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    मेरी साधना यात्रा ~ डॉ सुनीता पॉल

     


    नाम :-                डॉ सुनीता पॉल

    सन्यास नाम :-    मां पारसमणि

    जन्म तिथि :-       मार्च 1960 

    व्यवसाय:-          Gynaecologist

    निवास:-             Paul Multispeciality Hospital                            2 Guru Ravidaas nagar, Guru                              Ravidaas chowk,                                                   Jalandhar, Punjab



    हमारे प्यारे सद्गुरु बावा "औलिया" जी के पावन चरणों में प्रेम भरा सजदा अहोभाव नमन शुक्रिया बारंबार नमन।

    हमारे प्यारे सद्गुरु बावा "औलिया" जैसा कोई दाता नहीं ।    और ओशोधारा संघ जैसा प्रेमळ और सौभाग्यशाली कोई संघ नहीं । 

    हमारे प्यारे सद्गुरु बावा औलिया जी ने उठाई 

    ज्वलंत ओंकार की मशाल है ।                                        नाम धन की खुल्ले आम हो रही बौछार है ।

    हमारे प्यारे बाबा के पास परमधन के अनमोल 

    रत्नो की इतनी विराट और अथाह खान है।

    बाबा की अनुकम्पा और करुणा अपरम्पार है ।

    हमारे शहंशाह बाबा ने हमें इतने मोती , और

    अनमोल रतन दिए, अब तो सागर भी शरमाने लगे हैं।

    इतने प्यारे बाबा आपका कैसे करें शुक्रिया।

    सारी धरत कागज़ करु,

    समुद्र की करुँ सियाही,

    सारे वृक्ष कलम करुँ,

    गुरु गुण लिख नहीं पाऊं।


    ओशोधारा से जुड़ना मेरे जीवन का परमसौभाग्य :

    01 अप्रैल 2005 को मैं ओशोधारा से जुड़ी। बाबा के चरणों में शरणागत होना, ओशोधारा से जुड़ना मेरा परम सौभाग्य है। मेरी ज़िन्दगी का सबसे सुन्दर वो क्षण है जब से सद्गुरु बाबा "औलिया" जी मेरी ज़िन्दगी में आए हैं। बाबा से मिलकर मेरा जीवन धन्य हुआ, मेरा जीवन सफल हुआ।      बाबा ने मुझे "रामरतन" धन दिया, मुझे अपनाया, मुझे अपने चरणों में बिठाया। मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अध्यात्म के मार्ग पर चलना सिखाया।


    बचपन की बातें करें तो :

    हमारी माँ बहुत पूजा पाठ करती थी। हम भी उनका अनुसरण करते थे। हर रोज़ ज्योति घर में जलाना, अगरबत्ती जलाना और सुबह शाम चार-पांच आरती पढ़ना मेरा बचपन से ही नित्यकर्म था। मंदिर जाना, गुरुद्वारा जाना मुझे बहुत अच्छा लगता था। गुरुद्वारा में जाकर हरमोनियम बजाना और शबद गाना बहुत पसंद था। जब कोई गुरुपुरब हो तो फिर सुबह प्रभात फेरी पर जाना भी मेरा रूटीन था। 

    जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गई मन ने कई प्रश्न खड़े कर दिए, “जैसे मंदिर में जाते हो तो घंटा बजाने का क्या अर्थ है, क्या हम भगवान को जगाते हैं और उसे बताते हैं कि हम आ गए हैं, फिर ज्योति जलाते तो फिर प्रश्न उठता कि ज्योति जलाने से क्या होगा,  घूप लगाने से क्या होगा।“ 

    गुरुद्वारा में जाती तो इच्छा होती कि गुरुवाणी के शब्दों की कहीं से पुस्तक, जिस में उसके अर्थ हो, वो मिल जाए। मुझे बचपन से ही शबदों को मीठी-मीठी वाणी में सुनना बहुत अच्छा लगता था, जब भी गुरुद्वारा जाती मीठी-मीठी धुन मे प्रभु गुणगान के शबदों से मेरे आसूं झरने लगते थे। और गुरुद्वारा, मंदिर जाने का routine मेरा बरक़रार था।


    वैवाहिक और पेशेवर जीवन -

    जब मेरी शादी हुई तब ससुराल के घर में ऐसा कोई पाठ पूजा का रिवाज़ नहीं था, तो फिर मेरी ये दिनचर्या छूट गई। फिर डॉक्टर का कर्त्तव्य निभाते-निभाते और बच्चों का पालन पोषण करते करते सब पाठ-पूजा छूट गई और कर्म ही पूजा बन गया। 

    लेकिन परमात्मा बहुत मेहरबान है जिसे वो ज़्यादा प्रेम करता है, जिसको अपने साथ जोड़ना चाहता है, उसे छोटे मोटे शारीरिक कष्ट देकर अपनी याद दिलाता है। ठीक ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ, और यही मेरे जीवन को अध्यात्म कि तरफ मोड़ने के लिए एक मोड़ था।

                 यह सन 2000 की बात है,  मुझे आज भी वो दिन याद है जब सन 2000 में मुझे Auto Immune Problem हो गई थी। मेरे शरीर की सभी मांसपेशियों में सूजन थी और मेरे शरीर में असहनीय दर्द होता था। Food Allergies के कारण मैं बहुत तरह का खाना भी नहीं खा सकती थी। एक समय तो ऐसा था कि मुझे लगा कि मैं आत्महत्या ही कर लूं। मगर अस्तित्व बहुत मेहरबान है, उसकी कृपा से बुरे ख्याल के साथ ही एक बहुत ही सुन्दर ख्याल आया, वो ये था कि मैं डॉक्टर होने के बावजूद भी इस Auto Immune जैसी लाइलाज बीमारी से नहीं बच पाई, तो डॉक्टरी के ऊपर कुछ और भी बातें हैं जो अस्तित्व ये छोटी सी बीमारी दे कर मुझे बताना चाहता है। 


    अस्तित्व की कृपा से -

    बस ये एक अच्छी सोच और प्यारे परमगुरु ओशो ने मुझे संभाल लिया। मुझे ऐसा लगा कि अब अस्तित्व ने मुझे अपनी गोद में उठा लिया है, और मेरा सारा दुःख दर्द बंट गया है और अब वही मेरी देख रेख कर रहा है, मेरे सारे काम वो ही कर रहा है।

       

    परमगुरु ओशो जी के प्रेमळ आशीष का मिलना महासौभाग्य है - 

    अस्तित्व की कृपा से, परमगुरु ओशो जी के प्रेमाशीष से  मेरा मिलन माँ जसबीर से हुआ जो Reiki Grand Master हैं। मेरी साधना की शुरुआत रेकी से हुई और मुझे साधना के पथ पर ले जाने में उनका बहुत बड़ा योगदान है। जसबीर माँ से रेकी सीखने गई तो वहां Osho World की पत्रिका पड़ी हुई थी, मेने माँ से पुछा,”आप ओशो को पढ़ते हो, उनके ध्यान के बारे में जानते हो, तो मुझे भी बताओ।“  

    फिर माँ जसबीर ने मुझे ओशो की ध्यान विधियों की पुस्तक दी- "ध्यान योग", उसको मैंने सात-आठ घंटे में पढ़कर अपने लिए Dynamic Meditation का चयन कर लिया और माँ से Step सीखकर बिना कोई Music Support के अकेले ही घर में Dynamic Meditation हर रोज़ करने लगी।  

    माँ जसबीर ने कहा भी कि हम Group Meditation करते है आप हमारे साथ मेडिटेशन कर लिया करें । लेकिन मेरे पतिदेव को मेरा बाहर जाना गवारा नहीं था। तो मैंने भी ये बात स्वीकार कर ली, कि अगर मुझे घर में भी अकेले Meditaion करने के लिए समय मिल रहा है तो यह भी हमारे प्यारे पतिदेव जी और परम गुरु ओशो जी की समस्त अस्तित्व की एक बहुत बड़ी कृपा है। 

               तो ये मेरा नियम था कि हर रोज़ सुबह 6 बजे उठ कर Dynamic Meditation करना ही है, चाहे मेरा शरीर, मेरा स्वास्थ्य अनुमति दे या ना दे। फिर 22 जुलाई, 2003 को, मुझे बहुत ही प्यारा अनुभव हुआ। Dynamic Meditation के Stop के Step मे मैं शवासन में लेट जाती थी क्यूंकि मेरा शरीर बहुत ही कमज़ोर था, खड़े रहना या बैठना मेरे लिए बहुत ही कठिन था। जब मैं 22 जुलाई, 2003 को शवासन मे लेट गई तो बैंगनी रंग की रौशनी मेरे आज्ञा चक्र पर उतर आई, जो मेरे सारे शरीर पर फ़ैल गई। इस अद्भुत रौशनी से मेरी आँखे फड़कने लगी। शरीर मे बहुत ही सुन्दर सी, अद्भुत सी, आनंद की लहर, शांति की लहर चलने लगी। मैं और ज़्यादा आराम की अवस्था मे आने लगी। फिर प्रति दिन मुझे कभी हरी, कभी पीली, कभी लाल और कभी बैंगनी रंग नज़र आने लगे। इस से मुझे ध्यान मे बहुत आनंद आने लगा और विश्वास पैदा हुआ कि अस्तित्व मुझे जो देना चाहता है, उसका आरंभ हो गया है। मेहरबान परमात्मा की कृपा ने परमगुरु ओशो की ध्यान विधियों द्वारा फिर से उस परमात्मा से जोड़ दिया। जो अप्रकट था सामने प्रकट होने लगा, धीरे धीरे अंतस की अनंत गहराईयों का अनुभव होने लगा।  फिर इस नूरानी अंतर आकाश में, मैं और गहरे और गहरे जाने लगी। कई कई घंटे बीत जाते, और मुझे ऐसा लगता कि मैं अभी तो लेटी ही थी, और अभी उठने का समय भी हो गया, मेरी समाधि बहुत गहरी लग जाती।

              फिर एक दिन रेकी करते-करते मुझे लगा, कि मेरा शरीर बिलकुल अलग पड़ा है और Reiki Symbol अपने आप बन रहे है।  शरीर से अलग कुछ और है जो खुद ही सिंबल बना रहा है और खुद ही वो मेरे भीतर आकर मेरे शरीर मे Vibrate करता है। और मेरे रोम-रोम को Heal करता है। धीरे-धीरे मुझे महसूस होने लगा कि मैं एक महाविराट शून्य आकाश हूँ जो फैलता जा रहा है, फैलता ही जा रहा है और दूर, और दूर, और दूर, और वो अनंत है, उसकी कोई सीमा नहीं। 

    लेकिन मुझे इसकी कोई समझ नहीं थी कि ये सब क्या है। मैं कहीं भी बैठती तो इसी अनुभव में डूबने का आनंद लेती, और मेरा आँख खोलने का मन ही नहीं करता था। मेरे घर वाले बहुत परेशान रहने लगे। फिर मेने उनसे नमन भाव मे कहा कि मेरे शरीर मे इतनी दर्द है, तकलीफ है और मुझे इस मे बहुत आराम मिलता है, तो मुझे कृपा करके इसी आराम की हालत में रहने दें तो अच्छा है।

       

    मेरा सन्यास -

    नवंबर 2003 में लुधियाना मे Osho World का Camp लगा था वहां 'स्वामी आनंद स्वभाव' जी आये थे। माँ जसबीर के सहयोग से मेने उस Camp में भाग लिया। और वहां मैंने और Meditations जैसे कि- कुण्डलनी, नटराज और नाद ब्रह्म सीखी। वहाँ पहली बार Dynamic Meditation (With it's Powerful, Energising, Music) की तो मैं बहुत ही खुश हुई। मैं हैरान थी कि मैंने फरवरी 2003 से नवंबर 2003 तक बिना Music Support से जो Dynamic Meditation किया है वो कैसे करती रही। तो वहाँ 21-11-2003 को पहली बार मेने स्वामी आनंद स्वभाव जी से माला दीक्षा ली। और उन्होंने मेरा नाम रखा Divine Fregrance(दिव्य सुगंध)  

                   मुझे Dynamic मैडिटेशन की इतनी आदत पड़ गई कि मुझे इतना हल्का-फुल्का, ऊर्जामयी और आनंदित कर देती थी जिस कारण मैं Dynamic Meditation न छोड़ पाई। माँ जसबीर समझाती रही कि, डायनामिक छोड़ दो, लेकिन मुझे तो सुबह डायनामिक करनी ही करनी थी। शाम को इसके अतिरिक्त कुण्डलनी, नटराज या नाद ब्रह्म में से कोई मेडिटेशन मेरी दिनचर्या था। 

    नवंबर 2003 से मार्च 2005 तक मैं अपने इस दिनचर्या का आनंद लेती रही और भूल ही गई कि मेरे शरीर मे इतना असहनीय दर्द है। मुझे लगा कि परम गुरु ओशो जी ने समस्त अस्तित्व ने मेरा दर्द अपने ऊपर ले लिया है, जिस से मेरी सहन शक्ति बहुत बढ़ गई । दर्दों- तकलीफों के बावजूद भी मेरे चेहरे पर मुस्कान और आनंद की झलक रहने लगी। मेरे पति रिश्तेदारों से बात करते तो यही कहते कि, ”सुनीता में इतना बढ़िया बदलाव आया है।” और कहते कि “Now she is other side of the coin.”  


    प्यारे-2 सद्गुर जी के चरणों मे शरणागत होना -

    ओशो जी के चरणों में साधना करके इतने सारे दिव्य अनुभवों से गुज़ारना महासौभाग्यशाली होना था। फिर अस्तित्व की और कृपा बरसी जब माँ जसबीर ने बताया कि मुरथल में ओशोधारा नाम की जीवंत धारा खुली है।  जिस में सद्गुरु के निर्देशन में समाधि में डूबने की कला सिखाई जाती है। तो फिर मैंने अपने पतिदेव से बात की और अपने पिता जी को बुलाया कि वो मेरे साथ मुरथल चलें, वह कुछ ना- नुकर कर रहे थे क्योकि वह राधास्वामी संघ से जुड़े हैं।

    मैंने अपने पिता जी से कहा कि, पापा आप शुक्र मनाओ कि जैसी मेरी सेहत है मैं आपको किसी अस्पताल में लेकर नहीं घूम रही बल्कि आप को इतनी अच्छी जगह मेडिटेशन के लिए लेकर जा रही हूँ। तो मेरे पिता जी मेरे साथ चलने के लिए मान गए। मेरे प्यारे-प्यारे पतिदेव मुझे मुरथल भेजने के लिए मान नहीं रहे थे, वे अपनी जगह ठीक थे।

    लेकिन अस्तित्व ने इतने प्यारे-प्यारे डॉक्टर रचना, डॉक्टर राजीव, डॉक्टर सुखी और डॉक्टर अंजू को नवाशहर से 30-03-2005 को हमारे घर भेज दिया, उन्होंने मेरे पतिदेव को किसी न किसी तरीके से मना लिया, मेरे पतिदेव मुझे मुरथल भेजने के लिए राज़ी हो गए। हम 31-03-2005 को मुरथल पहुंच गए।


    01-04-2005 में ध्यान समाधि :

    ध्यान समाधि में पहले ही दिन पहला सत्र आचार्य जी ने लिया और उन्होंने बुद्धा हॉल में यह शब्द बताया ।-

    अमृत वाणी हरि हरि तेरी,

    सुन सुन होव परमगति मेरी।

    तो जैसे ही यह शब्द बजा, तो मुझे लगा मेरी जन्मों-2 की प्यास यहाँ बुझने को है। 'समाधि गीता' पुस्तक में शबदों को अर्थो के साथ छापा गया है। मुझे जनम से ऐसी ही एक पुस्तक की तलाश थी जो अस्तित्व ने ओशोधारा में लाकर पूरी कर दी। यह शबद सुनकर मुझे इतना आनंद आया कि मैं शब्दों मे बयान नहीं कर सकती।  

                      समाधि सत्र के आठवे दिन बाबा अनुभव पूछते हैं तो मैंने बाबा को बताया, “मुझे महाविराट फैलते हुए शून्यता का अनुभव हुआ है” तो वो बहुत खुश हुए और बाबा ने और वहाँ पर 165 साधक थे, सभी ने मुझे और मेरे पिता जी को बहुत बहुत-बधाई दी, और मेरे पिता जी भी बहुत खुश हुए। उन्होंने कहा, “आज मुझे उस दिन से भी ज़्यादा ख़ुशी हुई है जिस दिन तुम MBBS और MD Gynae की डिग्री लेकर वापिस घर आई थी। तुम्हारा जीवन सफल हो गया।“

    फिर नौवें दिन बाबा फीडबैक के सत्र मे पूछते हैं- “यह बताओ आपने इन नौ दिनों में क्या खोया और क्या पाया।“ तो मैंने बाबा को पहले तो जो नाद दीक्षा और माला दीक्षा दी थी उसके लिए धन्यवाद् दिया और फिर बाबा के "श्रीचरणों" मे विनम्र प्रार्थना की, कि मुझे अपने भीतर से जो भी कूड़ा कर्कट भरा हुआ है उसे बाहर निकाल फेकना है और मुझे अपनी इस शून्यता को दिव्यता से भरना है। बाबा मुस्कुराने लगे और मुझे लगा वो कह रहे हैं कि, “ठीक है, आगे के समाधि कार्यक्रम करते चलो ऐसा हो जायेगा।“

                   और सच में ऐसा ही हुआ। समाधि, सुमिरन और प्रज्ञा प्रोग्राम करते-करते मेरे भीतर आनंद और प्रेम फलित होता गया और मेरे भीतर ही दबी हुई दिव्यता का अनमोल खज़ाना प्रकट होने लगा। जिसे हम बाहर खोजते रहे वो भीतर ही था, वो दिव्यता आनंद का भंडार हमारे अंदर मिला।


    सुरति समाधि :

    इस समाधि में मैंने बाबा से प्रश्न पुछा कि, “आप कहते हो खुली आँखों के माध्यम से 70% ऊर्जा की हानि होती है, तो बाबा फिर क्या ऐसी कोई तकनीक है कि आँख भी खुली रहे सांसारिक कार्य विहार करने के लिए, लेकिन ऊर्जा की हानि ना हो। यानि कैसे हम लोगो के साथ भी रहे, और स्वयं में स्थित भी रहें ।“ बाबा जी ने कहा, “आत्म स्मरण के साथ सभी कार्य करो और जब भी दूसरे की तरफ देखो तो उसके साथ उसके आसपास के आकाश का भी ख्याल करो।“ लेकिन यह बात उस समय मेरी समझ मे नहीं आई। लेकिन सदगुरु जी की कृपा से जब अपने भीतर के अन्तर आकाश को जाना, बाहर के आकाश से जुड़ना सीखा तो बात समझ में आई और समाधि, सुमिरन प्रोग्राम करते करते धीरे-धीरे जब आत्मा में ग्राउंडिंग होती गई, और साक्षी पकड़ में आया तो बात बन गई।


    निरति समाधि :

    निरति समाधि तीसरे तल का कार्यक्रम है, जिसमें परमात्मा के दिव्य प्रकाश को जाना। तथा आकाश और धरती के मिलन का अनुभव इतनी प्रगाढ़ता से हुआ कि मुझे बहुत ही आनंद आया। 


    फिर अमृत समाधि : 

    चौथे तल के कार्यक्रम में बाबा की कृपा से अमृत का अनुभव इतनी प्रगाढ़ता से हुआ और मैं हैरान थी कि हम कितनी बेहोशी में जी रहे थे। खुद को हमने शरीर और मन ही समझ रखा था, जब कि हम तो शुद्ध बोध, अमृत और चैतन्य स्वरूप है 

    ऊर्जा समाधि : 

    ऊर्जा समाधि में खुद के ऊर्जा स्वरुप को जाना।

     

    दिव्य समाधि :

    दिव्य समाधि में स्पर्शयोग के सत्र में बाबा ने बताया की आपकी त्वचा आपकी सबसे बड़ी इंद्री है। अपने कपड़ों का स्पर्श अपने शरीर पर महसूस करो, इस से खूब चैतन्यता फलित होगी। ये सूत्र मैंने अपने जीवन में गांठ बांध लिया। इसके द्वारा जो ऊर्जा मन के साथ इधर उधर भाग रही थी अपने ऊपर लौटना शुरू हुई। बाबा के पास दिव्यता के ख़ज़ाने का बहुत बड़ा भंडार है। और बाबा जी की तकनीक इतनी कारगर है, कब किसी को कौन सी बात क्लिक कर जाये और पकड़ में आ जाये तो बात बन जाती है।


    चैतन्य समाधि :

    मैं चिन्मय आत्मा हूँ, यह अंतर आकाश चैतन्य है, ये अनुभव बहुत अच्छे से हुआ। फिर अद्वैत का, कैवल्य का और निर्वाण का अनुभव इतनी ही प्रगाढ़ता से हुआ, और बाबा के प्रति प्रेम भरा अहोभाव, श्रद्धा और भक्ति भाव उमड़ने लगा। 

     सहज समाधि : 

    में बाबा ने बताया जो चैतन्यता भीतर के आकाश में हमने जानी है वह सब खुली आँखों से बाहर के आकाश में भी जानी जा सकती  है। खुली आँखों से भी समाधि में रहा जा सकता है। फिर बाबा की कृपा से खुली आँखों से बाहर के आकाश में सहज कणों को देखा, तो जो मज़ा बंद आँखों से भीतर के आकाश में जाना था, वह खुली आँखों से बाहर के आकाश में भी जाना। 

    यह यात्रा केवल आत्मज्ञान तक ही सीमित नहीं रही, बाबा हमें फिर भक्ति मार्ग की यात्रा पर ले जाते है। 

    हम डॉक्टरी की पढाई करते/करते और प्रोफेशनल काम करके करते बुद्धि के तल पर जीने लगे थे। बहुत कठोर हो गए थे। आँखों से कभी आंसू बगैरा नहीं बहते थे। बाबा ने जब अजपा जाप/आत्म सुमिरन, और हरि सुमिरन में जीने की कला सिखाई, तब हम विचारों के तल से भावना के तल पर जीने लगे। हमारे भीतर संवेदनशीलता, दया और करुणा का झरना बहने लगा। 


    सद्गुरु के बिना जिंदगी नर्क थी :

    मुरथल आश्रम जब भी आते बाबा को प्रणाम करने के लिए लाइन में खड़े होते ही अहोभाव और प्रेम से भरे आंसुओ की बौछार होने लगती। सद्गुरु के बिना ज़िन्दगी रूखी-सूखी थी। नर्क से बदतर ज़िन्दगी हम जी रहे थे। सद्गुरु के चरणों में बैठकर उमंग, आनंद और प्रेम उत्सव के फूलों से जीवन में बहार आ गई। जीवन स्वर्ग से सुन्दर कैसे हो सकता है, ये हमने सद्गुरु के चरणों में बैठकर जाना। 

    बाबा ने 'अजपा समाधि' में समझाया कि अजपा क्या है, ये हमारे बाबा की अध्यात्म को मौलिक देन है "संवृत्ति मार्ग" - बाबा ने सिखाया भीतर आती सांसों में ब्रह्मानंद में जियो और बाहर जाती सांसों से आत्मानंद में जियो। जिससे हम धीरे-धीरे सदानंद में प्रतिष्ठित हो जाते हैं। अभी और यहीं में कैसे जीया जा सकता है इसकी कला बाबा ने बहुत सरल ढंग से सिखाई है। 

    आनंद सुमिरन की प्रतिक्रिया में मैने बाबा को बताया कि, “बाबा चक्रमण सुमिरन की इतनी लत पड़ गई है कि अब बेशक बरसात भी हो रही हो छाता लेकर हम चक्रमण सुमिरन ज़रूर करते है।“ तो बाबा बहुत खुश हुए और उन्होंने अपने प्रेमाशीष हम पर बरसाए और हम बहुत आनंदित हुए।


    अध्यात्म का सम्पूर्ण मानचित्र -

    पूरा सद्गुरु हमारे पीरों मुर्शिद "औलिया" जी ने जो सम्पूर्ण अध्यात्म का नक्शा तैयार किया है वह प्रशंसनीय है और बहुत कारगर है।

    आत्मज्ञान के लिए समाधि के 14 प्रोग्राम - फिर सुमिरन के लिए 14 कार्यक्रम और बहुत सारे प्रज्ञा कार्यक्रम जो बनाये हैं, उनसे जीवन जीने की कला आ जाती है। बाबा ने हमारी ज़िन्दगी को संपूर्णता दी है, हम बाबा का शुक्रिया कैसे करें। 

                  और बाबा की करुणा आध्यात्मिक यात्रा तक ही सीमित नहीं होती। बाबा हमें, कैसे समाधि को आचरण में ढालना है और कैसे संसार में रहना है यह भी कई प्रज्ञा कार्यक्रमों के माध्यम से सिखाते हैं। 

    बाबा के बताने पर हमने स्वास्थ्य, सम्मोहन, मुद्रा, कायाकल्प, आयुर्वेदिक चिकित्सा, होमियो प्रज्ञाप्रोग्राम किया और हमारे स्वस्थ में बहुत सुधार आया। बाबा कहते है कि, “स्वाथ्य  ठीक होगा, तो समाधि में भी गहराई मिलेगी।“ उमंग प्रज्ञा में बाबा फिर से प्रकृति के साथ जुड़कर जीना सिखाते हैं जिससे हमें ब्रह्मलीन होने में बहुत मदद मिली। 

    ओशोधारा के दरबार कार्यक्रम :

    फिर बाबा ने हमें ये भी बहुत अच्छा बताया कि कैसे हम देवी-देवताओं का सहयोग लेकर अपने उद्देश्य की पूर्ती कर सकते हैं। अपना स्वास्थ्य और संपदा की समृद्धि कैसे कर सकते है, इसकी प्रक्रिया भी खूब अच्छे से सिखाई जाती है। फिर Soofi Mystic Group के सूफी संत विशेषतया परमगुरु सूफी बाबा "शाह कलंदर" जी की कृपा बाबा हमपर खूब बरसाते है। सूफी बाबा के सहयोग से हमारे भी कई रुके हुए सांसारिक कार्य पूरे हुए है । 

    शिव दरबार, हनुमत दरबार, विष्णु दरबार और सूफी दरबार बाबा की बहुत ही विराट और अनमोल आशीर्वाद है। हम जब भी कोई भी कार्यक्रम के लिए मुरथल जाते तो हम ये चारो कार्यक्रम अवश्य करते है।


    दुःख और समस्याओं के जिम्मेदार हम स्वयं हैं -

    बाबा को मिलने से पहले हमें लगता था हमारे दुःख और उदासी के लिए घर परिवार के सदस्य या अधीनस्थ कर्मचारी ज़िम्मेदार हैं। लेकिन बाबा के पावन चरणों में शरणागत हुए तो हमने जाना कि हमारी सभी समस्याओं, हमारे दुःख और पीड़ा के लिए हम खुद ज़िम्मेदार हैं। जिस से हमारी जीवन के प्रति दृष्टि पूरी तरह बदल गई। दूसरो के प्रति अपेक्षाएं और शिकायत भाव धीरे-धीरे अहोभाव में बदल गया और हम आनंदित जीवन जीने की कला सीख गए।       

    बाबा के "श्रीचरणों" बैठ कर हमारे भीतर सर्वस्वीकार, सर्व सम्मान, सर्व के प्रति प्रेम और अहोभाव फलित हुआ है। 

    बाबा की यह बात कि, “हर शिकायत परमात्मा से शिकायत है” - इस से हमे खूब सुन्दर जीवन जीने का बहुत बढ़िया सूत्र मिला। 


    अध्यात्म है शिकायत से अहोभाव की यात्रा

     “Count Your Blessing” - ये बात बाबा के चरणों में बैठ कर स्वतः ही फलित हो जाती हैं। फिर बाबा कहते है परमात्मा को मंगलमयी जानते हुए अपने स्वधर्म का पालन करें, इस से जीवन में प्रतिकूल का स्वीकार आ जाता है। आज का प्रतिकूल कल का अनुकूल है। जैसे बहुत बार हमने देखा जैसे भूतकाल में अगर कुछ ऐसा हुआ हो जो हमें उस समय प्रतिकूल लगा, पर आगे जाकर वह अनुकूल साबित हुआ। फिर बाबा ने समझाया, जब लगे कुछ प्रतिकूल हो रहा है तो मुस्कुराने की आदत डालो। 

    बाबा ने हमें सहजयोग के मार्ग पर चलना सिखाया है, यह हमने वास्तव में अनुभव किया है, कि यह मार्ग अति उत्तम मार्ग है। ज्ञान योग में स्वयं को आत्मा जानते हुए आनंद में जीना है। 

    भक्ति योग में परमात्मा को जानना है,और परमात्मा के प्रेम में जीना है। फिर अस्तित्व से जुड़कर कैसे सबके मंगल के लिए कर्म करना है। 

    “स्वांतः सुखाय,

    बहुजन हिताए।”


    निष्काम कर्मयोग :

    कर्मयोग में निष्काम कर्मयोग बाबा ने सिखाया है कि, “कर्म करने का मज़ा लो, फल जो भी आये उसे अहोभाव पूर्वक स्वीकार करो।“ बाबा को मिलने से पहले, हम अपनी जड़ो से पूरी तरह कट गए थे। प्रकृति से पूरी तरह कट गए थे। हम अपने जिस घर में रह रहे हैं उसका कुछ पता नहीं कि पूर्व दिशा कौन सी है, पश्चिम कौनसा है बस 24 घंटे Gynecology & Obstetrics का ही काम। अपनी कोई सुध-बुध ही नहीं थी, फिर बीमार पड़ना तो स्वाभाविक था। फिर ओशो प्रवचन में हमने सुना कि मस्तिष्क के तल से हृदय के तल पर आना है और फिर नाभि के तल तक जब तक नहीं उतरोगे यानी थिंकिंग से फीलिंग और फीलिंग से बीइंग ते तल तक नहीं जाओगे तो अपने जड़ों से नहीं जुड़ पाओगे। जैसे गर्भ में बच्चा अपनी माँ के साथ गर्भनाल से जुड़ा होता है बिलकुल बेफिक्र, माँ से उसे हर चीज़ मिलती है । ऐसे ही नाभि के तल पर हम अस्तित्वगत गर्भ में प्रवेश कर जाते हैं। नाभि के तल पर हम अस्तित्व के साथ एक अदृश्य सिल्वर कॉर्ड, रजत-रज्जु से जुड़े हैं। 

    तो हमारा सौभाग्य देखो, परमगुरु ओशो ने हमेशा यह सब सीखने के लिए सद्गुरु बाबा औलिया जी के चरणों में बिठा दिया, और बाबा जी के चरणों में बैठना ही इबादत है। बाबा साक्षात् पारब्रह्म परमेश्वर है - इतना विराट उनका ह्रदय कि परमगुरु ओशो जी ने आध्यात्मिक ख़ज़ानों की जो एक मुट्ठी बंद रखी हुई थी, सदगुरु ने वो मुट्ठी भी खोल दी है ।  

    उनके मुखारविंद से निकला हुआ हर शब्द गोविन्द बोल रहा है। प्रकृति से जोड़ने के लिए 'चक्रमण सुमिरन' में बाबा ने बहुत ही सुन्दर टिप्स दिए जो धीरे धीरे हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा बन गए।


    चरैवेति.. चरैवेति...

    और फिर चरैवेति -चरैवेति में बाबा कहते हैं, “संतो, रोम - रोम रस पीजिये” और उसकी कला बाबा बहुत ही सटीक, सरल, सहज शब्दों में बताते हैं। हमारे प्यारे बाबा खुद ऐसे पारस हैं जो हमें लोहे से सोना नहीं पारस ही बना देना चाहते हैं। लेकिन ओशोधारा के सदशिष्य ही इसका मज़ा ले पाते हैं, जब कि बाबा ने आध्यात्मिक ख़ज़ानों के अनमोल हीरे जवाहरात, रत्नो और मोतियों का भंडार सबके लिए खोल रखा है।  मैं तो हैरान होती हूँ कि आनंद, प्रेम, शांति उत्सव की ऐसी पावन गंगा बह रही है जिसमे डुबकी लगाने जैसी है। 

             नाम के जहाज़ में बिठाकर बाबा भवसागर तो पार करवाते ही हैं लेकिन ज्ञान से परे शून्यता के पार ब्रह्मलीन होना भी सिखा रहे हैं। बाबा कहते हैं, “अनहद नाद" तो शुरुआत है जो पिछली सदियों में किसी को कभी-कबार सुनाया जाता था। लेकिन बाबा अब पहली ही समाधि में नाद दीक्षा में "अनहद नाद" सुनवा देते हैं। फिर कैसे उससे तालमेल बना कर उसमें कैसे प्रेमपूर्वक लीन होते जाना है और फिर एक दिन उसके श्रोत तक कैसे पहुंचना है - यह सबकुछ Practically in a very Scientific Way में सिखाया जा रहा है। ओशो ने अध्यात्म का जो विज्ञान दिया है, हमारे प्यारे सद्गुरु बाबा औलिया जी ने उसकी पूरी Scientific Based Technology दी है। 

    बना बनाया खाना जैसे माँ परोसती है और हम तो बस बना बनाया खाने का ही आनंद लेते हैं, और वैसे ही हमारे सद्गुरु बाबा "सिद्धार्थऔलिया" जी कर रहें हैं। हमें तो बस प्रेम से, अहोभाव भरे हृदय से अध्यात्म के गूढ़ रहस्य को उसे ग्रहण करना है, ग्रहणशील होना है। बाबा की अध्यात्म की, स्वस्थ्य की और संसार के हर पहलू की पकड़ इतनी बढ़िया है कि उनकी प्रमाणिकता को मैं झुक - झुक सजदा सलाम करती हूँ कि बाबा ने हर बात जो हमें बताई है, हमारे जीवन चर्या में सब उतर आई है। इसका कारण है, उनकी प्रमाणिकता। वह तब तक कोई बात इधर उधर से पढ़कर-सुनकर नहीं बताते जब तक उन्होंने खुद अनुभव नहीं करी या उनकी आचरण में, जीवनचर्या में वो बात नहीं ढली। बाबा औलिया जी सहजयोग के माध्यम से एक साथ ज्ञानयोग, भक्तियोग, निष्काम कर्मयोग पर चलना सिखा रहें हैं। 

    पतझड़मयी जिंदगी से बसन्तमयी जिंदगी की ओर -

    जैसे-जैसे हम बाबा के साथ अप्रैल 2005 से यात्रा करते आये हैं, हमने खुद को पहले से और ज़्यादा और ज़्यादा आनंदित, प्रेमळ और प्रज्ञावान पाया है। एक ठहराव हमारी ज़िन्दगी में आया है। जैसे कह लो हम सागर की सतह पर जी रहे थे, बाबा की करुणा और कृपा ने सागर की तलहटी  पर गहराई में ला कर बिठाया है। बूँद को सागर कर दे बाबा कि पास ऐसी जादुई छड़ी है। लेकिन मन माने लोग न पतीजै तो बाबा क्या कीजै

    हमारे अति-अति सुन्दर, प्यारे-प्यारे सद्गुरु बाबा औलिया जी आपने हम सब को Zorba the Budhha & Budhha the Zorba तक की यात्रा इतने सुन्दर, सहज और सरल ढंग से करवाई है, की हमारे पास आपका शुक्राना करने के लिए शब्द नहीं है।

    तीन लोक नौ खंड में,

    गुरु से बड़ा ना कोई

    करता करे न कर सके,

    गुरु करे सो होये।

    सारी धरत कागज़ करूँ,

    समुद्र की करूं सियाही ।

    सरे वृक्ष कलम करूँ,

    गुरु गुण लिख नहीं पाऊं।


    कार्यक्रमों की अद्भुत श्रृंखला -

    उनकी जो कार्यक्रम की श्रंखला है वो काबिले तारीफ है। एक तल का कार्यक्रम करके 3-9 महीनो के बाद हम जब अगला कार्यक्रम करने जाते हैं तो जो बाबा ने अगले कार्यक्रम में करवाना होता है उसका अनुभव पहले से ही घर में बैठे शुरू हो जाता है। और मन प्रश्न खड़ा करता है कि आप ये ठीक भी कर रहे हो, लेकिन प्रतिक्रिया में जब बाबा मोहर लगा देते है कि यात्रा बहुत सही दिशा में चल रही तो मन को बहुत सकून मिलता है, रूह खिल उठती है, रोम-रोम आनंद से पुलकित हो उठता है। भीतर ओंकारमयी, नूरमयी आनंदित ऊर्जा नाच उठती है। 

    फिर धीरे धीरे कार्यक्रम करते करते होश और प्रेम के पंख और बड़े होने लगते है और बहुत ही ऊँची उड़ान चेतना के नूरानी आनंदमयी आकाश में लग जाती है। वर्तमान में जीने की कला हाथ लग जाती है और अभी और यहीं में जीना आ जाता है। बाबा के साथ यात्रा में चलने का मज़ा बेशुमार है। बाबा कहते हैं-

    "नूतनम नूतनम पदे-पदे,"

    गोविंद हर क्षण नया है कभी पुराना नहीं होता। और हमने देखा है - जब भी बाबा को देखते हैं, लगता है कोई फूल खिल रहा है, जिसमें हज़ारों लाखों पंखुड़ियां पहले ही हैं लेकिन हर हर पल बाबा के खिले हुए फूल में और और पंखुड़ियां लगती जा रही हैं। 

    जीवन शुरू हुआ अब,

    जीने का ढंग आया ।

    शम्मा ऐ रूह क्या जली,

    महफ़िल में रंग आया है।

    अब हमारे लिए,

    हर दिन सोना है और रात चांदी है ।

    हर दिन दशहरा है और हर रात दिवाली है,

    बाबा परम धन की दौलत लुटा रहे खुलेआम हैं।

    हमारी झोली छोटी पड़ जाती है, 

    उनकी विराटता और करुणा अपार है।


    हमारी ही झोली छोटी है -

    बाबा कहते हैं,"अगर मेरे पास आना हो तो, अपनी झोली बड़ी लेकर आना, मैं देते नहीं थकता, आप लेते थक जाते हो।" और यह बात बिकुल सही है । 

    तो जब-जब जो भी कार्यक्रम सद्गुरु करने के लिए कहें, यथासंभव हो चलते ही जाना, चलते ही जाना है। रुकने की कोई गुंजाईश नहीं। जैसे गोविन्द, विराट है, अनंत है, अथाह है, असीम है ऐसे ही विराट हमारे सद्गुरु बाबा है। हमारे प्यारे सद्गुरु की तरह कौन खुदा देता है, ज़्यादा से ज़्यादा दैरों हरम देता है या फिर जपा जाप, घटाकाश का ज्ञान देता है। 

                     हमारे बाबा सम्पूर्ण अध्यात्म का सम्पूर्ण ज्ञान बांट रहे हैं। अजपा जाप, सांस-सांस सिमरो गोविन्द, रोम रोम रस पीजिये की कला और साथ-साथ निष्काम कर्मयोग की कला भी सिखा रहे हैं। 

    बाबा के अध्यात्म की सुन्दर बगिया में नित नए-नए फूल खिल रहे हैं। सदानंद में जीने का साधक मज़ा ले रहे हैं, साधक से सतत्व की ओर बढ़ते जा रहे हैं।  

    गुण गावां नित तेरे,

    तुध बिन अवर ना जाना मेरे साहिबा।


    अहोभाव.. अहोभाव...

    मैं शुक्राना करती हूँ समस्त अस्तित्व का, समस्त परिवार का, माता पिता का, पतिदेव का, सभी अधीनस्थ कर्मचारियों का, माँ जसबीर का, माँ रचना और राजीव का, माँ अंजू और डॉक्टर सुखी का, जिनकी आपार करुणा और सहयोग से हमारे प्यारे सद्गुरु बाबा के चरणों में बैठकर परमजीवन का आनंद लेने का सौभाग्य मिला। 

    मैं शुक्राना करती हूँ परमगुरु ओशो जी का, प्यारे सद्गुरु बाबा औलिया जी, समस्त ओशोधरा संघ का और स्वयं का। मेरा मुझको नमस्कार हरि ॐ तत्सत। 

    वड्डा मेरा गोबिंद,

    अगम अगोचर आदि निरंजन,

    निरंकार जियो। 

    हमारे प्यारे सद्गुरु के हम कर्ज़दार हैं, उन्होंने हमें ज्ञान, भक्ति और कर्मयोग में जीने की कला सिखाई है। बाबा की जितनी भी तारीफ करूँ, कम है। बाबा का शुक्राना और तारीफ दोनों, शब्दों की पहुंच के बाहर है, बाबा के बारे में जितना भी कहूँ वो गागर में सागर और छोटी सी मुट्ठी में आकाश भरने वाली बात है, सूर्य को दिया दिखाने जैसी बात है। 

    आनंद भया सुख पाया,

    मिले गुरु गोविंदा,

    सभै काज सवारिये,

    जा तुध भावंदा।

    और अंत में सर्वमंगल की प्रार्थना के साथ आपसभी मित्रों को, ओशोधारा संघ का शुक्रिया-

    ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः,

    सर्वे संतु निरामया,

    सर्वे भद्राणि पश्यन्तु,

    मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ।

    ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।

    सभी सुखी हों , स्वस्थ हों, सुन्दर हों, आनंदित हों, दीर्घ आयु हों और Zorba the Budhha & Budhha the Zorba हों ।

    जय गुरुदेव , सद्गुरु "सिद्धार्थ औलिया" जी । 

    जय ओशोधारा । 

    जय ओशोधारा संघ ।


    अपनी यात्रा को लिपिबद्ध करना मेरा अति सौभाग्य है। यूं तो दिल चाहता है कि सद्गुरु जी के गुणगान में मेरे भीतर जो कुछ है मैं लिखती ही जाऊं लेकिन यहाँ विराम देती हूँ इन पंक्तियों के साथ। - 

    सद्गुरु की छाया तले हमें चलते ही जाना है।

    अध्यात्म की मंज़िल नहीं, साधना पथ पर चलने का मज़ा लेते ही जाना है,

    सितारों के आगे जहां और भी राज़े खुदा अभी और भी है।

    सद्गुरु जी की किरपा से आगे और आगे बढ़ते जाना है। 

    सच कहूं तो topic ख़तम करते करते, मुझे एक और बात कहने को है।  सद्गुरुदेव "औलिया" जी की कृपा से अब गुरमुखि होने के बाद संसार को देखते हैं तो हमें अपना वह अक्स दिखाई देता है जब हमने अभी सद्गुरु की शरण नहीं पाई थी और यकीन नहीं होता कि हमारे प्यारे-प्यारे सद्गुरु बाबा "औलिया" जी ने कैसे हमें वो आँख दी हम इस बात का भी मज़ा लेते हैं और अस्तित्व को दुआ करते हैं सब गुरुमुख बन कर इस धरती से विदा हों। अंत करती हूँ इस बात से, - हमें अपने महा सौभाग्यशाली होने पर ज़रा इतराने तो दो। हर सांस से, हर धड़कन से,रोम रोम से अपने प्यारे-प्यारे साक्षात् परब्रह्म परमेश्वर सद्गुरु देव बाबा "औलिया" जी के गुण गाने तो दो। 

    जय सद्गुरु देव जी, 

    जय ओशोधारा संघ।

    15-03-2022


    अनंतसंसार समुद्रतार नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्याम् ।

    वैराग्यसाम्राज्यदपूजनाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 1 ॥


    कवित्ववाराशिनिशाकराभ्यां दौर्भाग्यदावां बुदमालिकाभ्याम् ।

    दूरिकृतानम्र विपत्ततिभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 2 ॥


    नता ययोः श्रीपतितां समीयुः कदाचिदप्याशु दरिद्रवर्याः ।

    मूकाश्र्च वाचस्पतितां हि ताभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 3 ॥


    नालीकनीकाश पदाहृताभ्यां नानाविमोहादि निवारिकाभ्यां ।

    नमज्जनाभीष्टततिप्रदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 4 ॥


    नृपालि मौलिव्रजरत्नकांति सरिद्विराजत् झषकन्यकाभ्यां ।

    नृपत्वदाभ्यां नतलोकपंकते: नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 5 ॥


    पापांधकारार्क परंपराभ्यां तापत्रयाहींद्र खगेश्र्वराभ्यां ।

    जाड्याब्धि संशोषण वाडवाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 6 ॥


    शमादिषट्क प्रदवैभवाभ्यां समाधिदान व्रतदीक्षिताभ्यां ।

    रमाधवांध्रिस्थिरभक्तिदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 7 ॥


    स्वार्चापराणां अखिलेष्टदाभ्यां स्वाहासहायाक्षधुरंधराभ्यां ।

    स्वांताच्छभावप्रदपूजनाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 8 ॥


    कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां विवेकवैराग्य निधिप्रदाभ्यां ।

    बोधप्रदाभ्यां दृतमोक्षदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ 9 ॥

             https://youtu.be/cTGngR-BitQ


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    3 comments:

    1. मां जी की साधना यात्रा पढ़कर बहुत-2 आनन्द आया।
      साधना जगत में अध्यात्म की उच्चावस्था में आरूढ़ स्त्री साधिकाओं की सदा से कमी रही है। पर ओशोधारा इस मिथक को तोड़ रही है।

      सारसूत्र बस इतना है
      गुरु कही और गुरु के कार्य को अपना आनन्द बना लेने से यह सभी के जीवन में घटित होगा ही।

      🕉️🙏जय गुरुदेव🙏🕉️

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    2. मां पारस मणि मणि शुरू से ही मणि थीं। तकलीफ में ऑटोइम्यून डिजीज से रहती थीं। पति सर्जन हैं।
      सद्गुरु वैद्य भी होते हैं।
      रहस्यदर्शी तो है हीं। उनके पास आने से मणि पारसमणी हो गईं। कई कार्यक्रमों में उनसे मिला; सदा प्रेमल निष्ठावान साधक ही की तरह ही देखा। सद्गुरु के प्रति असीम श्रद्धा और अहोभाव बढ़ते देखा। सदा गुरमुखी जीवन जीते देखा।
      देखते-देखते उन्होंने सारे कार्यकर्म कर लिए ।सद्गुरु के चरणो में अपनी साधनामयी जीवन अर्पित कर दी ।
      बहुत सुंदर! काव्यात्मक ढंग से गीत और कविता से ओतप्रोत अपनी साधना यात्रा को सद्गुरु के चरणों में अर्पित कर दी।
      पढ़कर बहुत खुशी हुई । शुभकामनाएं... बधाइयां...
      परमात्मा करे सब पर सद्गुरु की कृपा ऐसे ही बरसती रहे।
      आचार्य प्रशांत योगी

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