मेरी साधना यात्रा ~ मां प्रार्थना
नाम : रमा/रमियां
सन्यास नाम : आचार्य प्रार्थना
जन्म तिथि : Nov 1974
व्यवसाय : गृहणी
समाधि कार्यक्रम : चरैवेति
अहोभाव :
परम गुरु ओशो, परम गुरु सूफी बाबा, गुरु नानक देव जी और बड़े बाबा के चरणों में नमन करते हुए अपनी आध्यात्मिक यात्रा का वर्णन करने जा रही हूं। बाबा इसे निर्विघ्न संपूर्ण करने की शक्ति दें, सामर्थ्य दें और प्रामाणिकता दें।
दूसरे शब्दों में मैं इसे बड़े बाबा की कृपा ही कहना चाहूंगी क्योंकि मेरा पूरा का पूरा जीवन ही बड़े बाबा की कृपा का ही परिणाम है। जन्म से लेकर अब तक मेरी हर सांस बड़े बाबा के आशीर्वाद से ही चल रही है। नहीं तो मेरी क्या औकात है, मैं एक सांस भी ले सकूं। इसे मैं बड़े बाबा की कृपा ही मानती हूं।
मेरे जन्म की अनहोनी घटना :
मेरा जन्म 30 नवंबर 1974 को दिल्ली में हुआ। जन्म लेने के बाद मैं रोई नहीं, तो डॉक्टर ने मुझे मरा हुआ घोषित कर दिया। Ofcours मेरी मम्मी को बहुत दुख हुआ, लेकिन अब कर भी क्या सकते थे।
सर्दियों के दिन थे, मुझे दफनाने की तैयारी की बातें होने लगी। काले रंग की शाल में लपेटकर मेरी नानी ने मुझे गोद में उठा लिया। दफनाने के लिए जगह का चुनाव करने के लिए मेरी नानी सड़क पर किसी से बात करने लगीं। क्योंकि तब कुत्तों का बहुत डर था। कुत्ते जमीन खोदकर बच्चों की लाशों को निकाल कर खा जाते थे। इसलिए नानी किसी सुरक्षित जगह के बारे में पूछने लगीं।
उस दिन सर्दी बहुत थी और पास ही कोई आग जला कर हाथ सेक रहा था। मेरी नानी मुझे गोद में लेकर आग के पास ही खड़ी थीं। उस आग की गर्मी शायद शाल तक पहुंच रही होगी, जिसमें मेरी लाश थी।
अचानक मैंने रोना शुरू कर दिया। नानी मुझे लेकर हॉस्पिटल के अंदर भागी। डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर हैरान रह गए कि यह क्या..... यह बच्ची तो मर चुकी थी। फिर यह रोने कैसे लगी। (सब बाबा की कृपा थी.... बाबा ने मुझे अपनी शरण में जो लेना था।)
भगवान का शुक्रिया अदा किया गया। इस तरह मैं अस्तित्व में आ गई। (यह सब मेरी नानी ने बताया था)
मेरे पिता जी नहीं हैं। मेरी मम्मी को अकेले ही मुझे और मेरे भाई को पालना पड़ा। मेरी मम्मी Govt. ITI में instructor के पद पर थीं। उनकी ट्रांसफर कभी यहां तो कभी वहां होती ही रहती थी। तो नवजात बच्ची के साथ नौकरी करना आसान नहीं था। इसलिए उन्होंने मुझे नानी को सौंप दिया। मेरा लालन-पालन मेरी नानी ने किया।
नाना जी और नानी दोनों भक्त प्रवृत्ति के स्वामी थे। नाना जी और नानी दोनों सदा ही भक्ति की महिमा गाते थे। उन्हें सुनते-सुनते भक्ति और समर्पण के संस्कार शायद मुझ में भी आ रहे थे।
मेरी मम्मी नौकरी पर जाती थी, लेकिन हर शनिवार शाम को वह मेरे पास आ जाती थी और सोमवार सुबह फिर से नौकरी पर चली जाती थी। जब मैं स्कूल जाने लायक हुई, तो मेरी मम्मी घर पर सोच रही थी कि स्कूल में कौन सा नाम लिखवाया जाए। मेरी मम्मी कोई नया सा नाम लिखवाना चाहती थी। घर में मुझे रमा कहा जाता था, लेकिन जिस दिन स्कूल मैं मेरा नाम लिखवाने जाना था, तो मेरी मम्मी के मन में यह शब्द गूंज रहा था।....
"जाका मीतु साजन है समिआ।
तिसु जन को कहु का की कमीआ।।
जब स्कूल में मैडम ने नाम पूछा तो उन्होंने मेरे घर के नाम 'रमा' से मिलता-जुलता नाम रखना चाहा। तो समिआ की जगह "रमिया" लिखवा दिया।
बाल्यकाल से धार्मिक संस्कार :
अब मैं खुशी-खुशी स्कूल जाने लगी थी। स्कूल जाना मुझे इतना पसंद था कि बुखार में होने के बावजूद भी मैं अपनी नानी को कहती थी, मुझे स्कूल भेज दो, मैं ठीक हो जाऊंगी। (और स्कूल में ही मुझे पहली बार out-of-boby experience हुआ। )
जब मैं 2nd class में थी तो मेरी टीचर ने मुझसे children के spelling पूछे। मुझे spelling नहीं आ रही थी। मेरी टीचर ने मुझे खड़ा हो कर करके याद करने को कहा।
लेकिन जैसे ही मैं children की spelling याद करने के लिए खड़ी हुई, तो अचेत होकर गिर गई। वह मेरा पहला out-of-body experience था। (जो अब तक बरकरार है) तब कुछ समझ नहीं पा रही थी कि क्या हो रहा है।
हमारे घर में मेरे नानाजी की बहुत किताबे थीं। उनमें से एक 'कल्याण' नाम का ग्रंथ था। अक्सर वह ग्रंथ मुझे अपनी ओर खींचता था। बहुत छोटे-छोटे हाथों से उस भारी ग्रंथ को उठाकर खोल कर बैठ जाती और पढ़ने की कोशिश करती। जितना भी समझ में आता, पढ़ती। मुझे कल्याण ग्रंथ में लिखा हुआ सब जैसे रोचक कहानियों के समान प्रतीत होता। यहीं से मुझे किताबें पढ़ने का शौक लगा। कहानियां पढ़ने में मेरी रुचि पैदा हुआ।
मेरी नानी के घर के पास ही मंदिर था। मंदिर में सुबह-शाम भजन चलने की आवाजें, हमारे घर तक साफ-साफ सुनाई देती थीं। मैं छत पर जाकर भजन सुनती। बहुत छोटी बच्ची थी, ज्यादा समझ में नहीं आता था, लेकिन फिर भी जितना सुनती, जितना भी समझ में आता, सुनकर वहीं नाचने लग जाती और आनंदित होती थी।
खासकर हरिओम शरण जी का गीत:-
ओ दासी मन काहे को डरे"।
आज भी अगर मैं यह भजन सुनती हूं, तो उदासी मन काहे को करे की जगह ओ दासी मन काहे को डरे ही सुनाई देता है। (और बात भी सही है जब राम जी ने ( ओंकार-तत्व ने) बेड़ा पार करना है तो डर काहे का)
मैं मंदिर में माथा टेकने जाया करती थी। वहां पर जो चरणामृत मिलता था, उसकी खुशबू ही अलग हुआ करती थी। उसका स्वाद भी अलग होता था। आज भी मैं याद करती हूं, तो मेरे जेहन में आज भी वही खुशबू और वही स्वाद उतर आता है।
चरणामृत का स्वाद बहुत ज्यादा होता था इतना कि मैं चरणामृत लेने के लिए ही मंदिर जाती थी। ( बड़ी होने पर मुझे पता चला है कि पंडित जी पानी में थोड़े से इलायची-दाने और तुलसीदल डालते थे।) मैं हनुमान जी का प्रसाद लेने के लालच में भी मंदिर जाती थी।
बाबा का सहारा :
मेरी मम्मी ने मेरे 7वें जन्मदिन पर मुझे नीले रंग का डोरी वाला सूट, जिसमें सफेद रंग की बूटी थी, उपहार में दिया था। नया सूट डाल कर मैं छत पर खेलने चली गई। हमारे घर की छत कच्ची-छत थी। जैसे ही मैं छत पर चल रही थी, अचानक छत अंदर धसने लगी और छत फट गई। मैं छत के बाले के साथ लटक गई।
छोटी सी बच्ची.... छोटे- छोटे हाथ....। कितनी देर तक खुद को छत के बाले के सहारे लटका सकती थी। बाबा की कृपा रही कि मेरी नानी ने मुझे देख लिया। नानी ने शोर मचाना शुरू कर दिया।। ओ... कुड़ी... मर गई, ओ... कुड़ी... मर गई। उतारो- उतारो, पकड़ो-पकड़ो। जैसे-तैसे करके मुझे छत से नीचे उतारा गया। फिर से परमात्मा का शुक्रिया अदा किया गया मेरी जान बचाने के लिए।
इंतजार की कला :
मेरी मम्मी नौकरी पर जाती थी, लेकिन हर शनिवार शाम को वह मेरे पास आ जाती थी और सोमवार सुबह फिर से नौकरी पर चली जाती थी। जैसे ही शनिवार शाम ढलने लगती मेरी नानी मुझे कहतीं, जा खिड़की पर बैठ जा..... मां का इंतजार कर। मैं बहुत छोटी थी, मुझे नहीं पता था कि किसी का इंतजार कैसे करते हैं? मन में बहुत बार आता था कि नानी को पूछूं कि नानी इंतजार कैसे करते हैं।फिर भी मैं कभी खिडकी पर बैठ जाती, कभी छत पर, उस रास्ते की तरफ देखती.... जिस रास्ते से मेरी मम्मी ने आना होता था।
(यह तो अब समझ में आया है कि इंतजार क्या है! समाधि में परमात्मा का इंतजार करो..... निराकार को प्रेम से देखते रहो....परमात्मा खुद ही चला आएगा।)
ओशो की दस्तक :
बीतते समय के साथ मैं भी बड़ी हो गई। अब मैं अपनी मम्मी के साथ रहने लगी थी। धीरे-धीरे 19 जनवरी 1990 का दिन भी आ गया। टीवी पर एक खबर दिखाई जा रही थी। ओशो नाम के किसी व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी। जब मैंने ओशो नाम सुना तो एक क्षण के लिए मैं वहीं रुक गई...... पता नहीं मुझे क्या हुआ था। फिर मैं सोचने लगी यह कैसा नाम है....., ओशो भी कोई नाम होता है भला....। बात आई-गई हो गई।
अब मैं कॉलेज जाने लगी थी कॉलेज में मेरे सब्जेक्ट में कबीर के दोहे थे।
आषड़ियाँ झांई पड़ी, पंथ निहारि-निहारि।
जीभड़ियाँ छाला पड़या, राम पुकारि- पुकारि।।
आदि-इत्यादि...।
जब मैं कबीर के दोहे पढ़ती, पता नहीं क्यों आंखों से आंसू बहने लगते.... लगता था यह मैंने पहले भी कहीं सुने हैं.... पर कहां..... कुछ पता नहीं।
नानी की मृत्यु :
2 अक्टूबर 1993 को मेरी नानी की मृत्यु हो गई। यह घटना मेरे जीवन का Turning point साबित हुई। मुझे जीवन असार लगने लगा। जीवन में एक भयंकर खालीपन आ गया था। यह कैसे हो सकता है...,कि कोई मर जाए...
हमें छोड़कर चला जाए... नहीं... यह नहीं हो सकता।
नानी ही मेरा जीवन थी। अब जब मेरा जीवन ही चला गया तो मैं जी कर क्या करूंगी.. बस यही मेरे दिमाग में घूमने लगा।
मैं और मेरी मम्मी नाभा में मास्टर प्यारे लाल के घर किराए पर रहते थे। यहां भी हमारे घर के साथ ही एक मंदिर था। नानी की मृत्यु के बाद मैं ज्यादातर समय मंदिर में ही बिताने लगी।
मृत्यु के समय ॐ का ध्यान करो :
कहा जाता है Time is the best remedy. 1994 में मेरी शादी हो गई। फिर दो बच्चे भी हो गए। समय तेजी से पंख लगाकर उड़ रहा था।1999 में हमारे नाभा शहर में राजस्थान से रेकी करने वाले कुछ लोग आए। वे क्रिस्टल से रेकी करते थे। मोहल्ले के सभी लोग व मैं अपनी सासू मां के साथ रेकी करवाने गई। उन्होंने मेरे शरीर पर क्रिस्टल रखकर मुझे लिटा दिया। 30 min. लेटना था। क्रिस्टल लगाकर मैं शांति से लेट गई, लेकिन शायद 29 min. तक कुछ नहीं हुआ। अचानक 30वें min. में एक सफेद प्रकाश मुझे दिखाई दिया, बहुत तेज चमकीला प्रकाश था। इससे पहले कि मैं उस प्रकाश में प्रवेश कर पाती, क्रिस्टल वाली लड़की ने मुझे उठा दिया।
अब शेर के मुंह को खून लग चुका था।
(अर्थात भीतरी खजाने की एक झलक मिल चुकी थी। जिसे ओशो कहते हैं - अंधेरे में बिजली कौंध जाना।)
भीतर उस प्रकाश को टटोलने लगी थी। कभी किसी से पूछती, कभी किसी से। एक दिन टीवी पर serial श्रीकृष्णा का गीता-सार वाला एपिसोड आ रहा था, जिसमें श्री कृष्ण अर्जुन को बता रहे थे कि हे अर्जुन! मृत्यु के समय ऊँ... का ध्यान करते हुए अपने शरीर का त्याग करो।
मुझ में अब उस ऊँ...को जानने की प्यास और बढ़ गई थी, जिस ऊँ...का ध्यान करने से शरीर का त्याग करना चाहिए।
मैं अपनी नानी की तरह मृत्यु चाहती थी। क्योंकि मेरी नानी हंसते-हंसते मरी थी। किसी ने हंसने वाली कोई बात सुनाई थी। तो उस बात पर मेरी नानी बहुत जोर से हंसी। इतनी जोर से हंसी कि मृत्यु को प्राप्त हुई। उन्होंने हंसते हुए अपने प्राण त्याग दिए थे। तो यह बात मेरे लिए एक बहुत बड़ी प्रेरणा का स्रोत भी थी।
मैं भी चाहती थी कि जब मेरी मृत्यु हो, तो पूरे होश में हो। जब मेरी मृत्यु हो तो मुझे पता चले कि मेरी आत्मा कहां जा रही है। होश-पूर्ण मृत्यु ......बस यही एक जीवन का लक्ष्य बन गया था।
फिर उसी प्रकाश के दर्शन के लिए मैं खुद से ही साधना करने लगी थी। रेकी वालों से मैं क्रिस्टल ही खरीद लाई थी। उन्हीं क्रिस्टल को वैसे ही अपने शरीर पर लगाकर साधना करने लगी, जैसे उस लड़की ने मेरे शरीर पर क्रिस्टल रखे थे। जब मैं साधना करती तो मुझे मूलाधार चक्र बहुत जोर-जोर से घूमता महसूस होता था। पास ही मम्मी भी बैठी होती थी, तो मैं मम्मी को पूछती क्या मैं बहुत जोर-जोर से हिल रही हूं। तो मम्मी कहती नहीं... कुछ भी नहीं... बाहर से कुछ भी पता नहीं चल रहा है, तो यह चक्र मुझे भीतर ही अनुभव होते थे।
हमारे कुल गुरु नंगली साहब (मेरठ के पास सकौती टांडा) हैं। हम उनके दर्शन के लिए नंगली साहब गए। (यह आनंदपुर साहब जो अशोकनगर मध्य प्रदेश में है, उनकी दूसरी गद्दी श्री स्वरूपानंद जी को ही नंगली निवासी कहा जाता है) वहां पर सन्यासी स्त्रियों को बाई जी कहा जाता है।
उनमें से एक नम्रता बाई जी हमें मिलीं। मैंने उनसे पूछा की साधना कैसे करनी चाहिए। श्री कृष्ण ने बताया है, ऊँ... को सुनते हुए प्राण त्यागने चाहिए, वह क्या है? तो उन्होंने कहा तुम पहली व्यक्ति हो, जिन्होंने साधना के विषय में कुछ पूछा है। नहीं तो यहां पर लोग आते हैं धन, पद ,परिवार, लड़ाई-झगड़े को निपटाने की बातें करते हैं।
तो उन्होंने बताया रात को जब सोओगी तो कान को तकिए पर लगा लेना और कुछ चिड़ियों के चहकने की आवाज आएगी, बस उसी आवाज को सुनते रहना। बस इतना ही उन्होंने मुझे बताया। मैंने किया पर मुझे तसल्ली नहीं हुई।
ओशो का जादू :
दिसंबर 2002 का दिन आ गया। उस दिन मैं अपने बच्चों को ट्यूशन पर से लेने गई थी। जब मैं वहां पहुंची तो वहां पर ट्यूशन वाले sir किसी lady के साथ बात कर रहे थे। उनकी बातों में जब मैंने ओशो नाम सुना, तो फिर से मुझ में एक बिजली दौड़ गई। मुझे वही दिन याद आ गया, जब मैंने पहली बार टीवी पर ओशो नाम के किसी व्यक्ति की मृत्यु के बारे में सुना था।
मैंने सर से पूछा ओशो कौन हैं... और ओशो भी कोई नाम होता है.... यह कैसा नाम है? तो उन्होंने कहा ओशो के पास 93 Rolls-Royce cars हैं। उनकी टोपी और घड़ी में डायमंड लगे हैं।
मैंने कहा यह तो अमीरों के गुरु लगते हैं, हम जैसे गरीबों को कौन पूछेगा। लेकिन उस लेडी ने कहा मेरे पास एक मैगजीन है Osho Times तुम पढ़ लो, तुम्हें पता चल जाएगा।
मैं उस लेडी के साथ उसके घर जाकर मैगजीन ले आई। जैसे ही मैंने मैगज़ीन पढ़ना शुरू किया, एक ही सांस में (sitting में) सारी मैगजीन पढ़ कर ही उठी। न पानी पीने के लिए उठी, न ही Wash room जाने के लिए उठी। बस पढ़ती ही चली गई।
अब मेरा जीवन बदल चुका था। मैं वही पहले वाली रमा (रमिया) नहीं थी। वह तो कब की विदा हो चुकी थी। यह तो कोई और ही थी। जब तक मैं मैगजीन पढ़ती रही, आंखों से सावन-भादो की बरसात लगातार हो रही थी।
अगले दिन फिर मैं sir के पास गई और पूछा ओशो तो अब चले गए, क्या अब कुछ नहीं हो सकता? उन्होंने कहा अगले महीने ओशोधारा वाले नाभा में लायंस क्लब में आ रहे हैं। आप वहां जाकर उनसे मिल लेना। जनवरी 2003 में ओशोधारा वालों का नाभा में कैंप लगा। मैं अपनी मम्मी के साथ वहां गई, पर मन में ओशो की छाप बहुत गहरी थी। मैंने वहां ओशोधारा का बैनर देखा तो मन को एकदम धक्का लगा।
मैंने खुद से कहा और जगह की तरह यहां भी ओशो का बंटवारा हो गया। ओशो अलग - ओशोधारा अलग। लेकिन कैंप में मैंने सैशन अटेंड किए।
अब कुछ-कुछ होने लगा था...
मन पर अलग ही मस्ती, अलग ही रंगत चढ़ने लगी थी।
वहां बुक स्टॉल लगी थी। मैंने ध्यान से संबंधित ढेर सारी किताबें खरीद ली। मेरे पास पैसे कम पड़ गए, नहीं तो शायद सारी की सारी books ही खरीद लेना चाहती थी।
मैं सुरेंद्र गर्ग जी की बहुत आभारी हूं, उन्होंने बताया कि उनके पास टेप रिकॉर्डर वाली ओशो के प्रवचनों की बहुत सारी कैसेट हैं। मैं उनके घर गई और सारी की सारी कैसेट खरीद कर ले आई और उन्हें सुनने लगी। बस यही मेरा जीवन हो गया था। घर के काम करते-करते ओशो को सुनना, रात को सोते हुए ओशो को सुनना, इसी तरह समय बीतता गया।
ओशो को पढ़ते-पढ़ते, सुनते-सुनते एक लगाव सा होने लगा था। ओशो मुझे कुछ अपने से मालूम होने लगे। उसकी मुख्य वजह यह थी कि ओशो को उनकी नानी ने पाला था जैसे मुझे मेरी नानी ने पाला...। ओशो अपनी नानी से बहुत प्यार करते थे जैसे मैं अपनी नानी से बहुत प्यार करती थी...। मैं अपने और ओशो के बीच में एक रिश्ता सा feel करने लगी थी।
अब मैं ओशो की कैसेट सुनकर और ओशो की किताबें पढ़कर खुद से ही ध्यान करने लगी थी। लेकिन जैसे ही ध्यान करती मुझे कुछ डूबता-डूबता सा प्रतीत होने लगता। ऐसा लगता मैं मर रही हूं। अपनी नानी की मृत्यु का गम अभी तक मेरे मन में था, तो मृत्यु से मैं डरने लगी थी। इसी डर से मेरे ध्यान में गहराई नहीं आ रही थी।
गुरु शिष्य का अनूठा मिलन :
फिर अक्टूबर 2005 का दिन भी आ गया। तब 9 दिन की ध्यान समाधि हुआ करती थी। पहले 3 दिन आनंद प्रज्ञा के अगले 3 दिन योग प्रज्ञा के फिर अंतिम 3 दिन समाधि प्रज्ञा के हुआ करते थे।
नाभा में 3 दिन आनंद प्रज्ञा करने के बाद बाकी के 6 दिन के लिए मैं मुरथल आश्रम आ गई। उस दिन बड़े बाबा कहीं गए हुए थे। उनके वापस आने का सब लोग इंतजार कर रहे थे। मुझे कुछ पता नहीं था कि बड़े बाबा कौन हैं... क्या हैं... मैं तो बस ओशो को ही जानती थी।
लेकिन बाबा का इंतजार करते हुए मेरी आंखों से गंगा-जमुना बहने लगी। जितनी देर बाबा का इंतजार किया, मेरी आंखों से आंसू बहते रहे। शाम को बाबा आए। बाबा ने सब को देखा जैसे ही बाबा ने मुझे देखा... पता नहीं क्या हुआ.. बस मैं तो बाबा की होकर रह गई...।
ध्यान-समाधि के एक सत्र में बाबा ने सब से पूछा जो लोग चाहते हैं कि मरने के बाद लोग उनके बारे में अच्छी-अच्छी बातें याद करें, उनकी तारीफ करें, वे लोग अपना हाथ खड़ा करें। सब ने हाथ उठाया लेकिन मैंने हाथ नहीं उठाया। बाबा ने देख लिया। बाबा ने फिर पूछा कि किसी और की कोई और इच्छा भी है...तो मैंने कहा मैं चाहती हूं जब मेरी मृत्यु हो तो किसी को भी पता नहीं चले, मैं गुमनाम मौत मरना चाहती हूं। मैं चुपचाप मर जाना चाहती हूं। किसी को भी मेरी मृत्यु के बारे में पता न चले। यह सुनकर बाबा मुस्कुराने लगे। आज भी बाबा की वो मुस्कुराहट मेरे दिलों-ज़ेहन पर ताजा है (बाबा की मुस्कुराहट का अर्थ अब समझ में आ रहा है। अगर मैं आज,अभी, इसी क्षण मरती हूं, तो कुछ आंखें तो नम हो ही जाएंगीं, इतना विश्वास के साथ कह सकती हूं।)
ध्यान समाधि के अंतिम दिन फीडबैक सेशन में उत्सव चल रहा था, लेकिन मेरी आंखों से गंगा-यमुना बहती जा रही थी। मेरी मम्मी बहुत हैरान थी कि कोई इतना कैसे रो सकता है। मैं खुद समझ नहीं पा रही थी कि पता नहीं इतने आंसू आ कहां से आ रहे हैं।
बुद्धा हॉल में ऑडियो ऑपरेटर शायद कबीर नाम के स्वामी जी थे। वे सुबह से देख रहे थे कि मैं रोती जा रही हूं और जब बाबा आने वाले थे तो उनके इंतजार में भी मैं रो रही थी । अभी भी लगातार रोती जा रही हूं। वे आगे आए, मुझे पकड़कर बाबा के चरणों में मेरा सिर लगा दिया।
सिर इतनी जोर से धरती पर लगा, बहुत ज़ोर की आवाज हुई, सब को लगा शायद सिर पर चोट लग गई है, लेकिन मुझे कुछ नहीं हुआ था।
जैसे ही बाबा के चरणों से मेरा सिर लगा, मानो जन्मों-जन्मों से प्यासे, तपते रेगिस्तान पर पानी ही नहीं अमृत की वर्षा हो गई हो। अब मेरा सर्वस्व बड़े बाबा हो गए थे। उसी दिन से मेरा जीवन बड़े बाबा के नाम हो गया था।
ओशोधारा में यात्रा :
ध्यान-समाधि में बड़े बाबा ने मुझे नाम दिया "प्रेम प्रार्थना"। इस नाम को पाकर मैं फूली नहीं समा रही थी। 3:15 बजे वाले सेशन में ओशो के प्रवचन होते थे। उसमे ओशो को कहते सुना कि प्रेम को इतना बढ़ाओ कि केवल प्रार्थना ही बचे। जब तक प्रेम प्रार्थना ही न हो जाए, तब तक समझना सब अधूरा है। तभी से प्रेम को प्रार्थना बनाने की कोशिश में लग गई।
ध्यान-समाधि करके जब मैं घर आई, तो ओशोधारा की खुमारी छाई हुई थी। मैंने घर पर भी ओशोधारा जैसा वातावरण बनाने की कोशिश की। जमीन पर ही अपना आसन लगा लिया था। जैसे मुरथल में हरे रंग का कारपेट बिछा हुआ था, घर पर मैंने भी जमीन पर हरे रंग का कारपेट बिछा लिया था।
अब मैं ध्यान करती और जमीन पर ही सोने लगी थी। मुझे मुरथल वाली feeling घर पर ही होने लगी थी। जब सब फैमिली मेंबर अपने-अपने काम पर चले जाते। बच्चे स्कूल, पति shop पर चले जाते, जल्दी-जल्दी घर के काम करके, कैसेट लगाकर ध्यान करने लगी थी और जमीन पर ही सोने लगी थी।
परिवार में इसका बहुत विरोध हुआ, परंतु मैं विरोध सहती रही, जैसे कहते हैं न प्रेम के हाथ बिकाना वैसे ही मैं तो ओशो के, बड़े बाबा के प्रेम के हाथों बिक चुकी थी। जो हो रहा था अपने आप हो रहा था। लेकिन बहुत ज्यादा विरोध होने पर मैंने सोचा कि अगर इसी तरह विरोध होता रहा, तो आगे की यात्रा पर असर पड़ेगा। मैंने मन ही मन बाबा से प्रार्थना की और जमीन पर सोना छोड़ दिया। अपने मन से पूछा कि जो ध्यान मैं जमीन पर लेट कर करती हूं, क्या उसे बेड पर लेट कर नहीं लगाया जा सकता। उत्तर मिला मुझे कोशिश करनी चाहिए। अब मैं अपने बेड पर ही ध्यान करने लगी थी।
ओशोधारा मुरथल में ध्यान समाधि में 'ओशो मंत्र' के द्वारा हम ध्यान में जाते थे। ओशोधारा में तो साधकों का संघ था, जिसे हम कहते थे संघम शरणम गच्छामि। अब घर में मैं अकेली थी, तो संघ कहां से लाऊं, जो ध्यान में जाने के लिए सहायता करें।
फिर मुझे ओशो का एक वचन याद आया जिसमें वे कह रहे थे कि हमें लगता है कि हम अकेले हैं, परंतु कई आत्माएं, कई शुभ आत्माएं हमारी सहायता करने के लिए हमारे साथ होती हैं। और बाबा ने कहा था हमारे स्पिरिट-गाइड हमेशा हमारे साथ रहते हैं। इसी को मैंने ढाल बना लिया और ओशो मंत्र में जब भी आता संघम शरणम गच्छामि तो उन सभी आत्माओं का ध्यान करते हुए, स्पिरिट-गाइड का ध्यान करते हुए उन्हें प्रणाम करने लगी और फिर इसी तरह ध्यान में दिन बीतने लगे।
लेकिन परिवार वालों ने समझा मैं पागल हो गई हूं, मेरा दिमाग खराब हो गया है। इसके लिए मुझे psychiatrist के पास ले गए ताकि मेरा पागलपन ठीक हो सके।(लेकिन वे नहीं जानते थे कि मेरे भीतर भक्ति-भाव जन्म ले रहा था।यह किसी के बस की बात नहीं थी। यहां किसी डॉक्टरी ट्रीटमेंट से कुछ नहीं होने वाला था। यहां तो केवल पूरा गुरु ही वैद्य बनकर आए, तो ही उपचार हो पाएगा।)
मुझे पानी और ऊंचाई से बहुत डर लगता था। मैंने ओशो को पढ़ा था कि तैरना नहीं है बहना है। यह शब्द बार-बार मेरे भीतर गूंजते थे।
मैं तो पानी से इतना डरती थी कि पानी के पास जाने से भी घबराती थी। कई बार परिवार के साथ हरिद्वार, गंगा-स्नान करने का अवसर मिला। पर मैं बाहर ही बैठी रहती थी। मुझे लगता था अगर मैं पानी में गई, तो डूब ही जाऊंगी। मृत्यु का बहुत डर लगता था।
लेकिन जब मैंने ओशो के वचन पढ़ें और सुने तो मैंने तैरना सीखने का निश्चय किया। हमारे नाभा में PPS (पंजाब पब्लिक स्कूल) है। जो शायद पूरे पंजाब में इकलौता बहुत बड़ा स्कूल है। वहां पर बहुत बड़े-बड़े लोगों के बच्चे पढ़ने आते हैं। बोर्डिंग स्कूल है।
लेकिन जून के महीने में जब बच्चों के स्कूल की छुट्टियां रहती है तो बाहर के लोगों को भी स्विमिंग सिखाते हैं। बाहर के स्कूल के बच्चे भी स्विमिंग सीखने आते हैं। तो मैंने अपना और अपने दोनों बच्चों का पास बनवाया और स्विमिंग पूल में स्विमिंग सीखने लगी।
वहां पर 3 दिन में मैंने पानी से दोस्ती कर ली। 3 दिन में पानी से मेरा डर खत्म हो गया। पानी पर इस तरह लेटने लगी जैसे बेड पर लेट जाती हूं। स्विमिंग पूल में मैं खुद को छोड़ देती थी कि जहां पानी की लहरे मुझे ले जाएं उनका मजा लेती और ऊपर आकाश को देखती रहती। (मेरा पानी का डर खत्म हो गया था, इस बात का मुझे ज्यादा अनुभव तब हुआ, जब थाईलैंड में पताया शहर के समुद्र में मैंने खुद को लहरों के हवाले कर दिया था। लहरें मुझे जहां ले जा रही थी, मैं जा रही थी। यह अनुभव अद्भुत और बहुत गजब का था।)
ओशो की मौजूदगी :
सुरति समाधि में कीर्तन संध्या के दौरान जब यह कहा गया कि आंखें बंद करो और ऐसा feel करो कि आप परमात्मा के साथ नृत्य कर रहे हो, तो मैं हैरान रह गई। मैंने ओशो को अपने साथ नृत्य करते हुए पाया। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था...सब कुछ इतना clear था कि मुझे लगने लगा कि ओशो वापस आ गए हैं। उस दिन की स्मृति को याद कर मैं आज भी रोमांचित हो जाती हूं।
जैसे ही ओशोधारा में enter करते थे, तब बहुत बड़ा बोर्ड दिखाई देता था, जिसमें ओशो की famous photo होती थी। मैं रूम नंबर 12 से शारदा मंदिर (kitchen) की ओर खाना खाने जा रही थी, तो ओशो की उस फोटो को देख कर 2 second के लिए वहीं रुक गई। मैंने ओशो की आंखों में देखा और कहा इस बार तो तुम्हें अपने साथ अपने घर ले जाऊंगी।
यह शब्द कहकर मैं खाना खाने किचन में चली गई। खाना खाने के बाद ओशोटूडे मैगजीन को 1 साल के लिए renew करवाने की सोची। तब मैगजीन का ऑफिस गैलरिया से पहले हुआ करता था। जब मैं वहां पर स्वामी जी से बात कर रही थी, तो सामने दीवार पर ओशो की वही फोटो छोटे रूप में टंगी हुई थी।
फोटो का फ्रेम टूटा हुआ था, कांच भी नहीं था। मैंने स्वामी जी से कहा अरे! यह तो वही फोटो है, जो बड़े रूप में बाहर लगी है। स्वामी जी ने कहा लगता है यह फोटो आपको बहुत पसंद है। यह फोटो आप ले जाइए। इसका नया frame और कांच डलवा लेना। उन्होंने अखबार में पैक करके वह फोटो मुझे दे दी। अब मैं ओशो को अपने साथ घर ले जाने वाली थी।
वापस फिर ओशो की उसी बड़ी फोटो के सामने रुकी। ओशो की आंखों में देखा और कहा, आखिर मेरे साथ मेरे घर चलने को तैयार हो ही गए। आपका धन्यवाद।( मैं नहीं जानती कि वो स्वामी जी कौन थे? शायद ओशो ही उस समय उस सीट पर बैठे थे। उन्होंने मेरे भाव पढ़ लिए थे। और मेरे साथ मेरे घर जाने को तैयार हो गए थे।)
तब ओशोधारा में कोई ड्रेस कोड नहीं था। कोई किसी भी रंग के कपड़े पहन सकता था। लेकिन एक दिन बाबा ने announce किया कि सबको अब से orange colour के Rob पहनने हैं। मैंने दर्शन-दरबार में बाबा से पूछा...... बाबा आपने रंग क्यों बदल दिया। Maroon colour से Orange colour कर दिया।
बाबा ने कहा ओशोधारा में रंग था ही कहां? पहली बार ओशोधारा को रंग दिया है। यह शब्द मेरे भीतर तक चले गए थे। उस दिन का दर्शन-दरबार मेरे लिए वहीं ठहर गया था।भले ही गीत-संगीत बज रहा था, पर मेरे लिए सब शून्य हो गया था। मैं सिर्फ बाबा के वचनों पर ही ध्यान केंद्रित कर रही थी कि गजब.. बाबा ने यह क्या कह दिया है...। ओशोधारा को पहली बार रंग दिया है।(अर्थात बाबा ने पूरी ओशोधारा को अपने ही रंग में रंग दिया है, क्या बाबा यह कहना चाह रहे थे)
हां मैनें अपने पिछले जन्मों को देखा है :
जून 2009 में मैं महाजीवन प्रज्ञा करने मुरथल गई। वहां मैंने अपने 7 जन्म देखें।
★ पहले जन्म में देखा कि मैं एक बौद्ध भिक्षु हूं। एक बहुत विराट दरवाजा है। उस दरवाजे से भीतर गई तो वहां पर बुद्ध की सोने की बहुत बड़ी प्रतिमा थी। वहां पर लोग मुझे हाशो-बाशो कह रहे थे। वहां पर मेरा कत्ल कर दिया गया था। इस तरह उस जन्म में मेरी मृत्यु हुई। जिन्होंने मेरा कत्ल किया था, उनका इस जन्म में मेरे साथ बहुत गहरा रिश्ता है। वे मेरे पति हैं।
★ एक जन्म में मैंने देखा मैं एक चील ( eagle) हूं।
★ एक जन्म में मैंने अपने आप को 7 साल के छोटे बच्चे के रूप में देखा। घर में पार्टी चल रही थी। बच्चे पर ध्यान नहीं दिया जा रहा था। बच्चे ने पहाड़ से कूदकर अपनी जान दे दी थी। इस तरह उस जन्म में मेरी मृत्यु हुई।
★ एक जन्म में मैंने खुद को मालिन के रूप में देखा। पूजा के लिए फूल चुनते समय एक सांप के काटने से मेरी मृत्यु हुई।
★ एक जन्म में मैंने खुद को किसान के रूप में देखा। मैं बहुत बुजुर्ग किसान था। मैं खेतों में हल नहीं चला पा रहा था। दो लोगों ने मेरी सहायता की। इस जन्म में वे दो लोग मेरे बच्चे हैं। (पुत्र हैं) यहां पानी में डूबने से मेरी मृत्यु हुई।
★ एक जन्म में मैंने खुद को एक पेड़ के रूप में देखा। सफेद रंग का पेड़ था। (जिसे सफ़ेदा कहा जाता है।) एक लकड़हारे ने उस पेड़ को काट दिया था। इस तरह से उस जन्म में मेरी मृत्यु हुई।
Out of Body Experience :
अब मेरी यात्रा अमृत समाधि तक पहुंच चुकी थी। अमृत समाधि में अमृत योग के सत्र मे मेरी आत्मा निकली और सीधा नाभा में घर पर पहुंच गई। यहां पर हमारे जर्मन शेफर्ड कुत्तों ने मुझे देखा और पहचान भी लिया। फिर मैं अपने पति से मिलने उनकी शॉप पर गई। जब आंखें खुली तो मैं बुद्धा हॉल में थी।
दिव्य स्वाद और खुमारी का अनुभव :
दिव्य समाधि के अनुभव बहुत सुंदर रहे। दिव्य स्वाद का अनुभव बहुत गहरा रहा... जो अब तक बरकरार है। अभी भी मैं feel करती हूं एक दिव्य स्वाद मेरे मुंह में रहता है। न मीठा है, न खट्टा है। बस एक tasteless taste है। खुमारी का अनुभव भी बहुत गहरा रहा।
ओशो से प्रवचन में सुना कि अगर तुम सपने में जाग जाओ, तो तुम नींद में भी जाग पाओगे। तो मैं इसका अभ्यास करने लगी। एक दिन मैंने सपने में बकरी को देखा। तुरंत मुझे होश आया कि यह तो सपना है। तुरंत बकरी गायब हो गई, केवल निराकार रह गया।
एक सामान्य महिला की तरह मुझे भी अपने बालों से बहुत प्यार था। क्योंकि मेरे बाल लंबे, काले, घने थे। अपने बालों का मैं बहुत ख्याल रखती थी। या कह सकते हैं कि मुझे बालों से मोह था। मैं अपने बालों की बहुत देखभाल करती थी, लेकिन एक दिन कबीर साहब का एक दोहा पढ़ा:
"हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी,
केस जलै ज्यूं घास।
सब तन जलता देखि करि,
भया कबीर उदास।।
जैसे ही पढ़ा...... केस तो घास की तरह जल जाएंगे और शरीर लकड़ी की तरह जल जाएगा। उस दिन से बालों के प्रति मोह खत्म हो गया। अब बाल बड़े हों...., छोटे हों.... कोई फर्क नहीं पड़ता। भीतर एक समझ पैदा हुई जब सब कुछ जल ही जाना है तो मोह किस बात का।
संसार के आकर्षणों से मोहभंग :
बालों का मोह मैं त्याग चुकी थी, परंतु सोने (gold) के प्रति मोह अभी भी मेरे मन में था। मेरी शादी में मेरी मम्मी ने मुझे बाकी गहनों के साथ-साथ सोने के कंगन भी पहनाए थे। लेकिन घर की जरूरतों के लिए बाकी गहनों के साथ-साथ कंगन भी बेचने पड़े।
औरत सब कुछ बर्दाश्त कर सकती है, लेकिन उसके गहनों का उससे जुदा होना बर्दाश्त नहीं कर पाती। यही हाल मेरा भी था। गहने दे तो दिए थे पर मन में बहुत मलाल था, दुख था।
समय बीत रहा था। दो तीन बार अपने पति से कहा भी कि मेरे गहने कब बनवा कर दोगे। उन्होंने कहा जैसे ही हालात ठीक होंगे, गहनें बनवा देंगे।
इसी बीच काफी समय का गैप पड़ गया। मैं साधना, समाधि कर रही थी। कुछ-कुछ समझ भी विकसित होने लगी थी। अब अपने पति से गहनों के विषय में कुछ नहीं कहती थी।
एक दिन वह समय भी आया जब मेरे सारे गहने, कंगनों के साथ मुझे वापस मिल गए।लेकिन यह क्या... मन में कोई खुशी नहीं थी। उस रात अपने कंगनों के साथ मैं जब बेड पर बैठी तो मैंने खुद से कहा अब इन्हें खाओ (literally) मैंने अपने दांतो से सोने के कंगन को काटा। मैंने खुद से कहा अब क्या हुआ ...यह वही सोने के कंगन हैं, जिस के लिए इतनी रातें रो-रो के निकाली हैं..। अब इन्हें खाकर दिखा...क्या पेट भरता है।
जब यह शरीर चिता पर जलेगा, तो यह सोने के कंगन भी साथ ही जल जाएंगे। यह तेरे साथ नहीं जाएंगे, तो उस सोने की खोज करो जो तुम्हारे साथ जाएगा। तब से सोने(gold) के प्रति भी मोह खत्म हो गया।
मुझे साड़ियों से, new-new dresses से बहुत प्रेम था। मैं चाहती थी कि मेरे पास हर रंग की, हर डिजाइन की कीमती से कीमती साड़ी हो, dress हो। मैंने काफी साड़ियां खरीदी भी, लेकिन एक बार बाबा से प्रवचन में अपरिग्रह के बारे में सुना, तब से मैंने नए कपड़े खरीदना बंद कर दिया। जो कपड़े हैं, वह इतने काफी हैं कि मेरे हर समारोह में डालने के लिए पर्याप्त हैं।
यहां पर भी मुझे मेरी नानी की याद आई। मेरी नानी ने नया घीया-रंग का सूट सिलवाया था। 2 अक्टूबर 1993 को मेरे नाना जी के जन्मदिन पर नानी ने वह सूट डालना था। लेकिन 2 अक्टूबर 1993 को नाना जी के जन्मदिन वाले दिन ही उनकी मृत्यु हो गई। उनका अंतिम संस्कार उसी नयें सूट में हुआ। क्या पता था कि उन्होंने नया सूट अपनी अंतिम यात्रा के लिए ही सिलवाया है।
अब जब भी मैं किसी shop पर, dummy पर लगे सूट व साड़ी के प्रति आर्कषित होती तो तुरंत ही होश में आ जाती, खुद ही मन में सवाल आता क्या यह dress मैं भी अपने अंतिम संस्कार में पहनने के लिए ले रही हूं। तभी एकदम से वैराग्य उत्पन्न होता और dress के प्रति मोह तुरंत विदा हो जाता। कई सालों से मैंने कोई नई साड़ी नहीं खरीदी है। बाबा का दिया इतना कुछ है, कि सब उसी में adjust हो जाता है।
समय बीतता गया, इसी तरह समाधियां आगे बढ़ती रहीं। आनंद समाधि करने के लिए मैं ट्रेन से मुरथल आ रही थी। पहले नाभा से ट्रेन द्वारा सोनीपत जाते थे, सोनीपत से फिर ऑटो लेकर मुरथल आना पड़ता था। मैं ट्रेन में बैठी थी। आधा सफर कट चुका था। अचानक मेरे आज्ञा चक्र पर कुछ होने लगा। ट्रेन में ही मुझे 'आनंद समाधि' का अनुभव होने लगा था। मैंने खिड़की से बाहर देखा तो हवा से पेड़ झुके जा रहे थे, पर मुझे लग रहा था कि जैसे वह नमस्कार कर रहे है। मैं भी सारे रास्ते उन सभी को नमस्कार करती आ रही थी। बहुत अद्भुत अनुभव था वह।
गुरु की याद, और सारी शक्तियों का सहयोग मिलने लगता है :
पढ़ाई का शौक होने के कारण शादी के बाद भी मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। अब मेरी पोस्ट ग्रेजुएशन कंप्लीट हो गई थी। अब मैं PHD करना चाहती थी।
जब PHD में एडमिशन लेने के लिए पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला गई, तो वहां पर एक प्रोफेसर खुल्लर थीं। उन्होंने मेरे सर्टिफिकेट देख कर कहा इतने अच्छे नंबर...अगर तुम रेगुलर... यूनिवर्सिटी से M.A करती तो तुम गोल्ड मेडलिस्ट होती। इतने नंबर तो हमारे रेगुलर स्टूडेंट भी नहीं लाते, तुमने प्राइवेट होकर इतने नंबर ले लिए। मैंने उनसे कहा आपने कह दिया मेरे लिए यही बहुत है। आज से मैं खुद को gold-medalist ही समझूंगी।
फिर उन्होंने कहा कि अब सीधे तौर पर PHD नहीं कर सकते। पहले M. Phill करनी होगी। मैंने कहा ठीक है M.Phill में मुझे दाखिला दे दीजिए। तो उन्होंने कहा नहीं पूरे पंजाब की मेरिट के आधार पर सिलेक्शन होगी, तो मैं फॉर्म भर कर घर आ गई।
कुछ दिनों बाद एक कोरियर आया। जिसमें मेरे M.Phill के दाखिले की सूचना थी। जब मैं यूनिवर्सिटी गई तो वहां पता चला कि पूरे पंजाब में से सिर्फ 10 students का ही सिलेक्शन हुआ है। और उन 10 students में से एक मैं भी थी। (मैं जानती हूं यह सिर्फ बाबा की कृपा से ही हुआ था।)
M. Phill में Book लिखकर थीसिस जमा करवाना होता था। एक topic पर मुझे book लिखने के लिए दी गई थी। Book कंप्लीट कर अपने thesis जमा करवाने के लिए मैं पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला गई।
थीसिस सबमिट कर जब मैं वापस नाभा के लिए आने लगी तो पटियाला बस स्टैंड पर अनाउंसमेंट हो गई कि बस वालों की स्ट्राइक हो गई है। जो बसें जहां थी वहीं रुक गईं। कोई भी बस पटियाला से नाभा नहीं आ रही थी। मैं पटियाला में ही फंस गई थी। दोपहर के 1:00 बज चुके थे। 2:00 बजे मुझे बच्चों को स्कूल से वापस लेने भी जाना था। और मैं दूसरे शहर में फंस गई थी। जहां मुझे कोई नहीं जानता था और न ही मैं किसी को जानती थी। उस दिन मेरे पति भी किसी काम के सिलसिले में बाहर गए हुए थे, नहीं तो उन्हीं को बुला लेती।
अब क्या करूं, केवल और केवल बाबा का ही सहारा था। बाबा को स्मरण करते हुए मैं रोती जा रही थी। पटियाला से नाभा के लिए पैदल ही चल पड़ी थी। दुख निवारण गुरुद्वारे के पास पहुंची तो एक ऑटो वाले ने कहा नाभा.. नाभा... नाभा... मैं अकेली थी। एक दिल कर रहा था कि बैठ जाऊं... एक दिल डर रहा था...नहीं, मैं अकेली हूं...मुझे नहीं बैठना चाहिए...।
मैं सिर्फ और सिर्फ बाबा को याद किए जा रही थी। बाबा आप ही मेरे सहारे हैं। बाबा रास्ता दिखाओ। केवल और केवल बाबा ही मुझे याद आ रहे थे।
तभी अचानक पुल की ओर से मैंने एक व्यक्ति को आते देखा। वह हमारे नाभा के ही ओशोधारा सन्यासी स्वामी गणेश थे। मुझे लगा बड़े बाबा ही उन स्वामी जी के रूप में प्रकट हुए हैं। उन्होंने कहा मां जी आप यहां...। मैंने कहा जी स्वामी जी हड़ताल की वजह से मैं यहां फंस गई हूं, तो उन्होंने कहा चलो ऑटो में चलते हैं। उन्हें देखकर मुझे कुछ हौसला हुआ। जब हम ऑटो में बैठने जा रहे थे तो अचानक 6-7 और लेडीस और जेंट्स आ गए। वह भी नाभा जाना चाहते थे। वह भी उसी ऑटो में बैठ गए।
मैं समझ गई ऑटो भी बाबा हैं, ऑटो चलाने वाला भी बाबा हैं, और इनमें जो लोग बैठे हैं वह सब बाबा ही हैं। बाबा ने स्वयं को मेरे लिए अनेक रूपों में विभाजित कर लिया था। ताकी मैं अपने शहर में बिना किसी डर के पहुंच जाऊं।( धन्य है बाबा आप धन्य हैं )
2:00 बज चुके थे मैं सोचने लगी थी कि बच्चों की छुट्टी हो गई होगी। सब बच्चे जा चुके होंगे। मेरे बच्चे सड़क पर रो रहे होंगे। यह सोच-सोच कर मैं घबरा रही थी। एक ही काम कर रही थी कि बाबा को याद करना नहीं छोड़ा। निराश नहीं हुई।
नाभा पहुंचकर फटाफट ऑटो से उतरकर साइकिल स्टैंड से अपनी स्कूटी उठाई और बच्चों के स्कूल की तरफ भागी। स्कूल की गली बिल्कुल खाली थी। लगा सभी जा चुके होंगे। 2:10 होने वाले थे। सोचा स्कूल जा कर पूछती हूं कि कितनी देर हो गई है छुट्टी को हुए।
स्कूल की गली में भी कोई नजर नहीं आ रहा था। मैं बहुत घबरा गई थी। बच्चे कहां गए..., कहीं कोई उनको उठा कर तो नहीं ले गया...। क्या हुआ होगा...मन में बहुत बुरे बुरे विचार आ रहे थे।
जैसे ही स्कूल की दीवार के पास पहुंची... स्कूल की घंटी बजी... तब छुट्टी हुई...। बच्चे लाइन बनाकर बाहर आने लगे। मेरी आंखों से अहोभाव की बरसात शुरू हो गई थी।
बाबा को कोटि-कोटि धन्यवाद दिया कि बाबा आप ने ही स्कूल की घड़ियों को पीछे कर दिया होगा, कि जब तक मैं स्कूल नहीं पहुंच जाती...बाबा ने छुट्टी की घंटी नहीं बजवाई।
बाबा का शुक्रिया करती हुई, बच्चों को स्कूल से लेकर घर आई तो बाबा के प्रति विश्वास और भी बढ़ गया था। लगने लगा था कि बस बाबा ही मेरे तारणहार हैं, अगर मैं अपना सारा जीवन भी बाबा को समर्पित कर दूं, तो भी कम है।
एक और घटना याद आ रही है। बाबा माधोपुर से मुरथल आ रहे थे। रास्ते में राजपुरा में Midway Restaurant में बाबा को रुकना था। नाभा से हम कुछ लोग बाबा के दर्शन के लिए राजपुरा की तरफ चल पड़े। मेरे साथ मेरा छोटा बेटा भी था। मैंने बाबा के लिए आलू के परांठे बनाए थे।
लेकिन बाबा के आने में बहुत देर हो गई या हम ही शायद समय से पहले पहुंच गए थे। काफी देर इंतजार करने पर भी बाबा नहीं आए। सब को भूख लग गई थी। हमारे साथ कुछ बच्चे भी थे। तो मैंने जो बाबा के लिए आलू के परांठे बनाए थे, वह संगत को बाबा का रूप समझ कर खिला दिए।
शाम को बाबा आए। वहां पर बाबा ने सत्संग किया और पूछा कौन परम पद तक चलने के लिए तैयार है, जरा अपना हाथ उठाओ। सभी ने हाथ उठाए, उनमें एक हाथ मेरा भी था।
बाबा ने मुझे और मेरे बेटे को देखा और कहा यह तुम्हारा extension है? मैंने कहा जी बाबा... यह मेरा बेटा है।(आज भी बाबा के वह शब्द मेरे कानों में गूंजते हैं)
धीरे-धीरे समय बीतने लगा। अब मैं GB international school में नौकरी करने लगी थी। वहां पर सभी टीचर और प्रिंसिपल हैरान थे, यहां तक डायरेक्टर भी हैरान थे कि यह बिना थके कैसे काम कर लेती है। और बिना मार-पिटाई के दसवीं कक्षा के छात्रों को भी हैंडल कर लेती है।मेरी स्कूल की coordinator ने कहा always you do your duty religiously उनका यह compliment मुझे आज भी motivate करता है।
सब कुछ ठीक चल रहा था, पर स्कूल में समाधि कार्यक्रम में जाने के लिए 6 दिन की छुट्टी नहीं मिलती थी।
भयानक-भयानक बहाने बनाकर छुट्टी लेकर मुरथल आश्रम समाधि प्रोग्राम करने के लिए आना पड़ता था। एक बार मुझे फिर से समाधि प्रोग्राम करने के लिए आश्रम आना था, प्रिंसिपल से 6 दिन की छुट्टी मांगने के लिए इस बार मुझे कोई भयानक बहाना नहीं मिल पा रहा था। क्योंकि सभी बहाने मैं पहले ही इस्तेमाल कर चुकी थी। तो इस बार एक आखिरी ब्रह्मास्त्र चलाया। मैंने नौकरी से ही त्यागपत्र दे दिया।
अब मैं आराम से बिना किसी रूकावट के समाधि और प्रज्ञा प्रोग्राम कर सकती थी। इस तरह छुट्टी न मिलने की वजह से नौकरी ही छोड़ दी थी।
समय बीतता गया और समाधि की यात्रा चलती रही। अब मैं चैतन्य सुमिरन करने मुरथल आश्रम गई थी। सहज समाधि में सहज का अनुभव हुआ था पर clear नहीं था।
चैतन्य सुमिरन में संगत के माध्यम से सहज का बहुत clear अनुभव हुआ। कुछ मित्रों को अभी भी अनुभव नहीं हुआ था। बाबा ने session में पूछा किस-किस को अनुभव नहीं हुआ है ,जरा हाथ उठाओ और अब जिस-जिस को अनुभव हो गया है वह हाथ उठाओ। मैंने अपना हाथ उठा दिया। बाबा ने मेरी duty एक स्वामी जी को सहज (ब्रह्म-कण) दिखाने के लिए लगा दी।
मेरी और स्वामी जी की छुट्टी बंद हो गई थी। हमें तब तक lunch करने की इजाजत नहीं थी, तब तक सहज का दर्शन उनको नहीं हो जाता।
मैंने पूरी कोशिश की, उन्हें बताया कि कैसे मैं सहज (ब्रह्म-कण) को देख पा रही थी। उन्हें कुछ-कुछ अनुभव हुआ... तो हमारी छुट्टी खुली... तो हमने खाना खाया।(बहुत अद्भुत अनुभव था)
अब प्रकृति से मेरा प्रेम बढ़ता जा रहा था। लगता था घर में लगे पौधे मुझे बुला रहे हैं। मैं उनके पास बैठती, उनसे बातें करती थी। लगता था कि वे मेरी बात सुनते भी हैं और उसका जवाब भी देते हैं। मेरा तुलसी का पौधा तो मेरे कद जितना बड़ा हो गया था। जब उसे मैं आलिंगन में लेती थी, तो लगता था साक्षात परमात्मा के आलिंगन में हूं।
एक बार मैं अपने कमरे में बैठी थी। अचानक बाबा ने प्रेरणा दे कर मुझे कमरे से बाहर भेजा। मैं कमरे से बाहर आई। बाहर नल लगा था। देखा एक छिपकली नल को चाट रही थी, लेकिन नल बंद था। नल से पानी नहीं आ रहा था।
अब मैं बेचैन होने लगी थी। अगर मैं नल खोलती हूं तो मेरी आहट से छिपकली भाग जाएगी और अगर नहीं खोलती तो छिपकली प्यासी ही रह जाएगी। मैं क्या करूं कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मन में असीम करुणा जन्म ले रही थी। तुरंत बाबा ने एक ख्याल दिया, मैं किचन में गई। वहां से एक गिलास पानी का भरकर लाई और दूर से ही दीवार पर पानी टपका दिया। पानी दीवार से रिसता हुआ छिपकली तक पहुंचा। छिपकली ने पानी पिया। उसे पानी पीता देखकर मुझे बहुत संतोष की अनुभूति हुई।
गाय, कुत्ते, बिल्लियों से तो मेरी दोस्ती थी ही, अब छिपकली से भी मेरी दोस्ती हो गई थी। आमतौर पर स्त्रियां छिपकली से डरती हैं, लेकिन आज एक छिपकली मेरी friend हो गई थी।
इस समय बाबा का वह प्रवचन मुझे याद आ रहा था। जहां बाबा एक छोटे से पौधे की प्यास... हवाओं का चलना.. सागर से लहरों का उठना... बादल बनना.. और उस जगह पर बरस जाना..जहां पर छोटा सा पौधा प्यासा है.. की बात कर रहे थे। सच में बाबा को अपने हर छोटे से छोटे जीव-जंतु, पेड़-पौधे का भी खयाल है।
आया झंझावात :
समय पंख लगा कर उड़ता रहा। वह समय भी आया जब ओशोधारा का विघटन हुआ। मन में बहुत निराशा हुई.... ऐसा कैसे हो सकता है? 2019 के संसद में बाबा ने जो-जो था... सबके सामने खोल कर रख दिया था। वह सब सुनकर मन को बहुत दुःख हुआ। ज्यादा दुःख इसलिए हुआ कि बाबा खुद पीड़ा में थे।
कोरोना महामारी ने नई संभावनाएं पैदा की :
वह तो साक्षात परमात्मा हैं, उन्होंने जल्दी ही पूरी स्थिति को संभाल लिया। इसी दौरान करोना महामारी का दौर चल पड़ा। ऑफलाइन समाधि कार्यक्रम बंद हो गए। फिर से चिंता होने लगी कि अब क्या होगा? क्या यात्रा बीच में अधूरी ही रह जाएगी।
तब मेरा प्रेम- सुमिरन का कार्यक्रम होना था, लेकिन इसी बीच KP Astrology का online कार्यक्रम हुआ। मैंने यह कार्यक्रम अटेंड किया। उस कार्यक्रम के दौरान डॉ. राजन छाबड़ा से विनती की कि बाबा के चरणों में यह अरदास करें कि चाहे महीने में एक बार ही सही.... बाबा, सूफी दरबार में ऑनलाइन दर्शन दे दिया करें।
उन्होंने बाबा के चरणों तक यह मेरी प्रार्थना पहुंचाई। (इसके लिए मैं स्वामी राजन छाबड़ा जी और स्वामी वरुण छाबड़ा जी का बहुत-बहुत धन्यवाद करती हूं ) बाबा ने न केवल सूफी दरबार बल्कि सभी दरबार ऑनलाइन कर दिए। सभी प्रज्ञा प्रोग्राम, समाधि प्रोग्राम और सुमिरन प्रोग्राम ऑनलाइन ही होने लगे।
ऑफलाइन में मेरी प्रेम सुमिरन की बुकिंग थी, लेकिन ऑनलाइन में प्रेम सुमिरन पूरे 1 साल बाद आने वाला था। अब क्या करूं.... क्या पूरा एक साल इंतजार करूं...
आंखों में प्रेम के आंसू लेकर मन ही मन बाबा से प्रार्थना करने लगी। तुरंत बाबा ने एक प्रेरणा दी। मैंने रिसेप्शन पर बात की कि पूरे एक साल तक मेरा कोई प्रोग्राम नहीं है। लेकिन अगले महीने ही प्रेम सुमिरन से अगला प्रोग्राम है, क्या मैं वह अटेंड कर सकती हूं। तो उन्होंने कहा इसके लिए बाबा से परमिशन लेनी होगी। आप पंजाब के कोऑर्डिनेटर आशुतोष जी से बात कीजिए।
मैंने तुरंत आशुतोष स्वामी जी को फोन मिलाया और अपनी व्यथा बताई। तो उन्होंने कहा आप चिंता मत कीजिए, वह मेरे लिए बाबा से बात कर लेंगे। शाम को उनका फोन आया उन्होंने कहा कि बाबा ने परमिशन दे दी है। मेरे लिए तो वह बात थी, अंधा क्या चाहे दो आंखें। (इसके लिए मैं आशुतोष स्वामी जी का बहुत-बहुत धन्यवाद करती हूं। ) इस तरह मेरी सुमिरन की यात्रा ऑनलाइन आगे बढ़ने लगी।
दिसंबर 2020 में वुमन एंपावरमेंट (WE) का प्रोग्राम अटेंड किया। उसके बाद ज़ूम पर वुमन एंपावरमेंट की मीटिंग होने लगीं। प्रोग्राम होने लगे।
मैं मां शशि खुल्लर जी (जालंधर) का बहुत-बहुत धन्यवाद करना चाहूंगी क्योंकि वे पंजाब की WE की कोऑर्डिनेटर हैं, उन्होंने ही मुझे नाभा-पटियाला की WE कोऑर्डिनेटर बनाते हुए 21 October, 2020 को WE group से जोड़ा था।
31 October, 2020 को मां मोनिका जी (दुबई) ने इसी ग्रुप में एक मैसेज डाला।👇
Need the help of some friends who are good in hindi for upcoming book of sadguru. Ones who can spare some time, pls contact me.
यह मैसेज मैंने पढ़ा तो बहुत डरते-डरते लिखा... मां जी *मैं M.Phill हिंदी हूं, अगर मैं आपके किसी काम आ सकूं तो यह मेरा सौभाग्य होगा।
वहां से मोनिका मां का रिप्लाई आया ठीक है आप यूट्यूब से बाबा के प्रवचन को लिखना शुरू करें। सुनो भाई साधो #1 बन रहा है। आचार्य दर्शन जी ऑलरेडी लिख रहे हैं।
मैंने यूट्यूब से बाबा के प्रवचन लिखने शुरू किए और मोनिका मां को भेजना शुरू कर दिया। मोनिका मां उन प्रवचनों को किताब में add करती जा रहीं थीं। इसी तरह सुनो भाई साधो #1 तैयार हो गया और अमेजॉन किंडल पर आ गया।*
मैं मां मोनिका जी (दुबई) का बहुत-बहुत धन्यवाद करती हूं क्योंकि उन्होंने मुझे ज़ूम चलाना सिखा दिया। जिस के कारण ओशोधारा की वुमन एंपावरमेंट की बुधवार की मीटिंग मैं HOST करने लगी। मैं मां डॉक्टर इंदिरा भार्गव जी की बहुत आभारी हूं, उन्होंने मुझे अपनी जूम मीटिंग host करने की भी सेवा दी। इसके लिए उनका बहुत-बहुत धन्यवाद।
मोनिका मां ने मुझे कहा अब सुनो भाई साधो- 2 आपको हैंडल करना है। मैं घबरा गई थी। मैंने कहा मैं इस काबिल नहीं हूं कि मैं अकेली सुनो भाई साधो-2 को हैंडल कर सकूं। तो उन्होंने कहा नहीं..., आप कर सकते हो...आपको करना है...।
जब उन्होंने मुझे इतना मोटिवेट किया तो मैंने हां कर दी। बाबा को याद करते हुए धीरे-धीरे सुनो भाई साधो #2 लिखने लगी और किताब में ऐड करने लगी। और एक दिन सुनो भाई साधो #2 भी कंप्लीट हो गया और बाबा के आशीर्वाद से किताब के रूप में अमेजॉन किंडल पर आ गया। (इस किताब को कंप्लीट करने में मां मनीषा राठौर (छत्तीसगढ़) का बहुत योगदान रहा उन्होंने किताब बनाने में मेरी बहुत तकनीकी सहायता की, और अभी भी कर रही हैं)
मोनिका मां जी की बहुत धन्यवादी हूं, उन्होंने मुझे Canva app पर invite बनाने सिखाए। जिससे ओशोधारा के समाधि, सुमिरन और प्रज्ञा प्रोग्रामों के invite बनाने लगी और मोनिका मां को भेजने लगी ताकि मोनिका मां उन invites को ग्रुप में शेयर कर सकें।
11 जनवरी 2021 ब्रह्म पद का पहला दिन था। उस दिन बहुत सर्दी पड़ रही थी। मैंने सोचा सुबह-सुबह पूरी फैमिली के उठने से पहले ही नहा लूं ताकि किसी और को मेरी वजह से कोई दिक्कत न हो।
तो मैं 5:00 बजे उठकर नहाने चली गई। नहा भी ली थी, लेकिन अचानक मैंने देखा मेरी चेतना सिकुड़ने लगी है। मेरी चेतना शरीर से बाहर निकल गई और मैं धड़ाम से बाथरूम के फर्श पर गिर पड़ी। गिरने की आवाज सुनकर मेरे पति भागे हुए आए।
थोड़ी देर बाद मैंने अपने आप को बेड पर रजाई में लिपटा हुआ पाया। मेरे पति मेरे पास ही खड़े थे। एकदम स्तब्ध रह गए थे....। उनके मुंह से कोई बोल नहीं निकल रहे थे...। बाद में उन्होंने बताया, मैं बाथरूम में गिर गई थी। मेरी सांस नहीं चल रही थी। वह मुझे उठा कर लाए, मेरे ऊपर रजाई डाल दी, लेकिन मेरी सांस नहीं चल रही थी। मैं मर चुकी थी। उन्होंने मेरा मुंह रजाई से ढक दिया था।
लेकिन अचानक उनके दिमाग में एक ख्याल आया जैसे TV में heart को दबाने से पेशेंट को सांस आ जाती है वैसे ही वो मेरा पेट दबाने लगे। अचानक ही मेरी सांसे चले लगी। उन्होंने शुक्र मनाया कि मैं जिंदा हूं।
ब्रह्म पद तो अभी शुरू भी नहीं हुआ था कि मेरी सांसों के रूप में (जीवन के रूप में) बाबा का आशीर्वाद मुझे मिल गया था। बाथरूम में गिरने की वजह से मेरे बांए कंधे में बहुत चोट आई। पूरा ब्रह्म पद मैंने उसी दर्द में किया, लेकिन दर्द का जरा भी एहसास नहीं हुआ, बल्कि बाबा की कृपा बरसती रही, ब्रह्म-कणों की खुमारी छाई रही।
13 जनवरी 2021 लोहड़ी (Lo hari) का त्यौहार था। उस दिन वुमन एंपावरमेंट की Zoom पर मीटिंग भी थी। त्यौहार की वजह से बहुत कम लोग ही जुड़े थे, लेकिन यहां पर भी बाबा की कृपा मुझ पर खूब बरसी।
इस मीटिंग में मनीषा राठौर मां ( छ.ग.) से मेरी पहली मुलाकात हुई थी।(तब से वह मेरी best friend बन गई हैं) मनीषा मां ने कहा कि उन्हें facilitator की जरूरत है, उन्हें ऐसे लोगों की जरूरत है जो ओशोधारा के कार्यक्रमों की जानकारी देने के लिए फोन-कॉल कर सकें। मैंने अपना हाथ खड़ा किया कि मैं यह काम करने को तैयार हूं। उन्होंने मुझे facilitator वाले group में Add कर लिया और मुझे कॉलिंग का काम मिलने लगा।
अब साधकों को मैं call करके आने वाले प्रोग्रामों के बारे में बताने लगी और मोटिवेट भी करने लगी थी। ओशोधारा के साधक-गण बहुत खुश होते, उन्हें इंफॉर्मेशन दी जा रही थी कि उनके लिए समाधि और सुमिरन कार्यक्रम कब-कब हैं। कब उन्हें जल्दी से जल्दी बुकिंग करवानी है।
यहां पर भी मुझे बाबा का बहुत सहयोग मिला। कई बार साधक ऐसे प्रश्न पूछते थे जिनका मेरे पास कोई उत्तर नहीं होता था। मैं बाबा को मैसेज करती और बाबा तुरंत उसका रिप्लाई मुझे भेज देते। इसके लिए बाबा के चरणों में ढेरों नमन और वंदन हैं।
कोरोना की दूसरी लहर :
मार्च 2021 अब कोरोना की दूसरी लहर शुरू हो गई थी। 15 मार्च 2021 को मुझे भयानक रूप से कोरोना हो गया था। हालत बहुत बुरी थी। खांसी इतनी थी कि सांस नहीं आ रहा था। उसी हालत में मैंने बुधवार को वुमन एंपावरमेंट की मीटिंग HOST की। यहां पर मां रचना ने मेरी हालत देखी और मुझे कोरोना टेस्ट करवाने को कहा। लेकिन हमारे शहर के हालात इतने खराब थे कि जो भी एक बार हॉस्पिटल जाता था, तीसरे दिन उसके मरने की ही खबर आती थी।
नाभा में कई केस ऐसे हो चुके थे। हमारे परिवार वाले डर गए थे। मैंने भी सोच लिया था अगर मृत्यु को प्राप्त होना ही है, तो घर में ही शांति से मर जाऊंगी।
लेकिन........
जाको राखे _"बाबा"_ मार सके न कोय
अंतर्यामी बाबा ने बिना मेरे कुछ कहे ही, ट्वीटर पर homeopathy दवाइयां और Viral-C drops recommend किए थे। मैंने तुरंत सभी दवाइयां और galeria से Viral-C drops मंगवा लिए। हैरानी की बात थी जिन स्वामी जी ने galeria से मुझे Viral-C drops corrier से भेजे थे, उन्होंने मुझे फोन पर कहा मां जी आप चिंता मत कीजिएगा आप बिल्कुल स्वस्थ हो जाएंगी, बाबा आपको कुछ नहीं होने देंगे। हमें भी कोरोना हो गया था, हमें भी बाबा ने ही ठीक किया है। उनके शब्दों ने मुझ पर जादू सा असर किया।
बाबा की कृपा से मेरा कोरोना ठीक होना शुरू हो गया था।बाबा ने गहरी-गहरी सांसे लेने को भी कहा था। सांस ही नहीं आ रही थी तो गहरी सांस कैसे लेती। लेकिन तभी मुझे अपनी सम्मोहन प्रज्ञा याद आई। जिसमें बाबा ने प्रयोग करवाया था कि गहरे कुएं में उतरो और कुएं की पेंदी तक जाओ। कुएं की पेंदी में जब मैं उतरी थी तो मैंने देखा था, वहां पर बाबा योगी रूप में समाधि में बैठे थे। मैंने सोचा बाबा यहां पर सांस कैसे लेते होंगे। बाबा मेरे ही भीतर हैं तो मुझे ही इतनी गहरी सांस लेनी होगी कि बाबा तक वह सांस पहुंचे। उसी बात का स्मरण करते हुए, गहरी-गहरी सांस लेने लगी और बाबा ने मेरा कोरोना भी ठीक कर दिया।
"ओखी घड़ी ना देखण दे,
अपना बिरद संभाले,
हाथ दे राखे, अपने कौ,
सांस सांस प्रतिपाले।"
गुरुसेवा :
अब मेरा ज्यादा समय सुमिरन में ही बीतने लगा था।18 अप्रैल 2021 को मैं यूट्यूब पर बाबा के प्रवचन सुनते-सुनते गहरे ध्यान में चली गई, तभी अचानक यूट्यूब पर जोर-जोर से Add का music बजने लगा। जिससे मैं एकदम डर गई थी।
सोचा और लोग भी जो यूट्यूब पर बाबा को सुनते हैं, बार-बार आने वाली Add से परेशान होते होंगे। फिर सोचा बाबा है ना...अपने आप इस मुश्किल का हल निकालने में सहायता करेंगे। हमेशा की तरह उस रात भी मैं ऐसे ही बाबा का ध्यान करते-करते सो गई। सुबह 4:54 am पर एक vision आया, क्यों न मैं बाबा के वीडियो प्रवचन को ऑडियो में convert करूं। यह vision इतना clear था कि लगा बाबा का ही आदेश है।
सुबह 10 बजे मैंने दर्शन स्वामी जी से बात की कि मुझे इस तरह vision आया है... इसके लिए मुझे क्या करना चाहिए। दर्शन स्वामी जी ने चैतन्य रवि स्वामी जी से बात करने के लिए कहा। चैतन्य रवि स्वामी जी ने अतुल स्वामी जी से बात करने के लिए कहा। अतुल स्वामी जी ने मुझे वीडियो कन्वर्ट करना फोन पर ही सिखा दिया। अब मैं वीडियो को ऑडियो में कन्वर्ट करना सीख चुकी थी। (इसके लिए मैं अतुल स्वामी जी का बहुत-बहुत धन्यवाद करती हूं।)
बाबा से.., बाबा के वीडियो.. ऑडियो में कन्वर्ट कर ग्रुप में पोस्ट करने की आज्ञा और आशीर्वाद मांगा। करुणामयी बाबा ने तुरंत आशीर्वाद का मैसेज भेज दिया। इस तरह बाबा की आज्ञा और आशीर्वाद से 20 अप्रैल 2021 को बाबा के यूट्यूब वीडियो प्रवचन ऑडियो में कन्वर्ट होकर ग्रुप में डालने शुरु हो गए थे। सद्गुरु के अमृत वचन डालने से पहले ग्रुप में यह मैसेज डाला था।
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सभी मित्रों को प्रणाम,
आज से एक नए सिलसिले की शुरुआत होने जा रही है।बाबा के प्रवचन हम यू-ट्यूब पर सुनते हैं, जब बार-बार सुनते हैं तो बहुत सारी Adds आती हैं, हमें उन Adds को हटाने के लिए skip करना पड़ता है। कई बार हम सुनते-सुनते ध्यान में चले जाते हैं, लेकिन Adds आकर हमारा ध्यान भंग कर देती हैं, हमें मजबूरी में आंखें खोल कर उन्हें skip करना पड़ता है, तो इस मुश्किल को दूर करने के लिए, बाबा के आशीर्वाद और आज्ञा से उनके प्रवचन ऑडियो में भी कन्वर्ट कर रही हूं। रोज एक प्रवचन आपको ऑडियो में भी सुनने को मिलेगा।
उसे आप अपनी मोबाइल की Play-list में save कर सकते हैं और ध्यान करते समय, घर में काम करते समय, गाड़ी चलाते समय, रात को सोते समय बिना किसी Adds की disturbance के बाबा को 24 घंटे हृदय के करीब रख सकते हैं।
मैं हैरान थी 4:54 am पर vision आया, दिन में बाबा ने ऑडियो कन्वर्ट करना भी सिखा दिया था। मैंने कुछ ऑडियो कन्वर्ट कर अपने पास एक लाइब्रेरी भी बना ली थी और शाम 7:54 पर बाबा का आशीर्वाद रूपी Go ahead का मैसेज भी आ गया था। 15 घंटे के भीतर-भीतर यह सब कुछ हो गया। आश्चर्य... आश्चर्य... आश्चर्य। यह केवल और केवल बाबा की कृपा से ही संभव हो सकता है।
जन्मजात प्रतिभा का विकास :
समय ने फिर उड़ान भरी। 12 मई 2021 बुधवार का दिन आ गया। इस दिन WE की मीटिंग में पंजाब स्टेट की तरफ से परर्फोर्मेंस होनी थी। पंजाब की तरफ से मैंने भी डांस में अपना नाम लिखवा दिया था।
बचपन से ही मुझे dance का शौंक रहा है। मैं उच्च कोटि की क्लासिकल डांसर बनना चाहती थी। लेकिन पिता का साया सिर पर न होने की वजह से मम्मी ने बहुत पाबंदियों से मुझे पाला।
इसलिए अपनी इच्छा को किसी से न कह कर अपने मन में ही दबा दिया। लेकिन बाबा से कुछ छुपा है क्या? बाबा तो जानी-जान हैं। सबके दिलों की जानते हैं। बाबाजी ने फिर से मुझ पर कृपा की। मेरी इस दबी इच्छा का भी सम्मान किया।
WE के प्रोग्राम में पंजाब की तरफ से परफॉर्मेंस देते हुए बाबा ने मेरे घर को ही STAGE बना दिया और खुद ही मुझसे राधा-कृष्ण पर नृत्य-नाटिका करवा दी, जोकि बहुत सराहनीय रही। मुझे भी नृत्य-नाटिका कर बहुत आनंद आया और मेरी डांस की इच्छा भी पूरी कर दी।
परमपद :
इसी तरह समय बीतता गया और परम पद भी आ गया। 1-9 जून परमपद की गहराइयों में उतरने लगी।
साथ ही 1 से 30 जून 2021 Yoga Course-1 करने के बाद 1 से 29 अगस्त 2021 Yoga Course-2 कर रही थी।
27 अगस्त को शुक्रवार वाले दिन सुनो भाई साधो आना था और अगले दिन 28 अगस्त को सुबह 8:00 बजे से Yoga Course-2 का theory का फाइनल पेपर होना था। मैं सुनो भाई साधो में बाबा के आने का इंतजार कर रही थी, लेकिन अचानक बाबा का एक मैसेज आया।
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Due to technical problems we could not broadcast Suno Bhai Sadho-133 today. Inconvenience is sincerely regretted.
टेक्निकल प्रॉब्लम के कारण उस दिन सुनो भाई साधो नहीं होगा।
लेकिन मैं जानती हूं बाबा ने यह सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए ही किया क्योंकि सुनो भाई साधो लिखते-लिखते रात के 2:00 बज जाते हैं और सुबह 8:00 बजे ही online पेपर में enter होना था।
बाबा तो अंतर्यामी हैं मेरे लिए ही बाबा उस दिन नहीं आए ताकि मैं रात को एक बार सब कुछ revise करके सुबह अच्छे से पेपर कर सकूं और बाबा की कृपा से ही मैं Yoga Course-2 में भी Top कर सकी। बाबा के चरणों में infinite... धन्यवाद है, दंडवत प्रणाम है।
शुक्रगुजार और धन्यवादी हूँ :
मैं आचार्य दर्शन जी की बहुत-बहुत शुक्रगुजार हूं ,धन्यवादी हूं क्योंकि वे सदा मेरा मार्गदर्शन करते हैं। जब भी मुझे सहायता की जरूरत होती है वे सदा मेरी सहायता करते हैं। उन्होंने सुनो भाई साधो #2 group में post करने में भी मेरी बहुत सहायता की और सुनो भाई साधो #3 मुझे खुद post करने के लिए प्रेरित किया।
गुरूसाहिबानों की जीवनी लेखन :
गुरु पूर्णिमा पर उन्होंने मुझ पर विश्वास जताते हुए मुझे एक जिम्मेदारी दी।
मुझे बाबा की नई किताब के लिए 10 गुरु साहेबान में से 5 की जीवनी को लिखना था। मैंने अपनी तरफ से पूरी मेहनत, लगन, पूरी श्रद्धा के साथ गुरु साहेबानों की जीवनी लिखी।
जब मैं गुरु साहेबान की जीवनी लिख रही थी, तो उनके जीवन के बारे में जानकर बहुत भावुक हो गई थी। खासकर तब जब वहां पर एक दृष्टांत आया था कि गुरु रामदास जी से मिलने गुरु नानक देव जी के पुत्र श्री चंद जी आए थे, तो उन्होंने गुरु रामदास जी से पूछा था कि इतनी लंबी दाढ़ी क्यों बढ़ाई है। तो गुरु रामदास जी ने कहा आप जैसे महापुरुषों के चरण झाड़ने के लिए दाढ़ी को बढ़ाया है।
इस तरह के अन्य दृष्टांतों से गुरु के प्रति और भी अधिक भक्ति-भाव में, समर्पण में और भी गहरे डूबने की प्रेरणा भी मिली।
चरैवेति कार्यक्रम :
इसी तरह समय बीतता गया और जब मैं चरैवेति करने 25-30 July 2021 को मुरथल गई। बाबा session में प्रश्न का उत्तर पूछ रहे थे। बाबा ने कहा था खुद ही आकर उत्तर बता दो... नहीं तो रोल नंबर वाइज बुलाया जाएगा...।
अचानक बाबा ने कहा रोल नंबर 9
9 रोल नंबर मेरा था। मैं खड़ी हुई तो बाबा ने सबको कहा कि यह प्रार्थना है, जो सुनो भाई साधो लिखती है। मैं हैरान थी, आंखों में अहोभाव के आंसू थे और मन में यही भाव थे:-
तुलसी तुलसी सब कहें, तुलसी बन की घास।
हो गई कृपा राम की, बन गए तुलसीदास।
मैं तो एक घास के तिनके के समान थी, लेकिन बाबा ने कृपा कर उस घास को भी "दूब" बना कर पवित्र कर दिया।
मेरा आपकी कृपा से, सब काम हो रहा है।
"करते हो आप बाबा", मेरा नाम हो रहा है। सब कुछ आप ही करने और करवाने वाले हो।
चरैवेति में बाबा ने आशीर्वाद स्वरुप अपने गाउन सभी साधकों को उपहार में दिए। यहां भी मेरे साथ चमत्कार घटित हुआ। पूरी लिस्ट में बाबा एक के बाद एक नाम लिए जा रहे थे, लेकिन मेरा नाम नहीं आ रहा था। मैं डर गई थी कि इस list मेंं मेरा नाम है भी या नहीं।
लेकिन अंतिम नाम बाबा ने बोला रमियां... बाबा के मुंह से अपना नाम सुनकर मैं फूली नहीं समा रही थी। मैं भी गाउन लेने के लिए ऑडियो ऑपरेटर के पास पहुंची। वहां पर केवल दो गाउन ही रह गए थे। हम दो लोग एक साथ पहुंचे थे। मैंने उन मां जी को पहले गाउन लेने दिया।
मुझे क्या पता था अंतिम गाउन मेरी ही पसंद के रंग का होगा जैसे ही गाउन मुझे मिला तो गाउन को वहीं सिर पर रखकर नाचने का मन कर रहा था। यह इच्छा मैंने रूम में आकर और घर पर आकर पूरी की। गाउन को सिर पर रखकर ऐसा नाची कि आनंद ही आ गया।
मैं भगवान राम को नहीं जानती, भगवान कृष्ण को नहीं जानती। ओशो को भी कभी नहीं देखा।
लेकिन बाबा के रूप में मुझे सब मिल गए। मैं बाबा में ही राम, कृष्ण और ओशो के दर्शन करती हूं। और यहां तक कि बाबा में ही मुझे मेरे पिता के दर्शन भी होते हैं। अगर दुनिया में पिता का कोई रूप होता है, तो वह जरूर बाबा की तरह ही होता होगा।
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर जब बाबा ने यह कहा ऐसा लगता है जैसे बहुत दिनों बाद पुत्री अपने पिता से मिलने मायके आई हो उसी तरह की खुशी हो रही है। यह सुनकर मेरा रोम-रोम रोमांचित हो गया था। मेरे लिए यह बात बिल्कुल सच थी। मैं अपने पिता से मिलने ही आई थी।
एक प्रवचन में बाबा को कहते सुना था कि अभी चलना है... कुछ भी पेंडिंग तो नहीं है...।
तब से मैंने भी यह साधना करनी शुरू कर दी थी। रोज रात को सोते हुए खुद से पूछती थी प्रार्थना...चलना है...,कुछ भी पेंडिंग तो नहीं है...।
आज मैं कह सकती हूं बाबा... कुछ भी पेंडिंग नहीं है। अगर अभी, इस क्षण चलना पड़े, तो भी मैं चलने के लिए सहर्ष तैयार हूं। कुछ भी पेंडिंग नहीं है...।
दिन भर के काम से जब मैं रात को थक कर pillow पर सिर रख कर सो जाती हूं, तो लगता है यह pillow नहीं है मेरे पिता, मेरे बाबा की गोद है।
जैसे एक बालक पिता की गोद में शांति से सो जाता है। उसी तरह में भी अपने पिता, बड़े बाबा की गोद में रोज रात को सिर रख कर सो जाती हूं।
और इस तरह सो जाती हूं जैसे यह अंतिम रात हो और सुबह बाबा ने उठा दिया तो बहुत-बहुत शुक्रिया कह कर उठ जाती हूं कि बाबा आपने कितना हसीन दिन *फिर से सुमिरन करने के लिए दिया है, इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
कहने को तो बहुत कुछ है:-
परंतु कहते हैं न...
हरि अनंत हरि कथा अनंता
मेरे लिए तो बाबा अनंत बाबा की लीला अनंता है।
हम सबको हर सांस में बाबा का आशीर्वाद मिल रहा है क्योंकि यह जो हवा चल रही है, यह बाबा के चरणों को छू कर, उनका आशीर्वाद लेकर पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त हो रही है। और यह मुझ तक भी पहुंच रही है। मैं इसी हवा में सांस ले रही हूं, तो बाबा का आशीर्वाद स्वतः ही सांस-सांस में मिल रहा है।
धन्य हैं बाबा आप धन्य हैं।
अंत में बस मैं यही कहना चाहूंगी...
हमें और जीने की, चाहत न होती..
अगर तुम न होते, अगर तुम न होते।
तुम्हें देख कर तो लगता है ऐसे,
बहारों का मौसम आया हो जैसे..
दिखाई न देती अंधेरों में ज्योति
अगर तुम न होते, अगर तुम न होते।
हमें जो तुम्हारा सहारा ना मिलता,
भंवर में ही रहते किनारा ना मिलता।
किनारे पे भी तो लहर आ डुबोती...
अगर तुम न होते, अगर तुम न होते।।
इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी लेखनी को विराम देते हुए बाबा का लाख-लाख, करोड़-करोड़, शंख--शंख, पदम-पदम धन्यवाद करती हूं। बाबा की कृपा और आशीर्वाद ने ही मुझे, "मेरी आध्यात्मिक यात्रा" लिखने का सामर्थ्य, प्रमाणिकता और साहस दिया है।
बाबा इसी तरह सदा हम सब को अपनी असीम कृपा,अथाह प्रेम और अनंत आशीर्वाद की छत्रछाया में रखेंगे, ऐसा मेरा अटूट विश्वास है।
धन्यवाद
सद्गुरु के चरणों में कोटि-कोटि नमन🙏🙏🙏🙏🙏
-आचार्य प्रार्थना, नाभा (पंजाब)
(30-11-2021)
अनंतसंसार समुद्रतार नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्याम् ।
वैराग्यसाम्राज्यदपूजनाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 1 ॥
कवित्ववाराशिनिशाकराभ्यां दौर्भाग्यदावां बुदमालिकाभ्याम् ।
दूरिकृतानम्र विपत्ततिभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 2 ॥
नता ययोः श्रीपतितां समीयुः कदाचिदप्याशु दरिद्रवर्याः ।
मूकाश्र्च वाचस्पतितां हि ताभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 3 ॥
नालीकनीकाश पदाहृताभ्यां नानाविमोहादि निवारिकाभ्यां ।
नमज्जनाभीष्टततिप्रदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 4 ॥
नृपालि मौलिव्रजरत्नकांति सरिद्विराजत् झषकन्यकाभ्यां ।
नृपत्वदाभ्यां नतलोकपंकते: नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 5 ॥
पापांधकारार्क परंपराभ्यां तापत्रयाहींद्र खगेश्र्वराभ्यां ।
जाड्याब्धि संशोषण वाडवाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 6 ॥
शमादिषट्क प्रदवैभवाभ्यां समाधिदान व्रतदीक्षिताभ्यां ।
रमाधवांध्रिस्थिरभक्तिदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 7 ॥
स्वार्चापराणां अखिलेष्टदाभ्यां स्वाहासहायाक्षधुरंधराभ्यां ।
स्वांताच्छभावप्रदपूजनाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 8 ॥
कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां विवेकवैराग्य निधिप्रदाभ्यां ।
बोधप्रदाभ्यां दृतमोक्षदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 9 ॥
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हर नदी की मंज़िल सागर है।
ReplyDeleteऔर सागर में सबको एक हो जाना है , सागर का सभी का अनुभव एक ही है।
पर सागर तक कि यात्रा में सबकी अपनी-2 चुनौतियां हैं।
ऐसी ही मां प्रार्थना रूपी नदी की सागर की यात्रा पढ़कर मज़ा और आंनद आया।
🕉️🙏जय गुरुदेव🙏🕉️
🙇
ReplyDeleteसद्गुरु के प्रेम में कैसे जिया जाता है? कैसे खुद को मिटाया जाता है? कैसे अपने गुरु में सभी संतो सिद्धों बुद्धों का एक साथ दर्शन किया जाता है? यह कोई मां प्रार्थना से सीखे।
ReplyDeleteआपके इस अद्भुत यात्रा को पढ़कर हर पैराग्राफ पर रोना आया। आनंद के आंसू बह चले। सद्गुरु जब होते हैं तो ऐसे ही होते हैं और शिष्य जब होते हैं तो मां प्रार्थना जैसे होते हैं।
यह सब कुछ इतना आनंद पूर्ण है कि आपकी लेखनी को बार-बार प्रणाम करने को मन करता है।
बहुत-बहुत धन्यवाद प्रार्थना मा।
मां प्रार्थना की साधना यात्रा ने मुझे भाव विभोर कर दिया। बहुत प्रेरणादायक यात्रा का वर्णन है। जय गुरुदेव।
ReplyDelete🙏🙏🙏🙏🙏
Pranam Ma jee, you are fortunate that Sadguru has chosen you.
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