशोधारा के समाधि और प्रज्ञा कार्यक्रमों के माध्यम से गुरुदेव अपनी दोनों बांहें फैलाये उस परम की यात्रा पर चलने का निमंत्रण दे रहे हैं, जो आज तक आध्यात्मिक इतिहास में सबके लिए कभी उपलब्ध नही था।
     गुरुदेव ने ओशोधारा में अध्यात्म के सर्वश्रेष्ठ मार्ग 'सहज-योग' को प्रतिपादित किया है, जिसके 3 आयाम हैं - ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग। ज्ञान योग का अर्थ है स्वयं को आत्मा जानना और आनंद में जीना। भक्ति योग का अर्थ है परमात्मा को जानना और उसके प्रेम में जीना। कर्म योग का अर्थ है आत्मा और परमात्मा से जुड़कर संसार का नित्य मंगल करना।

    कोई एकाध विरला ही उस परमसत्य को उपलब्ध हो पाता था। पर गुरुदेव ने ऐसी करुणा की है, कि सबके लिए ऐसा अवसर उत्पन्न कर दिया है, ऐसा महा आयोजन कर दिया है। अब भी अगर हम इस विराट आयोजन से चूक जाएं तो हमसे बड़ा दुर्भाग्यशाली और अभागा कोई नही हो सकता। जिन्हें भी प्रभु की सच्ची प्यास है उन्हें इस अवसर से कदापि नहीं चूकना चाहिए...।

    गुरूदेव ने एक रहस्य की बात बताई है :- बैकुंठ में आत्मानन्द है पर ब्रह्मानन्द नहीं है, क्योंकि वहां भक्ति नहीं है।
    भक्ति सिर्फ मनुष्य शरीर से ही सम्भव है।
    सुमिरन सिर्फ सांसों के साथ ही किया जा सकता है।
    सन्त सुमिरन का आनन्द लेने के लिए, सांस-सांस आत्मानन्द + ब्रह्मानन्द  (सदानन्द) का आनन्द लेने के लिए ही पृथ्वी पर बार-बार आते हैं।

    हृदय में गुरूदेव और हनुमत स्वरूप सिद्धि के साथ गोविंद का सुमिरन!
    गुरूदेव ने आध्यात्मिक जगत में महाक्रान्ति ला दी है; ओशोधारा के साधकों के जीवन के केंद्र में गुरु हैं, सत-चित-आनन्द के आकाश में उड़ान है और सत्यम-शिवम-सुंदरम से सुशोभित महिमापूर्ण जीवन है!!

    गुरुदेव द्वारा प्रदत्त सुमिरन+हनुमत स्वरूप सिद्धि अति उच्चकोटि की साधना है।
    हनुमान स्वयं इसी साधना में रहते हैं, वे सदैव भगवान श्रीराम के स्वरूप के साथ कण-कण में व्याप्त निराकार राम का सुमिरन करते हैं।

    गुरुदेव ने अब सभी निष्ठावान साधकों को यह दुर्लभ साधना प्रदान कर आध्यात्मिक जगत में स्वर्णिम युग की शुरूआत कर दी है।

    सदा स्मरण रखें:-
    गुरु को अंग-षंग जानते हुए सुमिरन में जीना और गुरु के स्वप्न को विस्तार देना यही शिष्यत्व है।
    गुरु+गोविंद+शिष्य यह सिनर्जी ही सारे अध्यात्म का सार है!!
    और यह सतत चलता रहेगा, चरैवेति.. चरैवेति...।

     प्रभु के प्यासों के लिए गुरुदेव की पुकार है :-

    ।। हर युग में नाविक आते हैं, 
    कुछ नूतन घाट बनाते हैं।
     तैयार खड़े जो चलने को, 
    वे उन्हें पार ले जाते हैं।।
     खुल रही एक है, नाव अभी,
     मत कहना मिला न दांव कभी।
     अथ नाविक शरणं गच्छामि।
    भज ओशो शरणं गच्छामि।।
    ऐंकार ह्रींकार रहस्ययुक्तताय श्रींकारगूढार्थ         महाविभूत्या
     ॐकार मर्म प्रतिपादिनीभ्यां नमो नमः श्री गुरु   पादुकाभ्यां।। 💐

            गुरुरवै शरण्यं, गुरुरवै शरण्यं
            गुरुरवै शरण्यं, गुरुरवै शरण्यं

                                         ~ जागरण सिद्धार्थ

                   
    Please click the following link to subscribe to YouTube 
    https://www.youtube.com/user/OshodharaVideos?sub_confirmation=1

    Twitter : 
    https://twitter.com/SiddharthAulia

    Oshodhara Website : 
    www.oshodhara.org.in

    Please Like & Share on Official Facebook Page! 🙏
    https://m.facebook.com/oshodharaOSHO/
                                            

    3 comments:

    1. ओशो के सपनों की ओशोधारा है ।
      गंगा सी पावन यह ओशोधारा है ।
      ओशोधारा के भागीरथ सदगुरू बड़े बाबा औलिया जी के श्रीचरणो में कोटि-कोटि नमन ।।

      ReplyDelete
    2. मेरे सद्गुरु बड़े बाबा औलिया जी के श्रीचरणो में कोटि-कोटि नमन । 🙏🙏🙏🙏🙏

      ReplyDelete
    3. हमारा सैभाग्य हम भी इस धारा की एक बूंद है।
      ओम् सद्गुरु नमः 🙏

      ReplyDelete

    Note: Only a member of this blog may post a comment.

    Post Top Ad

    Post Bottom Ad