• Breaking News

    मेरी साधना यात्रा ~ आचार्य नारद



    नाम : पूर्ण थापा छेत्री 

    सन्यास नाम : आचार्य नारद

    जन्म : अक्टूबर 1955

    स्थान : स्याङ्जा, नेपाल 

    पेशा : पेंशनर (भारतीय सेना, आर्टिलरी)

    निवास : तिलोत्तमा नगरपालिका-2

    (लुम्बिनी,नेपाल)

    समाधी कार्यक्रम : चरैवेती


    जीवन का पूर्वार्द्ध :

    मेरा जन्म गण्डकी प्रदेश, बस्याङ्जा (भाटखोला) ग्राम में हुआ। जो कि पोखरा महानगरपालिका से लगभग 30 कि.मी. दूरी पर है।

    मेरे पिता जी भारतीय गोरखा सेना मे कार्यरत थे। तो उनके साथ बचपन से ही आसाम (बरपेटा, पाठशाला) देहरादून और शिमला आदि स्थानों में साथ रहा और पढाई की।

    मेरे पिताजी देवी माता के अनन्य भक्त थे। और सुबह-संध्या दुर्गा सप्तसती का नियमित पाठ करते थे। मेरी माताजी अनपढ होने के बावजूद समझदार और दूरदृष्टि वाली महिला थी।

    देहरादून में मेरा दाखिला "कन्हैया वार मेमोरियल ब्वाइज हॉस्टल" में किया गया। पिताजी 1966 अक्टूबर मे रिटायर हो चुके थे। करीब एक साल के बाद मैं हॉस्टल से बिदा होकर अपने पैतृक ग्राम नेपाल में आ गया। उन दिनो स्कूल बहुत कम थे। मेरे घर से लगभग डेढ घन्टा पैदल उँची पहाड़ी पर एक मिडिल स्कूल में सातवीं क्लास में भर्ती हुआ। यहीँ से आठवी क्लास पास करने के वाद मैं तराई में बुटवल मे आ गया और बुटवल हाई स्कुल से SLC की पढाई पुरी की। उस समय में बिजली, पानी और गैस सिलिन्डर की सुविधा नही थी। यातायात की सुविधा भी बहुत कम मात्रा में थी। आर्थिक समस्या और अन्य विसंगतियों के बावजूद मेरे तीन भाइयाे और दाे बहनाे की  पढाई आगे जारी रही।

     मेरे पढाई के समय में नेपाल मे भूमिगत रूप मे कम्युनिस्ट पार्टी अपनी सरकार की स्थापना के लिए अपने संगठन को मजबूत करने में लगी थी। मैं भी विद्यार्थी नेता के रूप मे काम करने के लिए चुना गया। मैं भूमिगत रूप में काम करने लगा और इस बात का पिताजी को पता लग गया।मेरी गिरफ्तारी भी हो सकती थी तो पिताजी मुझे भारतीय सेना मे भर्ती के लिए गोरखपुर में ले गऐ। मात्र 17 साल की छोटी उम्र में मैं आर्टिलरी में भर्ती हो गया। मैं चाहता तो नही था लेकिन मजबूरन भर्ती हो गया। कुछ दिन के पश्चात् मैं "आर्टिलरी ट्रेनिंग केन्द्र, नासिक" पहुँच गया। ट्रेनिंग के पश्चात् मुझे एक रेजिमेन्ट में पोस्टिंग किया गया। मैने अपना ज्यादतर सर्विस पठानकोट और जालंधर में किया। जम्मू, दिल्ली और राजस्थान में भी काम करने का मौका मिला। मैने प्रोमोशन और पोस्टिंग विभाग में अभिलेख अधिकारी के रूप में काम किया। व्यस्त होते हुए भी समय निकालकर पंजाब यूनिवर्सिटी से B.A. की पढाई पूरी की। सर्विस के दौरान मुझे दो साल का "Russian language Interpretership course" दिल्ली में करने का सुवर्ण अवसर मिला। आर्मी लाइफ बहुत ही "रफ और टफ" होती है, किसी तरह 28 साल के वाद मैने अवकाश लिया। सर्विस के दौरान मुझे काफी खट्टे-मीठे अनुभव और उतार-चढाव से गुजारना पड़ा।

    अवकाश के वाद मैं परिवार के लिय घर और तीन बच्चो की पढाई में ध्यान देना शुरु किया। रिटायर होने के वाद जो पैसे मिले थे, मकान बनाने मे समाप्त हो गए और पूरा भी नही हुआ। उस समय मेरे पास विकल्प के लिए कुछ काम थे जैसे कोइ बिजनेस या कोइ नौकरी। उस समय भूमाफिया का धन्धा भी खूब जोर पर था। लेकिन मुझे इन सब मे कोइ रुचि नही थी। आगे भविष्य कुछ और ही मंजूर था।


    सद्गुरु की तलाश :

    मेरी धर्म में बचपन से ही रुचि थी। पूजा, प्रार्थना और जहाँ भी धार्मिक अनुष्ठान होते थे, मैं वहाँ अवश्य जाता था। अवकाश से पहले मैं "गीता प्रेस" से प्रकाशित "कल्याण" पुस्तिका नियमित पढता था। जिसमें स्वामी रामसुखदास जी, हनुमान प्रसाद पोद्दार और जयलाल गोयन्का आदि विद्वान के लेख होते थे। भीतर एक प्यास थी कि कहाँ ऐसे ज्ञानी पुरुष के शरण मे जायूँ जो मेरी मुमुक्षा को शान्त कर सके। उस समय सत्य सांईबाबा, राधा स्वामी, राधे-राधे और कृष्ण प्रणामी आदि धार्मिक सङ्गठन से जुडे हुए काफी व्यक्ति थे। मैं अपने साथियों से अपने आध्यात्मिक मुमुक्षा के विषय मे चर्चा करता था। एक दिन मेरे भाई ने ओशो की पत्राचार पर आधारित एक पुस्तक "क्रान्तिबीज़" मझे दी। मैं पढकर बहुत ही प्रभावित हुआ। और मेरे भीतर एक आध्यात्मिक क्रान्ति का सूत्रपात हुआ। अब मुझे यकीन हो गया कि जिनको मैं ढूंढ रहा था वह यही महामानव है। अस्तित्व ने मेरी पुकार सुन ली। लेकिन ओशो तो विदेह हो चुके थे। पुणे ओशो इंटरनेशनल के बारे मे सुना था। वहाँ जाने के बारे में सोचने लगा। इसी बीच ओशो की पुस्तक खरीदकर पढता गया। ओशो अपने प्रवचन मे जीवित गुरु की तलाश करने को कह रहे थे।


    ओशोधारा मे प्रवेश :

    एकदिन एक मित्र ने सूचना दी कि काठमांडू में सोल्टी मोड के पास "स्पार्क हेल्थ होम" में "आनन्द प्रज्ञा" त्रिदिवसीय प्रोग्राम चल रहा है। यह अगस्त 2006 की  बात थी। मैं बुटवल से काठमांडू पहुँच गया। कार्यक्रम में भाग लेने निर्धारित समय पर पहुँच गया। कार्यक्रम का संचालन आचार्य श्री पथिकजी और आचार्य श्री आनन्द जी कर रहे थे। भगवान बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग पर आधारित समसामयिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ओशो के क्रान्तिकारी प्रवचन ने मुझे भीतर से झकझोर दिया।

    दिसम्बर 2006 मे त्रिदिवसीय "योग प्रज्ञा" भी उसी स्थान मे आचार्यश्री पथिक जी के संचालन मे हुआ। तत्पश्चात मातातीर्थ मे "ध्यान-समाधि" और "सुरति-समाधि" का कार्यक्रम जो कि उन दिनो 9-9 दिनो का होता था, पूरा किया। मातातीर्थ मे सर्दी बहुत होती है। दिसम्बर का महीना था और उनका ध्यान मन्दिर और आवास निर्माणाधीन था। यह स्थान खूब उर्जा से भरपूर है। यहाँ पर महायोगी गुरु गोरखनाथ ने कुछ समय वास किया था।

    मैने बहुत ही लगन और मेहनत से कार्यक्रम में भाग लिया।रात को दो-तीन बजे उठाकर आचार्य पथिक जी ध्यान करने को कहते थे। अपने प्रवचन के दौरान वह अक्सर सद्गुरु सिद्धार्थ जी मेरे गुरु हैं, दोहराते रहते थे। तब से मेरे भीतर सद्गुरु से मिलने की उत्कन्ठा तीव्र हो चली थी। 

    उपरोक्त समाधि कार्यक्रम के पश्चात् मैं घर आकर सुबह दो-तीन बजे और फिर आठ बजे पूरी त्वरा और लगन से बताए हुए तरीके से प्रयोग मे लग गया। सद्गुरु के दर्शन तो नही हुए थे लेकिन दर्शन की प्यास तो भीतर तीव्र थी। सद्गुरु को अपने हृदय मे बसाते हुए मैं ध्यान में जीने लगा।कुछ ही दिन के अथक प्रयास के बाद प्रसाद बरसने लगा।मुझ पर अस्तित्व की कृपा बरसने लगी और अपने भीतर के अमोल खजानों से रुबरू होने लगा। गुरु और गोविन्द के प्रेम, श्रद्धा और भक्ति से निहाल हो गया। अश्रु रुकते नही थे और मैं कभी-कभी रोता रहता। विस्मयकारी अनुभूति के साथ सद्गुरु के दर्शन हेतु लालयित होने लगा।


    सद्गुरु दर्शन :

    जुलाई 2009 में ओशोधारा का पहली बार "उर्जा समाधि" कार्यक्रम का आयोजन सौराहा चितवन मे हो रहा था। इसी कार्यक्रम में सद्गुरु "सिद्धार्थ औलिया" जी का समीप से दर्शन हुआ। सद्गुरु के प्रेम से भरे आशीर्वाद को मैं जीवन भर भूल नही सकता। मेरी जन्मो-जन्मों की प्यास पूरी हुई।भोजन के बाद सद्गुरु की मौजूदगी में भजन गायन का अलग ही आनन्द था।

    आगे के प्रत्येक समाधि, प्रज्ञा और सुमिरन के कार्यक्रमों को मैं सद्गुरु कृपा से बिना कोइ अटकाव और भटकाव से पूरा करता गया। ओशो दर्शन दरबार मे गुरु और गोविन्द को समर्पित प्रेम गीता से गायन का आनन्द कुछ और होता है।कार्यक्रम के समापन मे अपनी अनुभूति को गायन के माध्यम से "फीड बैक" मे सद्गुरु के श्री-चरणों मे पेश करना और भी आनन्ददायक होता है।


    ओशोधारा सहजानन्दधाम कर्मा की यात्रा :

    ज्ञात हुआ कि प्यारे सद्गुरुदेव "ओशोधारा सहजानन्दधाम" में विराजमान हैं। हम 21 नवम्बर 2013 को (मैं और मेरी पत्नी मां प्रेम शारदा) सहित बुटवल से भैरहवा पहुँचे। वहां से मां मनका और उनके पति गोकुल जी सहित गाड़ी से शाम को हेटौंडा आचार्य वासुदेवजी के घर पहुँचे।वहाँ पर काठमांडू से आचार्य श्री द्वय, तीर्थ जी, राजेश्वर जी और  कश्यप जी पहले ही पहुँच गए थे। बाद मे मां शीला जी, मां ओशो गीतान्जली जी और स्वामी विष्णु जी सपत्नी वहाँ पहुँचे। रात्रि वहीं रहने के बाद सुबह 22 नवम्बर 2013 को वहाँ से प्रस्थान किया।

     23 नवम्बर 2013 को आरा और भोजपुर होते हुए लगभग एक बजे सद्गुरुदेव की पावन जन्मभूमि कर्मा, सहजानन्दधाम पहुँचे। भोजन के बाद प्यारे सद्गुरुदेव के दर्शन हुए। उस समय बाहर भजन कीर्तन और गायन कार्यक्रम चल रहा था। बडा ही सुन्दर उमंग भरा मन लुभावन दृश्य था। सद्गुरुदेव ने हमें देखकर बहुत प्रसन्न हुए और मन्द-मन्द मुस्कुराते हुए हमें आशीर्वाद दिया।

    शाम को हम सब वहाँ से लगभग 7 किमी दूर विक्रमगंज पहुँचे। वहाँ सद्गुरुदेव के कर-कमलों से एक ओशोधारा ध्यान केन्द्र का उदघाटन हुआ। कुछ देर वहाँ सत्सङ्ग भी हुआ। सद्गुरुदेव ने हम नेपाल से आये हुए सभी सन्यासियों का परिचय कराया। वहाँ पर रात्रि भोजन का भी आयोजन था। भोजन के बाद वापस ओशोधारा धाम पहुँचे और विश्राम किया। वहाँ आचार्य श्री प्रभाकरजी,आचार्यश्री हरिओम जी, वृन्दावन जी और स्वामी चैतन्य अंशु के साथ अन्य प्यारे साधक साधिकाओ के साथ प्रेमपूर्ण भेट हुआ।

     24 Nov 2013 को सुबह हम सब सन्यासी सहजानन्दधाम और प्यारे सद्गुरुदेव की पावन याद को हृदय मे समेटे हुए विदा हुए। 

    अभी भी सद्गुरुदेव के पावन जन्मभूमि के दर्शन, उनके पैतृक घर के दर्शन और प्यारे सन्यासियों के साथ मधुर मिलन का आनन्द यादों में ताजा है।


    सन्यासी जीवन :

    घर मे रहकर जिम्मेवारी को निभाते हुए निरन्तर गुरु और गोविन्द के सुमिरन में जीना सन्यासी जीवन है। संसार मे तो है पर संसार उसके भीतर नही है। उसका पूरा जीवन अभिनय होता है। जो कर्ता नही है। घटनाएं घट रही है और वह साक्षी है। अस्तित्व में हो रही घटनाओं को सम्यक दृष्टि से स्वीकार करता है और जो सदा तथाता भाव मे जीता है।साक्षी ऐसा रामबाण है जो काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या और द्वेष को आने नही देता।


    सद्गुरु कृपा से साधना में अनुभूतियां :

    ★ कुन्डलिनी जागरण में हृदय चक्र (अनाहत चक्र) में ऊर्जा का घनीभूत होना। प्रेम, श्रद्धा और भक्ति से अश्रुधार बहना और रोते हुए प्रभु दर्शन की पुकार।

    ★ विशुद्ध चक्र मे उर्जा घनीभूत होने से स्वर मे मिठास का आना।

    ★ ध्यान में असंख्य तारों का दर्शन।

    ★ नाद की गूंज का घनीभूत होना।

    ★ सतोरी की दो दफा अनुभूति।

    ★ योगनिद्रा में परमात्मा का अपने हाथो से सिर में हाथ फेरने का गहन अनुभव।

    ★ सद्गुरु के सिर के चारो और गोलाकार प्रकाश का दर्शन और स्वयं मे भी।

    ★ आज्ञाचक्र मे मणि का दर्शन।

    ★ झटके के साथ सद्गुरु का मेरे शरीर मे कुछ देर के लिए प्रवेश और बाहर आना।

    ★ अक्सर योगनिद्रा मे सूक्ष्म शरीर द्वारा विभिन्न हिमाच्छादित शिखरों, घाटियों और देवालयों का अवलोकन। अलौकिक मधुर संगीत का श्रवण।

    ★ सहस्रार, सिर के पीछे और आज्ञा चक्र मे निरन्तर उर्जा का घनीभूत होना।

    ★ मार्च 2012 को अपने भीतर  प्रखर प्रकाश का दर्शन।


    ज्ञान से भक्ति की ओर :

    सद्गुरु हमेशा चेताते रहते हैं कि ज्ञान प्राप्त होने के वाद अगर भक्ति नही जगी और अहंकार आ गया तो समझें कि साधक सही मार्ग मे नही है। सम्म्मोहन प्रज्ञा करने के बाद मुझे ज्ञात हुआ कि मेरा मूल स्वभाव भक्त का है। मैं एक कवि, गायक और संगीत की सम्भावना ले कर संसार में आया हूँ। प्रेम, श्रद्धा और भक्ति मेरे गुणधर्म है। सैनिक जीवन मेरे मूल स्वभाव से विपरीत था। सादा, सहज और प्रामाणिक जीवन मेरे प्रयोगात्मक आदर्श हैं और इन्ही ने मुझे रूपांतरित किया है। सद्गुरु ने अपने अमृत प्रवचनों में हमेशा जीवन को सुन्दर ढंग से जीने की कला सिखाई है।जिसका एहसास हर समय रहता है।


    सन्तमय जीवन :

    जुलाई 2018 मे ओशोधारा का 28 तल का समाधि कार्यक्रम "चरैवेती" करने का स्वर्णिम अवसर सद्गुरु कृपा से  प्राप्त हुआ। सद्गुरु ने अपने अमृत प्रवचन के माध्यम से कैसे एक सन्त का जीवन ब्रह्म सुमिरन मे रहता है, कैसे वह सदा सबके कल्याण और परोपकार के लिए जीता है.. आदि के बहुत ही महत्वपूर्ण और रहस्यमयी गूढ रहस्यों से अवगत कराया।

    घर परिवार मे रहकर सन्तमय जीवन जीना कोई सरल नही है। सुमिरन में प्रतिष्ठित हुए बिना यह सम्भव नही है। जो हर पल आकाशीय जीवन्तता को प्रतिपल महसूस करता हो और आत्मसात करता हो वही सच्चा सन्त है। 

    मेरे जीवन मे सद्गुरु और परमगुरु ओशो के साथ भगवान बुद्ध, सन्तशिरोमणि कबीरदास जी और सद्गुरु नानकजी का बहुत ही प्रभाव है। अन्य महान सन्त आदिगुरु शंकराचार्य, गुरुगोरखनाथ, अश्टावक्र, लाओत्से, गुरुजिफ, कृष्णमूर्ती और ओशोधारा के परमगुरु सूफी बाबा शाह कलंदर का बहुत ही प्रभाव है।

    अब सहस्रार मे निरन्तर ऊर्जा रहने से सुमिरन सतत रूप से स्वयं होता रहता है।

    मैं गुरु और गोविंद की कृपा से सदानन्द मय जीवन जी रहा हूँ।


    गुरु का कार्य :

    सद्गुरु से प्रेरणा पाकर मैने मई 2012 को आचार्य प्रज्ञा और अक्टूबर 2013 को आचार्यश्री की तालीम प्राप्त किया। परम गुरु ओशो और सद्गुरुदेव के प्रेम सन्देश को जनमानस तक पहुंचाने के लिए सौराहा चितवन, पोखरा और ओशोधारा साधना केन्द्र मङ्गलापुर मे विभिन्न समाधि कार्यक्रम आचार्य की भूमिका में अदा किया। कोरोना महामारी के कारण समय-समय पर ऑनलाइन नियमित सत्सङ्ग और समाधि के कार्यक्रम सद्गुरु कृपा से कर रहा हूँ। दिसम्बर 2019 मे सद्गुरु के पावन सामीप्य में ओशोधारा साधना केन्द्र, मङगलापुर मे "अजपा समाधि" और "चैतन्य  समाधि" में आचार्य के रूप मे अपनी भूमिका निभाने का स्वर्णिम अवसर प्राप्त हुआ।

    मित्रों यहाँ पर मैं अपनी लेखनी को विराम दे रहा हुँ। लिखते समय न चाहते हुए भी "मैं" शब्द का लेखन हुआ है। अब बस गुरु और गोविन्द की इच्छा से सब हो रहा है।

    ~ आचार्य नारद (26 Aug 2021)

    अनंतसंसार समुद्रतार नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्याम् ।

    वैराग्यसाम्राज्यदपूजनाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 1 ॥

    कवित्ववाराशिनिशाकराभ्यां दौर्भाग्यदावां बुदमालिकाभ्याम् ।

    दूरिकृतानम्र विपत्ततिभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 2 ॥

    नता ययोः श्रीपतितां समीयुः कदाचिदप्याशु दरिद्रवर्याः 

    मूकाश्र्च वाचस्पतितां हि ताभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 3 ॥

    नालीकनीकाश पदाहृताभ्यां नानाविमोहादि निवारिकाभ्यां ।

    नमज्जनाभीष्टततिप्रदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 4 ॥

    नृपालि मौलिव्रजरत्नकांति सरिद्विराजत् झषकन्यकाभ्यां ।

    नृपत्वदाभ्यां नतलोकपंकते: नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 5 ॥

    पापांधकारार्क परंपराभ्यां तापत्रयाहींद्र खगेश्र्वराभ्यां ।

    जाड्याब्धि संशोषण वाडवाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 6 ॥

    शमादिषट्क प्रदवैभवाभ्यां समाधिदान व्रतदीक्षिताभ्यां ।

    रमाधवांध्रिस्थिरभक्तिदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 7 ॥

    स्वार्चापराणां अखिलेष्टदाभ्यां स्वाहासहायाक्षधुरंधराभ्यां ।

    स्वांताच्छभावप्रदपूजनाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 8 ॥

    कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां विवेकवैराग्य निधिप्रदाभ्यां ।

    बोधप्रदाभ्यां दृतमोक्षदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 9 ॥


    OSHODHARA on Social Media, Like, Subscribe and Follow us, for daily spiritual gifts

    TWITTER
    Link to Follow beloved Sadguru Profile:

    Link to Follow Official Oshodhara Profile:

    KOO APP
    Link to Follow beloved Sadguru Profile:

    Link to Follow Official Oshodhara Profile:

    INSTAGRAM
    Follow official Oshodhara Page : 

    FACEBOOK
    Follow official Oshodhara Page : 

    YOUTUBE
    Youtube Channel  "SIDDHARTH AULIA" : https://youtube.com/c/SiddharthAulia

    YouTube channel "SUNO BHAI SADHO" : https://youtube.com/channel/UCtSgVdnTJY-gJsYujad64gg


    7 comments:

    1. 🌟ओशोधारा संतों की धारा है🌟

      आचार्य नारद जी की संतत्व की यात्रा पढ़कर आंनदित हूँ। जिसमें स्प्ष्ट प्रेरणा है कि यदि आपके भीतर प्रभु मिलन की सच्ची प्यास है तो गोविंद की कृपा से पूरे सद्गुरु जीवन में आ ही जाते हैं।
      और यदि शिष्य 'गुरु कही' और 'गुरु सेवा' के सूत्र को आत्मसात कर लेता है, तो वह सुमिरन की महिमामयी यात्रा में धीरे-धीरे प्रतिष्ठित हो ही जाता है।
      आचार्य नारद जी को शत शत नमन🙏
      ~ जागरण सिद्धार्थ

      ReplyDelete
      Replies
      1. आपका बहुत शुक्रीया स्वामी जी।बहुत उत्तम पुनित कार्य कर रहे है।🙏🙏🌷🌷🌹🍁

        Delete
    2. आचार्य नारद जी को बहुत बहुत बधाई और धन्यवाद।
      सद्गुरु के प्रेम में जी कर आप ने साबित कर दिया कि आप पूर्व जन्मों में भी गहरी साधना से गुजरे होंगे। आपके सरल सहज जीवन जीने की शैली को पढ़कर बहुत अच्छा लगा।
      सद्गुरु की कृपा आप पर सदा ऐसे ही बरसती रहे। आपके संतत्व की यात्रा को प्रकाशित करके जागरण जी ने एक बहुत ही उत्तम कार्य संपन्न किया है।
      – आचार्य दर्शन

      ReplyDelete
      Replies
      1. बहुत शुक्रीया आचार्य जी।आपको सादर प्रणाम।🙏🙏🌷🍁🌹

        Delete
    3. प्यारे आचार्य नारद जी को प्रेम नमन,अहोभाव। आपकी मेरी संतत्व की यात्रा वृतांत पढ़कर अपार खुशी हुई ।एक अवकाश प्राप्त सैनिक का जीवन कठोर अनुशासन का जीवन। फिर भी प्रभु प्यास रुक नहीं पाती है ।यह एक उदाहरण है तमाम अति अनुशासित वर्गों के लिए की प्यारे नारद जी ने कितना सरल जीवन जिया ।उनकी सरलता, प्रेमल प्रवाह,हिंदू धार्मिक परिवार ने ही सद्गुरु तक लाया ।आपने अपने आचार्यों के साथ अपने अनुशासन में कठोर साधना भी किया। सद्गुरु कृपा बरसती रही। ओशोधारा संघ ने भी जादू किया। सद्गुरु के आश्रय ,प्रेम संरक्षण में आपका इतना विकास हुआ कि आप ज्ञान से संत हो गए ।आपकी जय हो ।
      खूब बधाइयां ।संघ को बधाइयां ।आपके पूज्य माता-पिता को भी बधाइयां और प्रेम प्रणाम ।
      प्यारे सतगुरु के परमात्मामय महिमा! समर्थ सद्गुरु क्या कर सकता है।यह हमारे प्यारे सद्गुरु पूरे दुनिया में कर रहे हैं ।उनके प्रेम में उनके चुंबकत्व में प्यारे लोग आ रहे हैं । संतत्व की यात्रा करा रहे हैं ।सद्गुरु आपको कोटि नमन अहोभाव। प्यारे सद्गुरु आपकी कृपा जगत प्रेमी और शिष्यों पर बरसता रहे । शिष्य आपके चरणो में शरणागत रहें। आचार्य प्रशांत योगी,पटना,बिहार।

      ReplyDelete
      Replies
      1. आपका बहुत धन्यवाद आचार्यजी।अपने आशीर्वाद वचन के लिए फिर बहुत शुक्रीया।आपको सादर प्रणाम।🙏🙏🌷🌷🍁🌹

        Delete
    4. आपका बहुत धन्यवाद आचार्यजी।आपको सादर प्रणाम।🙏🙏🙏🌷🍁🌹

      ReplyDelete

    Note: Only a member of this blog may post a comment.

    Post Top Ad

    Post Bottom Ad